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रोज़ाना : क्‍या ‘कन्‍हैया’ मिल पाएगा प्रधानमंत्री से

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रोज़ाना क्‍या ‘ कन्‍हैया ’ मिल पाएगा प्रधानमंत्री से -अजय ब्रह्मात्‍मज चौंके नहीं, कन्‍हैया राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आगामी फिल्‍म ‘ मेरे प्रिय प्रधान मंत्री ’ का बाल नायक है। वह मुंबई के गांधीनगर(कल्पित) चाल में रहता है। अपनी मां के लिए व‍ि चिंतित है। चाल में शौखलय का इंतजाम न होने से उसकी मां को खुले में शौच के लिए जाना होता है। वह अपनी मां के लिए शौचालय बनवाना चाहता ह। इस कोशिश में उसे पता चलता है कि देश के प्रधान मंत्री उसकी मदद कर सकते हैं। वे स्‍वच्‍छ भारत भारत अभियान में शौच पर बहुत जोर देते हैं। यहां तक कि लाल किले के प्राचीर से भी उन्‍होंने देशवासियों का आह्वान किया था। कन्‍हैया उन्‍हें चिट्ठी लिखता है। वह उनसे मिलने की कोशिश करता है,लेकिन... राकेश ओमप्रकाश मेहरा को इस फिल्‍म का आयडिया पसंद आया। लगभग चार साल पहले वाया दिल्‍ली बिहार से मुंबई आए मनोज मैरता ने इस फिल्‍म के आयडिया पर काम किया। उन्‍हें इस फिल्‍म का आयडिया जमुनापार के इलाके में में दिल्‍ली मैट्रो से सफर के दौरान हुआ। उन्‍होने जमुना के किनारे झ़ग्‍गी-झोंपड़ी के औरतों और मर्दो को डब्‍बा उठाए शौच के ल

रोज़ाना : अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है एक किरदार

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रोज़ाना अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है एक किरदार -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍म रिलीज होने के पहले या बाद में हम लेखकों से बातें नहीं करते। सभी मानते हें कि किसी जमाने में सलीम-जावेद अत्‍यंत लोकप्रिय और मंहगे लेखक थे। उस जमाने में भी फिल्‍मों की रिलीज के समय उनके इंटरव्‍यू नहीं दपते थे। उन्‍होंने बाद में भी विस्‍तार से नहीं बताया कि ‘ जंजीर ’ के विजय को कैसे सोचा और गढ़ा। कुछ मोटीज जानकारियां आज तक मीडिया में तैर रही हैं। अमिताभ बच्‍चन स्‍वयं अपने किरदारों के बारे में अधिक बातें नहीं करते। वे लेखकों और निर्देशकों को सारा श्रेय देकर खुद छिप जाते हैं। अगर हिंदी फिल्‍मों के किरदारों को लेकर विश्‍लेषणात्‍मक बातें की जाएं तो कई रोचक जानकारियां मिलेंगी। क्‍यों कोई किरदार दर्शकों का चहेता बन जाता है और उसे पर्दे पर जी रहा कलाकार भी उन्‍हें भा जाता है ? इसे खोल पाना या डिकोड कर पाना मुश्किल काम है। अगर फिल्‍म किसी खास चरित्र पर नहीं है या बॉयोपिक नहीं है तो हमेशा प्रमुख चरित्र अनेक व्‍यक्तियों का पुंज होता है। जीवन में ऐसे वास्‍तविक चरित्रों का मिलना मुश्किल है। सबसे पहले लेखक

