क्यूँ न "देसवा" को हिंदी फिल्मो की श्रेणी में समझा जाये ?

मुझे यह समीक्षा रविराज पटेल ने भेजी है। वे पटना में रहते हैं और सिनेमा के फ्रंट पर सक्रिय हैं।

-रविराज पटेल

देसवा की पटकथा उस बिहार का दर्शन करवाती है ,जो पिछले दशक में बिहार का चेहरा कुरूप और अपराधिक छवि का परिचायक बन चूका था .शैक्षणिक ,आर्थिक ,सामाजिक एवं मानसिक रूप से विकलांग बिहार हमारी पहचान हो चुकी थी ,और ज़िम्मेदार जन प्रतिनिधिओं के रौब तले रहना हम जनता की मज़बूरी .
मूल रूप से बिहार के बक्सर जिले के युवा निर्देशक नितिन चंद्रा बक्सर जिले में ही वर्ष २००३-२००४ के मध्य घटी वास्तविक घटनाओं को अपनी पहली फिल्म का आधार बनाया है ,जो संपूर्ण बिहार का धोतक प्रतिबिंबित होता है .
चंपारण टॉकीज के बैनर तले निर्मित देसवा के सितारे हैं - क्रांति प्रकाश झा ,आशीष विद्यार्थी ,नीतू चंद्रा ,पंकज झा ,दीपक सिंह ,अजय कुमार ,आरती पूरी ,एन .एन पाण्डेय ,अभिषेक शर्मा ,नवनीत शर्मा एवं डोल्फिन दुबे जबकि सभी भोजपुरी फिल्मों के तरह देसवा में भी आईटम सोंग का तड़का देने से नही चूका गया है , जिसका मुख्य आकर्षण यह है की फिल्म निर्मात्री एवं बिहार बाला मशहूर अभिनेत्री नीतू चंद्रा स्वय यह न. पेश करती नज़र आती है ,जो आजमगढ़ के ओर्केष्ट्र पार्टी की नृत्यांगना अपने लटके झटके से सिटी ताली बटोरने में कामयाब रहती है .नीतू चन्द्रा भोजपुरी फिल्म में पहली बार नज़र आ रही है .
फिल्म में गीत संगीत मनमोहक एवं कर्णप्रिय है ,गीत आशुतोष सिंह एवं अन्य का है .आशुतोष सिंह के ही संगीत निर्देशन में सोनू निगम ,श्रेया घोषाल ,सुनिधि चौहान ,स्वानंद किरकिरे ,मिका ,शारदा सिन्हा ,भारत शर्मा "व्यास" एवं प्रभाकर पाण्डेय के सुमधुर स्वरों से सजाया गया है .
तकनिकी दृष्टीकोण से देसवा आज के भोजपुरी फिल्मों के व्याकरण से भिन्न, काफी अब्बल नज़र आता है . विशेष विषय को दर्शाता कहानी ,छाया ,प्रकाश,संपादन , कला निर्देशन एवं निर्देशन या फिर पटकथा के अनुकूल लोकशन का चुनाव में नितिन चंद्रा एवं क्रूज़ का दक्षता तथा क्षमता प्रवल प्रतीत होता है .लिहाजा, फिल्मों के कई जानकारों के अनुसार -क्यूँ न "देसवा" को हिंदी फिल्मो की श्रेणी में समझा जाये ?
सिनेमा का आरंभ पटना में मार्च २००५ में घटित दंगे के विरोध मार्च के दृश्य से होती है ,उसी क्रम में पटकथा अक्तूबर २००३ की ओर मुड़ जाती है ,जहाँ तत्कालीन बिहार की विभीषिका बयां कर रही दृश्य के साथ सिनेमा का दृश्यारंभ होता है .यह वह समय होता है ,जब बिहार अनेकानेक समस्याओं से जूझ रहा होता है.
फिल्म, कहानी के मुख्य तीन किरदारों के मध्य घुमती है ,जिसमे केंद्रीय भूमिका पात्र राजीव कुमार भारतीय प्रशासनिक सेवा का इच्छुक प्रतियोगी है , परन्तु संघ लोक सेवा आयोग की कई परीक्षाएं अनुत्तरिण होने के बाद राजीव अपने गाँव वापस लौट आया है .
