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रोज़ाना : मनोरंजन जगत के बाहुबली प्रभास

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रोज़ाना मनोरंजन जगत के बाहुबली प्रभास -अजय ब्रह्मात्‍मज इन दिनों देश के कोने-काने और हर पत्र-पत्रिका और समाचार चैनलों पर किसी न किसी बहाने ‘ बाहुबली ’ की ही चर्चा है। यह वाजिब है। ‘ बाहुबली ’ ने नए कीर्तिमान स्‍थापित किए हैं। बिजनेस और मनोरंजन के लिहाज से इसकी कामयाबी अद्वितीय है। ऐस नहीं लगता कि हाल-फिलहाल में कोई और फिल्‍म इतनी चर्चित और सफल होगी। फिल्‍म की क्‍वालिटी,कंटेंट और लंबी उम्र पर बाद में बातें होंगी। फिलहाल एसएस राजामौली को सारा श्रेय दिया जा रहा है। वे इसके काबिल हैं,लेकिन इस फिल्‍म की अप्रतिम लोक्रिपयता में बाहुबली बने प्रभास की भी बड़ी भूमिका है। हिंदी फिल्‍मों के आमिर खान की तरह हम प्रभास के समर्पण पर गर्व कर सकते हैं। युवा अभिनेताओं को उनसे सबक लेनी चाहिए कि अभिनय में एकाग्रता और परिश्रम से अकल्‍पनीय ऊंचाई हासिल की जा सकती है। हिंदी फिल्‍मों में किसी फिल्‍म की कामयाबी का श्रेय हम फिल्‍म के नायक को देते हैं। उस हिसाब से प्रभास हर प्रशंसा के याग्‍य हैं। उनकी फिल्‍म ने अभी तक 1000 करोड़ से अधिक का बिजनेस कर लिया है। अगले कुछ हफ्तों में यह आंकड़ा और ऊपर

रोज़ाना : क्‍यों नहीं होती दक्षिण भारत के फिल्‍मकारों की चर्चा

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रोज़ाना क्‍यों नहीं होती दक्षिण भारत के फिल्‍मकारों की चर्चा -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी सिनेमा की चर्चा और खबरों के बीच हमारा ध्‍यान दक्षिण भारत की भाषाओं की फिल्‍मों की ओर कम ही जाता है। हम वहां के कलाकारों और निर्देशकों से अपरिचित हैं। तमिल फिल्‍मों के रजनीकांत और कमल हासन के अलावा हम तेलुगू,कन्‍नड़ और मलयालम के कलाकरों के नाम तक नहीं जानते। हालांकि टीवी पर इन दिनों दक्षिण भारतीय भाषाओं की डब फिल्‍मों की बहार है। पिछले साल तूलुगू के पावर स्‍टार पवन कल्‍याण ने बताया था कि बनारस भ्रमण के दौरान वे इस तथ्‍य से चौंक गए कि वहां की गलियों में भी लोगों ने उन्‍हें पहचाल लिया। पता चला के टीवी के जरिए ही उनकी यह पहचान बनी थी। भारत सरकार और प्रदेशों के सिनेमा संबंधी मंत्रालय देश में ही सभी भाषाओं की फिल्‍मों के आदान-प्रदान और प्रदर्शन में यकीन नहीं रख्‍ते। पिछले साल बिहार सरकार में फिल्‍म वित्‍त निगम के अध्‍यक्ष बनने पर गंगा कुमार प्रादेशिक भाषाओं की फिल्‍मों का फस्टिवल किया था। ऐसी कोशिशें हर प्रदेश में होनी चाहिए। हाल ही में तेलुगू के श्रेष्‍ठ फिल्‍मकार के विश्‍वनाथ को दादा साहे

