फिल्म समीक्षा : हैप्पी एंडिंग

-अजय ब्रह्मात्मज
 हिंदी फिल्में अपने मसाले और फॉर्मूले के लिए मशहूर हैं। कहा और माना जाता है कि रियल लाइफ में जो नहीं हो सकता, वह सब हिंदी फिल्मों में हो सकता है। 'हैप्पी एंडिंग' इन्हीं मसालों और फॉर्मूलों का मजाक उड़ाती हुई खत्म होती है। राज और डीके अभी तक थ्रिलर फिल्में निर्देशित करते रहे हैं। इस बार उन्होंने रोमांटिक कॉमेडी बनाने की कोशिश की है। उनके पास सैफ अली खान, इलियाना डिक्रूज और कल्कि कोचलिन जैसे कलाकार हैं। ऊपर से गोविंदा जैसे कलाकार का छौंक है।
यूडी बेस्ट सेलर है। उसकी किताब ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है, लेकिन पिछले कुछ सालों से सही हैप्पी एंडिंग नहीं मिल पाने की वजह से कुछ नहीं लिख पा रहा है। अपनी शोहरत और कमाई का इस्तेमाल वह अय्याशी में करता है। उसकी अनेक प्रेमिकाएं रह चुकी हैं। वह किसी के प्रति समर्पित और वफादार नहीं है। प्रेमिकाओं से 'आई लव यू' सुनते ही वह बिदक जाता है। यही वजह है कि उसकी एक प्रेमिका दूसरे लड़के से शादी कर दो बच्चों की मां बन चुकी है। फिलहाल विशाखा उस पर डोरे डाल रही है। यूडी उससे संबंध तोडऩा चाहता है। इस बीच नई लेखिका आंचल का आगमन होता है। आंचल की लोकप्रियता से यूडी असुरक्षित महसूस करता है। परिस्थितियां कुछ ऐसी बनती हैं कि वह आंचल से प्रेम करने लगता है, लेकिन आंचल उसके साथ वैसा ही व्यवहार करती है, जैसा वह अपनी प्रेमिकाओं के साथ करता रहा है।
संबंध भेद, विच्छेद और संवेद की यह फिल्म स्त्री-पुरुष रिश्तों में कथित आधुनिकता से आए असमंजस की कहानी लेकर चलती यह फिल्म हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे दृश्यों का ऊपरी तौर पर मजाक उड़ाती है, लेकिन वैसे ही दृश्यों में रमती है। 'हैप्पी एंडिंग' में हिंदी फिल्मों का एक स्टार अरमान भी है, जो अपनी नई फिल्म के लिए नई कहानी चाहता है। उसकी मुलाकात यूडी से हो जाती है। यूडी का प्रकाशक भी चाहता है कि वह अरमान के लिए कोई कहानी लिख दे। यहां भी यूडी को हैप्पी एंडिंग नहीं मिल पा रहा है। सही हैप्पी एंडिंग की तलाश में यूडी हिंदी फिल्मों के फॉर्मूलों को आजमाना शुरू कर देता है।
कलाकारों में सैफ अली खान अपने एक्टिंग जोन में लौटे हैं। कंफ्यूज किरदारों को वे पर्दे पर अच्छी तरह उतारते हैं। इलियाना डिक्रूज ने अपने किरदार को संयम और शालीनता के साथ निभाया है। वह लगातार इम्प्रूव कर रही हैं। कल्कि कोचलिन अच्छी अभिनेत्री हैं, पर इस भूमिका में वह नहीं जंच पायी हैं। फिल्म के एक आकर्षण गोविंदा हैं। वे अपनी अदाओं से मुग्ध करते हैं। डायरेक्टर ने उन्हें कम नचाया होता तो उनका सही उपयोग हो जाता।
फिल्म का मजेदार पक्ष है अंग्रेजी में उपन्यास लिख रहे और विदेश में बसे भारतीय लेखकों का हिंदी बोलना। हम सभी जानते और शिकायत करते हैं कि हिंदी फिल्मों के कलाकार और तकनीशियन भले ही हिंदी में फिल्में बनाते हों, लेकिन उनके संपर्क और व्यवहार की भाषा अंग्रेजी है। यहां उनका लेखन, प्रकाशन और समाज अंग्रेजी का है, लेकिन वे हिंदी बोलते हैं और हिंदी में गाने गाते हैं। लेखक-निर्देशक को पता होना चाहिए कि ऐसी विसंगति के साथ रची गई कहानी दर्शकों से कनेक्ट नहीं करती। अगर ये किरदार मुंबई या दिल्ली के होते तो कहानी विश्वसनीय लगती।
अवधि: 135 मिनट
abrahmatmaj@mbi.jagran.com

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