फिल्म का दूसरा मुख्य किरदार शंकर पाण्डेय जो एक संघर्षशील, स्वाभिमानी एवं नव स्नातक युवा है और असम के गुवाहाटी में रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा के दौरान बुरी तरह पीटा जा चूका है .
तीसरा पात्र चंचल स्वाभाव ,निर्मल दिल और स्वप्निल भोजपुरी गायक, नाम है "जींस" , जो आज कल के प्रचलित भोजपुरी गायकों की तरह नाम और पैसा कमाना चाहता है ,जो फूहड़ता पर कटाक्ष नजर आता है.
तीनों पात्र अपने - अपने दशा और दिशा सँवारने की कोशिश कर रहा है ,किन्तु आर्थिक तंगी, बेरोज़गारी, भ्रष्ट तंत्र व्यवस्था ,सामाजिक विषमता ,लुट ,हत्या ,अपहरण अपने प्रदेश से पलायन करने पर मजबूर तथा राज्य के बाहर अन्य प्रदेशों में बिहारी होने का अपमान पीड़ा सहने की लाचारी .
तीनों पात्र अपनी अपनी स्थिति -परिस्थिति सुदृढ़ करने के लिए मेहनत तो करता है ,लेकिन सरकारी तंत्र व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्ट्राचार ,देश में भाषावाद -प्रान्तवाद का भेदभाव ,गाँव समाज में बाहुबलियों का दबंगई ,जातिगत नरसंहारों की काली छाया ,लड़कियों की शादी-विवाह में दहेज़ प्रथा की मार ऊपर से मंगली दोष जैसे अन्धविश्वास को तबज्जो से परेशानी ,नक्सलवाद का फलना फूलना इत्यादि समस्याओं के चलते कैसे युवा पीढ़ी काविल ,शिक्षित ,मेहनती,इमानदार एवं कुछ करने की ज़ज्बा रखते हुए भी उदासीन सरकार का बेलगाम शासन के आगे बेचारापन एवं बद्द से बद्दतर ज़िन्दगी जीने पर मजबूर युवा पीढ़ी जुर्म का रास्ता अपना कर अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश करता है ,लेकिन जुर्म तो जुर्म होता है ,मसलन एक सुन्दर सपनों को साकार करने के बजाय सलाखों के पीछे जुर्म की सजा कटनी पड़ती है ,नतीजा वह न घर का होता है, न घाट का, "देसवा "इन तमाम समस्याओं को परिभाषित करने मे सफल है .
फिल्म के अंत मे बिहार वर्ष २००३ -०४ से बाहर निकल कर २००५-०६ मे आती है ,और एक नया बिहार ,सुदृढ़ ,समृध औरर सुशासन का राज कायम प्रतीत होता है ,या यूँ कहें की वर्तमान बिहार मे नितीश सरकार को श्रेय दे रहा हो....,जिसे देख कर संतोष ,सुकून एवं सकारात्मक आशाओं का भाव महसूस किया जाता है .
फिल्म के मध्य प्रेम -प्रसंग को भी स्थान दिया गया है ,आज के भोजपुरी अश्लील गानों पर व्यंग और संयुक्त परिवार मे बेरोज़गारी के वज़ह से आपसी कलह को बेबाकी से चित्रण किया गया है .
देसवा मे शत -प्रतिशत (लगभग) कलाकार बिहार के ही हैं ,जिनका कला कौशल किसी मज़े हुए कलाकारों से कम नही दिखती ,फिल्म की अधिकांश शूटिंग भी बिहार के ही विभिन्न स्थानों पर की गई है ,जो पटकथा के अनुकूल है ....

