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Showing posts with the label सलमान खान

आन बान और खान-सौम्‍या अपराजिता/रघुवेंद्र सिंह

देखते ही देखते सलमान खान की दबंग ने आमिर खान की 3 इडियट के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को पीछे छोड़ दिया। दबंग ने पहले हफ्ते में 81 करोड़ रुपए से अधिक का व्यवसाय किया, जबकि 3 इडियट ने 80 करोड़ रुपए की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर इस नए रिकॉर्ड को कायम कर सलमान ने आमिर से बाजी मारते हुए शाहरुख के लिए चुनौती पेश की है। रा.वन फिल्म से अब इस चुनौती पर खरा उतरना शाहरुख खान की आन, बान और शान के लिए जरूरी हो गया है। उनके सामने पहले ही हफ्ते में 80-81 करोड़ रुपए से अधिक कमाई करने की चुनौती रहेगी। [स्टार पॉवर की होगी परीक्षा] ''दबंग के रिकॉर्ड को शाहरुख अवश्य चुनौती के रूप में लेंगे। यह उनकी फितरत है। वे हर चीज को चुनौती के रूप में लेते हैं'', वरिष्ठ फिल्म पत्रकार मीना अय्यर के इस कथन से ज्ञात होता है कि दबंग से मिली चुनौती से शाहरुख खान भली-भांति वाकिफ हैं। जब भी सलमान या आमिर की कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए सोपान छूती है, तब उनके स्टार पॉवर की परीक्षा की घड़ी आ जाती है। ऐसा ही कुछ दबंग की रिलीज के बाद हो रहा है। ट्रेड व‌र्ल्ड एवं फिल्म इंडस्ट्री में इस बात पर बहस छिड़ चुकी है कि क्

पैशन से बनती हैं फिल्में: सूरज बड़जात्या

-अजय ब्रह्मात्‍मज  पिछली सदी का आखिरी दशक एक्शन के फार्मूले में बंधी एक जैसी फिल्मों में प्रेम की गुंजाइश कम होती जा रही थी। दर्शक ऊब रहे थे, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को होश नहीं था कि नए विषयों पर फिल्में बनाई जाएं। फिल्म इंडस्ट्री का एक नौजवान भी कुछ बेचैनी महसूस कर रहा था। प्रेम की कोमल भावनाओं को पर्दे पर चित्रित करना चाहता था। सभी उसे डरा रहे थे कि यह प्रेम कहानियों का नहीं, एक्शन फिल्मों का दौर है। प्रेम कहानी देखने दर्शक नहीं आएंगे, लेकिन उस नौजवान को अपनी सोच पर भरोसा था। उसका नाम है सूरज बडजात्या और उनकी पहली फिल्म है, मैंने प्यार किया। कुछ वर्ष बाद आई उनकी फिल्म हम आपके हैं कौन को एक मशहूर समीक्षक ने मैरिज विडियो कहा था, लेकिन दर्शकों ने उसे भी खुले दिल से स्वीकार किया। सौम्य, सुशील और संस्कारी सूरज बडजात्या को कभी किसी ने ऊंचा बोलते नहीं सुना। सूरज ने अभी तक बाजार के दबाव को स्वीकार नहीं किया है। प्रस्तुत है फिल्मों में उनके सफर विभिन्न आयामों पर एक समग्र बातचीत। कौन सी शुरुआती फिल्में आपको याद हैं? पांच-छह साल की उम्र से ट्रायल में जाता था। फिल्म सूरज और चंदा याद है। दक्षि