रोज़ाना : चाहिए यूपी की कहानी

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रोज़ाना चाहिए यूपी की कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों फिल्‍मों में स्क्रिप्‍ट और संवाद लिख चुके जयपुर,राजस्‍थान के मूल निवासी रामकुमार सिंह ने दो ट्वीट किए। उन्‍होंने ट्वीट में राजस्थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को टै ग किया और लिखा... मैडम , हम राजस्थान की कहानी सिनेमा में कहना चाहते हैं पर निर्माता हमसे यूपी की कहानी मांगते हैं , क्योंकि वहां सब्सिडी मिलती है। अगले ट्वीट में उन्‍होंने आग्रह किया... बॉलीवुड में राजस्थान और राजस्थानियों के बारे में कुछ सोचिये मैडम प्लीज। रामकुमार सिंह की इस व्‍यथा के दो पहलू स्‍पष्‍ट हैं। एक तो राजस्‍थान में कोई ठोस फिल्‍म नीति नहीं हैं। हालांकि पारंपरिक तौर पर राजे-रजवाड़ों के किलों की शूटिंग के लिए हिंदी फिल्‍मकार राजस्‍थान जाते रहे हैं। हाल ही में राजस्‍थान की पृष्‍ठभूमि की ‘ पद्मावती ’ की शूटिंग में संजय लीला भंसाली की शूटिंग में विध्‍न पड़ा और उन्‍हें उन दृश्‍यों की शूटिंग के लिए नासिक जाना पड़ा और मुंबई आना पड़ा। राजस्‍थान में सुविधाएं मिल जाती हैं,लेकिन किसी प्रकार की रियायत या सब्सिडी की व्‍यवस्‍था नहीं है। र

रोज़ाना : ‘बोर्डर के 20 साल

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रोज़ाना ‘ बोर्डर के 20 साल -अजय ब्रह्मात्‍मज 20 सालों पहले 13 जून 1997 को जेपी दत्‍ता निर्देशित ‘ बोर्डर ’ रिलीज हुई थी। 1971 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के समय बीकानेर के पास लोंगोवाल सीमांत पर हुई मुठभेड़ में भारतीय सैनिकों की इस शौर्यगाथा को देश के दर्शकों ने खूब सराहा था। 1997 में बाक्‍स आफिस पर सबसे ज्‍यादा कलेक्‍शन करने वाली राष्‍ट्रीय भावना की इस फिल्‍म के साथ देश के दर्शकों का भावनात्‍मक रिश्‍ता है। हम इसे भारत के विजय प्रयाण के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं। पिछले साल रक्षा मंत्रालय और फिल्‍म समारोह निदेशालय ने आजादी की 70 वीं सालगरिह की शुरुआत के मौके पर पिछले साल ‘ बोर्डर ’ का विशेष प्रदर्शन किया था। ‘ बोर्डर ’ को कुल 62 पुरस्‍कार मिले थे। पिछले रविार को जेपी दत्‍ता ने ‘ बोर्डर ’ के 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में यूनिट और मीडिया के सदस्‍यों को याद किया। उन्‍होंने इस मौके पर ट्राफी बांटी। फिल्‍म के मुख्‍य कलाकार सनी देओल शहर से बाहर होने की वजह से नहीं पहुंच सके। सुनील शेट्टी,जैकी श्राफ,पूजा भट्ट ने इस मौके पर ‘ बोर्डर ’ के निर्माण के दिनों को याद किया

रोज़ाना : नाम और पोस्‍टर

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रोज़ाना नाम और पोस्‍टर -अजय ब्रह्मात्‍मज इम्तियाज अली की शाह रूख खान और अनुष्‍का शर्मा की फिल्‍म का टायटल फायनल हो गया। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ नाम से फिल्‍म के पोस्‍टर एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित किए गए है। गौर करें तो यह दो पोस्‍टर का सेट है,जिसमें पहले पोस्‍टर पर ‘ जब हैरी ’ और दूसरे पोस्‍टर पर ‘ मेट सेजल ’ लिखा बया है। दोनों किरदारों के नाम लाल रंग में लिखे गए हैं। पोस्‍टर में टैग लाइन है... ’ ह्वाट यू सीक इज सीकिंग यू ’ । जलालुद्दीन रुमी की यह पक्ति इम्तियाज अली को बेहद पसंद है। उन्‍होंने इस पंक्ति को फिल्‍म में संवाद के तौर पर रखा है। हिंदी साहित्‍य से परिचित पाठक लगभग इसी भाव पर लिखी रामनरेश त्रिपाठी की ‘ अन्‍वेषण ’ शीर्षक कविता याद कर सकते हैं... ’ मैं ढूँढता तुझे था , जब कुंज और वन में। तू खोजता मुझे था , तब दीन के सदन में। सारे संबंध पारस्‍परिक होते हैं। हम जिसकी तलाश में रहते है,वह खुद हमारी तलाश में रहता है। भारतीय दर्शन में ‘ तत् त्‍वम असि ’ भी कहा गया है। इम्तियाज अली भी अपनी फिल्‍मों में संबंधों और भावों की तलाश में रहते हैं। ऊपरी तौर पर उनकी फ

