वक्‍त के साथ लोकगीत बन जाते हैं फिल्‍मी गीत


राज्‍य सभा में जावेद अख्‍तर ने कापीराइट मामले में मार्मिक बातें रखीं। चवननी के पाठकों से इसे शेयर करना जरूरी लगा।
Mr. Vice-Chairman, Sir, I must immediately declare that whatever I speak here will have something to do with this Bill under consideration, which has something to do with the music industry. I work for the music industry. My relationship with music is like a farmer’s relationship with agriculture, or, a lawyer’s relationship with judiciary. So, I hope, it will not be considered as any kind of conflict of interest.
दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूं कि मैं तीन बरस से यह स्‍पीच तैयार कर रहा था, मेरे पास बहुत नोट्स हैं और बहुत मैटीरियल हैं, लेकिन मैंने उसे फेंक दिया, इसलिए कि जब मैं यहां बैठा था और सुन रहा था, तो मुझे लगा कि कुछ और भी बातें हैं, शायद जो बात मैं कह रहा हूं, उससे भी ज्यादा हैं। मैं एक writer हूं, मैं एक lyricist हूं, लेकिन इन तमाम चीजों से पहले मैं एक हिंदुस्‍तानी हूं और जब मुझे मालूम होता है, यह तो 60-65 साल पहले की बात है कि लकीर पुंछ से खींची गयी है, ये तो हिंदुस्‍तानी हैं, जो वहां trapped हैं। ये कौन लोग हैं?
ये आज से 65 साल पहले तो हिंदुस्‍तानी ही थे। ये वहां घिरे हुए हैं। इनमें और अंगोला में जो हिंदुस्‍तानी हैं, उन दोनों में कोई फर्क नहीं है। हमारा फर्ज है कि हम बहुत संजीदगी से इसके बारे में सोचें, लेकिन मुझे यहां जो बातें सुनने को मिलीं, वे एक आदमी के बारे में, एक incident के बारे में सुनने को मिलीं। Incident और आदमी बड़े मामूली होते हैं, पीछे होता है जहन, पीछे होती है ideology, पीछे होती है thinking, पीछे होता है mindset. पाकिस्‍तान का mindset क्या है? आप किस मुल्‍क से मांग रहे हैं कि वह अपनी minority को सही तरीके से ट्रीट करे? जिस मुल्‍क की बुनियादों में ही नफरत डाली गयी है, जो नफरत की वजह से बना है, आप उससे कह रहे हैं आप अपनी minority को ठीक से ट्रीट करिए। अगर वह अपनी minority के साथ सही सुलूक करे, अगर वह हर इंसान को इंसान समझे, अगर वह हर citizen को बराबर का citizen समझे, तो पाकिस्‍तान क्‍यों बनाया था?
मेरा एक शेर है -
मेरी बुनियादों में कोई टेढ़ थी,
अपनी दीवारों को क्या इल्‍जाम दूं?

इसकी बुनियाद में टेढ़ है, आप इसकी दीवारों को सीधा करने के लिए कह रहे हैं, ये कैसे सीधी होगी? ये दीवारें तो टूटेंगी ही, और कुछ नहीं होने वाला। दीवार 1971 में टूटी थी, दीवार फिर टूटेगी। ये बड़ा politically correct statement है “We want a stable Pakistan”. मुझे तो politics में नहीं जाना है, न कोई पार्टी join करनी है, न मुझे किसी का वोट चाहिए। I do not want a stable Pakistan because it is not possible, it is beyond any possibility. जिस चीज पर वह बना है, वह stable हो ही नहीं सकती।
