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फिल्‍म समीक्षा : द लंचबाक्‍स

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मर्मस्‍पर्शी और स्‍वादिष्‍ट -अजय ब्रह्माात्‍मज  रितेश बत्रा की 'द लंचबॉक्स' सुंदर, मर्मस्पर्शी, संवेदनशील, रियलिस्टिक और मोहक फिल्म है। हिंदी फिल्मों में मनोरंजन की आक्रामक धूप से तिलमिलाए दर्शकों के लिए यह ठंडी छांव और बार की तरह है। तपतपाते बाजारू मौसम में यह सुकून देती है। 'द लंचबॉक्स' मुंबई के दो एकाकी व्यक्तियों की अनोखी प्रेमकहानी है। यह अशरीरी प्रेम है। दोनों मिलते तक नहीं, लेकिन उनके पत्राचार में प्रेम से अधिक अकेलेपन और समझदारी का एहसास है। यह मुंबई की कहानी है। किसी और शहर में 'द लंचबॉक्स' की कल्पना नहीं की जा सकती थी। 'द लंचबॉक्स' आज की कहानी हे। मुंबई की भागदौड़ और व्यस्त जिंदगी में खुद तक सिमट रहे व्यक्तियों की परतें खोलती यह फिल्म भावना और अनुभूति के स्तर पर उन्हें और दर्शकों को जोड़ती है। संयोग से पति राजीव के पास जा रहा इला का टिफिन साजन के पास पहुंच जाता हे। पत्‍‌नी के निधन के बाद अकेली जिंदगी जी रहे साजन घरेलू स्वाद और प्यार भूल चुके हैं। दोपहर में टिफिन का लंच और रात में प्लास्टिक थैलियों में लाया डिनर ही उनका भोजन

अभिनय से पहले किरदार की गूंज सुनता हूं- इरफान

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- दुर्गेश सिंह बीस से अधिक निर्माता और कान के साथ ही संडैंस फिल्म समारोहों में ख्याति बटोर चुकी फिल्म द लंच बॉक्स 20 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। इरफान मुख्य भूमिका में हंै और पहली बार किसी फिल्म के प्रोड्यूसर भी। जिस तरह का सिनेमा वो कर चुके हैं चाहते तो इस फिल्म में अभिनय नहीं करते क्योंकि निर्देशक रितेश बत्रा उनके दोस्त नहीं थे। अब करण जौहर और यूटीवी फिल्म की इंडिया रिलीज की तैयारियों में व्यस्त हैं। आइए जानते हैं इरफान की कथनी कैसे तब्दील हुई करनी में: - द लंचबॉक्स का साजन फर्नांडीस कहां मिला? इतना जीवंत अभिनय किसी अनुभव के बिना संभव नहीं होगा? मैं मुंबई आया था तो मेरे अंकल यहीं एसिक नगर में रहते थे। मैं उन्हें सुबह उठकर अंधेरी स्टेशन के लिए बस पकड़ते हुए देखता था फिर वह अंधेरी से ट्रेन पकडक़र चर्चगेट जाते थे। चर्चगेट से फिर उन्हें बस पकडक़र अपने दफतर तक पहुंचना पड़ता था। यह प्रक्रिया वे बार-बार दुहराते थे। मैं सोचता कि एक आदमी पूरी जिंदगी इस अभ्यास को कैसे दुहरा सकता है। सुबह जब वह जाता है तो फ्रेश रहता है, शाम को लोकल ट्रेन से लौटने वाला हर चेहरा कैसा भयावह दिखता

हिचकोले देने के लिए आया हूं.- इरफान

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इरफान जितने गंभीर दिखते हैं, उतने हैं नहीं. एक मुलाकात में रघुवेन्द्र सिंह ने उनके व्यक्तित्व, जीवन एवं सफर के रोचक पहलुओं को जाना बीता साल इरफान के नाम रहा. पान सिंह तोमर (हिंदी) और लाइफ ऑफ पाय (अंग्रेजी) फिल्मों के जरिए उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहना बटोरी. पान सिंह तोमर के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड हासिल किया. अभिनय के मामले में उन्होंने ऐसा स्तर कायम कर लिया है, जिसकी अब मिसाल दी जाती है. यह बात अब स्वयं इस धुरंधर कलाकार के लिए चुनौती बन चुकी है. इसीलिए उनके अंदर के अभिनेता की भूख और बढ़ गई है. वह नित कुछ नया तलाश रहे हैं. पंद्रह साल के अभिनय करियर में इरफान निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं. जयपुर के खजुरिया गांव (टोंक जिला) के इस शख्स की यात्रा तिरस्कार, संघर्ष और पुरस्कार से भरी रही है. लेकिन उनमें कड़वाहट नहीं आई है. बल्कि ïअवसर और स्थान देने के लिए वह इंडस्ट्री के आभारी हैं. लेकिन उन्हें एक बात का अफसोस है. ''मैंने बचपन में ऊपर वाले से एक गलत दुआ मांग ली थी. मैंने कहा