रोज़ाना : मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्‍म

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रोज़ाना मनमोहन सिह पर बनेगी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज किसी राजनीतिक व्‍यक्ति की जिंदगी फिल्‍म का रोचक हिस्‍सा हो सकती है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री की चुप्‍पी के इतने किस्‍से हैं। विरोधी पार्टियों और आलोचकों ने उन पर फब्तियां कसीं। उन्‍हें ‘ मौनमोहन ’ जैसे नाम दिए गए। मीडिया में उनका मखौल उड़ाया गया,फिर भी एक अर्थशास्‍त्री के रूप में उनके योगदार को भारत नहीं भुला सकता। आर्थिक उदारीकरण से लेकर विश्‍वव्‍यापी मंदी के दिनों में भी उन्‍होंने अपनी अर्थ नीतियों से विकासशील देश को बचाया। आर्थिक प्रगति की राह दिखाई। 2004 से 2008 तक उनके मीडिया सलाहकार रहे संजॉय बारू ने मनामोहन के व्‍यक्तित्‍व पर संस्‍मरणात्‍मक पुस्‍तक लिखी थी। 2014 में प्रकाशित इस पुस्‍तक का नाम ‘ द एक्‍सीडेटल प्राइममिनिस्‍टर - द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमाहन सिंह ’ है। इस पुस्‍तक के प्रकाशन के समय ही विवाद हुआ था। दरअसल,दृष्टिकोण और व्‍याख्‍या से तथ्‍यों की धारणाएं बदल जाती हैं। कई बार ऐसी किताबों की व्‍याख्‍या से प्रचलित धारणाओं की पुष्टि कर देती है। अब इसी पुस्‍तक पर एक फिल्‍म बनने जा रही है। इस फिल्‍म में अ

रोज़ाना : रानी की आएगी फिल्‍म

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रोज़ाना रानी की आएगी फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज दो महीने पहले 4 अर्पैल को रानी मुखर्जी की नई फिल्‍म ‘ हिचकी ’ की शूटिंग आरंभ हुई थी। दो महीनों के अंदर इसकी शूटिंग पूरी हो गई। 5 जून को यशराज फिल्‍म्‍स ने फिल्‍म की समाप्ति की तस्‍वीर भेजी। रानी मुखर्जी की ‘ हिचकी ’ फटाफट पूरी की गई है। उन्‍होंने अपने करिअर में सबसे ज्‍यादा फिल्‍में यशराज फिल्‍म्‍स के साथ ही की हैं। यशराज के साथ 2002 में ‘ साथिया ’ से आरंभ हुई उनकी यात्रा ‘ मर्दानी ’ तक पहुंची है। ‘ हिचकी ’ उनकी अगली फिल्‍म होगी। यशराज बैनर के तहत ‘ हिचकी ’ के निर्माता मनीष शर्मा हैं। इस व्‍यवस्‍था के अंतर्गत मनीष शर्मा की यह तीसरी फिल्‍म होगी। इसके पहले वे ’ दम लगा के हईसा ’ और ‘ मेरी प्‍यारी बिंदु ’ कर निर्माण कर चुके हैं। इनमें से पहली चली और प्रशंसित हुई थी,दूसरी फिसली और निंदित हुई है। रानी मुखर्जी का फिल्‍मी करिअर हिंदी में ‘ राजा की आएगी बारात ’ से आरंभ हुआ। बीस साल पहले 1997 में आई इस फिल्‍म से रानी मुखर्जी को पहचान मिल गई थी। आमिर खान के साथ ‘ गुलाम ’ में ‘ आती क्‍या खंडाला ’ गाती हुई वह दर्शकों की प्रिय