आज बलूचिस्‍तान का जो चीफ है, BLA का जो चीफ है, दो बरस पहले उसने एक स्‍टेटमेंट दिया था, edict जारी किया था कि बलूचसि्‍तान में कोई भी हिंदू, कोई भी क्रशि्चियन, कोई भी पारसी is most welcome, लेकिन कोई भी पंजाबी मुसलमान और कोई उर्दू स्‍पीकिंग मुसलमान यानी मुहाजिर हम यहां accept नहीं करेंगे। That much for the religious identity. आप तो मुसलमान तब तक हैं, जब तक हिंदू हैं। जब हिंदू ही खत्म कर दिये, तो आप शिया हो गये, सुन्नी हो गये, पता नहीं क्या-क्या हो गये? पहले तो सब मुसलमान थे, जब पाकिस्‍तान बन रहा था। फिर अहमदिया नहीं रहे, कादियानी नहीं रहे, अब कहते हैं कि शिया, मुसलमान नहीं हैं। दो रवैये हैं जिंदगी के, एक अपनाने के, दूसरा छोड़ने के। जब आदमी छोड़ने के रास्‍ते पर चलता है, तो छोड़ता ही चला जाता है। उसकी कोई हद नहीं है। यह शेर तो इन्हीं के मुल्‍क के एक बहुत बड़े शायर का है…
तुम्‍हारी तहजीब अपने खंजर से आप ही खुदकुशी करे,
जिस शाखे नाजुक पर आशियाना बनेगा ना पायदार।

जो कमजोर डाली पर आशियाना बनाओगे, तो वह तो गिरने ही वाला है। कमजोर डाली है, मुल्‍क धर्म से नहीं बनते। हमारे मुल्‍क में भी लोगों को सीखना चाहिए कि मुल्‍क धर्म से बनाओगे, तो यह होगा। मुल्‍क बनते हैं कल्‍चर से, मुहब्‍बत से, अपनाइयत से, तमाम चीजें एक-दूसरे से अलग हैं, लेकिन आप जुड़कर रहें, तब मुल्‍क बनता है। मैं फख्र से कहता हूं कि मैं उस मुल्‍क का बाशिंदा हूं कि जिस मुल्‍क में मैं पच्चीस बार आरएसएस के खिलाफ स्‍टेटमेंट दे चुका हूं, लेकिन जब मुझे कॉपीराइट की जरूरत पड़ती है, तो मैं अरुण जेटली साहब के पास जाता हूं और वे मेरी बात सुनते हैं और कहते हैं कि मैं तुम्‍हारी मदद करूंगा। यह है हिंदुस्‍तान!
हिंदुस्‍तान यह है कि मैं आगरा गया और मैंने जब ताजमहल देखा, तो वहां जो पत्तियां बनी थीं, मैंने पूछा कि ये किन लोगों ने बनायी हैं? अब ऐसे लोग क्‍यों नहीं हैं? तो बोले, आइए दिखा देते हैं। हमें ले गये, लड़के एक लाइन से बैठे हुए वहीं संगमरमर की पत्तियां बना रहे थे। मैंने पूछा तो बताया कि गुजरात में एक जैन मंदिर बन रहा है। उनका नाम पूछा तो सब मुसलमान थे। ये है हिंदुस्‍तान! ये क्या करेंगे? इन्‍हें क्या मालूम? ये कुएं के मेंढक हैं, ये वहीं रह जाएंगे। इनका कुछ नहीं होना है। मुझे दुख है, मैं खुशी से नहीं कह रहा हूं।
पाकिस्‍तान में बहुत अच्छे लोग थे। फैज अहमद फैज पाकिस्‍तान के थे और उनकी सोच के बहुत लोग वहां हैं, लेकिन वे minority में हैं, वे कमजोर हैं। उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। वहां आम इंसान भी अच्छा है। वह हिंदुस्‍तान की फिल्‍में देखना चाहता है, हिंदुस्‍तान के गाने सुनना चाहता है, हिंदुस्‍तान की इंडस्‍ट्री से impressed है, हिंदुस्‍तान की democracy से impressed है, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता। जिन लोगों के हाथ में ताकत है, जिन लोगों के हाथ में फौज है, जिन लोगों के पास जागीरदारियां हैं और जागीरदारी उन्‍होंने खत्म नहीं कीं, वह लूट बाकी