फिल्‍म समीक्षा : वीर

उन्नीसवीं सदी में 'बॉलीवुड' रोमांस -अजय ब्रह्मात्‍मज सलमान खान, शक्तिमान तलवार, शैलेष वर्मा, कृष्ण राघव, गुलजार, साजिद-वाजिद और आखिरकार अनिल शर्मा ़ ़ ़ इन सभी में किस एक को वीर के लिए दोषी माना जाए? या सभी ने मिल कर एक महत्वाकांक्षा से मुंह मोड़ लिया। रिलीज के पहले फिल्म ने पीरियड का अच्छा भ्रम तैयार किया था। लग रहा था कि सलमान खान की पहल पर हमें एक खूबसूरत, सारगर्भित, भव्य और नाटकीय पीरियड फिल्म देखने का अवसर मिलेगा। यह अवसर फिल्म शुरू होने के चंद मिनटों के अंदर ही बिखर गया। फिल्म में वीर और यशोधरा का लंदन प्रवास सिर्फ प्रभाव और फिजूलखर्ची के लिए रखा गया है।वीर अपनी संपूर्णता में निराश करती है। कुछ दृश्य, कोई एक्शन, कहीं भव्यता, दो-चार संवाद और अभिनय की झलकियां अच्छी लग सकती हैं, लेकिन कतरों में मिले सुख से बुरी फिल्म देखने का दुख कम नहीं होता। फिल्म शुरू होते ही वॉयसओवर आता है कि अंग्रेजों ने पिंडारियों को इतिहास में जगह नहीं दी, लेकिन उन्हें अफसाना बनने से नहीं रोक सके। इस फिल्म में उस अफसाने के चित्रण ने दर्शकों को पिंडारियों के सच से बेगाना कर दिया। लेखक और नि

लाखों-करोड़ों लोगों के लिए काम करता हूं: सलमान खान

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फिल्म के विज्ञापन और तस्वीरों से दर्शकों के बीच उत्साह बनता दिख रहा है। वीर में क्या जादू बिखेरने जा रहे हैं आप? मुझे देखना है कि दर्शक क्या जादू देखते हैं। एक्टर के तौर पर अपनी हर फिल्म में मैं बेस्ट शॉट देने की कोशिश करता हूं। कई बार यह उल्टा पड़ जाता है। दर्शक फिल्म ही रिजेक्ट कर देते हैं। वीर जैसी फिल्म करने का इरादा कैसे हो ्रगया? पीरियड फिल्म का खयाल क्यों और कैसे आया? और आप ने क्या सावधानियां बरतीं? यहां की पीरियड फिल्में देखते समय अक्सर मैं थिएटर में सो गया। ऐसा लगता है कि पिक्चर जिस जमाने के बारे में है, उसी जमाने में रिलीज होनी चाहिए थी। डायरेक्टर फिल्म को सीरियस कर देते हैं। ऐसा ल्रगता है कि उन दिनों कोई हंसता नहीं था। सोसायटी में ह्यूमर नहीं था। लंबे सीन और डायलाग होते थे। मल्लिका-ए-हिंद पधार रही हैं और फिर उनके पधारने में सीन निकल जाता था। इस फिल्म से वह सब निकाल दिया है। म्यूजिक भी ऐसा रखा है कि आज सुन सकते हैं। पीरियड फिल्मों की लंबाई दुखदायक होती है। तीन,साढ़े तीन और चार घंटे लंबाई रहती थी। उन दिनों 18-20 रील की फिल्मों को भी लोग कम समझते थे। अब वह जमाना चला गया है। इंट

फिल्‍म समीक्षा: लंदन ड्रीम्‍स

ईर्ष्‍या और दोस्‍ती के बीच -अजय ब्रह्मात्‍मज विपुल शाह ने पंजाब और लंदन को एक बार फिर जोड़ा है। इस बार भी पंजाब का एक सीधा-सादा मुंडा लंदन पहुंचता है और वहां सभी का चहेता बन जाता है। अनजाने में वह अपने दोस्त के लिए ही बाधा बन जाता है। ईष्र्या जन्म लेती है और फिर एक दोस्त अपनी आकांक्षाओं के लिए दूसरे का दुश्मन बन जाता है। अर्जुन और मन्नू बचपन के दोस्त हैं। अर्जुन मेहनती और लगनशील है। वह संगीत की दुनिया में अपना नाम रोशन करना चाहता है। परिवार में हुए एक हादसे की वजह से कोई नहीं चाहता कि अर्जुन संगीत का अभ्यास करे। दूसरी तरफ मन्नू हुनरमंद है। उसमें जन्मजात प्रतिभा है। बड़ा होने पर अर्जुन लंदन पहुंच जाता है और मन्नू पंजाब में ही रह जाता है। वह स्थानीय राजा-रानी बैंड में म्यूजिसियन बन गया है। उधर अर्जुन लंदन में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। उसने अपने बैंड का नाम लंदन ड्रीम्स रखा है। लंबे समय बाद दोनों दोस्त मिलते हैं। मन्नू भी लंदन पहुंचता है। वह अपने बेपरवाह अंदाज से सभी का प्रिय बन जाता है। यहां तक कि वह दोस्त की प्रेमिका का भी दिल जीत लेता है। यहीं से अर्जुन के मन में कसक पैदा होती है। वह