रोज़ाना : पर्दे पर भी सगे भाई

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रोज़ाना पर्दे पर भी सगे भाई -अजय ब्रह्मात्‍मज कबीर खान की ‘ ट्यूबलाइट ’ में सहोदर सलमान खान और सोहेल खान सगे भाइयों के रोल में नजर आएंगे। कबीर खान ने पर्देपर उन्‍हें लक्ष्‍मण और भरत का नाम दिया है। भरत और लक्ष्‍मण भारतीय मानस में भाईचारे के मिसाल रहे हैं। कहीं न कहीं कबीर उस मिथक का लाभ उठाना चाहते होंगे। ‘ ट्यूबलाइट ’ दो भाइयों की कहानी है। उनमें अटूट प्रेम और भाईचारा है। लक्ष्‍मण मतिमंद है,इसलिए सभी उसे ट्यूबलाइट कहते हैं। भारत-चीन युद्ध के उस दौर में एक भाई लड़ने के लिए सीमा पर चला जाता है और नहीं लौटता। दूसरे ट्यूबलाइट भाई को यकीन है कि युद्ध बंद होगा उसका भाई जरूर लौटेगा। अपने उस यकीन से वह कोशिश भी करता है। कबीर खान ने सगे भाइयों की भूमिका के नलए सलमान खान के साथ सोहेल खान को चुना। उनका मानना है कि पर्दे पर एक-दो सीन के साथ ही दर्शक उन्‍हें सगे भाइयों के तौर पर मान लेंगे। गानों और नाटकीय दृश्‍यों मेंद दोनों भाइयों का सगापन आसानी से जाहिर होगा। सलमान खान के अपने भाइयों से मधुर रिश्‍ते हैं। सलमान खान ने भी अपनी बातचीत में कहा कि भाई के रोल में किसी पॉपुलर और बड़

रोज़ाना : इतने सारे फाल्‍के अवार्ड?

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रोज़ाना इतने सारे फालके अवार्ड ? -अजय ब्रह्मात्‍मज कल अखबारों और चैनलों पर खबर थी कि प्रियंका चोपड़ा और कपिल शर्मा को दादा साहेब फाल्‍के अकादेमी अवार्ड से सम्‍मानित किया गया। इस खबर को पढ़ते समय पाठक ‘ अकादेमी ’ शब्‍द पर गौर नहीं करते। एक भ्रम बनता है कि उन्‍हें प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्‍के अवार्ड कैसे मिल गया ? देश में खास कर महाराष्‍ट्र में दादा साहेब फाल्‍के के नाम से और भी अवार्ड हैं। दादा साहेब फाल्‍के के नाम पर चल रहे इन पुरस्‍कारों से देश के सर्वोच्‍च फिल्‍म पुरस्‍कार की मर्यादा मलिन होती है। राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कारों की घोषणा के साथ या आसपास दादा साहेब फाल्‍के पुरस्‍कार की भी घोषणा होती है। यह पुरस्‍कार से अधिक सम्‍मन है। सिनेमा में अप्रतिम योगदान के लिए किसी एक फिल्‍मी हस्‍ती को यह पुरस्‍कार दिया जाता है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन दिए जाने वाले राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार की यह श्रेणी अत्‍यंत सम्‍मानीय है। इस साल दक्षिण के के विश्‍वनाथ को इस पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया है। कायदे से सूचना एवं प्रसारण मंत्राालय को इस आशय की अधिसू

रोज़ाना : फिल्‍में नहीं,चमके सितारे

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रोज़ाना फिल्‍में नहीं,चमके सितारे -अजय ब्रह्मात्‍मज भारत में सबसे अधिक फिल्‍में बनती हैं। यहां की फिल्‍म इंडस्‍ट्री हॉलीवुड के मुकाबले खड़ी है। अब तो ‘ दंगल ’ और ‘ बाहुबली ’ का उदाहरण दिया जा सकता है कि हमारी फिल्‍में 1000 करोड़ से अधिक का कलेक्‍शन करती हैं। निश्चित ही आगामी वर्षें में भारतीय फिल्‍मों का कैनवास बड़ा होगा। बड़े पैमाने पर तकनीकी गुण्‍वत्‍ता के साथ उनका निर्माण और वितरण होगा। अधिकाधिक आय की संभावनाएं बनेंगी। इस प्रयाण के बावजूद जब इंटरनेशनल फेस्टिवल और मंचों पर भारतीय फिल्‍में नहीं दिखतीं तो अफसोस होता है। मन मसोस कर रह जाना पड़ता है। हाल ही में संपन्‍न कान फिल्‍म समारोह की भारतीय मीडिया में चर्चा रही। रोजाना कुछ तस्‍वीरें छपती रहीं। मुख्‍य रूप से ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन,सोनम कपूर और दीपिका पादुकोण की आकर्षक और नयनाभिरामी तस्‍वीरों से पत्र-पत्रिकाएं भरी रहीं। हम ने यह भी देखा कि उन्‍हें घेरे फोटोग्राफर खड़ रहे और उन्‍होंने मटकते हुए रेड कार्पेट पर पोज किया। ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन 2002 से कान फिल्‍म समारोह में जा रही हैं। सोनम कपूर को भी छह साल हो गए। इस साल