है। जब एक समाज में लूट रहे हों, जहां human rights न हों, जहां equality नहीं हो, तो उसे कवर करने के लिए आपको एक philosophy चाहिए होती है और वह philosophy उन्‍होंने अपने मजहब की अख्तियार की, जिसके नीचे दरअसल economic exploitation है। जिसके नीचे इंसान पर जुल्‍म है, कभी इस बहाने, कभी उस बहाने। आपने एक minority का जिक्र किया, मैं जानता हूं कि वहां ईसाई minority के साथ क्या हो रहा है? तो आप यह सोचें, जरूर आप यह स्‍टेटमेंट दे दीजिए कि आपके Ambassador जाएंगे, वे आएंगे, बात कर लेंगे।
इतिहास का पहिया खुद चलता है। अगर Ambassadors फैसले करके दुनिया बदल सकते तो क्या बात थी। यह वक्‍त का पहिया है और वक्‍त का पहिया गलत स्‍ट्रक्‍चर को तोड़ता है, तो आप इंतजार कीजिए।
अब आइए वापस आते हैं, जिस मुसीबत में मैं हूं और हमारे हजारों लोग हैं।
सर, बड़े जमाने से ये तकलीफें थीं, लेकिन शायद हिंदुस्‍तान के कलाकार समझते थे कि बोलेंगे, तो सुनने वाला कौन है? लेकिन अब वक्‍त बदल रहा है, लोग बदल रहे हैं, हालात बदल रहे हैं। उम्‍मीद करता हूं कि कानून भी बदलेगा और हिंदुस्‍तान के कलाकारों की किस्‍मत भी बदलेगी। तो आज इस यकीन से उनके बारे में बोल रहा हूं कि इस किनारे से उस किनारे तक इस सदन में जितने लोग हैं, वे मेरी बात पूरे ध्यान से सुन रहे हैं, पूरे दिल से सुन रहे हैं और अगर बात हिंदुस्‍तान के संगीतकारों और गीतकारों की है, तो ऐसा ही होना चाहिए, इसलिए कि यह मुल्‍क, यह धरती गीतकारों और संगीतकारों की है। यह बात मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं कि सुनने में अच्छी लगती है, बल्कि यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि सच्ची है। दुनिया में कौन सा दूसरा मुल्‍क है, जहां एक मुल्‍क में classical परंपरा की दो traditions सैकड़ों साल पुरानी हैं – हिंदुस्‍तानी और कणार्टक। दुनिया में कौन सा ऐसा मुल्‍क है जहां लोक संगीत के इंद्रधनुष में इतने रंग हों, जितने यहां हैं? कश्‍मीर से कन्याकुमारी तक जाकर देख लीजिए, महाराष्‍ट्र से मणपिुर तक जाकर देख लीजिए, क्या-क्या रंग हैं म्‍यूजिक में? दुनिया में कौन सा ऐसा मुल्‍क है, जहां पवति्र ग्रंथ में भी शायरों का नाम और काम मिलता है? हमारे गुरु ग्रंथ साहबि, हमारे रामचरतिमानस में “रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाइ पर वचन न जाई” – राजा दशरथ रानी कैकेयी से यह महाकवि तुलसीदास के शब्‍दों में कहते हैं। दुनिया में कहां ऐसा मुल्‍क है, जहां जन्म से लेकर मरण तक कोई जगह नहीं, कोई पल नहीं, कोई क्षण नहीं, जिस पर सैकड़ों गीत न हों? वह एहसास की कोई मंजिल हो, वह भावना की कोई रुत हो, वह ख्याल का कोई रंग हो, आपको सैकड़ों गीत मिल जाएंगे।
