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सिनेमालोक : लागत और कमाई की बातें

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सिनेमालोक लागत और कमाई की बातें -अजय ब्रह्मात्मज निश्चित ही हम जिस उपभोक्ता समाज में रह रहे हैं, उसमें कमाई, आमदनी, वेतन आदि का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया है, काम से पहले दाम की बात होती है, सालाना पैकेज पर चर्चा होती है, जी हां, पहले हर नौकरी का मासिक वेतन हुआ करता था. अब यह वार्षिक वेतन हो चुका है. समाज के इस ट्रेंड का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ा है. आये दिन फिल्मों के 100 करोड़ी होने की खबर इसका नमूना है. अब तो मामला कमाई से आगे बढ़कर लागत तक आ गया है. निर्माता बताने लगे हैं कि फलां सीन, फला गाने और फला फिल्म में कितना खर्च किया गया? कुछ महीने पहले खबर आई थी कि साजिद नाडियाडवाला की नितेश तिवारी निर्देशित ‘छिछोरे’ के एक गाने के लिए 9 करोड़ का सेट तैयार किया गया था. फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा कि सेट की वजह से उक्त गाना कितना मनोरंजक या प्रभावशाली बन पाया? फिलहाल 9 करोड़ की लागत अखबार की सुर्खियों के काम आ गई. सोशल मीडिया. ऑनलाइन और दैनिक अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा. मीडिया के व्यापक कवरेज से फिल्म के प्रति जिज्ञासा बढ़ ही गई होगी. जाहिर सी बात है कि सामा

सिनेमालोक : गेट बचा रहेगा आरके का

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सिनेमालोक गेट बचा रहेगा आरके का -अजय ब्रह्मात्मज दो साल पहले 16 सितंबर 2017 को आरके स्टूडियो में भयंकर आग लगी थी. इस घटना के बाद कपूर खानदान के वारिसों में तय किया कि वे इसे बेच देंगे. इसे संभालना, संरक्षित करना या चालू रखने की बात हमेशा के लिए समाप्त हो गई. आग लगने के दिन तक वहां शूटिंग चल रही थी. यह आग एक रियलिटी शो के शूटिंग फ्लोर पर लगी थी. देखते ही देखते आरके की यादें जलकर खाक हो गईं. कोई कुछ भी सफाई दे, लेकिन कपूर खानदान के वारिसों की लापरवाही को नहीं भुलाया जा सकता. स्मृति के तौर पर रखी आरके की फिल्मों से संबंधित तमाम सामग्रियां इस आगजनी में स्वाहा हो गईं. अगर ढंग से रखरखाव किया गया रहता और समय से बाकी इंतजाम कर दिया गया होता तो आग नहीं लगती. आरके स्टूडियो की यादों के साक्ष्य के रूप में मौजूद संरचना, इमारतें,स्मृति चिह्न और शूटिंग फ्लोर सब कुछ बचा रहता. पिछले हफ्ते खबर आई कि आरके स्टूडियो खरीद चुकी गोदरेज प्रॉपर्टीज कंपनी ने तय किया है कि इस परिसर के अंदर में जो भी कंस्ट्रक्शन हो इसके बाहरी रूप में बदलाव् नहीं किया जाएगा. आरके स्टूडियो का गेट जस का तस बना रहेगा. कह

सिनेमालोक : अभिनेत्रियों की तू तू... मैं मैं...

