तरह-तरह के प्रचार!




-अजय ब्रह्मात्मज






फिल्म ओम शांति ओम और सांवरिया दोनों फिल्में दीवाली में आमने-सामने आ रही हैं। सच तो यह है कि दर्शकों को अपनी तरफ खींचने के प्रयास में लगी दोनों फिल्में प्रचार के अनोखे तरीकों का इस्तेमाल कर रही हैं। कहना मुश्किल है कि इन तरीकों से फिल्म के दर्शकों में कोई इजाफा होता भी है कि नहीं? हां, रिलीज के समय सितारों की चौतरफा मौजूदगी बढ़ जाती है और उससे दर्शकों का मनोरंजन होता है। सांवरिया का निर्माण सोनी ने किया है। सोनी इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मशहूर कंपनी है। सोनी एक एंटरटेनमेंट चैनल भी है। सोनी के कारोबार से किसी न किसी रूप में हमारा संपर्क होता ही रहता है। सांवरिया की रिलीज के मौके पर सोनी उत्पादों की खरीद के साथ विशेष उपहार दिए जा रहे हैं। अगर आप भाग्यशाली हुए, तो प्रीमियर में शामिल हो सकते हैं और सितारों से मिल सकते हैं। उधर एक एफएम चैनल शाहरुख खान की फिल्म ओम शांति ओम के लिए प्रतियोगिता कर रहा है। विजेताओं को शाहरुख के ऑटोग्राफ किए टी-शर्ट मिलेंगे। टीवी के कार्यक्रमों, खेल संबंधित इवेंट और सामाजिक कार्यो में दोनों ही फिल्मों की टीमें आगे बढ़कर हिस्सा ले रही हैं। कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा देर तक हमारी-आपकी आंखों के सामने उनकी छवि नाचती रहे। शायद उन्हें यह भ्रम है कि इससे फिल्मों के दर्शक बढ़ते हैं!




गौर करें, तो इस तरह के हर इवेंट और प्रचार के पीछे फिल्म के निर्माता और कंज्यूमर प्रोडक्ट या इवेंट के व्यावसायिक हित जुड़े हैं। अगर सीधे रूप में पैसों का हस्तांतरण नहीं हो रहा है, तो भी परस्पर हित में मुफ्त प्रचार किया जा रहा है। कंज्यूमर प्रोडक्ट के मालिकों को लगता है कि उनके उत्पाद के बारे में दर्शकों की जानकारी फिल्मी सितारों के बहाने बढ़ रही है और फिल्म निर्माता इस गलतफहमी में खुश रहता है कि बगैर कोई पैसा खर्च किए उसकी फिल्म का प्रचार हो गया! एड व‌र्ल्ड के जानकार ही ठीक-ठीक बता सकते हैं कि ऐसे इवेंट या प्रचार से फिल्म और कंज्यूमर प्रोडक्ट को फायदा होता है या नहीं? अभी क्रिकेट का माहौल बना था, तो सांवरिया और ओम शांति ओम की टीम क्रिकेट खिलाडि़यों के साथ दिख रही थी। यहां तक कि महेंद्र सिंह धोनी और दीपिका पादुकोण के नैन-मटक्के के किस्से भी चलाए गए। कैमरा हमें दिखा रहा था, लेकिन बातें आंखों से हो रही थीं, इसलिए कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था। हां, रिपोर्टर का वॉयसओवर जरूर सारी बातें बता रहा था। उधर युवराज सिंह और सोनम कपूर में रोमांटिक झड़प हो गई, जिसमें सलमान खान ने बीच-बचाव किया। ताज्जुब है कि यह सब फिल्म प्रचार के नाम पर किया जा रहा है। इस प्रचार में फिल्म की कोई बात नहीं होती। केवल फिल्म वालों की बात होती है। सितारे दिखते हैं और समझ लिया जाता है कि दर्शक के दिमाग में फिल्म बैठ गई।




शाहरूख हों या आमिर खान.., इन दोनों की फिल्मों की रिलीज के समय आवश्यक रूप से इनके द्वारा प्रचारित किसी न किसी कंपनी के नए प्रोडक्ट बाजार में जरूर आते हैं। चूंकि फिल्म की रिलीज के समय ये आसानी से उपलब्ध होते हैं, इसलिए कंपनियां भी लाभ उठाने की कोशिश करती हैं। प्रचार के इन अनोखे तरीकों से स्टारों का बाजार भाव और प्रभाव जरूर बढ़ता है और कंज्यूमर प्रोडक्ट का प्रचार भी हो जाता है। अगर थोड़ा पलटकर देखें, तो इस तरह के प्रचार से फिल्मों का कोई फायदा नहीं होता। फिल्म अच्छी और रोचक होती है, तभी चलती है। दर्शक पहले दिन के पहले शो तक में सिनेमाघरों का रुख नहीं करते। हां, इन दिनों चल रहे अनोखे प्रचार से उनका मनोरंजन और टाइम पास जरूर होता है, जो बगैर पैसे खर्च किए टीवी और अखबारों से मिल जाता है।

Comments

Anonymous said…
kyon bura mante ho aap?film bech rahe hain to prachaar to karenge na?
टीवी के चाकलेटी पत्रकारों को आसानी से रिर्पोट बनाने मिल जाती है, ऐसी फिल्मों के आने से। अच्छा है ना, सब कमा रहे है।
Udan Tashtari said…
मजा तो आ रहा है इस तरह के प्रचार के नये प्रयोगों को देखकर.

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को