सिनेमाहौल : निर्माताओं का अतिरिक्त खर्च

 

सिनेमाहौल 

निर्माताओं का अतिरिक्त खर्च 

-अजय ब्रह्मात्मज 

धीरे-धीरे शुरुआत हो गई. फिल्में फ्लोर पर जाने लगी है. छोटे-बड़े निर्माता सरकारी निर्देश के मुताबिक मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करते हुए सुरक्षित माहौल में फिल्मों की शूटिंग कर रहे हैं. इस प्रक्रिया  में निर्माताओं का रोजमर्रा खर्चा बढ़ गया है. फिल्मों के प्रोडक्शन का यह घोषित रिवाज है कि निर्माण का छोटा-बड़ा सभी खर्च निर्माता को ही उठाना पड़ता है. अभी निर्माता को कोविड-19 से बचाव के सारे इंतजाम करने पड़ रहे हैं. उन्हें यह भी सावधानी बरतनी पड़ रही है कि किसी भी फिल्म यूनिट में मूलभूत जरूरत से अधिक कलाकार और तकनीशियन सेट पर एक साथ मौजूद न हों. शूटिंग में एक्टिव सदस्यों को पर्याप्त सुविधा और सहयोग मिले. इससे काम की रफ़्तार थोड़ी धीमी हो गयी है.

पहले आशंका थी कि लोकप्रिय फिल्म स्टार शूटिंग के लिए शायद तैयार ना हों. प्रोडक्शन यूनिट भी किसी प्रकार की जोखिम के लिए तैयार नहीं थी. भला कौन चाहेगा कि किसी भी फिल्म का चेहरा बना कलाकार बीमार और संक्रमित हो जाये. पर्दे की पीछे काम कर रहे व्यक्तियों को तो बदला जा सकता है. छोटे-मोटे किरदारों को निभा रहे कलाकारों की भी अदला-बदली की जा सकती है, लेकिन प्रमुख किरदारों के कलाकारों के संक्रमण से शूटिंग में व्यवधान पड़ा तो सब कुछ रोक देना पड़ेगा. यह कोई असमाप्त धारावाहिक तो है नहीं कि मुख्य कलाकार की अनुपस्थिति में उसकी तस्वीर पर माला डालने से काम चल जाए. कुछ धारावाहिककों मे तो लोकप्रिय कलाकारों को भी बदल दिया जाता है. सूचना के मुताबिक लोकप्रिय स्टार सेट पर आने से पहले पूरी यूनिट का चेकअप करवा रहे हैं. सभी के नेगेटिव होने की ठोस जानकारी मिलने पर ही सेट पर कदम रखते हैं. फिल्मों के साथ ही ऐड की शूटिंग में भी यह सावधानी बरती जा रही है 

बड़े और समृद्ध प्रोडक्शन हाउस ने तो शूटिंग फ्लोर या सेट-लोकेशन के  आसपास होटल किराए पर ले लिए हैं. पूरी यूनिट को वहां टिका दिया गया है. घर जाने की मनाही है. हिंदी फिल्म के मुख्य कलाकार निर्देशक और निर्माता ही घर से आ-जा सकते हैं. यह भी देखा जा रहा है कि अगर किसी के पास निजी कार है और वह खुद ड्राइव कर सकता है तो उसे घर से आने-जाने दिया जा रहा है. बाकी सभी को एक ही जगह पर रहना है. उन्हें किसी अन्य गतिविधि मे संलग्न नहीं होना है. घर-परिवार के सदस्यों से भी उनकी मुलाकात नहीं हो सकती. स्थिति यह हो गई है कि मुंबई में ही आउटडोर का अनुभव हो रहा है. साथ रहना और साथ खाना-पीना. चंद दिनों के लिए दिन-रात फिल्म के बारे में सोचना. इस एकाग्रता से फिल्म का फायदा ही होगा.

शूटिंग पर लौटने के पहले सभी फिल्मों की स्क्रिप्ट में हल्की-फुल्की तब्दीली करनी पड़ी है. जिसकी का छठस्क्रिप्ट की काट-छांट की गई है. दृश्य बदले भी गए हैं. किसी दृश्य में मौजूद कलाकारों के पोजीशन और कॉम्बीनेशन मैं भी बदलाव आया है. हालाकि फिल्म के अंतिम प्रभाव में ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. फिर भी मुमकिन है कि फिल्म देखते समय थोड़ा झटका लगे. दृश्यों के ट्रांजीशन में इस तब्दीली से तारतम्यता हिचकोले खा सकती है. हम सभी जानते हैं कि फिल्मों की कहानी और पटकथा चुस्त और चक-चौबंद राखी जाती है. तात्कालिक तब्दीली से मुश्किलें बढ़ रही हैं.

कोविड-19 ने निर्माताओं को अतिरिक्त खर्च के लिए मजबूर किया है. सभी फिल्मों का बजट 15 से 20 प्रतिशत बढ़ गया है. 50 करोड़ की फिल्म अब 60 करोड़ की हो गई है. इस अतिरिक्त खर्च की भरपाई अभी अलक्षित है. सभी दांव खेल रहे हैं. फिल्म निर्माण खुद में ही जोखिम, अनुमान और उम्मीद का कारोबार है. कोविड-19 के दौर में इनकी मात्रा बढ़ गई है. मानक संचालन प्रक्रिया की वजह से कोविड जांच, सैनीटाईजर, साफ़-सफाई.मास्क आदि के साथ खाने-पीने की चीजों की भी निगरानी में ज्यादा खर्च हो रहा है. निर्मात़ा निर्माणाधीन फिल्मों में किसी प्रकार की कटौती नहीं कर सकते. उन्हें यह अतिरिक्त खर्च उठाना ही पड़ेगा.

 

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