दरअसल:अनुराग, इम्तियाज और विशाल

-अजय ब्रह्मात्मज
अपनी पसंद की फिल्मों के बारे में लिखना सहज नहीं होता। साल की 100 से अधिक फिल्मों में से श्रेष्ठ फिल्मों को चुनना व्यक्तिगत अभिरुचि के साथ इस तथ्य पर भी निर्भर करता है कि व्यापक दर्शक वर्ग ने उन फिल्मों को कैसे रिसीव किया? सन 2009 की बात करूं, तो सबसे पहले तीन युवा निर्देशकों की फिल्मों का उल्लेख करूंगा। अनुराग कश्यप, इम्तियाज अली और विशाल भारद्वाज की फिल्में हिंदी फिल्मों में आ रहे बदलाव का संकेत देती हैं। तीनों फिल्मकार हिंदी प्रदेश के हैं। उन्होंने हिंदी समाज के सोच और मुहावरे को बारीकी से फिल्मों में रखा है। तीनों की अलग शैली है और अपनी विलक्षणता से उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को अचंभित किया है। अनुराग कश्यप की पहली फिल्म पांच थी। लंबे समय तक वह सेंसर की उलझनों और निर्माता की उदासी के कारण डिब्बे में पड़ी रही। इधर किसी ने उसे इंटरनेट पर लीक कर दिया। अभी अनुराग के प्रशंसक उसे इंटरनेट से डाउनलोड कर धड़ल्ले से देख रहे हैं। अनुराग की ब्लैक फ्राइडे पसंद की गई थी, लेकिन उसे फीचर फिल्म नहीं माना गया। फिर भी मुंबई के दंगों पर आधारित ब्लैक फ्राइडे उस समय के विचलित लोगों के मर्म को सामने ले आती है। मार्मिक और मानवीय ब्लैक फ्राइडे को डाक्यूमेंट्री के दर्जे में नहीं डाला जा सकता। अनुराग की नो स्मोकिंग के प्रयोग और प्रतीक को बहुत कम दर्शक समझ पाए। इस साल अनुराग की देव डी और गुलाल को कुछ समीक्षक और दर्शकों ने पसंद किया। दोनों ही फिल्मों में नवीनता और साफगोई के साथ चरित्रों को पेश करने की अनुराग की हिम्मत अच्छी लगी। दोनों ही फिल्में भिन्न किस्म से म्यूजिकल थीं। अनुराग को इंडस्ट्री ने स्वीकार कर लिया है। अब उन्हें एक ऐसी फिल्म बनानी है, जिससे आम दर्शकों के बीच उनकी पहचान बने।
इम्तियाज अली की पहली फिल्म सोचा न था का शीर्षक उनकी कामयाबी पर भी लागू होता है। अभय देओल और आयशा टाकिया की इस फिल्म को समीक्षकों ने इंडस्ट्री के लोग और दर्शकों से ज्यादा पसंद किया। उन्हें जब वी मेट जैसी बड़े बजट की फिल्म मिली। करीना कपूर और शाहिद कपूर की दोस्ती के दिनों में यह फिल्म बनी और उनके अलगाव के समय रिलीज हुई। जब वी मेट की एनर्जी ने सभी को प्रभावित किया। खास कर करीना की अल्हड़ अदायगी और शाहिद के संजीदा अभिनय की वजह से इम्तियाज की इस रोमांटिक फिल्म के जबर्दस्त कामयाबी मिली। इस साल उनकी लव आज कल आई। आशंका थी कि दीपिका पादुकोण और सैफ अली खान के साथ वे रोमांस की लहर पैदा कर पाएंगे या नहीं? फिल्म लगी, तो आशंकाएं निर्मूल निकलीं और पूरा देश इस फिल्म की धुन पर आहूं-आहूं करता नजर आया।
विशाल भारद्वाज संजीदा निर्देशक हैं। उन्होंने मकड़ी से शुरुआत कर जल्दी ही मकबूल से मकबूलियत हासिल कर ली। ब्लू अंब्रेला में उन्होंने फिर से मासूमियत को दर्ज किया, तो ओमकारा में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति के खुरदुरे पहलू को सामने लाए। यह फिल्म राजनीति से अधिक परस्पर संबंधों में शक और संदेह के घात-आघात को चित्रित करती है। इस साल कमीने में विशाल ने मुंबई की पृष्ठभूमि में जुड़वा भाइयों की फरेबी कहानी सुनाई। कमीने पर विदेशी फिल्मकार टैरवाटिवो का असर दिखा, लेकिन विशाल की यही शैली है। वे हिंसा और अपराध के साथ रिश्तों की कहानी भी कहते हैं। कमीने के संगीत की गूंज अभी तक समाप्त नहीं हुई है। देव डी, लव आज कल और कमीने के साथ मुझे स्लमडॉग करोड़पति, लक बाई चांस, दिल्ली 6, फ्रोजेन, संकट सिटी, चिंटू जी, ह्वाट्स योर राशि, जेल और पा भी अच्छी लगीं।

Comments

मेरा बस चले तो इस साल की सबसे बेस्ट फिल्म का अवार्ड "गुलाल" को दे दूँ....पर देखिएगा ....ये कही भी नज़र नहीं आएगी...ओर हाँ सोचा ना थावाज़ रियल ट्रीट

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