दरअसल : भारतीय बाजार में हॉलीवुड की पैठ

-अजय ब्रह्मात्‍मज

13 नवंबर को रिलीज हुई 2012 के व्यापार ने ट्रेड पंडितों को चौंका दिया है। अंग्रेजी के साथ हिंदी, तमिल और तेलुगु में रिलीज इस फिल्म ने पहले हफ्ते में ही 19.15 करोड़ का बिजनेस किया। 2012 के साथ रिलीज हुई तुम मिले को दर्शकों ने नकार दिया। तुम मिले में 26 जुलाई, 2005 का रेफरेंस था, जबकि 2012 में तीन साल के बाद होने वाले हादसे की कल्पना की गई है।

निश्चित ही हॉलीवुड की 2012 मेकिंग और प्रोडक्शन के लिहाज से महंगी फिल्म है। इस में वीएफएक्स का भरपूर इस्तेमाल किया गया है और कल्पना को दृश्यों में बदलने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लिया गया है। तकनीक और विशेष प्रभाव में पैसे खर्च होते हैं। चूंकि हॉलीवुड का विश्वव्यापी बाजार बहुत बड़ा है, इसलिए वहां निवेश में किसी प्रकार की कंजूसी नहीं की जाती। वे आश्वस्त रहते हैं कि उनकी फिल्मों की लागत निकल आएगी। उन्हें मुनाफा भी होता है। 2012 के बिजनेस को ही ध्यान में रखें, तो बहुत अच्छी फिल्म नहीं होने के बावजूद इसके कलेक्शन ने सबको हैरत में डाल दिया है।

अगर अपने देश की बात करें तो हॉलीवुड की फिल्मों का कारोबार बढ़ा है। स्पाइडर मैन -3 ने भारत में 19 .17 करोड़ के बिजनेस का रिकार्ड हासिल किया था। जेम्स बांड की क्वांटम ऑफ सोलेस ने भी 17 करोड़ से अधिक व्यापार किया था। तीनों ही फिल्में संकेत हैं कि हॉलीवुड की फिल्मों के प्रति भारतीय दर्शकों का झुकाव बढ़ा है। बड़े शहरों में मल्टीप्लेक्स के दर्शक साधारण हिंदी फिल्मों के बजाय हॉलीवुड की फिल्में देखना पसंद करते हैं। विदेशी फिल्मों का दर्शक समूह पहले से देश में मौजूद है। पहले उन्हें नई फिल्मों के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ता था या फिर वीडियो, वीसीडी, डीवीडी का सहारा लेना पड़ता था। इधर कुछ सालों से हॉलीवुड की फिल्में एक साथ भारत समेत पूरी दुनिया में रिलीज हो रही हैं। हॉलीवुड की फिल्मों का जबरदस्त प्रचार बड़े शहरों के एक्सपोस्ड और ग्लोबलाइज्ड दर्शकों को तुरंत आकर्षित करता है।

ऊपरी तौर पर हॉलीवुड की फिल्मों का यह बिजनेस आकस्मिक लगता है, लेकिन गौर करें, तो दर्शकों के रुझान में आ रहे बदलाव का यह एक लक्षण है। खासकर मल्टीप्लेक्स के दर्शक 200 रुपये का टिकट खरीदते समय फिल्मों की क्वालिटी और उनसे होने वाले संभावित मनोरंजन के बारे में सोच लेते हैं। अगर समान दर में उन्हें अपेक्षित मनोरंजन विदेशी फिल्मों से मिलता है, तो वे उसकी तरफ लपक लेते हैं।

फिल्म बाजार के विशेषज्ञ बताते हैं कि अगले सालों में बड़ी संख्या में हॉलीवुड की फिल्में रिलीज होंगी। फिल्मों की संख्या के साथ उनके प्रिंट की भी संख्या बढ़ेगी। 2012 के ही 600 से अधिक प्रिंट चारों भारतीय भाषाओं में रिलीज किए गए। मध्यम श्रेणी की हिंदी फिल्मों के भी इतने प्रिंट बाजार में नहीं आते। हालांकि अभी तक हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों के बाजार को हॉलीवुड की फिल्में हिला नहीं सकी हैं, लेकिन उनकी सेंधमारी जारी है। कभी-कभी उन्हें भारी मुनाफा हाथ लगता है। भारतीय बाजार में धीरे-धीरे हॉलीवुड की फिल्में अपनी पैठ बना रही हैं। सच कहें, तो भारतीय फिल्मों के लिए 2012 की कामयाबी शुभ संकेत नहीं है।


Comments

मुझे लगता है इसके पीछे सबसे बड़ा कारण तकनीकी
प्रभाव है।भारतीय फ़िल्मों में अभी भी उतने रियलिस्टिक एफ़ेक्ट्स नहीं देखने को मिलते जितने हालीवुड की फ़िल्मों में।
हेमन्त कुमार

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