फ़िल्म समीक्षा:चिंटू जी

-अजय ब्रह्मात्मज
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रंजीत कपूर का सृजनात्मक साहस ही है कि उन्होंने ग्लैमरस, चकमक और तकनीकी विलक्षणता के इस दौर में चिंटू जी जैसी सामान्य और साधारण फिल्म की कल्पना की। उन्हें ऋषि कपूर ने पूरा सहयोग दिया। दोनों के प्रयास से यह अद्भुत फिल्म बनी है। यह महज कामेडी फिल्म नहीं है। हम हंसते हैं, लेकिन उसके साथ एक अवसाद भी गहरा होता जाता है। विकास, लोकप्रियता और ईमानदारी की कशमकश चलती रहती है। फिल्म में रखे गए प्रसंग लोकप्रिय व्यक्ति की विडंबनाओं को उद्घाटित करने के साथ विकास और समृद्धि के दबाव को भी जाहिर करते हैं।
यह दो पड़ोसी गांवों हड़बहेड़ी और त्रिफला की कहानी है। नाम से ही स्पष्ट है कि हड़बहेड़ी में सुविधाएं और संपन्नता नही है, जबकि त्रिफला के निवासी छल-प्रपंच और भ्रष्टाचार से कथित रूप से विकसित हो चुके हैं। तय होता है कि हड़बहेड़ी के विकास के लिए कुछ करना होगा। पता चलता है कि मशहूर एक्टर ऋषि का जन्म इसी गांव में हुआ था। उन्हें निमंत्रित किया जाता है। ऋषि कपूर की राजनीतिक ख्वाहिशें हैं। वह इसी इरादे से हड़बहेड़ी आने को तैयार हो जाते हैं। हड़बहेड़ी पहुंचने के बाद जब जमीनी सच्चाई से उनका सामना होता है तो उनके अहंकार, स्वार्थ और सोच को चोट लगती है। देश के सुदूर इलाके में बसे हड़बहेड़ी गांव के भोले लोग अपनी सादगी से अहंकारी, पाखंडी और स्वार्थी ऋषि कपूर के हृदय परिव‌र्त्तन कर देते हैं।
सच और कल्पना के ताने-बाने से तैयार की गई यह फिल्म नए शिल्प का इस्तेमाल करती है। अभिनेता ऋषि कपूर के जीवन के वास्तविक तथ्यों और प्रसंगों को काल्पनिक घटनाओं से जोड़ कर रंजीत कपूर ने रोचक पटकथा लिखी है। गांव के सीधे-सादे लोगों से लेकर मुंबई के चालाक फिल्म निर्माता मलकानी और राजनीतिक दलाल अमर संघवी तक इस फिल्म में हैं। फिल्म के कई रेफरेंस वास्तविक हैं और फिल्म देखते समय हम उनका आनंद भी उठाते हैं।
कामेडी के नाम पर हिंदी फिल्मों में चल रही भेड़चाल से इतर है चिंटू जी। रंजीत कपूर ने दर्शकों को हंसाने-रुलाने का सादा तरीका चुना है। इस फिल्म में कोई तकनीकी चमत्कार या सिनेमाई कौशल का इस्तेमाल नहीं किया गया है। फिल्म सीधे दिल में उतरती है और गुदगुदाती है। हां, फिल्म में रंगमंच का प्रभाव है। रंजीत कपूर का रंगमंच से लंबा संबंध रहा है, इसलिए यह प्रभाव स्वाभाविक है। चिंटू जी सामाजिक विडंबनाओं पर चोट करने के साथ मनोरंजन के चालू और स्वीकृत फार्मूले को भी निशाना बनाती है। रोमांटिक गीत, आयटम सांग और फिल्म की शूटिंग के दृश्यों में रंजीत कपूर ने प्रचलित लोकप्रिय शैली पर बारीकी से कटाक्ष किया है।
अभिनेताओं में यह फिल्म पूरी तरह से ऋषि कपूर पर निर्भर है। उन्होंने शिद्दत से अपनी जिम्मेदारी निभायी है। प्रियांशु चटर्जी, कुलराज रंधावा, सौरभ शुक्ला और ग्रुशा कपूर ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। बूढ़ी दाई की भूमिका में शबनम कपूर विशेष ध्यान खींचती हैं।

Comments

kulwant happy said…
एक शानदार समीक्षा है..इसको पढ़कर फिल्म देखने की इच्छा और बढ़ गई। मैं आपकी समीक्षा पर भरोसा करता हूं।
फिल्म की समीक्षा को आपने तठस्थ रूप में प्रस्तुत किया है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

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