फिर हमारे फिल्‍मी गीत हैं, जो रिलीज होते हैं, तो फिल्‍मी गीत हैं, लेकिन कुछ दिनों के बाद वे लोकगीत बन जाते हैं। वक्‍त की छलनी से सब कुछ बह जाता है – एक्टर का चेहरा, फिल्‍म का नाम – और वह अमर गीत रह जाता है, जो आपके अतीत का, आपकी यादों का हसि्‍सा बन जाता है। आज आपके कानों में जब कोई पुराना गीत गूंजता है, तो ऐसा लगता है जैसे लड़कपन के किसी दोस्‍त ने कंधे पर हाथ रख दिया हो और कह रहा हो, बैठो, कहां जा रहे हो, बात करो। यादों का मेला लग जाता है। यह गीत कहां सुना था, कब सुना था, किसके साथ सुना था और कभी-कभी यह भी याद आता है कि किसके लिए सुना था। हैरत होती है और हैरत से ज्यादा गम होता है कि जिस मुल्‍क में संगीत के और शायरी के इतने चिराग रोशन हों, उनके नीचे देखिए तो अंधेरा ही अंधेरा है। जिस अंधेरे में हिंदुस्‍तान के राइटर्स और म्‍यूजिशियंस की जिंदगी बरसों से लाचार और बेबस भटक रही है। लेकिन दिल में एक उम्‍मीद है कि एक दिन आएगा, जब हमारी सुनी जाएगी। एक दिन आएगा जब हमें इंसाफ मिलेगा, एक दिन आएगा जब हमें हमारा अधिकार मिलेगा।
“आएगा आने वाला” बहुत मशहूर गीत था। साठ साल से ज्यादा पुराना गीत है। यह गीत कंपोज किया था, पंडित खेमचंद प्रकाश ने, जो अपने जमाने के बहुत बड़े संगीत विद्वान थे। पिछले दिनों एक अजीब वाकया हुआ। सर, जब एक गाना रिकॉर्ड होता है तो उसमें दो रॉयल्‍टीज जेनरेट होती हैं, एक साउंड रिकॉर्डिंग रॉयल्‍टी कहलाती है जो साउंड रिकॉर्डिंग का मालिक है, प्रोड्यूसर या म्‍यूजिक कंपनी, उसके लिए होती है और एक परफॉर्मिंग होती है जो राइटर और म्‍यूजिशियन के लिए होती है। यहां पर भी यह कानून है – यह अभी नहीं आ रहा है, यह कानून पहले से है – और बाहर भी है। बाहर जरा थोड़ा सा अलग है, वहां सचमुच राइटर और म्‍यूजिशियन को पैसा दे देते हैं। वहां पर कहीं 13-14 हजार रुपये खेमचंद प्रकाश जी के अकांउट में इस गाने के लिए जमा हो गये। वह पैसा यहां भेजा गया। खेमचंद प्रकाश जी तो इस दुनिया में नहीं हैं। जब ढूंढ़ा गया तो उनकी पत्नी मलाड में स्‍टेशन पर भीख मांगती हुई मिल गयीं। यह कोई बहुत हैरत की बात नहीं है, ऐसी बहुत सी कहानियां हैं।
इसी तरह ओपी नैयर साहब थे। मुझे याद है, मैं तब छोटा सा था तो एक फिल्‍म आयी थी – “मुजरिम”, जिसमें शम्‍मी कपूर और पद्मिनी हीरो-हीरोइन थे। उसके पोस्‍टर पर हीरो-हीरोइन की तस्‍वीर नहीं थी बल्कि हारमोनियम लिए ओपी नैयर साहब खड़े थे – सुर के जादूगर, ओपी नैयर। वे ओपी नैयर मुंबई के बाहर नाला सुपारा नाम की एक छोटी सी बस्‍ती है, वहां पर अपनी आखिरी उम्र में एक फैन के घर में छोटे से कमरे में रहे थे और होम्‍योपैथी के इलाज से उन्‍होंने अपनी जिंदगी गुजारी, जबकि उनके सैकड़ों गाने बजते रहे और उसकी रॉयल्‍टी म्‍यूजिक कंपनीज लेती रहीं।
इसी तरह से मजरूह, शैलेंद्र, गुलाम मोहम्‍मद – आपको कितने नाम बताऊं, जिन लोगों ने क्या-क्या कांट्रीब्‍यूट किया है? शैलेंद्र जैसा गीतकार क्या कभी फिर पैदा होगा? क्या बर्बाद ख़ती है? क्‍यों, क्या वजह है? अगर हमारे यहां भी रॉयल्‍टी की इजाजत है, हमारे यहां भी रॉयल्‍टी का कानून है … (व्‍यवधान) … इन शहीदों की बड़ी लंबी लसि्‍ट है, किस-किसका नाम लें? “नाम किस-किस के गिनाऊं, तुझे याद आये।” इसकी क्या वजह है? इसके मुकाबले में दूसरी तरफ चलिए।
