फिल्‍म समीक्षा : प्रिंस

एक्शन से भरपूर 

-अजय ब्रह्मात्‍मज  

हिंदी फिल्मों में प्रिंस की कहानी कई बार देखी जा चुकी है। एक तेज दिमाग लुटेरा, लुटेरे का प्रेम, प्रेम के बाद जिंदगी भी खूबसूरती का एहसास, फिर अपने आका से बगावत, साथ ही देशभक्ति की भावना और इन सभी के बीच लूट हथियाने के लिए मची भागदौड़ (चेज).. प्रिंस इसी पुराने फार्मूले को अपनाती है, लेकिन इसकी प्रस्तुति आज की है, इसलिए आज की बातें हैं। मेमोरी, चिप, कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर आदि शब्दों का उपयोग संवादों और दृश्यों में ता है। यह फिल्म एक्शन प्रधान है। शुरू से आखिर तक निर्देशक कुकू गुलाटी ने एक्शन का रोमांच बनाए रखा है।

फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं है। एक नया मोड़ यही है कि प्रिंस की याददाश्त किसी ने चुरा ली है। छह दिनों में उसकी याददाश्त नहीं लौटी तो रोजाना अपने दिमाग में लगे चिप के क्रैश होने से वह सातवें दिन जिंदा नहीं रह सकता। समस्या यह है कि याददाश्त खोने के साथ वह अपनी आखिरी लूट के बारे में भी भूल गया है। उस लूट की तलाश देश की सरकार, विदेशों से कारोबार कर रहे अंडरव‌र्ल्ड सरगना और स्वयं प्रिंस को भी है। इसी तलाश में जमीन, आसमान, नदी, पहाड़ और इमारतें नापी जाती हैं। मोटर सायिकल, कार, हेलीकॉप्टर, नदी में उलटी कार और मोटर बोट पर यह चेजिंग चलती है, जो साउंड इफेक्ट और कैमरे के करतब से हैरतअंगेज लगती है। फिल्म देखते समय रोमांच बना रहता है, जैसे कि किशोर उम्र में हम सभी घंटों वीडियो गेम खेलते नहीं थकते और रोमांचित रहते हैं।

इस फिल्म में कहानी और इमोशन न खोजें। हालांकि दो-चार प्रेम, आलिंगन और चुंबन के हैं, लेकिन उनसे कहानी नहीं बनती। याददाश्त खोने के बाद माया के रूप में आई तीन लड़कियों के साथ कहानी को इंटरेस्टिंग ट्विस्ट और टर्न दिया जा सकता था, लेकिन डायरेक्टर का लक्ष्य एक्शन था। उन्होंने उसी पर पूरा ध्यान दिया है।

एक्शन के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म अच्छी लगेगी। विवेक ओबेराय और उनके साथ आए दूसरे कलाकारों ने पूरी मेहनत की है और रोमांच का लेवल फीका नहीं होने दिया है। खास कर विवेक ओबेराय टेकनीक सैवी एक्शन हीरो के रूप में जंचे हैं। उनकी भाव-भंगिमा और फुर्ती एक्शन दृश्यों में जमती है। एक्शन के दृश्यों में कई बार लाजिक को दरकिनार कर दिया जाता है। निर्देशक कुकू गुलाटी अपनी सुविधा के लिए प्रिंस में भी ऐसी लिबर्टी लेते हैं। तीनों लड़कियों में नंदना सेन और अरुणा शिल्ड के हिस्से ही कुछ सीन आए हैं। अरुणा रोमांटिक और एक्शन दृश्यों में निराश नहीं करतीं। फिल्म के गीत मधुर हैं। एक्शन फिल्म में रोमांटिक गीत की गुंजाइश निकाली है निर्देशक ने। सचिन गुप्ता का संगीत कर्णप्रिय है।

*** तीन स्टार

Comments

manik said…
bahut theek.film samikhyayen bahut kam hee padhane ko milati hai.likhate rahen.please

Popular posts from this blog

तो शुरू करें

फिल्म समीक्षा: 3 इडियट

सिनेमालोक : साहित्य से परहेज है हिंदी फिल्मों को