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सिनेमालोक : भाई-बहन का पहली बार टकराव

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सिनेमालोक भाई-बहन का पहली बार टकराव - अजय ब्रह्मात्मज पिछले हफ्ते सोनम कपूर की ‘ वीरे दी वेडिंग ’ और हर्षवर्धन कपूर की ‘ भावेश जोशी सुपरहीरो ’ एक ही दिन 1 जून को रिलीज हुई। सोनम और हर्ष अनिल कपूर के बेटी-बेटे हैं। हिंदी फिल्मों के इतिहास में यह पहली बार हुआ की भाई और बहन की अलग-अलग फ़िल्में एक ही दिन रिलीज हुई हों और दोनों अपनी फिल्मों में लीड रोल में हों। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भाई-बहन के एक साथ और सामान हैसियत में सक्रीय होने के उदहारण काम हैं।   लम्बे समय तक फिल्म कलाकारों और निर्माता-निर्देशकों ने अपने बेटों को लांच करने के लिए फ़िल्में बनायीं , लेकिन बेटियों के मामले में पीछे रह गए। फिल्म इंडस्ट्री की काली और कड़वी सच्चाईयों के गवाह और हिस्सेदार होने के कारण उन्होंने बेटियों को फिल्मों से दूर रखा। जद्दनबाई और शोभना समर्थ जैसी कद्दावर अभिनेत्रियों ने ज़रूर अपवाद के तौर पर अपनी बेटियों के लिए पुख्ता इंतज़ाम किये। बहरहाल , बात सोनम और हर्ष की हो रही थी। अनिल कपूर की बेटी और बेटे ने इतिहास रचा है। सोनम की फिल्म अच्छा कारोबार भी कर रही है।   वह चर्चा और विवाद में

सिनेमालोक : बनारस के बैकड्रॉप में ‘नक्काश’

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सिनेमालोक बनारस के बैकड्रॉप में ‘ नक्काश ’ - अजय ब्रह्मात्मज कान फिल्म फेस्टिवल में हिंदी फिल्मों की हेरोइनों की धूम-झूम और कुछ फिल्मों के बड़े स्टार की कवरेज में मीडिया में ‘ नक्काश ’ को नज़रअंदाज किया। ज़ैग़म इमाम निर्देशित यह फिल्म बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब के दरकते पहलुओं को छूती हुई कुछ वाजिब सवाल उठाती है। ‘ ज़ैग़म बनारस की पृष्ठभूमि में हिन्दू-मुसलमान किरदारों को लेकर मौजूं मसलों पर बातें करते हैं। उनकी यह खास खूबी है।  ‘ दोजख ’ और ‘ अलिफ़ ’ के बाद इसी परंपरा में ‘ नक्काश ’ उनकी तीसरी फिम है। इसमें फिल्मिस्तान ’ और ‘ एयरलिफ्ट ’ फेम इनामुल हक़ इसमें मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के अपने अनुभवों को इनामुल ने शेयर किया था। उनके अनुसार ,’ बनारस में शूटिंग का पहला दिन था...छोटे शहरों की ' सिनेमाई जिज्ञासा ' भीड़ में बदलने लगी थी , उसी भीड़ से कुछ नौजवान ये कहते हुए नज़दीक आ रहे थे कि चलो देखते हैं ' हीरो ' कौन है "?... जैसे ही उनकी ये बात मेरे कानों तक पड़ी ' ब-ख़ुदा ' मैं छुप गया था... वजह बहुत सीधी सी है..उन

सिनेमालोक : मंटो और इस्मत साथ पहुंचे कान

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सिनेमालोक मंटो और इस्मत साथ पहुंचे कान - अजय ब्रह्मात्मज कैसा संयोग है ? इस्मत चुगताई और सआदत हसन मंटो एक-दूसरे से इस कदर जुड़ें हैं कि दशकों बाद वे एक साथ कान फिल्म फेस्टिवल में नमूदार हुए। इस बार दोनों सशरीर वहां नहीं थे , लेकिन उनकी रचनाएं फिल्मों की शक्ल में कान पहुंची थीं। मंटो के मुश्किल दिनों को लेकर नंदिता दास ने उनके ही नाम से फिल्म बनाई है ‘ मंटो ’. इस फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी शीर्षक भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्म कान फिल्म फेस्टिवल ‘ उन सर्टेन रिगार्ड ’ श्रेणी में प्रदर्शित हुई। वहीँ इस्मत चुगताई की विवादस्पद कहानी ‘ लिहाफ ’ पर बानी फिल्म का फर्स्ट लुक जारी किया गया। इसका निर्देशन रहत काज़मी ने किया है और तनिष्ठा चटर्जी व् सोना चौहान ने इसमें मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। दोनों अपनी रचनाओं पर बानी फिल्मों के बहाने एक साथ याद किये गए।   इस्मत और मंटो को पढ़ रहे पाठकों को मालूम होगा कि दोनों ही अपने समय के बोल्ड और और रियलिस्ट कथाकार थे। दोनों के अफसानों में आज़ादी के पहले और दरमियान का समाज खुले रूप में आता है। उन्होंने अपने समय की नंगी सच्चाई का वस्त