रोज़ाना : जे पी दत्‍ता की ‘पलटन’

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रोज़ाना जे पी दत्‍ता की ‘ पलटन ’ -अजय ब्रह्मात्‍मज खबरें आ रही हैं कि जेपी दत्‍ता ‘ उमराव जान ’ की रिलीज के 11 सालों के बाद फिर से ‘ लाइट कैमरा एक्‍शन ’ कहने के लिए तैयार हैं। वे ‘ पलटन ’ नाम की फिल्‍म का निर्देशन करेंगे,जिसमें उनके चहेते फिल्‍म स्‍टार अभिषेक बच्‍चन रहेंगे। अभिषेंक बच्‍चन के साथ सूरज पंचोली और पुलकित सम्राट भी फिल्‍म में होगे। जेपी दत्‍ता की ‘ बोर्डर ’ के सीक्‍वल की खबरें लंबे समय तक चलीं। यह फिल्‍म धरी रह गई। सबसे बड़ी वजह बजट और कलाकारों की भागीदारी है। इन दिनों फिल्‍म स्‍टार किसी भी भी को 30 से 60 दिनों का समय देते हैं और चाहते हैं कि एक ही शेड्यूल में फिल्‍म पूरी हो जाए। अगर आज के माहौल में जेपी दत्‍ता की ‘ एलओसी कारगिल ’ की कल्‍पना करें तो वह असंभव हो जाएगी।   इस पैमाने,स्‍तर और समय के साथ अभी फिल्‍में बनाना मुश्किल हो चुका है। ऐसा लगता है कि ‘ बाहुबली ’ फिल्‍मों की कामयाबी ने ही जेपी दत्‍ता को अपने किस्‍म की एपिक फिल्‍म के लिए तैयार किया होगा। अभिशेक बच्‍चन और करीना कपूर की पहली फिल्‍म ‘ रिफ्यूजी ’ के निर्देशक जेपी दत्‍ता ही थे। उन्‍हें उ

रोज़ाना : ऑनलाइन प्‍लेटफॉर्म

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रोज़ाना ऑनलाइन प्‍लेटफॉर्म -अजय ब्रह्मात्‍मज कुछ दिनों पहले हालीवुड के स्‍टार ब्रैड पिट कुछ घंटों के लिए भारत आए थे। मौका उनकी नई फिल्‍म के भारत में इवेंट का था। ब्रैड पिट की यह फिल्‍म ‘ नेटफिल्‍क्‍स ’ के सहयोग से बनी है। नेटफिल्‍क्‍स ऑनलाइन प्‍लेटफॉर्म है। आप एक निश्चित रकम देकर नेटफिल्‍क्‍स पर फिल्‍में,टीवी शो और अन्‍य ऑडिये-विजुअल कार्यक्रम देख सकते हैं। भारत में नेटफिल्‍क्‍स के साथ अमैजॉन भी भविष्‍य की तैयारियों में है। ये दोनों प्‍लेटफॉर्म बड़ पैमाने पर भारतीय कंटेंट खरीद रहे हैं और भारतीय निर्माताओं व कलाकारों के सहयोग से नए कंटेंट तैयार कर रहे हैं। इन दिनों हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री का हर सक्रिय सदस्‍य किसी न किसी प्रकार इन दोनों ऑन लाइन फल्‍ेटफॉर्म में से किसी एक से जुड़ना चाह रहा है। ब्रैड पिट ने त्रवार मशीन ’ का निर्माण नेटफिल्‍क्‍स के लिए किया। यह फिल्‍म ऑनलाइन ही देखी जा सकेगी। माना जा रहा है कि सिनेमा का यही भविष्‍य है या फिर एक कमाईदार विकल्‍प है। ‘ वार मशीन ’ जैसी फिल्‍में थिएटर रिलीज को ध्‍यान में रख कर नहीं बनाई जा सकती थी। हालीवुड के स्‍टूडियो भी ऐस