खान-तिकड़ी का जलवा शबाब पर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज आमिर, शाहरुख और सलमान ने अपनी पिछली फिल्मों से साबित कर दिया है कि वे लोकप्रियता के सिंहासन पर टिके रहेंगे। खान-तिकड़ी की फिल्मों की समानता और कामयाबी पर एक नजर. हम सभी उन्हें खान-तिकड़ी के नाम से जानते हैं। पिछले 15-20 सालों से वे हिंदी फिल्मों में सक्रिय हैं और उन्होंने कामयाबी और लोकप्रियता की नई मिसाल कायम की है। संयोग ही है कि तीनों का जन्म 1965 में हुआ। खान-तिकड़ी में आमिर खान सबसे बड़े हैं। उनका जन्म 14 मार्च को हुआ। शाहरुख खान 2 नवंबर को पैदा हुए और सलमान खान 27 दिसंबर को..तीनों ने आगे-पीछे फिल्मों में शुरुआत की। इनमें आमिर और सलमान फिल्म परिवारों से हैं। शाहरुख दिल्ली से आए। उन्होंने टीवी सीरियल से शुरुआत की। आज तीनों ही फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं। हिंदी फिल्मों के हीरो की औसत उम्र 18-25 लेकर चलें तो तीनों लगभग बीस साल बड़े हैं, लेकिन तीनों ही किसी यंग एक्टर से उन्नीस नहीं दिख रहे हैं। उनकी कामयाबी की वजह खोजने चलें, तो सबसे पहले उनकी फिल्मों की सफलता और स्वीकृति पर नजर जाती है। चालीस से अधिक उम्र के तीनों खानों ने मिल कर फिल्म इंडस

फिल्‍म समीक्षा:वांटेड

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-अजय ब्रह्मात्‍मज प्रभु देवा की वांटेड उस कैटगरी की फिल्म है, जो कुछ सही और ज्यादा गलत कारणों से हिंदी में बननी बंद हो चुकी है। इनके बारे में धारणा है कि केवल फ्रंट स्टाल के चवन्नी छाप दर्शक ही पसंद करते हैं। अब दर्शकों का प्रोफाइल बदल गया है। मल्टीप्लेक्स ने दर्शकों की जो आभिजात्य श्रेणी गढ़ी है, वह ऐसी फिल्मों को घटिया, असंवेदनशील और चालू कहती है। पिछले 15 वर्षो में हिंदी सिनेमा ने खुद को जाने-अनजाने ऐसी मनोरंजक फिल्मों से दूर कर लिया है। कभी ऐसी फिल्में बनती थीं और हमारे फिल्मी हीरो दर्शकों के दिलों पर राज करते थे। वांटेड उस नास्टेलजिया को जिंदा करती है। यह फिल्म हर किस्म के थिएटर के दर्शकों को पसंद आ सकती है, क्योंकि कुछ दर्शक इसे सालों से मिस कर रहे थे। नए शहरी दर्शकों ने तो ऐसी फिल्में देखी ही नहीं हैं। राधे (सलमान खान) पैसों के लिए कोई भी काम कर सकता है। एक बार जिस काम या बात के लिए वह हां कर देता है, उससे कभी नहीं मुकरता। अपनी इस खूबी और निर्भीक एटीट्यूड से वह अपराध जगत में तेजी से चर्चित हो जाता है। उसकी मांग बढ़ती है। अपराध जगत का सरगना गनी भाई विदेश में कहीं रहता है। अपने दा