रोज़ाना : अनारकली... को मिल रहे दर्शक

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रोज़ाना अनारकली... को मिल रहे दर्शक -अजय ब्रह्मात्‍मज हाल ही में ‘ अनारकली ऑफ आरा ’ के निर्माता संदीप कपूर और निर्देशक अविनाश दास ने सोशल मीडिया पर शेयर किया कि उनकी फिल्‍म पांचवें हफ्ते में प्रवेश कर गई है। दिल्‍ली और मुंबई के कुछ थिएटरों में वह अभी तक चल रही है। रांची और जामनगर में वह इस हफ्ते लगी है। किसी स्‍वतंत्र और छोटी फिल्‍म की यह खुशखबर खुद में बड़ी खबर है। हम सभी जानते हैं कि छोटी फिल्‍मों का वितरण और प्रदर्शन एक बड़ी समस्‍या है। पीवीआर के साथ होने पर भी ‘ अनारकली ऑफ आरा ’ केवल 277 स्‍क्रीन में रिलीज हुई थी। इस सीमित रिलीज को भी उम्‍त कंपनी ने कायदे से प्रचारित और प्रदर्शित नहीं किया था। मजेदार तथ्‍य है कि मुंबई में अंधेरी स्थित पीवीआर के एक थिएटर में इम्तियाज अली ने यह फिल्‍म देखी। फिल्‍म देखने के बाद उन्‍होंने निर्देशक अविनाश दास के साथ सेल्‍फी लेने के लिए फिल्‍म के पोस्‍टर या स्‍टैंडी की खाज की तो वह नदारद...उन्‍होंने ताकीद की तो थिएटर के कर्मचारियों ने स्‍टैंडी का इंतजाम किया। तात्‍पर्य यह कों की रुचि कैसी बढ़गी ? बहरहाल, ’ अनारकली ऑफ आरा ’ दर्शकों क

रोज़ाना : अशांत सुशांत

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रोज़ाना अशांत सुशांत -अजय ब्रह्मात्‍मज दिनेश विजन की फिल्‍म ‘ राब्‍ता ’ के ट्रेलर लांच पर सुशांत सिंह राजपूत और फिल्‍म पत्रकार भारती प्रधान के बीच हुई झड़प के मामले में सोशल मीडिया और मीडिया दो पलड़ों में आ गया है। सुशांत का पलड़ा भारी है। फैंस और मीडिया फैंस उनके समर्थन में उतर आए हैं। ऐसा लग रहा है कि गलती भारती प्रधान से ही हुई। अगर उस लांच के वीडियों को गौर से देखें तो पूरी स्थिति स्‍पष्‍ट होगी। हुआ यों कि सवाल-जवाब के बीच एक टीवी पत्रकार ने कुलभूषण जाधव के बारे में सवाल पूछा,जिन्‍हे कथित जासूसी के अपराध में पाकिस्‍तान ने फांसी की सजा सुनाई है। इस सवाल को सुनते ही थोड़ी देर के लिए खामोशी छा गई। फिर कृति सैनन ने निर्देशक दिनेश विजन का फुसफुसाकर सुझााया कि इस सवाल का जवाब नहीं दिया जाएं। दिनेश विजन ने कहा कि अभी हमलोग इस पर बातें ना करें। सवालों का सिलसिला आगे बढ़ गया। मंच के ठीक सामने बैठी सीनियर भारती प्रधान को यह बात नागवार गुजरी। उन्‍होंने खड़े होकर सवाल किया कि राष्‍ट्रीय महत्‍व के इस सवाल से कैसे बच सकते हैं ? मौजूद फिल्‍म स्‍टारों का इसका जवाब देना चाहिए। स

रोज़ाना : अशोभनीय प्रयोग

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रोज़ाना अशोभनीय प्रयोग -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों श्रीजित मुखर्जी निर्देशित ‘ बेगम जान ’ आई। ‘ बेगम जान ’ में विद्या बालन नायिका हैं और फिल्‍म के निर्माता हैं विशेष फिल्‍म्‍स के महेश भट्ट और मुकेश भट्ट। इस फिल्‍म ने विद्या बालन और महेश भट्ट के अपने प्रशंसकों को बहुत निराश किया। ‘ बेगम जान ’ पंजाब में कहीं कोठा चलाती है। उसे वहां के राजा साहब की शह हासिल है। आजादी के समय देश का बंटवारा होता है। रेडक्लिफ लाइन बेगम जान के कोठे को चीरती हुई निकलती है। भारत और पाकिस्‍तान के अधिकारी चाहते हैं कि बेगम जान कोठा खाली कर दे। 11 लड़कियों के साथ कोठे में रह रही बेगम जान अधिकारियों के जिस्‍म के पार्टीशन कर देने का दावा करती है,लेकिन ताकत उसके हाथ से निकलती जाती है। आखिरकार वह कोठे में लगी आग में बची हुई लड़कियों के साथ जौहर कर लेती है। आत्‍म सम्‍मान की रक्षा की इस कथित मध्‍ययुगीन प्रक्रिया को 1947 गौरवान्वित करते हुए दोहराना एक प्रकार की पिछड़ी सोच का ही परिचायक है। उनकी बेबसी और लाचारगी के चित्रण के और भी तरीके हो सकते थे। प्रगतिशील महेश भट्ट का यह विचलन सोचने पर मजबूर कर

