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अभिषेक बच्चन का जन्मदिन

आज अभिषेक का जन्मदिन है.पूरा बच्चन परिवार आज जयपुर में है,क्योंकि अभिषेक बच्चन वहाँ राकेश मेहरा की फिल्म दिल्ली-६ की शूटिंग कर रहे हैं.राकेश उन्हें छोड़ना नहीं चाहते थे और परिवार के अन्य सदस्य खाली थे लिहाजा तय हुआ की जन्मदिन जयपुर में ही मनाया जाये। अभिषेक बच्चन को अपने पिता अमिताभ बच्चन की छवि की छाया से निकलने में पांच साल और १६ फिल्में लग गयीं.मशहूर पिता के बेटे होने का नुकसान अभिषेक को उठाना पड़ा है,लेकिन उस नुकसान की तुलना में फायदे अधिक हुए है.दूसरे ऐक्टर तो सवाल करते ही हैं न की अगर अभिषेक के पिता अमिताभ बच्चन नहीं होते तो क्या उन्हें १६ फिल्मों का मौका मिलता?जवाब एक ही होगा की नहीं मिलता। इसके बावजूद अभिषेक अभी जिस स्थिति में हैं और उन्होंने जो थोड़ी जगह बनायीं है,उसमें उनकी मेहनत और लगन है.और फिर दर्शकों ने भी स्वीकार कर ही लिया.युवा के बाद से ही अभिषेक बच्चन की स्वतंत्र पहचान बनी.पिछले साल आई गुरु कथ्य के स्तर पर चाहे जैसी फिल्म हो,लेकिन ऐक्टर अभिषेक बच्चन के नज़रिये से देखें तो उन्होंने एक कठिन भूमिका को साकार किया था। गुरु की बात आई तो चवन्नी आप को बताना चाहता है कि अभिषेक ब

मैंने युवा अकबर का किरदार निभाया है: रितिक रोशन

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-अजय ब्रह्मात्मज रितिक रोशन को इंटरव्यू के लिए पकड़ पाना लगभग उतना ही मुश्किल काम है, जितनी दिक्कत उन्हें किसी फिल्म के लिए राजी करने में किसी निर्देशक को होती होगी। आप अपनी फिल्मों के चुनाव के प्रति काफी सावधान रहते हैं। क्या वजह रही कि जोधा अकबर के लिए हाँ कहा? पीरियड, कॉस्टयूम और अकबर तीनों में से क्या आपको ज्यादा आकर्षित कर रहा था? मेरे लिए अकबर आकर्षण और चुनौती दोनों थे। कोई मिल गया और धूम 2 की मेरी भूमिका को देखते हुए जोधा अकबर में मेरी भूमिका एकदम अलग है। इसके लिए मुझे खास तरह से तैयारी करनी पड़ी। 14 किलो का कवच पहनकर मैंने स्वयं को किसी पुराने योद्धा की तरह से महसूस किया। मेरी कोशिश रही है कि अकबर के बारे में जो भी जानकारी है, उसके आधार पर उनके एटीट्यूड को ईमानदारी से पर्दे पर उतार सकूं। अकबर के लिए मैंने ढेर सारी किताबें पढ़ीं। मुगल काल और अकबर के बारे में सारी जानकारियां एकत्रित कीं। उन्हें आत्मसात किया। शूटिंग शुरू करते समय मैंने सारी जानकारियां दिमाग से निकाल दीं। आप इस फिल्म को किस नजरिये से देखते है? जोधा अकबर का मकसद मनोरंजन करना है, शिक्षा देना या डाक्यूमेंट्री नहीं है। म