आत्मकथा नहीं लिखना चाहते सलीम खान

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-अजय ब्रह्मात्मज सलीम खान के साथ घंटों बिताने के बाद चलते वक्त नंबर लेने के बाद जब मैंने पूछा कि क्या कभी उनसे फोन पर बातें की जा सकती हैं? उनका सीधा जवाब था, भाई, मैं तो रॉन्ग नंबर से आए कॉल पर भी आधे घंटे बात करता हूं। आप तो परिचित हैं और पत्रकार हैं। सलीम खान के व्यक्तित्व का अनुमान बगैर उनकी संगत के नहीं हो सकता। वे मीडिया से बातें नहीं करते और न अपने जोड़ीदार जावेद अख्तर की तरह बयान और भाषणों के लिए उपलब्ध रहते हैं। उनका अपना एक रुटीन है। वे उसमें व्यस्त रहते हैं। आज जिस उदारता, मेहमाननवाजी और फराक दिल के लिए सलमान खान की तारीफ की जाती है, वह सब उन्हें सलीम खान से विरासत में मिली है। सलीम खान इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन साथ में यह बताना नहीं भूलते कि सलमान की अपनी खासियतें हैं। वह अपने ढंग का वाहिद लड़का है। मेरा बेटा है, इसलिए नहीं.., वह सचमुच टैलेंटेड आर्टिस्ट है। सलीम खान कमरे में टंगी पेंटिंग्स की तरफ इशारा करते हैं। उसे नींद नहीं आती। वह बेचैन रहता है। मैं उसकी क्रिएटिव छटपटाहट को समझ सकता हूं। कभी मैं भी उसकी तरह बेचैन रहता था। वे यादों की गलियों में लौटते हुए बताते हैं कि इ

कैफियत कैटरीना कैफ की

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रफ्ता-रफ्ता ये हुआ कैफ-ए-तसव्वुर का असर, दिल के आईने में तस्वीर उतर आई है.. किसी शायर की ये पंक्तियां आज ही हॉट अभिनेत्री कैटरीना कैफ की तारीफ में जरूर नहीं लिखी गई हैं, लेकिन उनकी कैफियत का नजारा इससे जरूर मिल जाता है। कैफ का सीधा अर्थ है आनंद और नशा। कैटरीना में ये दोनों ही खूबियां हैं। अब यदि यह कहें कि वे दर्शकों को मदहोश करने के साथ ही आनंदित भी करती हैं, तो शायद गलत नहीं होगा। यही वजह है कि कश्मीरी पिता और ब्रितानी मां की यह लाडली महज अपनी खूबसूरती से हिंदी फिल्मों के करोड़ों दर्शकों के दिलों पर राज कर रही हैं। अगर अदाकारी और टैलेंट के तराजू पर कैटरीना को तौलें, तो उनका वजन सिफर से ज्यादा नहीं होगा! फिर क्या वजह है कि वे करोड़ों दर्शकों के दिलों की मल्लिका बनी हुई हैं? कुछ बात तो जरूर होगी कि उनका नशा दर्शकों और निर्देशकों दोनों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। हमने कैटरीना कैफ के साथ काम कर चुके निर्देशकों और कलाकारों से इस बारे में बात की। उनकी फिल्मों की रिलीज के दौरान हुई मुलाकातों में जानना चाहा कि वे क्यों अपनी फिल्मों में कैटरीना को रखते हैं और उनकी कामयाबी का राज क्या है? कैटरी

मन में न हो खोट तो क्यों आँख चुराएँ?