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सिनेमालोक अभिनेत्रियों की तू तू... मैं मैं... -अजय ब्रह्मात्मज निश्चित ही वे हंस रहे होंगे. उनके लिए यह मौज-मस्ती और परनिंदा का विषय बन गया होगा. ‘जजमेंटल है क्या’ की रिलीज के कुछ पहले से अभिनेत्रियों के बीच टिप्पणियों की धींगामुश्तीआरंभ हुई है. यह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. कंगना रनोट और तापसी पन्नू आमने-सामने हैं. दोनों की तरफ से टिप्पणियां चल रही है. एक दूसरे में कमियां निकालने का क्रम जारी है. कहीं न कहीं इस अनावश्यक विवाद से दोनों को लाभ ही हो रहा है. दोनों चर्चा में हैं. सामने से मीडिया और पीछे से इंडस्ट्री का खास तबका मजे ले रहा है. दो बिल्लियों की लड़ाई चल रही है और बाकी उनकी ‘म्याऊं-म्याऊं’ पर सीटी और ताली बजा रहे हैं. ‘जजमेंटल है क्या’ की रिलीज के पहले तापसी पन्नू के ट्वीट का संदर्भ लेते हुए कंगना रनोट की बहन रंगोली चंदेल ने तापसी पन्नू पर टिप्पणी करते हुए उन्हें अपनी बहन की ‘सस्ती कॉपी’ कह दिया. उनकी इस टिप्पणी पर अनुराग कश्यप ने ‘प्रतिटिप्पणी’ की तो रंगोली चंदेल उन पर भी टूट पड़ीं. मामला आगे बढ़ा और ‘जजमेंटल है क्या’ के प्रमोशन के समय कंगना रनोट के हर इंटरव्य

सिनेमालोक : लोकेशन मात्र नहीं है कश्मीर

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सिनेमालोक लोकेशन मात्र नहीं है कश्मीर - -अजय ब्रह्मात्मज कश्मीर पृष्ठभूमि, लोकेशन और विषय के तौर पर हिंदी फिल्मों में आता रहा है. देश के किसी और राज्य को हिंदी फिल्मों में यह दर्जा और महत्व हासिल नहीं हो सका है. याद करें तो कुछ गाने भी मिल जाएंगे हिंदी फिल्मों के, जिनमें कश्मीर के नजारो और खूबसूरती की बातें की गई हैं. कश्मीर की वादियों की तुलना स्वर्ग से की जाती है. अमीर खुसरो से लेकर हिंदी फिल्मों के गीतकरों तक ने कश्मीर को जन्नत कहा है. कश्मीर का प्राकृतिक सौंदर्य हर पहलू से फिल्मकारों को आकर्षित करता रहा है. 1990 के पहले की हिंदी फिल्मों में यह मुख्य रूप से लोकेशन के तौर पर ही इस्तेमाल होता रहा है. ‘जब जब फूल खिले’ जैसी दो-चार फिल्मों में वहां के किरदार दिखे थे. अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के फिल्मकारों से आग्रह किया है कि वे जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में अपनी फिल्मों की शूटिंग करें, इससे वहां के लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे, फिल्मों की शूटिंग से कुछ हफ्तों और महीनों के लिए स्थानीय लोगों को अनेक तरह के रोजगार मिल जाते हैं, अगर फिल्म लोकप्रिय हो जाए

सिनेमालोक : इतिहास लेखन में आलस्य -

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सिनेमालोक इतिहास लेखन में आलस्य -अजय ब्रह्मात्मज भारतीय सिनेमा का इतिहास 100 साल से अधिक पुराना हो चुका है, लेकिन इस इतिहास पर दर्जन भर किताबें भी नहीं मिलती हैं. भारतीय सिनेमा के इतिहास पर बहुत कम लिखा गया है. ज्यादातर किताबें बीसवीं सदी में ही लिखी गईं. 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समरोह के तहत भारतीय सिनेमा के बारे में पत्र-पत्रिकाओं में खूब लिखा गया. लगभग हर फिल्मी और गैर फिल्मी संस्था और संगठन में 100 सालों के भारतीय सिनेमा का बखान हुआ. सभी अपनी सीमित जानकारी से गुणगान करते रहे. आज भी गौरव गाथाएं प्रकाशित होती हैं. अतीत की तारीफ और वर्तमान की आलोचना/भर्त्सना होती रहती है. कहा जाता है कि सिनेमा के हर क्षेत्र में क्षरण हुआ है. दरअसल, समाज में हमेशा कुछ लोग अतीतजीबी होते हैं और देखा गया है कि वे वाचाल और सक्रिय भी रहते हैं. उन्हें वर्तमान से शिकायत रहती है. उनका भी ध्यान इतिहास लेखन की और नहीं रहता. अतीतगान से निकल के जरा सोचें और देखें तो हम पाएंगे कि सिनेमा के इतिहास के दस्तावेजीकरण का काम हमने नहीं किया है. भारत की किसी भी भाषा की फिल्म इंडस्ट्री का व्यवस्थित इतिह