हाय रामा, क्या है ड्रामा

-अजय ब्रह्मात्मज लगता है इस फिल्म की सारी क्रिएटिविटी शीर्षक गीत में ही खप गई है। अदनान सामी के गाए गीत में शब्दों से अच्छा खेला गया है। सुनने में भी अच्छा लगता है। इस गीत के चित्रांकन में फिल्म के सारे कलाकार दिखे हैं, लेकिन शुरू के क्रेडिट के समय ही यह गाना खत्म हो जाता है। उसके बाद फिल्म आरंभ होती है, तो फिर उसके खत्म होने का इंतजार शुरू हो जाता है। रामा रामा क्या है ड्रामा में निर्देशक एस चंद्रकांत ने कामेडी क्रिएट करने की असफल कोशिश की है। अमूमन स्फुट विचार को लेकर बनाई गई फिल्मों का यही हश्र होता है। अधूरी कहानी और आधे-अधूरे किरदारों को लेकर फिल्म पूरी कर दी जाती है। इस फिल्म में निर्देशक एक संदेश देना चाहते हैं कि बीवी का जिंदगी में खास महत्व होता है और सफल दांपत्य के लिए पति-पत्नी को थोड़ा बहुत एडजस्ट करना चाहिए। फिल्म का सारा भार राजपाल यादव के कंधों पर है और उनके कंधे इस फिल्म को ढो नहीं पाते। बाकी कलाकारों का उन्हें लापरवाह सहयोग मिला है। हां, फिल्म में अंग्रेजी के गलत शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मिसरा जी (संजय मिश्रा) आते हैं तो राजपाल यादव के साथ उनकी जोड़ी जमती है। अनुपम

लौटे आदित्य चोपड़ा,ले आएंगे ' रब ने बना दी जोड़ी

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बहुत पहले मनमोहन देसाई की एक फिल्म आई थी ' सुहाग '.इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और रेखा थे.उन दिनों दोनों की जोड़ी ने धूम मचा रखी थी.इसी फिल्म का गीत है ' रब ने बना दी जोड़ी '.इस गीत में दोनों की मस्ती और अंतरंगता दिखती है.अब इसी गीत को आधार बना कर आदित्य चोपड़ा अपनी नयी फिल्म की योजना बना रहे हैं। आदित्य चोपड़ा हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के चमत्कारी निर्देशक माने जाते हैं.उनकी पहली फिल्म ' दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ' अभी तक मुम्बई के एक सिनेमाघर में चल रही है.वह १३वें साल में प्रवेश कर चुकी है.आदित्य चोपड़ा कि पहली फिल्म का ऐतिहासिक महत्व हो गया है.उनकी दूसरी फिल्म ' मोहब्बतें ' ज्यादा नहीं चली थी,लेकिन उस फिल्म से अमिताभ बच्चन की दूसरी पारी निखर गयी थी. यह आज से आठ साल पहले की बात है। पिछले आठ सालों में आदित्य चोपड़ा ने यशराज फिल्म्स में बन रही सभी फिल्मों की निगरानी की.उन्होंने कांसेप्ट से लेकर उनकी रिलीज तक पर नज़र रखी.उनमें से कुछ हिट रहीं और कुछ सुपर फ्लॉप साबित हुईं.आदित्य चोपड़ा ने इन आठ सालों में अपना स्टूडियो भी खड़ा किया। यह मुम्बई का आधुनिकतम स्टूडियो

जोधाबाई,हरखा बाई या हीरा कुंवर?

