दरअसल : स्टारहीन फिल्में भी देखते हैं दर्शक

-अजय ब्रह्मात्‍मज

पहले लव सेक्स और धोखा, फिर उड़ान और जल्दी ही पीपली लाइव आएगी। तीनों फिल्मों में कुछ जबरदस्त समानताएं देखी जा सकती हैं। इनमें से किसी भी फिल्म में कोई परिचित और पॉपुलर स्टार नहीं है और न ही इनमें हिंदी फिल्मों की प्रचलित चमक-दमक है। दिबाकर बनर्जी की फिल्म लव सेक्स और धोखा के कलाकारों के नाम अब शायद ही याद हों, लेकिन उस फिल्म के किरदारों को हम नहीं भूल सकते। इसी प्रकार उड़ान के बाल और किशोर कलाकारों का नाम फिल्म की रिलीज के पहले कोई नहीं जानता था। यह मुमकिन है कि कुछ महीनों बाद हम उनके नाम फिर भूल जाएं, लेकिन रोहन और अर्जुन को हम नहीं भुला सकते। आमिर खान के होम प्रोडक्शन की फिल्म पीपली लाइव की भी यही विशेषता है। इस फिल्म के कलाकारों में मात्र रघुवीर यादव को हम थोड़ा-बहुत जानते हैं। उनके अलावा कोई भी कलाकार हिंदी फिल्मों के आम दर्शकों से पूर्व परिचित नहीं है। तीनों स्टारहीन फिल्मों की खासियत है कि इनके विषय स्ट्रांग हैं और सारे कैरेक्टर अच्छी तरह गढ़े गए हैं। इनमें दर्शकों को रिझाने के लिए किसी भी फॉर्मूले का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

लव सेक्स और धोखा नुकसान में नहीं रही। एकता कपूर जैसी कॉमर्शियल प्रोड्यूसर भी दिबाकर बनर्जी की फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से संतुष्ट रहीं। रिलीज से पहले ही कान फिल्म फेस्टिवल में नामांकित होने के कारण उड़ान के बारे में सभी जान गए हैं। इस फिल्म को समीक्षकों की भरपूर सराहना मिली है। उम्मीद की जा सकती है कि उसी अनुपात में दर्शक भी पसंद करें। पीपली लाइव की बात करें, तो फिल्मों के प्रचार में निपुण आमिर खान वे अपने खास शैली से इसे लाइमलाइट में ला दिया है। उनकी वजह से इस फिल्म के प्रति जिज्ञासा बढ़ गई है। हालांकि एक प्रोमो में उन्होंने खुद का ही मजाक उड़वाया है और यह संदेश दिया है कि हर फिल्म लगान नहीं होती। कायदे की बात करें, तो पीपली लाइव से लगान जैसी उम्मीद करना उचित नहीं है। यह फिल्म लागत निकालने के साथ थोड़ा मुनाफा कमा ले, तो भी आमिर खान की पहल से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों के कॉमर्शियल प्रोड्यूसर ऐसी फिल्मों में धन लगाने के लिए आगे आ सकते हैं। इससे हिंदी सिनेमा का आवश्यक विस्तार होगा। तीनों फिल्मों की चर्चा, जिज्ञासा और तदनंतर कामयाबी से संकेत मिल रहा है कि हिंदी सिनेमा नए तरीके से फैल रही है और नए दर्शक भी जुटा रही है।

इस स्तंभ में मैं लगातार दोहराता रहा हूं कि कंटेंट स्ट्रॉन्ग हो तो दर्शक फिल्में पसंद करते हैं। दर्शकों को पॉपुलर स्टार अच्छे लगते हैं। उन्हें नाचते-गाते देखकर उनका मन रमता है। उन्हें ऐक्शन दृश्यों में देखकर वे रोमांचित होते हैं। फिर भी ऐसे पारंपरिक दर्शक हमेशा नए विषयों पर नए तरीके से बनी फिल्मों का स्वागत करते हैं। वे इसमें न तो स्टार खोजते हैं और न ही नाच-गाने की उम्मीद रखते हैं। मनोरंजन पर जोर देने वालों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि रियल, वास्तविक और सामाजिक विषयों पर बनी फिल्में भी पर्याप्त मनोरंजन करती हैं। गौर करें, तो इन तीनों फिल्मों के नायक आम आदमी हैं। हम सभी उन्हें रोजाना अपने आसपास और परिवारों में देखते हैं। उनकी जिंदगी की जटिलताएं भी रोचक हैं। अपनी लड़ाई में उनकी जीत या हार हमें प्रेरित करती है। जीवन का बेहतर पक्ष दिखाती है।

अच्छी बात है कि दर्शक ऐसी फिल्मों को पसंद कर रहे हैं। फिलहाल एक दिक्कत जरूर है कि जिस तरह पैरेलल सिनेमा के दौर में मीडिया ने श्याम बेनेगल सरीखे फिल्मकारों का समर्थन किया था, वैसा समर्थन दिबाकर बनर्जी, विक्रमादित्य मोटवाणी और अनुषा रिजवी को नहीं मिल पा रहा है। मीडिया थोड़ी उदारता दिखाए और ग्लैमर का चश्मा उतार कर इनके बारे में पाठकों को समय से जानकारी दे, तो हम हिंदी सिनेमा में श्रेष्ठ और सार्थक फिल्मों की तरफ बढ़ सकते हैं। स्टारहीन फिल्मों के लिए भी दर्शक जुटा सकते हैं।


Comments

Parul kanani said…
sir..'tere bin laden' ko to aap bhool hi gaye ...amazing concept tha is movie ka bhi :)
chavannichap said…
@parul tab tak tere bin laden nahin dekh paya tha.

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