दरअसल : फ्रांस की फिल्म इंडस्‍ट्री


फ्रांस की फिल्म इंडस्ट्री

फ्रांस सरकार द्वारा लता मंगेशकर को वहां के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से विभूषित करने के मौके पर मुंबई में छह फ्रांसीसी फिल्मों का प्रदर्शन भी किया गया। इन फिल्मों के निर्देशक और कलाकार भी पहली बार मुंबई आए थे। उन्होंने सुन रखा था कि मुंबई भारत की सबसे उर्वर फिल्म इंडस्ट्री है। फ्रांस की तीन डायरेक्टरों से मेरी निजी बात-मुलाकात हुई। यहां मैं उनके नजरिए से फ्रांसीसी फिल्म इंडस्ट्री के बारे में कुछ बताना चाहता हूं।

विश्व के दूसरे देशों की तरह ही फ्रांस में भी हॉलीवुड की फिल्में काफी पॉपुलर हैं। अमेरिकी समाज के विश्वव्यापी प्रभुत्व की वजह से यूरोपीय और पश्चिमी देशों के लिए फिल्मों समेत अमेरिकी संस्कृति की तमाम चीजें अनुकरणीय मानी जाती हैं। मीडिया विस्फोट के इस दौर में युवकों को स्थानीय, जातीय और राष्ट्रीय विशेषताओं तक सीमित रखना मुश्किल काम हो गया है। ग्लोबलाइजेशन के चक्कर में हर देश के यूथ अमेरिकी कल्चर की नकल करने में लगे हैं। पढ़े-लिखे और जागरूक युवक अपने देश की फिल्मों से अधिक हॉलीवुड की फिल्मों के बारे में जानते हैं। भारत के शहरी युवकों की तरह फ्रांस के शहरी युवक भी अपने देश की फिल्मों को पिछड़ा मानते हैं। स्थानीय दर्शकों के अभाव में फ्रांसीसी सिनेमा की बुरी स्थिति है। हालांकि फ्रांस सरकार फ्रांसीसी भाषा में बनी फिल्मों को सब्सिडी और दूसरी सहूलियतें भी देती है, लेकिन स्वतंत्र निर्माता फिल्में बनाने का जोखिम नहीं उठाते। हां, कुछ टीवी चैनल जरूर फिल्मों में निवेश करते हैं।

फ्रांस का सिनेमा अपनी कलात्मकता और रोमांटिसिज्म के लिए मशहूर रहा है। फ्रांस के फिल्मकार छठे दशक से ही न्यू वेव सिनेमा के पक्षधर रहे और उन्होंने फिल्मों में काफी नए प्रयोग किए। फ्रांस, इटली, जर्मनी के साथ कम्युनिस्ट शासित अन्य देशों में हॉलीवुड की प्रचलित शैली से भिन्न वास्तविक और यथार्थवादी फिल्मों का निर्माण हुआ। इसका कमोबेश असर भारत पर भी हुआ। बंगाल के सत्यजित राय, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन के साथ हिंदी में श्याम बेनेगल नए सिनेमा के पुरोधा रहे। फ्रांसीसी सिनेमा की कलात्मकता ने भारतीय सिनेमा को भी प्रभावित किया था।

गौर करें, तो फिल्मों के उम्दा सिद्धांतकार और समीक्षक भी फ्रांस में उभरे। उनमें से कुछ फिल्म निर्देशक भी बने। उन्होंने लिखने और सिद्धांत गढ़ने के साथ फिल्मों की भाषा, शैली और शिल्प में भी परिवर्तन किए। फ्रांस के युवा निर्देशकों ने बताया कि अभी प्रयोगशीलता पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। निर्माता का दबाव रहता है कि पॉपुलर टेस्ट की फिल्में ही बनाई जाएं, ताकि निवेशित धन निकल सके। इस दबाव के बावजूद युवा और नए फिल्मकार हमेशा अभिव्यक्ति की संतुलित युक्ति निकाल लेते हैं। उनकी फिल्में स्वयं ऐसी युक्तियों से ही बन पाई थीं।

फ्रांसीसी सिनेमा पर हॉलीवुड की फिल्मों का दबाव है, क्योंकि पब्लिसिटी, मेकिंग और स्टारडम से वे फिल्में फ्रांस के युवा दर्शकों को ज्यादा आकर्षित करती हैं। फ्रांस की अपनी फिल्मों के अधिकतम दो-तीन सौ प्रिंट ही जारी हो पाते हैं। टीवी चैनलों के जरिए अवश्य ही आम दर्शकों तक फ्रांसीसी फिल्में पहुंच जाती हैं, लेकिन इस तरीके से पर्याप्त कमाई नहीं हो पाती। युवा फिल्मकारों को विश्वास है कि वे फिल्मों में अपनी सांस्कृतिक अस्मिता बचाए रखेंगे। फ्रांसीसी समाज में एक समूह अपनी संस्कृति की अक्षुण्णता के लिए जागरूक है। उनकी सक्रियता से फिल्मों को भी दर्शक मिलते हैं और फ्रांस का सिनेमा देश के बाहर भी पहुंचता है। अमेरिका अपनी फिल्में तो फ्रांस में बेरोक भेजता है, लेकिन अमेरिका में फ्रांसीसी फिल्मों के प्रदर्शन में कई अड़चनें आती हैं।

इस बातचीत में मजेदार तथ्य सामने आया कि फ्रांस में हिंदी फिल्में ज्यादा पॉपुलर नहीं हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कुछ निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों के बहाने शोर मचाते हैं कि उन्होंने फ्रांस के बाजार में प्रवेश कर लिया है। इन खबरों में अधिक सच्चाई नहीं है। सिर्फ एक निर्देशक ने बताया कि उसने रामगोपाल वर्मा की भूत देखी है। बाकी निर्देशक यह तो जानते थे कि हिंदी फिल्मों में नाच-गाने होते हैं, लेकिन उन्हें किसी फिल्म या स्टार का नाम याद नहीं।


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