सिनेमालोक : गुरु-शिष्य संबधों पर दुर्वा सहाय की ‘आवर्तन’

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सिनेमालोक गुरु-शिष्य संबधों पर दुर्वा सहाय की ‘आवर्तन’. - अजय ब्रह्मात्मज दुर्वा सहाय हिंदी की लेखिका हैं. उनकी कहानियां ‘हंस’ समेत तमाम पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही है. ‘रफ्तार’ नाम से उनका एक कहानी संग्रह भी है. लेखन के साथ फिल्मों में भी उनकी रुचि रही है. 1993 में आई गौतम घोष की ‘पतंग’ की वह सहनिर्माता थीं. इसे उस साल सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. हाल-फिलहाल में उन्होंने कुछ शार्ट फिल्में बनाईं,जिन्हें लेकर वह कान फिल्म महोत्सव तक गयीं. इन फिल्मों के लिए उनकी प्रशंसा हुई. प्रशंसा और सराहना से उनकी हिम्मत बढ़ी और अब उन्होंने ‘आवर्तन’ नाम की फीचर फिल्म पूरी की है. उन्होंने स्वयं ही इसका लेखन और निर्देशन किया है. गुरु-शिष्य परंपरा और संबंध के नाजुक पहलुओं को उकेरती यह फिल्म स्नेह, राग, द्वेष, ईर्ष्या और कलह के मनोभावों को अच्छी तरह से दर्शाती है. भावना सरस्वती कत्थक की मशहूर नृत्यांगना हैं. वह युवा प्रतिभाओं को नृत्य का प्रशिक्षण भी देती हैं. उनकी एक शिष्या निरंतर अभ्यास और लगन से दक्ष होती जाती है. उसके नृत्य प्रतिभा से प्रभावित होकर भावना सरस्वती

सिनेमालोक : इलाकाई सिनेमा और ‘धुमकुड़िया’

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सिनेमालोक इलाकाई सिनेमा और ‘धुमकुड़िया’ -अजय ब्रह्मात्त्मज पिछले दिनों रांची में निर्माता सुमित अग्रवाल और निर्देशक नंदलाल नायक की फिल्म ‘धुमकुड़िया’ देखने का अवसर मिला. झारखंड के नागपुरिया भाषा में बनी यह फिल्म वहीं के स्थानीय समस्या मानव तस्करी (खासकर लड़कियां) पर केंद्रित है. बताते हैं कि पिछले 10 सालों में 38000 लड़कियों की तस्करी हो चुकी है. उन्हें रोजगार दिलाने के लालच में ले जाया जाता है. घरेलू काम करवाने के अलावा खुलेआम उनका यौन शोषण भी होता है. मानसिक प्रताड़ना दी जाती है. इनमें से बहुत कम लड़कियां ही अपने गांव लौट पाती हैं. अधिकांश इस देश की अनगिनत आबादी में खो जाती हैं या मर-खप जाती हैं. निर्देशक नंदलाल नायक ने सच्ची घटनाओं पर आधारित एक कहानी बुनी है और उसे फिल्म का रूप दिया है. गौरतलब है कि नंदलाल नायक स्वयं इसी कम्युनिटी के सदस्य हैं और तस्करी की शिकार लड़कियों के पुनर्वास के लिए काम कर रहे हैं. उन लोगों की कोशिश है कि मानव तस्करी पर ही रोक लगाई जाए. नंदलाल नायक ने मुंबई के कुछ प्रसिद्ध कलाकारों के साथ स्थानीय प्रतिभाओं को शामिल कर फिल्म यूनिट तैयार की. फिल्म में

