अनुभव सिन्‍हा से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

अनुभव सिन्हा
-अजय ब्रह्मात्मज
    ‘तुम बिन’ से ‘रा.वन’ तक अनेक चर्चित और प्रशंसित फिल्में निर्देशित कर चुके अनुभव सिन्हा ‘बनारस मीडिया वक्र्स’ की स्थापना के साथ अब निर्माता भी बन चुके हैं। पिछले दिनों उनके प्रोडक्शन की पहली फिल्म ‘वार्निंग’ आई थी। 7 मार्च को माधुरी दीक्षित और जुही चावला अभिनीत ‘गुलाब गैंग’ आ रही है। फिल्मों के साथ अन्य गतिविधियों में संलग्न अनुभव सिन्हा इन दिनों खुद के लिए एक फिल्म का लेखन कर रहे हैं। उम्मीद है इस साल के अंत तक यह फिल्म फ्लोर पर चली जाएगी।
- ‘बनारस मीडिया वक्र्स’ का क्रिएटिव विचार क्या है?
0 हाई कांसेप्ट की फिल्में बनाना। ऐसे फिल्में जो हमारे दिल को अच्छी लगे और दर्शकों को भी पसंद आएं। फिर यह नहीं देखना कि वे फिल्में मुश्किल हैं या आसान। क्रिएटिव साहस के साथ फिल्मों का निर्माण करना। इसके अलावा गैरफिल्मी संगीत पर काम कर रहा हूं।
- आप सफल निर्देशक हैं। फिर निर्माता बनने का ख्याल क्यों आया?
0 बतौर निर्देशक औसतन मैं दो साल में एक फिल्म बनाता हूं। सच है कि इस दरम्यान मुझे अनेक कहानियां भाती हैं। सारी फिल्में मैं स्वयं निर्देशित नहीं कर सकता। यही सोच कर निर्माता बना कि ऐसी कहानियों को मैं फिल्मों में बदल सकूं। साथियों को अवसर और सुविधाएं प्रदान करूं।
- कहा जा रहा है कि यह दौर स्वतंत्र निर्माताओं का नहीं है?
0 स्वतंत्र निर्माताओं के लिए स्थितियां मुश्किल से बढ़ कर असंभव होती जा रही है। आप भले ही दो करोड़ की फिल्म बना लें, लेकिन उसे रिलीज करने में सात करोड़ रुपए लग जाएंगे। डिस्ट्रीब्यूशन का कोई पैरेलल सिस्टम नहीं है, जिसके जरिए सीमित बजट की फिल्में थिएटर में लग सके। 100 करोड़ क्लब में घुसने की कोशिश में मार्केटिंग के खर्च की सीमा दिनोंदिन ऊपर जा रही है। 25 करोड़ के प्रचार और विज्ञापन के सामने आप 5 करोड़ खर्च करेंगे तो कहीं नजर भी नहीं आएंगे। दर्शकों को पता ही नहीं चलेगा कि आपकी कोई फिल्म आ रही है। हम ऐसी दिशा में बढ़ रहे हैं जब छोटी फिल्में बनाना नामुमकिन हो जाएगा। मुझे लगता है कि यह सिलसिला टूटेगा और नया विकल्प सामने आएगा।
- वितरण और प्रदर्शन की स्थिति पर क्या कहेंगे?
0 खुशी की बात है कि वितरण और प्रदर्शन का विस्तार हो रहा है। टिकटों के दर बढ़ रहे हैं। अब जरूरत है कि फिल्मों की लागत भी बढ़े। देखना यह है कि छोटी फिल्में कैसे सस्ते माध्यम से रिलीज हो जाएं। इसके बाद ही लाभ की बात सोची जा सकती है। हम सभी स्वतंत्र निर्माता इस मैकेनिज्म की तलाश में हैं। अभी असंतुलन बन गया है। प्रकृति हर असंतुलन को स्वयं संतुलित कर देती है।
- आपकी ‘गुलाब गैंग’ में माधुरी दीक्षित और जुही चावला आमने-सामने हैं। निर्माण की कैसी चुनौतियां रहीं?
0 इस फिल्म को लेकर हम बाजार में उतरे तो सभी का यही सवाल होता था कि माधुरी और जुही के अलावा कौन है? इस कौन का सीधा मतलब मेल स्टार से होता था। हमारी फिल्में मेल स्टार से ही जानी जाती है। लोग यही पूछते रहे कि सिर्फ औरतों की फिल्मों में किसका इंटरेस्ट होगा?  ऐसे माहौल में माधुरी और जुही को लेकर पूरे विश्वास के साथ फिल्म बना लेना ही हिम्मत का काम है।
- आपकी अपनी फिल्म कब आएगी?
0 मैंने दो स्क्रिप्ट फायनल की है। उनमें से एक इस साल फ्लोर पर चली जाएगी। फिलहाल मैं खुद को भीड़ और भगदड़ से अलग पाता हूं। एक सुकून है, इसलिए आराम से काम करना चाहता हूं।
- गैरफिल्मी संगीत में क्या योजनाएं हैं?
0 गैरफिल्मी संगीत का संबंध मेरे पैशन से है। म्यूजिक वीडियो बनाना मेरे लिए बड़ा पैशन है। फिल्मों के निर्देशन के दौरान अनुभव हुआ कि कई अच्छे गीत-संगीत हमें छोडऩे पड़ रहे हैं। वे फिल्मी खांचे में फिट नहीं हो पाते थे। मैं पारंपरिक हिंदुस्तानी संगीत पर काम कर रहा हूं। सुगम संगीत अब श्रोताओं तक नहीं पहुंच पाता। कोशिश है कि लोकप्रिय माध्यमों से उसे श्रोताओं तक पहुंचाऊं। अभी तोषी और शारिफ के साथ पारंपरिक बंदिशों के छह रचनाएं रिकॉर्ड की हैं। ये सभी सिंगल्स के तौर पर जारी होंगे। गजलों और दूसरी संगीत परंपराओं पर भी काम चल रहा है।
- सुना है कि आपने कुछ कविताओं का भी पाठ करवाया है?
0 मैं कविताएं पढ़ता और गुणता रहता हूं। मैंने ऐसे कुछ कवियों को चुना है जिनसे आज की पीढ़ी नावाकिफ है। माधुरी दीक्षित ने इन कविताओं का पाठ किया है। साहिर लुधियानबी और गोरख पांडे जैसे कवियों की कविताएं चुनी गई हैं। कोशिश है कि इन्हें टीवी स्पेस या सोशल मीडिया के जरिए सभी तक पहुंचाया जाए।

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