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टीवी शो बिग बॉस के अंतिम दिन मंच पर शिल्पा शेट्टी के साथ अक्षय कुमार के आने की खबर से मीडिया में उत्सुकता बनी हुई थी। लोग कयास लगा रहे थे कि महज औपचारिकता निभाई जाएगी और दोनों का व्यवहार एक-दूसरे के प्रति ठंडा रहेगा। यहां अक्षय और शिल्पा दोनों की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने शो के विजेता को जानने की जिज्ञासा बनाए रखी। अक्षय को मंच पर बुलाते समय शिल्पा की आवाज एक बार लरज गई थी। हो सकता है कि यह उस इवेंट का दबाव हो या संभव है कि पुरानी यादों से गला रुंध गया हो! मौके की नजाकत को भांपते हुए शिल्पा ने फौरन खुद को और कार्यक्रम को संभाला। बाद में दोनों ने चुहलबाजी भी की और इवेंट को रसदार बना दिया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि अंतरंग संबंध जी चुके दो व्यक्ति किसी सार्वजनिक मंच पर साथ आए हों और उन्होंने परस्पर बेरुखी नहीं दिखाई हो! औपचारिकताओं के अधीन दुश्मनों को भी हाथ मिलाते और गले लगाते हम देखते रहते हैं। ग्लैमर व‌र्ल्ड में संबंध बनते-बिगड़ते रहते हैं। कहा तो यही जाता है कि यहां यादों की गांठ नहीं बनती, लेकिन गौर करें, तो संबंध टूटने के बाद फिल्म स्टार पूर्व प्रेमियों, प्रेमिकाओं, पत्नियों और

फ़िल्म समीक्षा:युवराज

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पुरानी शैली की भावनात्मक कहानी युवराज देखते हुए महसूस होता रहा कि मशहूर डायरेक्टर अपनी शैली से अलग नहीं हो पाते। हर किसी का अपना अंदाज होता है। उसमें वह सफल होता है और फिर यही सफलता उसकी सीमा बन जाती है। बहुत कम डायरेक्टर समय के साथ बढ़ते जाते हैं और सफल होते हैं। सुभाष घई की कथन शैली, दृश्य संरचना, भव्यता का मोह, सुंदर नायिका और चरित्रों का नाटकीय टकराव हम पहले से देखते आ रहे हैं। युवराज उसी परंपरा की फिल्म है। अपनी शैली और नाटकीयता में पुरानी। लेकिन सिर्फ इसी के लिए सुभाष घई को नकारा नहीं जा सकता। एक बड़ा दर्शक वर्ग आज भी इस अंदाज की फिल्में पसंद करता है। युवराज तीन भाइयों की कहानी है। वे सहोदर नहीं हैं। उनमें सबसे बड़ा ज्ञानेश (अनिल कपूर) सीधा और अल्पविकसित दिमाग का है। पिता उसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। देवेन (सलमान खान) हठीला और बदमाश है। उसे अनुशासित करने की कोशिश की जाती है, तो वह और अडि़यल हो जाता है। पिता उसे घर से निकाल देते हैं। सबसे छोटा डैनी (जाएद खान) को हवाबाजी अच्छी लगती है। देवेन और डैनी पिता की संपत्ति हथियाने में लगे हैं। ज्ञानेश रुपये-पैसों से अनजान होने के बावजू

युवराज भव्य सिनेमाई अनुभव देगा: सुभाष घई

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सुभाष घई का अंदाज सबसे जुदा होता है। इसी अंदाज का एक नजारा युवराज में दर्शकों को मिलेगा। युवराज के साथ अन्य पहलुओं पर प्रस्तुत है बातचात- आपकी युवराज आ रही है। इस फिल्म की झलकियां देख कर कहा जा रहा है कि यह सुभाष घई की वापसी होगी? मैं तो यही कहूंगा कि कहीं गया ही नहीं था तो वापसी कैसी? सुभाष घई का जन्म इस फिल्म इंडस्ट्री में हुआ है। उसका मरण भी यहीं होगा। हां, बीच के कुछ समय में मैं आने वाली पीढ़ी और देश के लिए कुछ करने के मकसद से फिल्म स्कूल की स्थापना में लगा था। पंद्रह साल पहले मैंने यह सपना देखा था। वह अभी पूरा हुआ। ह्विस्लिंग वुड्स की स्थापना में चार साल लग गए। पचहत्तर करोड़ की लागत से यह इंस्टीट्यूट बना है। मैं अपना ध्यान नहीं भटकाना चाहता था, इसलिए मैंने फिल्म निर्देशन से अवकाश ले लिया था। पिछले साल मैंने दो फिल्मों की योजना बनायी। एक का नाम ब्लैक एंड ह्वाइट था और दूसरी युवराज थी। पहली सीरियस लुक की फिल्म थी। युवराज कमर्शियल फिल्म है। मेरी ऐसी फिल्म का दर्शकों को इंतजार रहा है, इसलिए युवराज के प्रोमो देखने के बाद से ही सुभाष घई की वापसी की बात चल रही है। सुभाष घई देश के प्रमुख ए