69-70 में बीटल्‍स की टीम टूट गयी थी। पिछले साल सिर्फ Paul Mccartney को, जिसने अपनी जिंदगी में 27 गाने लिखे, 16 मिलियन डॉलर गाना लिखने की रॉयल्‍टी मिली है। Elton John, जिसने पांच साल से कोई रिकॉर्ड नहीं बनाया, पिछले साल उसे 22 मिलियन डॉलर्स रॉयल्‍टी मिली है।
हमारे यहां जो रॉयल्‍टी का सिस्‍टम है, हमारे यहां आईपीआरएस है, Indian Performance Rights Society है, आप ही की दुनिया से जमा भी की जाती है। यह कहां चली जाती है? आप इजाजत दें तो मैं एक छोटा सा पैराग्राफ आपको पढ़कर सुनाता हूं। यह एक compulsory move है, जो हर कांट्रैक्‍ट में, वह चाहे भारत रत्न पंडित रवि शंकर के लिए हो या दो ऑस्‍कर के विनर एआर रहमान के लिए हो या मेरे जैसे मामूली आदमी या गुलजार के लिए हो, यह कंडिशन उसमें होती है।
“The rights assigned, included but not restricted to the rights of mechanical, digital, reproduction, in any manner or format or media whether existing or future, publication, broadcasting, reproducing, hiring, granting, translation, adaption, synchronization, making and used in a cinematographic film, performing in public, publishing in any other way, whole or part of the literary work, the rights to grant the mechanical and reproduction, publication, sound and television, broadcasting, transmission over the airways, electronically or through satellite or literary works.” Now, here the plot thickens. ‘Including all forms of communication, transmission, reproduction and exploitation of the literary work that may be discovered or invented in the future. The said work has been assigned by me for good and valuable consideration.’
यह bonded labour नहीं तो क्या है? सिर्फ अंग्रेजी में लिख दिया, है तो bonded labour और इसके ऊपर किसने शिकायत की? भारत रत्न रो रहा है। भारत रत्न मंत्री जी को, LoP को और प्राइम मिनिस्‍टर को लेटर लिख रहा है कि साहब ये रॉयल्‍टी का चेंज करा दीजिए। अगर एआर रहमान और पंडित रवि शंकर को यह शिकायत है, तो बाकियों की हालात सोचिए क्या होगी?
इससे भी ज्यादा एक शर्म की बात यह है कि यह कांट्रेक्ट सिर्फ हिंदुस्‍तानी देसी कंपनियां ही साइन नहीं करवातीं हैं, बल्कि जो जापान की हैं, जो जर्मनी की हैं, जो अमेरिका की हैं, इनकी हिम्‍मत नहीं हो सकती कि जापान में, जर्मनी में या अमेरिका में किसी फनकार को, किसी कलाकार को यह कहें कि इस पर साइन कर दो। क्या फर्क है इनमें और ईस्‍ट इंडिया कंपनी में और क्या फर्क है उन हिंदुस्‍तानी कंपनियों में और मीर जाफर में, जो इनके साथ मिल कर काम कर रही हैं। हमारे कलाकार से, किस-किस से, मैं आपको नाम सुनाऊंगा, ये सिर्फ फिल्‍म की एक प्राब्‍लम नहीं है, हरेक की है। आप इन्‍हें जलील कर रहे हैं और ये सिर्फ पैसे के लिए बात नहीं है, जब इतनी grip होती है, र्माकेटिंग इतनी strong हो जाए, तो creativity pays.
