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फिल्म के प्रिव्यू और रिव्यू

-अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी सिनेमा का संकट कई रूपों में सामने आता है। इन दिनों प्रिव्यू और रिव्यू पर बहस चल रही है। फिल्मकारों और फिल्म समीक्षक के बीच कभी प्रेम तो कभी तनातनी की खबरें आती रहती हैं। इन दिनों दिल्ली और मुंबई दो प्रमुख सेंटर हैं फिल्मों के प्रिव्यू और रिव्यू के। दोनों सेंटर के रिव्यूअर को उनके अखबार के हिसाब से अघोषित दर्जा दे दिया गया है। उसे लेकर भी आरोप और शिकायतें रहती हैं। पहले एक सामान्य तरीका था कि निर्माता फिल्म समीक्षकों को रिलीज के दो-तीन दिन पहले या कम से कम गुरुवार को फिल्म दिखा देते थे। फिल्म समीक्षक अपनी समीक्षाएं रविवार को प्रकाशित करते थे। बाद में समीक्षाओं का प्रकाशन रविवार से शनिवार और फिर शनिवार से शुक्रवार को खिसक कर आ गया। कुछ फिल्म समीक्षक तो पहले देखी हुई फिल्मों की समीक्षा बुधवार और कभी-कभी सोमवार को भी ऑन लाइन करने लगे हैं। ऐसी समीक्षाओं में आम तौर पर समीक्षक फिल्मों की प्रशंसा करते हैं और उन्हें अमूमन चार स्टार देते हैं। निर्माता या फिल्मकार की यही मंशा रहती है कि ऐसे रिव्यू से फिल्म के प्रति आम दर्शकों की सराहना बढ़े और वे एक बेहतर फिल्म की उम्मीद प