क्यों अभिनेता बने बलराज साहनी ?

कहना मुश्किल है कि अगर हंस में बलराज साहनी की कहानी छाप गयी होती तो वे फिल्मों में अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय होते या नही?चवन्नी मानता है कि फिल्मों में उनका आना एक लिहाज से अच्छा ही रहा.हमें एक स्वभावाविक अभिनेता मिल और कई खूबसूरत फिल्में मिलीं.हाँ,अगर वह कहानी अस्वीकृत नही हुई होती तो शायद एक अच्छा लेखक भी मिलता.और यह अलग मिसाल होती जब दो भाई बडे साहित्यकार होते.बलराज साहनी कि फिल्मी आत्मकथा भी किसी साहित्य से कम नही है.किसी प्रकाशक को चाहिए कि इसे पुनः प्रकाशित करे.बलराज साहनी के अभिनेता बनने का निर्णय उन्ही के शब्दों में पढें:


विलायत से वापस आकर मैंने अंग्रजी साम्राज्य का निडरता से खुल्लम-खुल्ला विरोध करना शुरू कर दिया था. यहां तक कि मेरे दोस्त कभी-कभी मेरा ध्यान डिफेंस आफ इंडिया रूल्स की ओर भी दिलाते थे. पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं सब.कुछ छोड़.छाड़कर स्वतन्त्रता-आन्दोलन में कूदने के लिए तैयार हो चुका था. मेरी यह प्रिक्रिया केवल मेरा अहंकार था. विलायत जाकर मैं अपने.आपको अंग्रेजों के बराबर समझने लगा था. इस अहंकार के सम्बंध में उस समय की एक और तस्वीर मेरे सामने आती है. विलायत जाने से पहले मेरी कहानियां 'हंस' में बाकायदा प्रकाशित होती रहती थी. मैं उन भाग्यशाली लेखकों में से था, जिनकी भेजी हुई कोई भी रचना अस्वीकृत नहीं हुई थी. विलायत में चार साल तक मैंने एक भी कहानी नहीं लिखी थी. अभ्यास टूट चुका था. अब मैंने उसे बहाल करना चाहा. एक कहानी लिखकर 'हंस' को भेजी, तो वह वापस आ गई. मेरे स्वाभिमान को गहरी चोट लगी. इस चोट का घाव कितना गहरा था, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उसके बाद मैंने कोई कहानी नहीं लिखी .
चेतन के फिल्मों में काम करने के निमन्त्रण ने जैसे इस चोट पर मरहम का काम किया. फिल्मों का मार्ग अपनाने का कारण यह अस्वीकृत कहानी भी रही.

Comments

बलराज साहनी एक अभिनेता से बड़े लेखक थे. ये बहुत अच्छा हुआ जो वो फ़िल्मों में क़िस्मत आज़माने पहुंचे वरना फ़िल्म जगत के बड़े अछूते पहलू हमारे सामने न आते.उनकी आत्मकथा हमें फ़िल्मों की दुनिया को तटस्थता के साथ देखने की नज़र देती है. वैसे भी चमक की दुनिया में बहुत कम लोग लेखन जैसा श्रमसाध्य काम कर पाते हैं. काश कि हम फ़िल्मों की हर ज़िंदगी को लेखकीय संवेदनशीलता के साथ जान पाते.अगर ऐसा होता बहुत सारे लोग ख़ुद को नशे और डिप्रेशन से बचा पाते. चवन्नी से निवेदन है कि किन फ़िल्मी लोगों ने अपनी आत्मकथाएं लिखी हैं उनकी सूची यहां प्रस्तुत करे.
बलराज सहाब की बात ही निराली है, फिल्‍फे देख कर मजा आ जाता है, आपने बहुत अच्‍छा लिखा है।
Udan Tashtari said…
यह भी एक जानकारी है हमारे लिये. देखिये, कोई रचना अस्विकृत हुई, तो मैं भी द्वार खटखटाऊँगा. अभी तक तो छपने ही नहीं भेजी. :)

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