सिनेमालोक : कंगना से ताज़ा टकराव के बाद

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सिनेमालोक कंगना से ताज़ा टकराव के बाद पिछले दिनों कंगना रनोट की एक फिल्म के सोंग लॉन्च के इवेंट में एक पत्रकार से उनकी तू तू मैं मैं हो गई. बात उलाहने से शुरू हुई और फिर फिसलती गई. लगभग 8 मिनट की इस बाताबाती में कंगना रनोट का अहम और अहंकार उभर कर आया. पत्रकार लगातार उनकी बातों से इंकार करता रहा. बाद में कंगना रनोट के समर्थकों और उनकी बहन रंगोली चंदेल ने उक्त पत्रकार के पुराने ट्वीट के स्क्रीनशॉट दिख कर यह साबित करने की कोशिश की कि वह लगातार उनके खिलाफ लिखता रहा है. उनकी गतिविधियों का मखौल उड़ाता रहा है. हालाँकि इस आरोपण में दम नहीं है. फिलहाल फिल्म पत्रकारिता का जो स्वरूप उभरकर आया है, उसमें फिल्म बिरादरी के सदस्यों से सार्थक और स्वस्थ बातचीत नहीं हो पाती, पत्रकारों की संख्या बढ़ गई है, इसलिए फिल्म स्टार के इंटरव्यू और बातचीत का अंदाज और तरीका भी बदल गया है. पहले बमुश्किल एक दर्जन फिल्म पत्रकार होते थे. उनसे फिल्म कलाकार की अकेली और फुर्सत की बातचीत होती थी. लिखने के लिए कुछ पत्र पत्रिकाएं थीं. उनमें ज्यादातर इंटरव्यू, फिल्म की जानकारी और कुछ पन्नों में गॉसिप छपा करते थे, पत्

सिनेमालोक : अश्लीलता का क्रिएटिव व्यभिचार

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  सिनेमालोक अश्लीलता का क्रिएटिव व्यभिचार -अजय ब्रह्मात्मज वेब सीरीज धड़ल्ले से बन रही हैं. लगभग सारे कलाकार, तकनीशियन और बैनर किसी ने किसी वेब सीरीज के निर्माण से जुड़े हैं, फिल्म और टीवी के बाद आया वेब सीरीज का यह क्रिएटिव उफान सभी के लिए अवसर और लाभ जुटा रहा है. वेब सीरीज के प्रसारण के लिए विशेष प्लेटफॉर्म बन गए हैं. देश-विदेश के अनेक उद्यमी इस दिशा में सक्रिय हैं. सभी को अनेक संभावनाएं दिख रही है. खासकर वेब सीरीज पर सेंसर का अंकुश नहीं होने की वजह से लेखक, निर्देशक और कलाकार अभिव्यक्ति की नई उड़ानें भर रहे हैं, कुछ के लिए यह उनकी कल्पना का असीमित विस्तार है तो कुछ क्रिएटिव व्यभिचार में मशगूल हो गए हैं. वेब सीरीज में गाली-गलौज, हिंसा और सेक्स की भरमार चिंता का विषय है, समाज के नैतिक पहरुए तो लंबे समय से शोर मचा रहे हैं कि वेब सीरीज के कंटेंट की निगरानी हो. वे आपत्तिजनक दृश्यों और संवादों पर कैंची चलाना चाहते हैं. दूसरा तबका सेंसरशिप के सख्त खिलाफ है. फिल्म और टीवी की सेंसरशिप से उकताया यह तबका थोड़ी राहत महसूस कर रहा है. पिछले दिनों निर्देशक और अभिनेता तिग्मांशु धूलिया