जोधा अकबर की रिलीज में अभी दो हफ्ते की देर है.एक विवाद छेड़ा गया है कि अकबर के साथ जिसकी शादी हुई थी, उस राजपूत राजकुमारी का नाम जोधा बाई नहीं था.एक जाति विशेष के संगठन ने आपत्ति की है और आह्वान किया है कि राजस्थान में इस फिल्म को नहीं चलने देंगे.हो सकता है कि वे अपने मकसद में कामयाब भी हो जाएँ,क्योंकि जब भी किसी फिल्म पर इस तरह की सुपर सेंसरशिप लगी है तो सरकार पंगु साबित हुई है। सवाल है कि अगर राज परिवार के वंशजों को इस नाम पर आपत्ति नहीं है तो बाकी लोगों को इस नाम के उपयोग से गुरेज क्यों है?क्या यह सिर्फ आत्मप्रचार के लिए छेड़ा गया विवाद है?अगर आपत्ति करने वाले जोधा के नाम नाम को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें पहले मुगलेआज़म पर सवाल उठाना चाहिए.१९६० में बनी इस फिल्म ने भारतीय मानस में जोधा और अकबर की ऐसी छवि बिठा दी है कि आशुतोष गोवारिकर के अकबर बने रितिक रोशन और जोधा बनी ऐश्वर्या राय को दिक्कत हो रही है। अपने देश में फिल्मों के साथ विवादों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है.कोई भी कहीं से उठता है और अपनी उंगली दिखा देता है.बाकी लोग भी उसे देखने कगते हैं और फिल्मकार की सालों की मेहनत एकबारगी कठघ

कैरेक्टर में ढलने की जरूरत क्यों?

-अजय ब्रह्मात्मज यह खबर लोगों ने पढ़ी और देखी जरूर होगी। मधुर भंडारकर चाहते हैं कि उनकी फिल्म की नायिका किसी मॉडल की तरह छरहरी दिखे। इसी कारण वे प्रियंका चोपड़ा पर वजन कम करने का दबाव भी डाल रहे हैं। कहा जा रहा है कि शूटिंग के पहले प्रियंका को अपना वजन आठ किलोग्राम घटाना है। वे अभी तक आधे में पहुंची हैं। इस खबर के पीछे का सच यह है कि आजकल निर्देशक चरित्रों के अनुसार एक्टर के कायिक परिवर्तन पर बहुत जोर दे रहे हैं। दरअसल, एक्टर भी इससे आ रहे फर्क को महसूस करने के बाद ऐसे परिवर्तन के लिए सहज ही तैयार हो जा रहे हैं। ज्यादा पीछे न जाएं और पिछले साल की फिल्मों को याद करें, तो तीन एक्टर इस नए ट्रेंड के सबूत के तौर पर दिखते हैं। गुरु में अभिषेक बच्चन, ओम शांति ओम में शाहरुख खान और तारे जमीं पर में आमिर खान॥। सच तो यह है कि इन तीनों ने ही फिल्म के चरित्र के अनुसार अपना वजन बढ़ाने और घटाने के साथ ही शरीर पर अलग ढंग से मेहनत भी की। गुरु के मुख्य किरदार के लिए अभिषेक बच्चन को अपना वजन बढ़ाना पड़ा। मध्यांतर के बाद में वे काफी तोंदिले और मोटे दिखाई पड़ते हैं। तोंद तो विशेष मेकअप से बनाई गई थी, लेकिन

सिगरेट और शाहरुख़ खान

शाहरुख़ खान ने कहा कि फिल्मों में सिगरेट पीते हुए कलाकारों को दिखाना कलात्मक अधिकार में आता है और इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.अगर आप गौर से उस समाचार को पढें तो पाएंगे कि एक पंक्ति के बयान से खेला गया है.फिल्म पत्रकारिता की यही सामाजिकता है। हमेशा बहस कहीं और मुड़ जाती है.सवाल फिल्मों में किरदारों के सिगरेट पीने का नहीं है.सवाल है कि आप उसे अपने प्रचार में क्यों इस्तेमाल करते हैं.क्या पोस्टर पर स्टार की सिगरेट पीती तस्वीर नहीं दी जाये तो फिल्म का प्रचार नहीं होगा ?चवन्नी ने देखा है कि एक ज़माने में पोस्टर पर पिस्तौल जरूर दिखता था.अगर फिल्म में हत्या या बलात्कार के दृश्य हैं तो उसे पोस्टर पर लाने की सस्ती मानसिकता से उबरना होगा. फिल्म के अन्दर किसी किरदार के चरित्र को उभारने के लिए अगर सिगरेट जरूरी लगता है तो जरूर दिख्यें.लेकिन वह चरित्र का हिस्सा बने,न कि प्रचार का। शाहरुख़ खान इधर थोड़े संयमित हुए हैं.पहले प्रेस से मिलते समय कैमरे के आगे वे बेशर्मों की तरह सिगरेट पीते रहते थे.इधर होश आने पर उन्होंने कैमरे के आगे सिगरेट से परहेज कर लिया है.चवन्नी को याद है एक बार किसी टॉक शो म

