सिनेमालोक : 21वीं सदी के भारत(अक्षय) कुमार
सिनेमालोक
21वीं सदी के भारत(अक्षय) कुमार
-अक्षय कुमार
कल अक्षय कुमार का जन्मदिन है. फिलहाल
वह स्कॉटलैंड में अपनी नई फिल्म ‘बेल बॉटम’ की शूटिंग कर रहे हैं. इस फिल्म का
लेखन असीम अरोड़ा और परवेज़ शेख ने किया है. फिल्म का निर्देशन रंजीत एम तिवारी के
हाथों में है. उनकी पिछली फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ थी. फिल्म के निर्माता वासु भगनानी
और निखिल आडवाणी हैं. कोविड-19 महामारी
की वजह से ठप फिल्म इंडस्ट्री की गतिविधियां जब आरंभ हुई तो अक्षय कुमार ने ही
सबसे पहले शूटिंग आरंभ की. पहले एक सरकारी कैंपेन और अभी तो पूरी यूनिट के साथ
विदेश चले गए हैं. कोविड-19
के दौरान जारी सख्त हिदायतों के बीच
उन्होंने शूटिंग आरंभ की है. उनकी पहलकदमी कहीं ना कहीं सरकार के साथ और समर्थन
में मानी जा रही है’
पिछले साल आम चुनाव आरंभ होने के समय
अक्षय कुमार ने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला साक्षात्कार किया था. यह छिपी
बात नहीं है कि वह सत्ता और सरकार के करीब हैं. सरकारी नीतियों के जबरदस्त पैरोकार
हैं. वर्तमान सरकार के अभियानों और उजाले पक्षों को वे परदे पर ले आते हैं. उनकी ‘टॉयलेट
एक प्रेम कथा’, ‘पैडमैन’, ‘मिशन मंगल’ और ‘केसरी’ आदि फिल्में राष्ट्रीय भावना से
ओतप्रोत हैं. उनमें राष्ट्रीय संदेश है और देशभक्ति की भी बातें हैं. उन्होंने कुछ
सालों से फिल्मों में जो राह पकड़ी है, वह मनोज कुमार की राह है. हिंदी फिल्मों के
दर्शकों को अच्छी तरह याद होगा कि लाल बहादुर शास्त्री की सलाह पर मनोज कुमार ने ‘उपकार’
का निर्माण और निर्देशन किया था. दरअसल, उन्होंने अपनी फिल्म ‘शहीद’ उन्हें दिखाई
थी. फिल्म देखने के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें ‘जय जवान जय किसान’ नारे पर
फिल्म बनाने की सलाह दी थी. प्रेरित होकर मनोज कुमार निर्देशन में उतरे. वहां से
उनकी फिल्मों की दिशा बदल गई. इन सभी फिल्मों में वे नायक रहते थे. नायक का नाम भारत
कुमार होता था. आलम यह हुआ कि वह भारत कुमार के नाम से मशहूर हो गए. अक्षय कुमार
अपनी फिल्मों में उनकी राह पर हैं. सुर भी वही है. हां, वे उनकी तरह हर फिल्म में
अपना नाम भारत कुमार नहीं रखते और ना ही उनकी फिल्मों में राष्ट्रीय व् सरकारी
नीतियों का उद्घोष होता है. फिर भी रूप और प्रस्तुति के साथ अपनी फिल्मों में
राष्ट्रीय भावनाएं ले आते हैं. उससे तो यही लगता है कि वह भी राष्ट्रप्रेम और
देशभक्ति की भावना से आलोड़ित हैं. वे फिल्मों के अलावा भारतीय फौजियों के हितार्थ
सक्रिय एक संगठन का हिस्सा हैं. कोविड-19 के दौरान जब प्रधानमंत्री ने ‘पीएम
केयर्स फंड’ की घोषणा की तो अक्षय कुमार ने सबसे पहले ₹25 करोड़ दिए. इसका व्यापक असर हुआ. फिल्म इंडस्ट्री की अन्य हस्तियां भी आगे
आईं. सभी जानते हैं कि अक्षय कुमार जरूरतमंदों की मदद करने में सबसे आगे रहते हैं
और यह आज की बात नहीं है. शुरू में तो वह मदद और अनुदान का जिक्र भी नहीं करते थे.
21वीं सदी के भारत कुमार(अक्षय कुमार) और
मनोज कुमार में समानताएं हैं. ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ देखने के बाद मनोज कुमार ने
उनकी सार्वजनिक तारीफ की थी और जब किसी ने उनसे अक्षय कुमार की तुलना की तो
उन्होंने गर्वित महसूस किया था. ऐसी तुलना पर अक्षय कुमार झेंप जाते हैं. वह मनोज
कुमार को पूरे आदर और सम्मान के साथ याद करते हुए कहते हैं कि मैं उनकी ऊंचाई नहीं
छू सकता. दोनों में एक फर्क यह भी है कि ‘उपकार’ के बाद मनोज कुमार की हर फिल्म
में राष्ट्रप्रेम और कोई न कोई राष्ट्रीय समस्या रहती थी, लेकिन अक्षय कुमार
कॉमेडी और घोर कमर्शियल फिल्में भी करते रहते हैं. हां, राष्ट्रीय मसलों पर उनका
समर्पण भाव जाहिर होता रहता है.
मनोज कुमार और अक्षय कुमार में एक बड़ा
फर्क यह भी है कि मनोज कुमार अभिनेता होने के साथ अपनी फिल्मों के लेखक और
निर्देशक रहे हैं. अक्षय कुमार में ये प्रतिभायें नहीं हैं. वह दूसरे लेखकों और
निर्देशकों पर निर्भर करते हैं. देश, राष्ट्र, देशभक्ति की समझ और उसके अभिव्यक्ति
के संदर्भ में मनोज कुमार की दार्शनिक समझदारी दिखती है. अक्षय कुमार एक अभिनेता
और बिकाऊ स्टार के तौर पर इन फिल्मों में शामिल होते हैं. उनके एक निर्देशक ने
बताया कि अक्षय कुमार के पास विचार तो हैं पर उनकी अभिव्यक्ति या कागज पर उतारने
के लिए पर्याप्त शब्द संपदा नहीं है. मुमकिन है किसी लेखक की मदद से वे अपने
विचारों की फिल्म लिखें और उसे स्वयं निर्देशित करें. ऐसा होगा तो उनका एक नया रूप
दिखेगा.
फिलहाल जन्मदिन के मौके पर उन्हें बधाई
और यही उम्मीद कि वह राष्ट्रहित में स्वस्थ मनोरंजक फिल्में लाते रहेंगे.
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