रोज़ाना : अपवाद हैं अभय देओल

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रोज़ाना अपवाद हैं अभय देओल -अजय ब्रह्मात्‍मज    देओल परिवार के अभय देओल अपने चचेरे भाइयों सनी देओल और बॉबी देओल से मिजाज में अलग हैं। उनकी जीवन शैली और फिल्‍मों की पसंद-नापसंद में साफ फर्क दिखता है। स्‍टार परिवार से होने के बावजूद उनमें स्‍टारों के नखरे नहीं हैं। वे दिखावे में नहीं रहते। पंजाबी परिवारों के गुणों-अवगुणों से भी वे दूर हैं। पढ़ाई के लिए विदेश में रहने और वहां हर रंग व वर्ण के दोस्‍तों के साथ बिताई जिंदगी ने उनकी पारंपरिक सोच बदल दी। भारत लौटने और ‘ सोचा न था ’ जैसी फिल्‍म से शुरूआत करने के साथ ही उन्‍होंने स्‍पष्‍ट कर दिया था कि उनमें देओल परिवार के फिल्‍मी और पंजाबी लक्षण नहीं हैं। अभय देओल ने ‘ आउट ऑफ बॉक्‍स ’ फिल्‍में कीं। ‘ जिंदगी ना मिलेगी दोबारा ’ जैसी कमर्शियल फिल्‍म में उनकी असहजता आसानी से देखी जा सकती है। कुछ अलग और बेहतरीन करने की कोशिश में उन्‍हें अभी तक बड़ी कामयाबी नहीं मिली है,लेकिन अपने फसलों और बयानों से उन्‍होंने हमेशा जारि किया कि दूसरे स्‍टारसन की तरह लकीर के फकीर नहीं हैं। 2014 में उन्‍होंने अपनी फिल्‍म ‘ वन बा टू ’ डिजीटल रिलीज

रोज़ाना : धरम जी समझ सकते हैं...

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रोज़ाना धरम जी समझ सकते हैं... -अजय ब्रह्मात्‍मज कल सभी अखबारों में खबर थी कि सलमान खान अपनी आत्‍मकथा नहीं लिखेंगे या यों कहें कि नहीं लिख सकते। आशा पारेख की खालिद मोहम्‍मद लिखित आत्‍मकथा ‘ द हिट गर्ल ’ के विमोचन के अवसर पर सलमान खान ने यह बयान दिया। उन्‍होंने आशा पारेख जैसी सेलिब्रिटी की तारीफ की। उन्‍होंने कहा कि आत्‍मकथा लिखना बहादुरी का काम है। मुझ से तो लाइफ में ना हो। धरम जी समझ सकते हैं.... इसके बाद हॉल में तालियां बजीं। लोग हंसे और खिलखिलाए। सलमान खान शरमाए। होंठ पोंछे और शरारती निगाहों से हॉल में मौजूद लोगों को देखा। फिर से तालियां बजीं। लगभग 20 सेकेंड के इस अंतराल में सलमान खान ने कुछ नहीं कहा,लेकिन लोगों ने सब कुछ समझ लिया। दरअसल,सलमान खान जैसी सेलिब्रिटी जब वाक्‍य अधूरा छोड़ते हैं तो आगे के शब्‍द और उनका आशय भी लोग समझ लेते हैं। आत्‍मकथा किसी भी व्‍यक्ति का वस्‍तुनिष्‍ट और निष्‍पक्ष जीवन इतिहास है,जिसे वह खुद लिखता या लिखवाता है। पहले के कवि और शायर अपनी रचनाओं में खुद के बारे में लिख देते थे। हिंदी में आत्‍मकथा की शुरूआत साहित्‍य की अन्‍य विधाओं की तरह भ

