बाहरी प्रतिभाओं का बढ़ता दायरा

दरअसल ...
-अजय ब्रह्मात्मज
    पिछले हफ्ते की खबर है कि दिबाकर बनर्जी के साथ यशराज फिल्म्स ने तीन फिल्मों का करार किया है। इनमें से दो फिल्में स्वयं दिबाकर बनर्जी निर्देशित करेंगे। तीसरी फिल्म के निर्देशन का मौका उनके सहयोगी कनु बहल को मिलेगा। फिल्म इंडस्ट्री पर नजर रख रहे पाठक अवगत होंगे कि एकता कपूर की प्रोडक्शन कंपनी बालाजी फिल्म्स ने विशाल भारद्वाज की ‘एक थी डायन’ का निर्माण किया है। जल्दी ही अनुराग कश्यप और करण जौहर का संयुक्त निर्माण भी सामने आएगा। ऊपरी तौर पर ऐसे अनुबंध, सहयोग और संयुक्त उद्यम हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में चलते रहते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि दिबाकर बनर्जी, विशाल भारद्वाज और अनुराग कश्यप को जिन फिल्म कंपनियों ने अनुबंधित किया है, उनके मालिक फिल्म इंडस्ट्री के हैं। आज इन तीनों की प्रतिभाओं और संभावनाओं से अच्छी तरह परिचित होने के बाद ही वे ऐसे कदम उठा रहे हैं।
    दरअसल, यह हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बाहर से आई प्रतिभाओं की बड़ी जीत है। पीछे पलट कर देखें तो तीनों फिल्मकारों ने छोटी और नामालूम सी फिल्मों से शुरुआत की। उनकी आरंभिक फिल्में पूरी तरह से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के विरोध में खड़ी थीं। तीनों को अपनी जगह और पहचान के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ा। आज अपनी फिल्मों के कथ्य और प्रभाव से वे इस स्थिति में आ गए हैं कि स्थापित प्रोडक्शन घरानों को उन्हें अनुबंधित करना पड़ रहा है। हम जानते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बाहर से आकर पांव टिकाना तक मुश्किल होता है। इन तीनों ने पिछले दस-बारह सालों में अनवरत प्रयास और सृजनात्मक जिजीविषा को बनाए रखा। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से आरंभिक सहयोग नहीं मिलने पर भी हिम्मत नहीं हारी। किसी तरह अपनी  फिल्मों के लिए धन का जुगाड़ किया। अनुराग कश्यप तो घोषित रूप से उनके खिलाफ मुखर रहे। अब उन्हें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की सुविधाएं मिलेंगी। क्या यह कोई जाल है?
    इन सुविधाओं के दो नतीजे सामने आ सकते हैं। फिल्म जैसे कलात्मक व्यवसाय में सृजन और प्रेरणा के साथ मुनाफा और रिटर्न का भी ध्यान रखा जाता है। किसी भी फिल्म के निर्माण में करोड़ों का नफा-नुकसान होता है। इस वजह से स्थापित प्रोडक्शन हाउस किसी भी प्रकार के जोखिम से बचते हैं। वे कामयाबी का सुनिश्चित तरीका चुनते हैं और लकीर के फकीर बने रहते हैं। नई प्रतिभाओं के साथ सबसे अच्छी बात यही होती है कि वे सीमित संसाधनों के बावजूद नया और बेहतरीन काम करते हैं। कई बार देखा गया है कि संघर्षशील प्रतिभाओं को अतिरिक्त सुविधाएं मिल जाएं तो उसका नकारात्मक असर उनकी कृतियों पर पड़ता है। आम तौर पर सुनाई पड़ता है कि निर्माण के दौरान ही दबाव का शिकंजा कस दिया जाता है। एक हद तक सृजनात्मक आजादी देने के साथ कहा जाता है कि थोड़ा बाजार और आडिएंस का भी खयाल रखें। इस खयाल रखने में ही प्रखर राह छूटती है। पता भी नहीं चलता और प्रतिभाओं की धार कुंद हो जाती है। हम तो यही उम्मीद रखेंगे कि दिबाकर बनर्जी, अनुराग कश्यप और विशाल भारद्वाज अपनी प्रखरता और धार बनाए रखें।
    तीनों युवा फिल्मकारों ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बदलाव के प्रवाह को तेज किया है। आज ऐसी स्थिति है कि तमाम बड़े लोकप्रिय स्टार इनके साथ काम करने को इच्छुक हैं। विशाल भारद्वाज ने तो ‘ओमकारा’ से ही पहल कर दी थी। अब अनुराग कश्यप और दिबाकर बनर्जी भी लोकप्रिय स्टार के साथ काम करेंगे। लोकप्रिय स्टार को फिल्मों में रखने से आकर्षण बढ़ जाता है। रिलीज के दिन पर्याप्त दर्शक मिलते हैं। फिल्मों का प्रचार स्तर बढ़ जाता है। एक ही खतरा रहता है कि स्टारों के बोझ से कहीं कथ्य न चरमरा जाए। विशाल भारद्वाज की पिछली दो फिल्मों में ऐसी चरमराहट सुनाई पड़ी थी। ऐसा कहा भी कहा जा रहा है कि अब विशाल भारद्वाज नई प्रतिभाओं के साथ काम नहीं कर सकते। लोकप्रिय स्टारों के साथ काम करना उनका स्वभाव बन गया है।
    दिबाकर बनर्जी और अनुराग कश्यप अभी तक अपने कथ्यों को लेकर समर्पित रहे हैं। मुझे एक ही डर है कि कहीं आदित्य चोपड़ा और करण जौहर की सोच से इनकी कल्पना और सोच प्रभावित हुई तो बड़ा झटका लगेगा। कालांतर में ये समृद्ध और सफल फिल्मकार साबित होंगे। मुमकिन ही उनका अपना प्रोडक्शन घराना भी बन जाए, लेकिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की मुख्य धारा बनने के अंतर्निहित खतरे हैं। मालूम नहीं उन खतरों से ये तीनों फिल्मकार कब तक और कैसे बचे रहेंगे?
    इन गतिविधियों के खतरों से खुशी मिलने के साथ आशंका और चिंता भी बढ़ती है। पहले की पीढिय़ों के अनेक फिल्मकार मुनाफे और मनोरंजन के मोह में अपना महत्व घटा चुके हैं। कुछ फिल्मकारों को तो अब अपने अतीत की उपलब्धियों पर भी अफसोस होने लगा है, जबकि सच्चाई यही है कि उनकी कमर्शियल कामयाबी भी उन उपलब्धियों की वजह से है। वही उनका वजह है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री किसी दूसरी इंडस्ट्री की तरह नई सोच को आत्मसात कर लेती है। पचा लेती है।

  

Comments

AVINASH SINGH said…
sir ji,,,tigmanshu sir ji ka naam bhi isi line me hai ..........

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