बॉक्स ऑफिस:१७.१०.२००८

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सफल नही रही हैलो मुंबई में हैलो की सक्सेस पार्टी हो चुकी है। निर्माता और निर्देशक इसे कामयाब घोषित करने में लगे हैं। दावा तो यह भी है कि इसकी ओपनिंग जब वी मेट से अच्छी थी। जब भी किसी नयी रिलीज की तुलना पुरानी कामयाब फिल्म से की जाती है तो शक बढ़ जाता है। फिल्म हिट हो चुकी हो तो बताने की क्या जरूरत है? वह तो सिनेमाघरों में दिखाई पड़ने लगता है और सिनेमाघरों को देख कर हैलो को सफल नहीं कहा जा सकता। हैलो का आरंभिक कलेक्शन 30 से 40 प्रतिशत रहा। पिछले हफ्ते वह अकेले ही रिलीज हुई थी और उसके पहले रिलीज हुई द्रोण एवं किडनैप को दर्शकों ने नकार दिया था। फिर भी हैलो देखने दर्शक नहीं गए। लगता है चेतन भगत का उपन्यास वन नाइट एट कॉल सेंटर पढ़ चुके दर्शकों ने भी फिल्म में रुचि नहीं दिखाई। सलमान खान और कैटरीना कैफ आकर्षण नहीं बन सके। पुरानी फिल्मों में द्रोण और किडनैप फ्लॉप हो चुकी हैं। इस हफ्ते हिमेश रेशमिया की कर्ज रिलीज हो रही है। उसके साथ एनीमेशन फिल्म चींटी चींटी बैंग बैंग और लंदन के बम धमाकों पर आधारित जगमोहन मूदंड़ा की शूट ऑन साइट भी आ रही है।

फ़िल्म समीक्षा:गॉड तूसी ग्रेट हो

ठीक नहीं है परिवर्तन इस फिल्म की धारणा रोचक है। अगर प्रकृति और जीवन के कथित नियंता भगवान की जिम्मेदारी इंसान को दे दी जाए तो क्या होगा? अरुण प्रजापति नौकरी, प्रेम, परिवार और जीवन की उलझनों में फंसा निराश युवक है। लगातार असफलताओं ने उसे चिडि़चिड़ा बना दिया है। वह भगवान से संवाद करता है और अपनी नाकामियों के लिए उन्हें दोषी ठहराता है। उसके आरोपों से झुंझला कर भगवान उसे अपनी दिव्य शक्तियों से लैस कर देते हैं और कहते हैं कि अगले दस दिनों तक वह दुनिया चलाए। मध्यवर्गीय अरुण सबसे पहले अपनी समस्याएं दूर करता है और फिर दुनिया भर के लोगों की मनोकामनाएं पूरी कर देता है। सबकी मनोकामना पूरी होते ही दुनिया में हड़कंप मच जाता है। व्यवस्था चरमरा जाती है। फिर भगवान समझाते हैं कि दुनिया को नियंत्रण में रखना कितना जरूरी है। यथास्थिति बनी रहे तो दुनिया सुचारू ढंग से चलती रहती है। परिवर्तन दुनिया के लिए ठीक नहीं है। हर इंसान को अपना जीवन भगवान के ऊपर या सहारे छोड़ देना चाहिए? भगवान इस दुनिया में संतुलन बनाए रखते हैं। दुनिया को व्यवस्थित करने के लिए भगवान उसे फिर से यथास्थिति में ले आते हैं। इस फिल्म का उद्द

असली-नकली सलमान खान

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आप की नज़रों से भला असली और नकली सलमान खान छुप सकते हैं.दोनों तस्वीरें देखने के बाद तो समझ ही गए होंगे.कैसा ज़माना आ गया है.असली सलमान खान नकली सलमान खान के आगे-पीछे खड़ा है ... हा हा हा हा .........