रोज़ाना : शीघ्र सेहतमंद हों अमित जी

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रोज़ाना / अजय ब्रह्मात्‍मज शीघ्र सेहतमंद हों अमित जी हर रविवार की शाम को प्रशंसक और दर्शक खिंचे चले आते हैं। धीरे-धीरे व्‍यक्तियों का समूह बढ़ता और और एक भीड़ में तब्‍दील हो जाता है। यह भीड़ अपने प्रिय अभिनेता की एक झलक और विनम्र नमस्‍कार पाने के लिए उतावली रहती है। मुंबई के उपनगर जुहू के इलाके में हर रविवार को लोगों का हुजूम अमिताभ बच्‍चन के नए आवास ‘ जलसा ’ के सामने एकत्रित होता है। पिछले कई सालों से यह सिलसिला चल रहा है। अगर अमिताभ बच्‍चन मुंबई में हों तो वे बिना नागा हाजिर होते हैं। लकड़ी के बने अस्‍थायी चबूतरे पर खड़े होकर वे सभी का अभिवादन स्‍वीकार करते हैं। पिछले रविवार 9 अप्रैल को अस्‍वस्‍थ होने की वजह से वे अपने प्रशंसकों से मुखातिब नहीं हो सके। उन्‍हें इसका अफसोस रहा और उन्‍होंने ट्वीटर,ब्‍लॉग और फेसबुक पर अपने विस्‍तारित परिवार(एक्‍सटेंडेड फमिली) से माफी मांगी। इस साल अक्‍तूबर में 75 के हो रहे अमिताभ बच्‍चन कई पहलुओं से मिसाल हैं। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के सक्रिय कलाकारों में से एक अमिताभ बच्‍चन के दायित्‍व,कर्तव्‍य और मंतव्‍य को देख-सुन कर अचरज ही होता है

रोज़ाना : मॉडर्न क्लासिक ‘ताल’ का खास शो

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रोज़ाना / अजय ब्रह्मात्‍मज     मॉडर्न क्लासिक ‘ ताल ’ का खास शो महानगर मुंबई और इतवार की शाम। फिर भी सुभाष घई का निमंत्रण हो तो कोई कैसे मना कर सकता है ? उत्‍तर मुंबई के उपनगर से दक्षिण मुंबई मुखय शहर में जाना ही पहाड़ चढ़ने की तरह है। इसके बावजूद खुद को रोकना मुश्किल था,क्‍योंकि सुभाष धई ने अपन फिल्‍म ‘ ताल ’ देखने का निमंत्रण दिया था। सुभाष घई अब सिनेमाघर के बिजनेस में उतर आए हैं। वे पुराने सिनेमाघरों का जीर्णोद्धार कर उन्‍हें नई सुविधाओं से संपन्‍न कर रहे हें। उन्‍हें मुंबई के फोर्ट इलाके में स्थित न्‍यू एक्‍स्‍लेसियर सिंगल स्‍क्रीन में आधुनिक प्रोजेकशन और साउंड सिस्‍टम बिठा दिया है। उसयकी सज-धज भी बदल दी है। इसी सिनेमाघर में वे 1999 में बनी अपनी फिल्‍म ‘ ताल ’ दिखा रहे थे। इस खास शो में उनके साथ म्‍यूजिक डायरेक्‍टर एआर रहमान, कैमरामैन कबीर लाल, कोरियोग्राफर श्‍यामक डावर, संवाद लेखक जावेद सिद्दीकी व गायक सुखविंदर सिंह भी मौजूद रहेथ। फिल्‍ममेकिंग की रोचक और खास प्रक्रिया है। एक डायरेक्टर अपने विजन के अनुसार कलाकारों और तकनीशियन की टीम जमा करता है और फिर महीनों, क