मुझे पिछले दिनों शिव कुमार शर्मा जी मिले, हमें proud होना चाहिए कि हमारे पास एक ऐसा फनकार है, ऐसा कलाकार है। उन्‍हें एक म्‍युजिक कंपनी ने बुलाया। उनसे कहने लगे, देखिए, हम आपका ऐड बनाते हैं, आपका क्या है, आप शुरू बड़ा धीरे-धीरे करते हैं। वह end में जो तेज होता है न, आप उससे शुरू कीजिए, folk चलेगा। यह म्‍यूजिक कंपनी वाला शिव कुमार शर्मा को बता रहा है। उन्‍होंने कहा साहब, मेरे मोहल्‍ले में एक बैंड है, बारातों में जाता है, उसका ऐड बना लीजिए। मुझे माफ करना। एक बार मेरे साथ वाकिया हो चुका है।
एक म्‍युजिक सिटी में था, म्‍युजिक कंपनी के मालिक आ गये। मैंने सोचा शायद मेरे फैन होंगे, सुनने आये हैं मैंने क्या लिखा है। उन्‍होंने मुझे सुना और कहने लगे कि आपने पहली लाइन में एक वर्ड “रूठना” लिखा है, आप यह वर्ड निकाल दीजिए। मैंने कहा, क्‍यों? वे बोले आजकल यह वर्ड चलता नहीं है। मैंने कहा कि कहां नहीं चलता है, बोले नहीं, नहीं। मैंने उन्‍हें कई गाने सुनाये, जिनमें “रूठना” वर्ड आया। उन्‍होंने कहा कि कभी होगा, यह वर्ड आप निकाल दीजिए। मैंने कहा कि भाई, अगर आपको इस तरह से काम करना है, तो मैं तो कर नहीं सकता हूं, आप किसी और को ले लीजिए। वह मेरी बड़ी इज्जत करता था। अगले ही दिन मेरी बात मान गया और किसी और को ले लिया, मुझे निकाल दिया।
जो लोग इस बिल के खिलाफ हैं, वे क्या करें? वे कहते हैं कि देखिए, आपने तो गाना लिखा, किसी ने म्‍युजिक दिया, एक प्रोड्यूसर ने बड़ा पैसा खर्च करके उसे तैयार किया, उस प्रोड्यूसर ने उस गाने को बड़े-बड़े स्‍टार्स पर, बड़ी अजीब-अजीब लोकेशन पर जाकर पिक्चराइज किया, उसमें बड़े-बड़े शॉट डाले, बड़े-बड़े विजुअल डाले, ये सब किस काम के लिए किया, फिल्‍म के लिए किया। ये फिल्‍म प्रोड्यूसर है, यह म्‍युजिक प्रोड्यूसर नहीं है। इसे यह गाना फिल्‍म के लिए चाहिए, यह गाना वह फिल्‍म के लिए record करता है। हम तो फिल्‍म से कुछ नहीं मांग रहे हैं। तुम्‍हारी फिल्‍म सुपरहिट हो जाए, तुम जानो, न चले तुम जानो, हमारा उससे कोई रिश्‍ता नहीं है। फिल्‍म बड़ी से बड़ी हिट हो जाए, मैंने बहुत सुपरहिट फिल्‍में लिखी हैं, मेरे पास तो कोई प्रोड्यूसर आया नहीं कि हजूर, आपने तो शोले लिख दी, दीवार लिख दी, त्रिशूल लिख दी, ये लीजिए, खुशी से आपके लिए लाया हूं, हमने तो नहीं देखा। ये तो पिक्चर के लिए था, हमने पैसा ले लिया, अब आपकी किस्‍मत, आप कैसी पिक्चर बनाते हैं, हम तो उसके लिए जिम्‍मेदार नहीं हैं। अगर हिट है, तो भी आपकी क्रेडिट और फ्लाप है तो भी आपकी क्रेडिट। जब आप इसमें से निकालते हैं और दूसरी जगह इस्‍तेमाल करते हैं, तो वहां भी जो रॉयल्‍टी होती है, जरा देखिए, सरकार ने कानून बनाया था कि वह 50 फीसदी जाएगी आर्टिस्‍टों को और 50 फीसदी हमें जाएगी। हम लोगों ने वहां पर कहा कि नहीं। अचानक ऐसी बात होगी, तो यह अच्छा नहीं लगेगा। आप 75 फीसदी उन्‍हें दे दीजिए और हमारे कहने पर चेंज किया गया, यह शराफत हमारी थी। मगर उनकी शराफत यह है कि उन्‍हें 99 नहीं चाहिए, उन्‍हें 100 चाहिए। यह तो दूसरी जगहों से आ रहा है, अगर यहां भी उनका हक है तो एक काम कीजिए। एक आदमी एक फिल्‍म बनाता है, उसमें शाहरूख खान हीरो है, पिक्चर चली, नहीं चली, कोई बात नहीं, मैं उसमें से चार शॉट निकाल कर, मैं प्रिंट का मालिक हूं, एक ब्‍यूटी के ऐड में इस्‍तेमाल कर लेता हूं। मुझे इसका हक है। वह कहेगा कि मैंने यह शॉट तो फिल्‍म के लिए दिया था, आपने ब्‍यूटी की ऐड में कैसे इस्‍तेमाल कर लिया?