रोज़ाना : प्रियंका चोपड़ा की 51वीं फिल्‍म

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रोज़ाना प्रियंका चोपड़ा की 51वीं फिल्‍म -अजय ब्रह्मात्‍मज भारत छोड़ कर पूरी दुनिया में आज रिलीज हो रही ‘ बेवाच ’ प्रियंका चोपड़ा की पहली हॉलीवुड फिल्‍म है। अगर उनकी हिंदी फिल्‍मों को शामिल कर लें तो यह उनकी 51वीं फिल्‍म होगी। 50 फिल्‍मों के बाद हॉलीवुड में इस दस्‍तक से प्रियंकाचोपड़ा समेत उनके प्रशंसक खुश हैं। किसी भारतीयअभिनेत्री की बड़ी उपलब्धि की तरह इसे पेश किया जारहा है। लोकप्रिय टीवी शो पर आधारित इस फिल्‍म के प्रति दर्श्‍कों केनजरिए में भिन्‍नता हो सकती है , फिर भी यह स्‍वीकार करने में दिक्‍कत नहीं होनी चाहिए कि प्रियंका चोपड़ा ने कुछ उल्‍लेखनीय हासिल किया है। ‘ देसी गर्ल ’ के नाम से विख्‍यात प्रियंका चोपड़ा की जमशेदपुर से हॉलीवुडतक की यह यात्रा देसी व छोटे शहर की लड़कियों के लिए मिसाल व प्रेरणा है। प्रियंका चोपड़ा ने मिस इंडिया के बाद फिल्‍मों में कदम रखा। अपनी गलतियों से सीखती हुई वह आगे बढ़ती रही। माता-पिता के संरक्षण और दिशानिर्देश में प्रियंका चोपड़ा ने छोटी-छोटी कामयाबियों से हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में अपनी जगह बनायी। एक्टिंग करिअर में वह अपने साथ आई लारा द

रोज़ाना : नमक हलाल की री-रिलीज

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रोज़ाना नमक हलाल की री-रिलीज -अजय ब्रह्मात्‍मज इस कॉलम की शुरूआत हम ने सुभाष घई की फिल्‍म ‘ ताल ’ की खास स्‍क्रीनिंग से की थी। मुंबई में आयोजित उस शो में फिल्‍म के संगीतकार और कैमरामैन आए थे। उन्‍होंने अपनी यादें शेयर की थीं। पुरानी फिल्‍मों को फिर से देखना या पहली बार देखना अनोखा अनुभव होता है। पुरानी पीढ़ी फिल्‍म देखते हुए डायरी के पन्‍ने पलटती है और उस शो में साथ आए दोस्‍तों-परिजनों के साथ उन लमहों को याद करती है। नई पीढ़ी ऐसी फिल्‍मों के जरिए अपने इतिहास से वाकिफ होती है। मोबाइल फोन पर फिल्‍म देखने की सुविधा आ जाने के बावजूद फिल्‍म देखने का पूरा आनंद तो बड़े पर्दे पर ही आता है। पहले रीरिलीज का चलन था। पुरानी फिल्‍में विभिन्‍न अवसरों और ईद-होली जैसे त्‍योहारों पर रिलीज की जाती थीं। उन्‍हें देखने दर्शक उमड़ते थे। देखना है कि इस रविवार को मुंबई के जुहू पीवीआर और दिल्‍ली के नारायणा पीवीआर में 21 मई रविवार के दिन ‘ नमक हलाल ’ देखने कितने दर्शक आते हैं ? 30 अप्रैल 1982 को पहली बार रिलीज हुई यह फिल्‍म 35 सालों के बाद 21 मई को फिर से रिलीज हो रही है। प्रकाश मेहरा निर्देश