फ़िल्म समीक्षा-राज़

-अजय ब्रह्मात्मज
डर व सिहरन तो है लेकिन..
राज-द मिस्ट्री कंटीन्यूज में मोहित सूरी डर और सिहरन पैदा करने में सफल रहे हैं, लेकिन फिल्म क्लाइमेक्स में थोड़ी ढीली पड़ जाती है। इसके बावजूद फिल्म के अधिकांश हिस्सों में मन नहीं उचटता। एक जिज्ञासा बनी रहती है कि जानलेवा घटनाओं की वजह क्या है? अगर फिल्म के अंत में बताई गई वजह असरदार तरीके से क्लाइमेक्स में चित्रित होती तो यह फिल्म राज के समकक्ष आ सकती थी।
नंदिता (कंगना रानाउत) और यश (अध्ययन सुमन) एक-दूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं। नंदिता का सपना है कि उसका एक घर हो। यश उसे घर के साथ सुकून और भरोसा देता है, लेकिन तभी नंदिता के जीवन में हैरतअंग्रेज घटनाएं होने लगती हैं। हालांकि उसे इन घटनाओं के बारे में एक पेंटर पृथ्वी (इमरान हाशमी) ने पहले आगाह कर दिया था। आधुनिक सोच वाले यश को यकीन नहीं होता कि नंदिता किसी प्रेतात्मा की शिकार हो चुकी है। नंदिता अपनी मौत से बचने के लिए पृथ्वी का सहारा लेती है और कालिंदी नामक गांव में पहुंचती है। उसे पता चलता है कि एक आत्मा अपने अधूरे काम पूरे करने के लिए ही यह सब कर रही है। उसका मकसद गांव के पास स्थित कीटनाशक फैक्ट्री को बंद करवाना है, ताकि वार्षिक मेले में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु कुंड के विषैल जल से बीमार न हों।
मोहित सूरी ने आस्तिक और नास्तिक दोनों तरह के दर्शकों को फिल्म से जोड़ने की कोशिश की है जिसके लिए कबीर के दोहों का सहारा लिया गया है, लेकिन क्लाइमेक्स में निर्देशन कमजोर पड़ जाने के कारण हॉरर फिल्म का रोमांच चला जाता है। कहीं-कहीं नकल भी की गई है। विक्रम भट्ट ने 1920 में भूत को भगाने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करवाया था, तो इस फिल्म में मोहित ने किरदारों के हाथ में गीता थमा दी है। शापित युवती की भूमिका के साथ कंगना ने न्याय किया है। सीरियल किसर इमेज से उबरे इमरान हाशमी अच्छे लगते हैं। फिल्म की उपलब्धि अध्ययन सुमन हैं। उनका आत्मविश्वास पर्दे पर दिखता है। मुश्किल दृश्यों में नए होने के कारण लड़खड़ाने के बावजूद पर्दे पर उनका आत्मविश्वास झलकता है।
**1/2

Comments

Anonymous said…
ज़रूर देखेंगे, फिर बोलेंगे, समीक्षा तो बहुत ख़ूब रही

---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
आपकी बातों का एक ही मतलब निकाल रहा हूं कि यह फिल्‍म एक बार देखी जा सकती हा।

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