यही मेरा सवाल है कि जहां हमने फिल्‍म के लिए दिया था, वहां हम कोई क्लेम नहीं कर रहे हैं। जब आप उसे फिल्‍म से निकाल कर इस्‍तेमाल करते हैं, तब भी हम कहते हैं आप 75 परसेंट ले लो और आप को साढ़े बारह परसेंट देने में तकलीफ है। यह तो लालच की बात है, बहुत छोटी बात है। एक साहब गुप्‍ता जी हैं, कहने लगे कि साहब यह तो होगा कि आप एलाऊ नहीं करेंगे, आप सारी रॉयल्‍टी ले लेना। यहां इसमें copyright एसाइनमेंट बैन नहीं है। यह सिर्फ discipline किया गया है कि आप उनसे इतनी रॉयल्‍टी नहीं ले सकते या आप नहीं दे सकते। यह पाबंदी प्रोड्यूसर्स पर नहीं है, म्‍यूजिक कंपनीज पर नहीं है, यह पाबंदी तो हम पर है, आर्टिस्‍ट्स पर है, राइटर्स पर है। लेकिन शिकायत उन लोगों को है, हम लोगों को शिकायत नहीं है। हिंदुस्‍तान के सारे कलाकार अपोजिशन की ओर तथा सरकार की ओर हाथ जोड़ रहे हैं कि प्‍लीज इसे 25 परसेंट बोनाफाइड करवा दीजिए। आप इसमें से 75 परसेंट ले रहे हैं, फिर आपको और क्या चाहिए? मगर कहते हैं कि कांट्रेक्‍ट पर हिंड्रेंस है। अच्छा, minimum wages legislation भी कांट्रेक्‍ट पर हिंड्रेंस है? आज हम जहां दिल्‍ली में खड़े हैं, यहां एग्रीक्लचर में skilled labour भी 328 रुपये से कम में काम नहीं कर सकता और unskilled labour 270 रुपये से कम में काम नहीं कर सकता। वे कह रहे हैं कि साहब, मैं डेढ़ सौ रुपये में करने को तैयार हूं। उन लोगों के लिए तो hindrance of contract हो गया।
Dowry Prohibition Act क्या है? एक आदमी है और उसकी बेटी है, वह डावरी देने को तैयार है। उसकी बेटी डावरी के लिए तैयार है, लड़का डावरी लेने के लिए तैयार है और लड़के का बाप भी खुश है। सरकार को क्या एतराज है? सरकार को एतराज यह है कि उसे मालूम है कि यह इक्वल फैसला नहीं हो रहा है, यह मजबूर है। हमें इसको रोकना पड़ेगा। child labour में क्या गड़बड़ है? जो Child Labour (Prohibition and Regulation) Act है, वह क्या है? अरे भाई, मां-बाप अपने बच्‍चों से काम करवाने को तैयार हैं, बच्चा तैयार है और कारखाने वाला भी तैयार है। हमें मालूम है कि यह तैयारी किस हालत में होती है। यह भी देखिए कि पिछले बीस बरस में स्‍टैंडिंग कमेटी ने कहा कि हमें एक कांट्रेक्‍ट लाकर दो, जिसमें राइटर्स ने अपनी पब्लिशिंग राइट तुम्‍हें नहीं दिये। वे नहीं ला सकते, इसलिए है ही नहीं। ये bounded labour हैं। उसके बाद हमदर्दी भी है, कह रहे हैं कि अगर उसको जरूरत पड़ गयी, अचानक सब देखना चाहे, तो आपने तो उसका हाथ बांध दिया। मैं श्री एनके सिंह जी की इजाजत से शेक्सपियर को कोट करना चाहूंगा। मैं समझता हूं कि यहां कम से कम इस हाउस में उनके पास copyright है। …