सलमान खान का सदाचार

चवन्नी चकित है.हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के सितारे चौंकाते ही रहते हैं.कभी अपने काम से तो कभी अपने दाम से.चवन्नी को मालूम है कि देश और विदेश में सलमान खान के करोडों दीवाने हैं.उन सभी को सलमान खान में कभी कोई बुराई नहीं दिखती है.सलमान खान कई विवादों और कानूनी उलझनों में फँसे हैं.सच्चाई केवल सलमान खान ही जानते हैं। बहरहाल सलमान खान आज अपने जीवन के ४२ वसंत पूरे कर रहे हैं.उम्र के इस मोड़ पर उन्हें एहसास हुआ है कि समाज ने उन्हें बहुत कुछ दिया है.अब वक़्त आ गया है कि वे भी समाज को कुछ दें.चैरिटी वे करते रहते हैं.दयालु स्वाभाव के हैं और मददगार की उनकी छवि काफी मशहूर है. कहा तो यह भी जाता है कि उनके घर आया कोई भी ज़रूरतमंद खाली हाथ नहीं लौटता.वे उसे खाना खिलाना और ठंडा पानी पिलाना भी नहीं भूलते। सलमान खान ने सामाजिक काम के लिए एक संस्था शुरू करने की सोची है.इस संस्था का नाम है बिईंग ह्यूमन फाउंडेशन.इस संस्था का एक वेब साइट होगा.उस साइट पर सलमान खान की पेंटिंग्स,स्केच,फिल्मों में पहने गए कपडे और अन्य प्रकार के आँटोग्राफ किये निजी सामान होंगे.वहाँ से उनकी नीलामी की जायेगी और नीलामी से मिले पैसों क

सलमान खान के प्रशंसक ना पढ़ें

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अगर आप सलमान खान के प्रशंसक हैं तो कृपया इसे ना पढ़ें.चवन्नी यहाँ कुछ ऐसी बातें करने जा रहा है ,जिससे आप को ठेस पहुंच सकती है. चवन्नी भी सलमान खान को पसंद करता है.परदे पर जब सलमान के ठुमके लगते हैं तो चवन्नी भी सीट पर उछलता है.सलमान का अंदाज़ चवन्नी को भी पसंद है.लेकिन परदे के बाहर सलमान के बर्ताव की तारीफ़ नही की जा सकती.ऐसा लगता है और यही सच भी है कि सलमान केवल अपने अब्बा के सामने खामोश और शरीफ बने रहते हैं.भाई- बहनों से उन्हें असीम प्यार है और अपने दोस्तो की भी वे परवाह करते हैं.उनको सबसे ज्यादा प्यारे माईसन और माईजान हैं ,इनके अलावा और किसी के प्रति ना तो उनके मन में इज़्ज़त है और ना ही वे परवाह करते हैं कि कौन क्या सोच रहा है.अभी जेल से छूट कर आने पर किसी टीवी पत्रकार ने उनसे पूछ दिया कि उनके घर वालों की क्या प्रतिक्रिया रही तो सामान्य तरीके से जवाब देने के बजाय उनहोंने कह कि मेरे घर वालों को मेरा जेल से आना बहुत बुरा लगा.जाहिर सी बात है कि सवाल का जवाब उनहोंने मजाक में दिया,लेकिन अमूमन उनका यही रवैया रहता है.पिछले दिनों हिंदुस्तान टाइम्स का रिपोर्टर उनसे भिड़ गया था.सलमान की आदत है क