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कुछ खास:पौधा माली के सामने इतराए भी तो कैसे-विशाल भारद्वाज

विशाल भारद्वाज ने पिछले दिनों पूना मे आयोजित सेमिनार में अपनी बातें कहीं। इन बातों मे उनकी ईमानदारी झलकती है। वे साहित्य और सिनेमा के रिश्ते और फिल्म में नाटक के रूपांतरण पर अपनी फिल्मों के संदर्भ में बोल रहे थे। वे पूना फ़िल्म इंस्टीट्यूट में आमंत्रित थे। जो चाहते हो सो कहते हो, चुप रहने की लज्जत क्या जानो ये राज-ए-मुहब्बत है प्यारे, तुम राज-ए-मुहब्बत क्या जानो अल्फाज कहां से लाऊं मैं छाले की तपक समझाने को इकरार-ए-मुहब्बत करते हो, इजहार-ए-मुहब्बत क्या जानो कहना नहीं आता मुझे, बोलना आता है। मेरी चुप से गलतफहमियां कुछ और भी बढ़ीं वो भी सुना उसने, जो मैंने कहा नहीं मुझे लगा कि चुप रहा तो बहुत कुछ सुन लिया जाएगा। तो अब जो कह रहा हूं, उसमें वह सुन लीजिए जो मैं नहीं कह पा रहा हूं। साहित्य से मेरा रिश्ता कैसे बना? मैं उसकी बातें करूंगा। उन बातों में कोई मायने मिल जाए, अगर ये हो तो मुनासिब होगा। कल से मैं लोगों को सुन रहा हूं । ऐसा लग रहा है कि कितना कम देखा है, कितना कम सुना है और कितना कम आता है। माली के सामने पौधा इतराए भी तो कैसे? (गुलजार साहब की तरफ इशारा)। मेरे माली बौठे हुए हैं। गुलज

श्रीमान सत्यवादी और गुलजार

माना जाता है कि बिमल राय की फिल्म 'बंदिनी' से गुलजार का फिल्मी जीवन आरंभ हुआ। इस फिल्म के गीत 'मेरा गोरा अंग लेइ ले' का उल्लेख किया जाता है। किसी भी नए गीतकार और भावी फिल्मकार के लिए यह बड़ी शुरूआत है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि गुलजार ने 'बंदिनी' से तीन साल पहले एसएम अब्बास निर्देशित 'श्रीमान सत्यवादी' के गीत लिखे थे। इस फिल्म में गीत लिखने के साथ निर्देशन में भी सहायक रहे थे। तब उनका नाम गुलजार दीनवी था। दीनवी उपनाम उनके गांव दीना से आया था। हेमेन गुप्ता की फिल्म 'काबुलीवाला' में भी उनका नाम सहायक निर्देशक के तौर पर मिलता है। जाने क्यों गुलजार के जीवनीकार उनकी इस फिल्म का उल्लेख नहीं करते? गुलजार ने स्वयं भी कभी स्पष्ट नहीं कहा कि 'बंदिनी' के 'गोरा अंग लेई ले' के पहले वे गीत लिख चुके थे। 'श्रीमान सत्यवादी' में राज कपूर और शकीला ने मुख्य चरित्र निभाए थे। फिल्म में दत्ताराम वाडेकर का संगीत था। गीतकारों में हसरत जयपुरी, गुलजार दीनवी और गुलशन बावरा के नाम हैं। गुलजार दीनवी ने इस फिल्म में (1) भीगी हव

गुड्डी में जया की जगह डिंपल आ जातीं तो....

चवन्नी इन दिनों सैबल चटर्जी की गुलज़ार पर लिखी किताब द लाइफ एंड सिनेमा ऑफ़ गुलज़ार पढ़ रहा है.इस किताब में एक रोचक प्रसंग है.आदतन चवन्नी आप को बता रहा है। आनंद के बाद हृषिकेश मुखर्जी और गुलज़ार गुड्डी पर काम कर रहे थे।इस फिल्म के लिए नयी अभिनेत्री की ज़रूरत थी। हालांकि यह ज़रूरत आखिरकार जया भादुड़ी ने पूरी की,लेकिन उसके पहले किसी और के नाम का सुझाव आया था.गुलज़ार तब एच एस रवैल के यहाँ आया-जाया करते थे। उनकी पत्नी अंजना भाभी से उनकी छनती थी.गुलज़ार ने वहाँ एक लड़की को आते-जाते देखा था.एक दिन अंजना भाभी ने गुलज़ार को बताया कि वह रजनी भाई की बेटी है और फिल्मों में काम करना चाहती है। उसका नाम डिंपल कापडिया है। गुलज़ार ने हृषिकेश मुखर्जी को डिंपल के बारे में बताया,लेकिन हृषिकेश मुखर्जी के दिमाग में पहले से जया भादुड़ी थीं। हृषिकेश मुखर्जी ने पूना के फिल्म संस्थान में एक फिल्म देखी थी.उस फिल्म कि लड़की उन्हें अपनी फिल्म गुड्डी के लिए उपयुक्त लगी थी.उनहोंने गुलज़ार को सलाह दी कि जाकर पूना में उस से मिल आओ। गुलज़ार और हृषिकेश मुखर्जी के छोटे भाई हृषिकेश मुखर्जी से लगातार पूछते रहे कि कब पूना चलना है। डै