सिगरेट और शाहरुख़ खान

छोटे कद का उम्दा कलाकार

चवन्नी राजपाल यादव की बात कर रहा है। राजपाल यादव को पहली बार दर्शकों ने प्रकाश झा के सीरियल मुंगेरी के भाई नौरंगी लाल में देखा था.वे सभी को पसंद आये थे.लोगों ने पूछा भी था कि प्रकाश झा कहाँ से मुंगेरी लाल यानी रघुबीर यादव के छोटे भाई को खोज कर ले आये. शयद सरनेम की समानता के कारण ऐसा हुआ था और दोनों की कद-काठी भी मिलती थी.वैसे दोनों ही राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र रहे हैं। राजपाल को फिल्मों का पहला मौका इ निवास की फिल्म शूल में मिला.इस फिल्म में राजपाल यादव ने कुली का छोटा सा रोल किया था.राम गोपाल वर्मा को वह जंच गए.रामू ने उन्हें फिर जंगल में थोड़ा बड़ा रोल दिया.इस फिल्म में वह मुख्य खलनायक सुशांत सिंह से ज्यादा चर्चित हुए.देखते ही देखते राजपाल यादव के पास काम की कमी नहीं रही.उन दिनों राजपाल यादव से चवन्नी की लगातार मुलाकातें होती थीं या कम से कम हर फिल्म की रिलीज के समय बात होती थी कि फिल्म कैसी लगी? इधर राजपाल की फिल्मों की संख्या बढ़ती गयी और उसी अनुपात में वार्तालाप छोटी और कम होती गयी.अब केवल गाहे-बगाहे कभी बात हो जाती है.चवन्नी अपने परिचित कलाकारों की ऐसी व्यस्तता से खुश होता

फिल्मी चलन- एक प्रतिनिधि इंटरव्यू

इन दिनों फिल्म स्टार इंटरव्यू देने से भागते हैं.बेचारे पत्रकारों की समस्या का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.आम तौर पर फिल्म पत्रकारों को ही दोषी माना जाता है और कहा जाता है कि उनके पास सवाल नहीं रहते.ऊपर से फिल्म बिरादरी के लोग शिक़ायत करते हैं कि हम से एक ही तरह के सवाल पूछे जाते हैं। चलिए आपको चवन्नी बताता है कि आम तौर पर ये इंटरव्यू कैसे होते हैं.मान लीजिये एक फिल्म 'मन के लड्डू' रिलीज हो रही है.इसमें कुछ बड़े कलाकार हैं.बड़ा बैनर और बड़ा निर्देशक भी है.फिल्म की रिलीज अगर १ मार्च है तो १५ फरवरी तक प्रोड्यूसर की तरफ से फिल्म का पी आर ओ एक मल्टी मीडिया सीडी भेजेगा.इस सीडी में चंद तस्वीरें,फिल्म की कहानी और फिल्म के कलाकारों की लिस्ट रहती है.इधर सीडी मिली नहीं कि अख़बारों में उसके आधार पर पहली झलक आने लगती है.न प्रोड्यूसर कुछ बताता है और न निर्देशक को फुरसत रहती है.अमूमन फिल्म की रिलीज के दो दिनों पहले तक फिल्म पर काम ही चल रहा होता है। बहरहाल,इसके बाद तय किया जाता है कि फिल्म के स्टार इंटरव्यू देंगे.पत्रकार से पूछा जाता है कि क्या आप इंटरव्यू करना चाहेंगे?अब कौन मना करेगा?बताया जा