Comments

मैं बहुत शुक्र गुजार हूँ रवि पटेल जी और अजय जी का इस लेख के लिखने और प्रकाशित करने के लिए |

एक फिल्मकार के तौर पर मेरा मानना है की सिनेमा की भाषा छवि और ध्वनी है (audio-visual). कई सारे विभिन्न कलाओं के मिश्रण से एक चल - चित्र तैयार होता है |

जहां तक देसवा को हिंदी फिल्म मानने की बात है तो मैं मुझे लगता है की ये उस सोच से परिभाषित हो रहा हैं, जहां पर भोजपुरी फिल्मों ने एक तरह की जगह बनाई hai जो आज कल के हिंदी फिल्मों के Visual Representation से परे है | देसवा एक खांटी भोजपुरी फिल्म होते ही भी उसी हिंदी जैसे सोचने में कोइ गलत नहीं है | देसवा में उच्चतम कोटी का कैमरा, रा स्टॉक, लाईटिंग, किरदार जो असली दीखते हैं , वेश भूषा, असली लोके शंस और सबसे बड़ी बात की जो भाषा और बोली है देसवा की वोह शत प्रतिशत भोजपुरी है, आरा, बक्सर की |

इसके उच्कातम कोटी के क्वालिटी की वजह से ये ओमकारा या पीपली लाईव जैसी दिखती है |

- Nitin.
लेख का शीर्षक का लेख से कोई तालमेल नहीं है. दूसरी बात कि भोजपुरी में बने हुए सिनेमा को हिन्दी सिनेमा समझने का कोई कारण नहीं है.
और ओमकारा व पीपली लाइव से इसकी तुलना ना ही की जाये...क्योंकि ये फ़िल्म उसके आस पास भी नहीं है.
ajay kumar said…
main pahli baar deswaa ke baare me kuch likh rahaa hun... is liye nahin ki maine is film me kaam kiyaa hai is liye ki ravi raaj ji ne jo baatein likhi hain...wo bhojpuri cinemaa aur bhaashaa ko ek sanmaan aur srijan degaa,,,,main wakayi aabhar wyakt kartaa hun un sabbhi patrkaaron,,sahityakaaron,,,vichaarkon,,,aur mitron kaa jo nitin ki is mushqil koshish me uski madad kar rahein hai...shabdon se,,bhavnaao se...aashaaon se....pratikriyaaon se.....aap sab kaa ye sahyog hame apni koshish me zarur kaamyaab karegaa,,,ajay "JINS"(deswa)
Main shukragujar hoon Ajay sir, Amitesh, Arun Roy, Ajay Ji kaa jo iss film kaa khul kar support kar rahe hain..aaj ye film antar raashtriya star par khyaati praapt karne jaa rahee hai..aur Deswa kee team final version par kaam kar rahee hai..
- Nitin Chandra
9819101860
Raviraj Patel said…
श्री नितिन चन्द्रा जी ,श्री अजय कुमार जी (अभिनेता)
"देसवा " एवं इससे जुड़े तमाम सदस्यों को अपार सफलता मिले, इसके लिए मैं दिल से मंगल कामना करता हूँ एवं शुभकामनायें देता हूँ ,
आपका,
रविराज पटेल
bd said…
सबसे पाहिले ता हम एहे नइखई समझ पावत की हिंदी के बात कहा से आवत बाटे. दूसरकी बात की ओमकारा और पिपली लाइव दुनो दुगो अलग अलग बिषय के सिनेमा बाड़ी सन ओकनी के ता अपने में तुलना ना होसकेला देशवा के साथ काहे तुलना होत बाटे ......
उम्मीद करता हूँ रविराज जी के इस समीक्षा की तरह 'देसवा' फिल्म भी अच्छी होगी.

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