डायरेक्‍टर ही बनना था-रितेश बत्रा

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गजेन्‍द्र सिंह भाटी के फिलम सिनेमा से साभार  इस साल कान अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव- 2013 में इस फ़िल्म को बड़ी सराहना मिली है। वहां इसे क्रिटिक्स वीक में दिखाया गया। रॉटरडैम अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के सिनेमार्ट- 2012 में इसे ऑनरेबल जूरी मेंशन दिया गया। मुंबई और न्यू यॉर्क में रहने वाले फ़िल्म लेखक और निर्देशक रितेश बत्रा की ये पहली फीचर फ़िल्म है। उन्होंने इससे पहले तीन पुरस्कृत लघु फ़िल्में बनाईं हैं। ये हैं ‘ द मॉर्निंग रिचुअल ’, ‘ ग़रीब नवाज की टैक्सी ’ और ‘ कैफे रेग्युलर , कायरो ’ । दो को साक्षात्कार के अंत में देख सकते हैं। 2009 में उनकी फ़िल्म पटकथा ‘ द स्टोरी ऑफ राम ’ को सनडांस राइटर्स एंड डायरेक्टर्स लैब में चुना गया। उन्हें सनडांस टाइम वॉर्नर स्टोरीटेलिंग फैलो और एननबर्ग फैलो बनने का गौरव हासिल हुआ। अब तक दुनिया की 27 टैरेटरी में प्रदर्शन के लिए खरीदी जा चुकी ‘ डब्बा ’ का निर्माण 15 भारतीय और विदेशी निर्माणकर्ताओं ने मिलकर किया है। भारत से सिख्या एंटरटेनमेंट , डीएआर मोशन पिक्चर्स और नेशनल फ़िल्म डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएफडीसी) और बाहर एएसएपी फिल्म्स

मिली बारह साल पुरानी डायरी-2

बारह साल पुरानी डायरी के अंश.... -अजय ब्रह्मात्‍मज 2 अगस्त 2001       फेमस में ‘ हम हो गए आपके ’ का शो था। 6 बजे से शो आरंभ हुआ। समीक्षकों और पत्रकारों की पूरी उपस्थिति थी। दोपहर में फरदीन के सचिव तिवारी से बातचीत हुई। तिवारी ने बताया कि फिल्म बहुत अच्छी बनी है। फिल्म देखकर लगा कि छठे और सातवें दशक की महक है। एक बुरा लडक़ा प्रेम करने के बाद कैसे सुधर जाता है। फरदीन का प्रयास अभिनय में दिखता है। वह खुद को तोडऩे की कोशिश करता है। खुलना चाहता है , मगर कोई चीज उसे जकड़े रहती है। इस फिल्म में उसकी हंसी शुरू से आखिर तक एक जैसी है। रीमा सेन की पाली हिंदी फिल्म है यह। उसमें संभावनाएं हैं।       दोपहर में अनुराग कश्यप से बात हो रही थी। उनकी फिल्म को सेंसर ने सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया है। मुख्य रूप से भाषा , हिंसा और संदेश न होने का कारण बताया गया है। अनुराग ने कहा कि पहली फिल्म के फंस जाने से वह निराश नहीं है। वह रिवाइजिंग कमेटी में जाएंगे। वहां भी बात नहीं बनी तो वह ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। फिलहाल इरादा है कि बड़े फिल्मकारों , स्तंभकारों और समीक्षकों को फिल्म दि

मिली बारह साल पुरानी डायरी

कई बार सोचता हूं कि नियमित डायरी लिखूं। कभी-कभी कुछ लिखा भी। 2001 की यह डायरी मिली। आप भी पढ़ें।  30-7-2001       आशुतोष राणा राकेशनाथ (रिक्कू) के यहां बैठकर संगीत शिवन के साथ मीटिंग कर रहे थे। संगीत शिवन की नई फिल्म की बातचीत चल रही है। इसमें राज बब्बर हैं। मीटिंग से निकलने पर आशुतोष ने बताया कि बहुत अच्छी स्क्रिप्ट है। जुहू में रिक्कू का दफ्तर है। वहीं मैं आ गया था। रवि प्रकाश नहीं थे।       आज ऑफिस में बज (प्रचार एजेंसी) की विज्ञप्ति आई। उसमें बताया गया था कि सुभाष घई की फिल्म इंग्लैंड में अच्छा व्यापार कर रही है। कुछ आंकड़े भी थे। मैंने समाचार बनाया ‘ बचाव की मुद्रा में हैं सुभाष घई ’ । आज ही ‘ क्योंकि सास भी कभी बहू थी ’ का समाचार भी बनाया।       रिक्कू के यहां से निकलकर हमलोग सुमंत को देखने खार गए। अहिंसा मार्ग के आरजी स्टोन में सुमंत भर्ती हैं। उनकी किडनी में स्टोन था। ऑपरेशन सफल रहा , मगर पोस्ट ऑपरेशन दिक्कतें चल रही हैं। शायद कल डिस्चार्ज करें। अब हो ही जाना चाहिए ? काफी लंबा मामला खिच गया।       रास्ते में आशुतोष ने बताया कि वह धड़ाधड़ फिल्में साइन कर रहे