सिनेमालोक : अपने-अपने अमिताभ


सिनेमालोक
अपने-अपने अमिताभ 
पिछले 50 सालों में अमिताभ बच्चन ने ‘सात हिंदुस्तानी’(1969) से लेकर ‘बदला’(2019) तक के फिल्मी सफर में हर रंग,भाव,विधा और शैली की फिल्मों में काम किया है. ‘जंजीर’ से मिली एंग्री यंग मैन की छवि उनके साथ ऐसी चिपकी की उसने उनकी एक्टिंग के अन्य आयामों को धूमिल कर दिया. ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि की फिल्मों को जबरदस्त लोकप्रियता मिली. उन्हें बार-बार देखा गया,उन लिखा गया. देश की सामाजिक और राजनीती हलचलों से जोड़ कर उन पर विमर्श हुआ. हिंदी फिल्मों के इतिहास का यह महत्वपूर्ण अध्याय है और उसके अमिताभ बच्चन नायक हैं. आने वाले सालों में भी उनकी चर्चा चलती रहेगी.
पिछले 50 वर्षों में अमिताभ बच्चन ने अनेक पीढ़ियों का मनोरंजन किया है. उन्हें प्रभावित किया है और अपना मुरीद बना दिया है. मंचों और टीवी शो में सबसे ज्यादा उनकी नकल की जाती है. आवाज को भारी कर उनके मशहूर संवाद बोलते ही हर प्रशंसक खुद में अमिताभ बच्चन को महसूस करता है...हें. वास्तव में यह एक महान अभिनेता के अभिनय की सरलता है कि कोई भी उसके नकल कर लेता है. अमिताभ बच्चन प्रशिक्षित अभिनेता नहीं है. उन्होंने स्कूल के दिनों में जितना थिएटर किया था, उतना अनगिनत लोग करते हैं. उल्लेखनीय है कि फिल्मों में आने का इरादा करने के बाद उन्होंने खुद को कैसे संवारा. आरंभिक नकार के बाद भी डटे रहे और फिर कुछ ऐसा संयोग बना कि वे सभी के चहेते बन गए. उनकी लोकप्रियता का यह आलम था कि पिछली सदी में उन्हें ‘वन मैन इंडस्ट्री’ और ‘मिलेनियम स्टार’ के खिताब दिए गए.
हर प्रशंसक और दर्शक के अपने अमिताभ हैं. उन्हें उनकी कुछ फिल्में ज्यादा पसंद हैं.देश के हर फिल्म प्रेमी दर्शक की पसंदीदा फिल्मों की फेहरिस्त दूसरों से अलग होगी. उनमें 8-10 फिल्मों की समानता मिल सकती है, लेकिन सुधि दर्शकों के फेहरिस्त अलहदा मिलती है. उनकी बातें करो तो वे अपने पसंद की फिल्मों की वजह बताने के साथ तारीफ करने लगते हैं. मेरे एक मित्र को अमिताभ बच्चन की ‘नमक हलाल’ सबसे ज्यादा पसंद है. कारण है फिल्म में एक के बाद एक हंसोड़ प्रसंगों का होना. अमिताभ बच्चन ने हरियाणवी अंदाज़ पकड़ते हुए ठेठ देसी मुहावरों का बेहद प्रभावशाली इस्तेमाल किया है. सहर आये एक गंवाई की नैतिकता उसे ऊंचा स्थान दे जाती है. अमिताभ बच्चन कॉमिकल फिल्मों में अपने खिलंदड़े अंदाज से खूब गुदगुदी लगाते हैं. वास्तव में हिंदी पर उनकी पकड़ से यह संभव हुआ है. वह लहजे की लोच,ठहराव और बारीकियों को समझते हैं और हर शब्द को उसके अर्थ के साथ ध्वनित करते हैं.
अगली छुट्टियों में मौका निकाल कर आप हृषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में आए उनकी फिल्मों को किसी भी क्रम में देख लें. उन फिल्मों में एक अलग अमिताभ बच्चन मिलते हैं. ‘आनंद’, ‘नमक हराम’,’मिली’,’अभिमान’,’चुपके चुपके’,’बेमिसाल’ और ‘जुर्माना’ में उनके अभिनय के विविध आयामों को देखा और समझा जा सकता है. प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई की तरह हृषिकेश मुखर्जी ने उनकी छवि को बार-बार नहीं भुनाया. वे अपनी हर फिल्म में उन्हें एक अलग अंदाज में पेश करते रहे. कुछ पाठक चौंक सकते हैं कि अमिताभ बच्चन ने सबसे ज्यादा फिल्में हृषिकेश मुखर्जी के साथ की हैं. हम इस धारणा में रहते हैं कि यह श्रेय प्रकाश महरा और मनमोहन देसी को जाता है.
उम्र के इस पड़ाव पर भी वे सक्रिय हैं और सचेत तरीके से फिल्मों का चुनाव कर रहे हैं. पिछले डेढ़ दशकों में उन्होंने ज्यादातर युवा और नए निर्देशकों के साथ ही काम किया है. उनकी सक्रियता और स्वीकृति का ही नतीजा है कि उनकी उम्र और शैली के अनुसार भूमिकाएं लिखी जा रही हैं. वे हर फिल्म में एक नया जादू बिखेर देते हैं. ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में उनके ओजस्विता,विनम्रता और मृदुलता देखते ही बनती है. उनके आलोचक इसे उनकी एक्टिंग कहते हैं, लेकिन यह सहजता अभिनय में आसानी से नहीं आती. उनके करीबी बताते हैं बताते हैं कि वे अनुशासित तरीके से हर नए प्रोजेक्ट में संलग्न होते हैं. आज के युवा कलाकार को उनकी लगन और तत्परता देख कर चकित रहते हैं.



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