सिनेमालोक : महज टूल नहीं होते कलाकार

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  सिनेमालोक महज टूल नहीं होते कलाकार -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दो हफ्तों में ‘कबीर सिंह’ और ‘आर्टिकल 15 ’ रिलीज हुई हैं. दोनों में दर्शकों की रुचि है. वे देख रहे हैं. दोनों को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण से बहसें चल रही हैं. बहसों का एक सिरा कलाकारों की सामाजिक जिम्मेदारी से जुड़ा है. क्या फिल्मों और किरदारों(खासकर नायक की भूमिका) को चुनते समय कलाकार अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. ‘आर्टिकल 15 ’ के संदर्भ में आयुष्मान खुराना ने अपने इंटरव्यू में कहा कि कॉलेज के दिनों में वह नुक्कड़ नाटक किया करते थे. उन नाटकों में सामाजिक मुद्दों की बातें होती थीं. मुद्दों से पुराने साहचर्य के प्रभाव में ही उन्होंने अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘आर्टिकल 15 ’ चुनी. कहा यह भी जा रहा है कि अनुभव ने उन्हें पहले एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म ऑफर की थी, लेकिन ‘मुल्क’ से प्रभावित आयुष्मान खुराना ने वैसे ही मुद्दों की फिल्म में रुचि दिखाई.अनुभव ने मौका नहीं छोड़ा और इस तरह ‘आर्टिकल 15 ’ सामने आई. कह सकते हैं कि आयुष्मान खुराना ने अपनी लोकप्रियता का सदुपयोग किया. वह एक ऐसी फिल्म के साथ आए जो भारतीय समाज के कुछ विसंगत

सिनेमालोक : कबीर सिंह के दर्शक

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सिनेमालोक कबीर सिंह के दर्शक अजय ब्रह्मात्मज पिछले शुक्रवार को रिलीज हुई ‘कबीर सिंह’ मूल फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ से अच्छा कारोबार कर रही है. ‘अर्जुन रेड्डी’ ने कुल 51 करोड़ का कारोबार किया था, जबकि ‘कबीर सिंह’ ने तीन दिनों के वीकेंड में 70 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है. अगले दो नहीं तो तीन दिनों में यह 100 करोड़ी क्लब में शामिल हो जाएगी. कारोबार के लिहाज से ‘कबीर सिंह’ कामयाब फिल्म है. जाहिर है इसकी कामयाबी का फायदा शाहिद कपूर को होगा. वे इस की तलाश में थे. पिछले साल ‘पद्मावत’ ने जबरदस्त कमाई और कामयाबी हासिल की, पर उसका श्रेय संजय लीला भंसाली दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के बीच बंट गया था. ‘कबीर सिंह’ में शाहिद कपूर अकेले नायक हैं, इसलिए पूरे श्रेय कि वे अकेले हकदार हैं. इस कामयाबी और शाहिद कपूर के स्टारडम के बावजूद ‘कबीर सिंह’ पर बहस जारी है. आलोचकों की राय में यह फिल्म स्त्रीविरोधी और मर्दवादी है. पूरी फिल्म में स्त्री यानि नायिका केवल उपभोग (कथित प्रेम) के लिए है. फिल्म के किसी भी दृश्य में नायिका प्रीति आश्वस्त नहीं करती कि वह 21वीं सदी की पढ़ी-लिखी मेडिकल छात्र हैं

सिनेमालोक : कोरियाई यथार्थ की भावुक पारिवारिक फिल्म

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सिनेमालोक कोरियाई यथार्थ की भावुक पारिवारिक फिल्म अजय ब्रह्मात्मज कल ‘भारत’ रिलीज होगी. सलमान खान की इस प्रतीक्षित फिल्म के निर्देशक अली अब्बास ज़फर हैं. दोनों की पिछली फिल्मों ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘सुल्तान’ ने अच्छा कारोबार किया था. ‘भारत’ के साथ तिगडी पूरी होगी. ऐसा माना जा रहा है कि यह फिल्म भी तगड़ा कारोबार करेगी. एक तो ईद का मौका है. दूसरे इसमें कट्रीना कैफ भी हैं. हालाँकि फिल्म के ट्रेलर और गानों को दर्शकों का जबरदस्त रेस्पोंस नहीं मिला है,लेकिन ट्रेड पंडितों को लग रहा है कि सलमान को देखने की बेताबी फिल्म का बिज़नस बढ़ाएगी. उनका जोर इस बात पर है कि क्या ‘भारत’ 300 करोड़ का कारोबार कर पायेगी. फिल्मों के एक्टिव दर्शकों को मालूम होगा कि ‘भारत’ कोरियाई फिल्म ‘ओड टू माय फादर’(कुकसेजिंघ) की अधिकारिक रीमेक है. कोरियाई फिल्म 2014 में आई थी. इस फिल्म को देख कर सलमान खान इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अभी के प्रिय नर्देशक अली अब्बास ज़फर को इसे देखने के लिए उकसाया और हिंदी में भारतीय रूपांतर के लिए प्रेरित किया. कोरिई फिल्म देख रहे हिंदी दर्शक जानते हैं कि वहां की फिल्मों के इमोशन