यह पता नहीं किसका नजरिया है, जब मेरी बारी आयी तो पर्दा गिरा दिया। सर, मैं सिर्फ चार या पाचं मिनट और लूंगा। “It is time to fear when tyrants kiss”. जब जालिम हमदर्दी करे तो डरने का वक्‍त है। जब म्‍यूजिक कंपनीज कह रही हैं कि बेचारे राइटर का क्या होगा अगर इसके बाद ये राइट नहीं हुए तो? इसके खिलाफ कौन लोग हैं, जो खास जनों से कहते हैं कि भाई, यह मत कीजिएगा। आप जरा उनके नाम सुन लीजिए। सारे नाम तो बहुत ज्यादा हैं, मैं सारे नाम तो नहीं बता सकता, लेकिन कुछ नाम अवश्‍य बता देता हूं, पं रवि शंकर, पं शिव कुमार शर्मा, पं हरिप्रसाद चौरसिया, शोभा मुदगल, विशाल भारद्वाज, गुलजार, प्रसून जोशी, जगजीत सिंह, अमजद अली खान, अमान अली खान और अयान अली खान। रवि जी, तो इंतजार में ही चले गये, जगजीत सिंह भी इंतजार में ही चले गये, इनके भी सिग्नेचर हैं। विशाल शेखर … (व्‍यवधान) … वे तो टेलेंटेड थे। इनमें और भी बहुत से नाम हैं। फिल्‍म इंडस्‍ट्री के सारे नाम तो हैं ही, कलाकारों के भी नाम हैं। इनमें जाकिर का नाम है, इनका नाम है, साउथ के सारे बड़े सिंगर्स का नाम है, एआर रहमान का नाम है, बंगाल के सारे बड़े सिंगर्स और म्‍युजिशियंस का नाम है। ये लोग कहते हैं इसको कर दीजिए। क्‍यों भई? अच्छा, एक बात और है, ये कहते हैं कर दीजिए, लेकिन यह पुराने पर नहीं होना चाहिए। यह बात किसी हद तक सही है, किसी हद तक सही नहीं है। मतलब, यदि यह बिल आ जाए और आप कल को यह कहें कि मेरा गाना 1960 से रिलीज हुआ था, आप मुझे उसका हिसाब बताइए, तो यह बेकार बात है, क्‍योंकि कोई भी लॉ रेट्रोस्‍पेक्टिव में नहीं लग सकता है। ऐसा कानून है कि अगर अब वह गाना बजेगा, तो उसकी रॉयल्‍टी होगी, तब, उस वक्‍त, आपने जो कर दिया, वह कर दिया, आप उसको भूल जाइए, हम भी भूल जाएंगे, इसलिए जब तक यह नहीं होता, यही एक तरीका है, क्‍योंकि सारे म्‍युजिशियंस, सारे राइटर्स गलत नहीं हो सकते हैं।
एक तरफ ये हैं और दूसरी तरफ ये मल्‍टीनेशनल्‍स हैं, बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स हैं, जो pretend कर रहे हैं कि प्रोड्यूसर्स का बहुत नुकसान है। दरअसल जो अप फ्रंट मनी होती है, वह तो केवल दस, बारह प्रोड्यूसर्स को मिलती है, बाकियों को एक नया पैसा तक नहीं मिलता है। जब यह बिल आएगा, तब पहली बार उन छोटे प्रोड्यूसर्स को पैसा मिलेगा, वह इसलिए क्‍योंकि पब्लिशिंग हमारे हाथ में होगी और वह पब्लिश होगा, वरना म्‍युजिक कंपनियां सब ले जाती हैं, उसे बेच देती हैं। 90 परसेंट प्रोड्यूसर्स को इससे फायदा ही होना है और सच तो यह है कि 10 परसेंट, जो यह समझ रहे हैं कि उनका नुकसान होगा, उनको भी फायदा ही होगा, क्‍योंकि वे जितने में बेचते हैं, वह कम है। लेकिन जब तक यह बिल पास नहीं होगा, तब तक यह जुल्‍म, यह सितम, यह लूट चलती ही रहेगी। यह एक अंधेरा है, जिसमें हम चल रहे हैं। मुझे वह शेर याद आता है कि…
सियाह रात, नहीं नाम लेती ढलने का,
यही तो वक्‍त है, सूरज तेरे निकलने का

इसलिए यह बिल आज पास होना चाहिए। शुक्रिया।

Comments

Unknown said…
I support परफॉर्मिंग कापीराइट रॉयल्‍टी.
जावेद अख्‍तर is right.
rajesh vora said…
संसद में जावेदजी ने बहोत ही अच्छा भाषण दिया और सालो से हो रही बात कलाकारो की मांग की अनदेखी को आज संसद में न्याय मिल गया...आभार अजय साब

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