सिनेमालोक : मातृभाषा में संवाद

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सिनेमालोक मातृभाषा में संवाद अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों कलाकार क्लब द्वारा आयोजित ‘शॉर्ट फिल्म प्रतियोगिता’ की जूरी में बैठने का संयोग बना. जूरी में मेरे अलावा निर्देशक डॉ, चंद्रप्रकाश द्विवेदी और एडिटर अरुणाभ भट्टाचार्य थे. इस प्रतियोगिता में अनेक भाषाओँ की फ़िल्में थीं. कई घंटो तक एक-एक कर फ़िल्में देखते हुए एक अलग एहसास घना होता गया. कलाकारों की भाषा...उनकी संवाद अदायगी और उससे प्रभावित अभिनय.हिंदी फिल्मों में हिंदी की बिगड़ती और भ्रष्ट हो रही हालत पर मैं लगातार लिखता रहता हूँ. नियमित फ़िल्में देखते समय भी दिमाग का एक अन्टेना यह पकड़ रहा होता है की संवादों में किस प्रकार का भाषादोष हो रहा है. हिंदीभाषी और हिंदी साहित्य का छात्र होने की वजह से भी कान चौकन्ने रहते हैं.यूँ भी कह सकते हैं कि खामियां जल्दी सुनाई पड़ती हैं. मैं अपनी समीक्षा और लेखों में आगाह और रेखांकित भी करता रहता हूँ. कुछ हफ्ते पहले मैंने इसी कॉलम में उल्लेख किया था कि इन दिनों के अधिकांश अभिनेता स्पष्ट उच्चारण के साथ हिंदी संवाद नहीं बोल पते हैं.पहले के अभिनेता हिंदी में समर्थ नहीं होने पर अभ्यास करते थे. अभी

सिनेमालोक : प्रौढ़ नायक का प्रेम

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सिनेमालोक प्रौढ़ नायक का प्रेम अजय ब्रह्मात्मज हिंदी फिल्मों में एक्टर की वास्तविक उम्र हमेशा अपने कैरेक्टर से ज्यादा होती हैं. फिल्मों की यह परिपाटी है कि कोई एक्टर नायक की भूमिका में लोकप्रिय और स्वीकृत हो गया तो वह अंत-अंत तक नायक की भूमिका निभाता रहता है...वह भी जवान नायक की भूमिका. दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद के जमाने से ऐसा चला आ रहा है. इनमें से दिलीप कुमार और राज कपूर तो एक उम्र के बाद ठहर गए,लेकिन देवानंद अंतिम सांस तक हीरो ही बने रहे. उन्होंने स्वीकार ही नहीं किया कि सभी की तरह उनकी उम्र बड़ी है. वह भी उम्रदराज हो गए हैं. आज के पॉपुलर नायकों में खानत्रयी (आमिर, शाह रुख और सलमान. अभी तक बतौर हीरो ही पर्दे पर नजर आ रहे हैं. उनके ज्यादातर करैक्टर उनकी वास्तविक उम्र से कम होते हैं. आमिर खान ने ‘दंगल’ में खुद से बड़ी उम्र की भूमिका जरूर निभाई, लेकिन विज्ञापन से लेकर फिल्मों तक में भेष और उम्र बदलने का प्रयोग कर वे वास्तविक उम्र को धोखा देते रहते हैं. शाह रुख खान ने ऐसे ही ‘वीर जारा’ में प्रोढ़ छवि पेश की थी. ‘डियर ज़िंदगी’ में वह आलिया भट्ट के साथ अपनी उम्र के किर