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शुक्रवार ,२६ अक्टूबर ,२००७

अक्टूबर महीने का आखिरी शुक्रवार है.तीन फिल्में रिलीज हो रही हैं.सबसे पहले उन फिल्मों की बाट कर लें। विक्रम भट्ट अब फिल्में पेश करने लगे हैं.लगातार १० फ्लॉप फिल्में बनाने के बाद उनका यह फैसला दर्शकों के लिए कितना खुशगवार होगा...यह टू वक्त ही बताएगा.इस हफ्ते उनकी पहली पेशगी 'मुम्बई सालसा' आ रही है.इसे मनोज त्यागी ने दिरेक्ट किया है.अगर आप मेट्रो शहरों में नही रहते तो अपने जोखिम पर ही इस फिल्म को देखने जाएं.सेक्स,रोमांस और रिश्तों की ऐसी उलझन समझना छोटे शहरों के दर्शकों की कल्पने से परे है। इम्तियाज़ अली की 'जब वी मेट 'रोमांटिक कॉमेडी है.चवन्नी गारंटी लेता है की इस फिल्म पर खर्च किया आप का एक भी पैसा फिजूल नही जायेगा.हंसने,खुश होने और राहत महसूस करेंगे आप यह फिल्म देख कर.दीवाली के पहले की छुट्टी या रविवार को पूरे परिवार के साथ भी आप यह फिल्म देख सकते हैं.इस फिल्म की खूबियों के बारे में आप बताएं.चवन्नी की राय में शहीद कपूर और करीना कपूर की जोड़ी को इतने रोमांटिक अंदाज़ में पहले नही देखा.इम्तियाज़ अली की पीठ थपथपाप्यें और छोटे शहरों से आये निर्देशकों को बढावा दें तो और भी ऐसी

नया हिंदी सिनेमा -अनुराग कश्यप

(अनुराग कश्यप ने अपने ब्लोग पर नये पोस्ट में नया हिन्दी सिनेमा को लेकर अपना पक्ष रखा है.चवन्नी आज उसका एक अंश प्रस्तुत कर रहा है.पूरा आलेख एक-दो दिनों में आपके सामने होगा) कोई वास्तव में होवार्ड रोअर्क नहीं हो सकता .. बाकी सब 'उसकी तरह होना' चाहते हैं … आयन रैंड की सफलता इसी तथ्य में है कि उनहोंने एक ऐसे हीरो का सृजन किया, जिसकी तरह हर कोई होना चाहेगा, लेकिन हो नहीं सकेगा … वह खुद जीवन से पलायन कर अपने किसी चरित्र में नहीं ढल सकीं। दुनिया को बदलने की ख्वाहिश अच्छी है, कई बार इसे बदलने की कोशिश भी पर्याप्त है, वास्तव में बदल देना तो चमत्कार है … हमलोग अपने इंटरव्यू में ढेर सारी बातें करते हैं, उससे ज्यादा हम महसूस करते हैं, लेकिन बता नहीं पाते हैं। अनाइस नीन के शब्‌दों में, हम सभी जो कह सकते हैं, वही कहना लेखक का काम नहीं है, हम जो नहीं कह सकते, लेखक वह कहे …' इस लेख को लिखने की वजह मुझ पर लगातार लग रहे आरोप हैं, जिनमें मैं जूझता रहा हूं … मैं ईमानदारी से सारे सवालों के जवाब देता हूं, उन जवाबों को संपादित कर संदर्भ से अलग कर सनसनी फैलाने के लिए छाप दिया जाता है … ' नो स्

गुड्डी में जया की जगह डिंपल आ जातीं तो....

चवन्नी इन दिनों सैबल चटर्जी की गुलज़ार पर लिखी किताब द लाइफ एंड सिनेमा ऑफ़ गुलज़ार पढ़ रहा है.इस किताब में एक रोचक प्रसंग है.आदतन चवन्नी आप को बता रहा है। आनंद के बाद हृषिकेश मुखर्जी और गुलज़ार गुड्डी पर काम कर रहे थे।इस फिल्म के लिए नयी अभिनेत्री की ज़रूरत थी। हालांकि यह ज़रूरत आखिरकार जया भादुड़ी ने पूरी की,लेकिन उसके पहले किसी और के नाम का सुझाव आया था.गुलज़ार तब एच एस रवैल के यहाँ आया-जाया करते थे। उनकी पत्नी अंजना भाभी से उनकी छनती थी.गुलज़ार ने वहाँ एक लड़की को आते-जाते देखा था.एक दिन अंजना भाभी ने गुलज़ार को बताया कि वह रजनी भाई की बेटी है और फिल्मों में काम करना चाहती है। उसका नाम डिंपल कापडिया है। गुलज़ार ने हृषिकेश मुखर्जी को डिंपल के बारे में बताया,लेकिन हृषिकेश मुखर्जी के दिमाग में पहले से जया भादुड़ी थीं। हृषिकेश मुखर्जी ने पूना के फिल्म संस्थान में एक फिल्म देखी थी.उस फिल्म कि लड़की उन्हें अपनी फिल्म गुड्डी के लिए उपयुक्त लगी थी.उनहोंने गुलज़ार को सलाह दी कि जाकर पूना में उस से मिल आओ। गुलज़ार और हृषिकेश मुखर्जी के छोटे भाई हृषिकेश मुखर्जी से लगातार पूछते रहे कि कब पूना चलना है। डै

आमिर की ईमानदारी

चवन्नी को आमिर खान पसंद हैं.अपनी बातों और प्रतिक्रियाओं से वे इस में इजाफा करते हैं.पिछले दिनों उनके भाई फैसल को लेकर कई तरह की खबरें आयीं.मीडिया का एक तबका आमिर के पीछे लगा ही रहता है.उसे मौका मिल गया .उन सभी ने फैसल की मानसिक बीमारी के लिए आमिर को जिम्मेदार ठहराया और उनकी लानत-मलामत की.आमिर आदतन चुप रहे.यह वक्त भी नही है कि आमिर चिल्ला कर सबको दिल की बाट बताएं। बहरहाल,आमिर ने अपने प्रशंसकों से वादा किया है कि वे अपनी हर बात उनसे शेयर करेंगे सो उनहोंने अपने वेब साईट पर चंद पंक्तियों में अपनी दशा का ज़िक्र किया है.उनहोंने लिखा है कि .... मुझे माफ़ करें दोस्तों,मेरी परिस्थितियां ऐसी हो गयी हैं कि में आप से किसी भी प्रकार का सार्थक संवाद नही कर सकता.कृपया मेरी तकलीफ समझें.यह वक्त मेरे लिए और मेरे परिवार के लिए अत्यंत मुश्किल है.उम्मीद करता हूँ कि जल्दी ही कुछ लिखूंगा। चवन्नी के एक पत्रकार मित्र ने बिलकुल सही लिखा कि आमिर के भाई फैसल को माइक की नही मेडीसिन की ज़रूरत है। आमिर के पिता ताहिर हुस्सैन के बारे में सभी जानते हैं.आमिर की मां के साथ वे नही रहते.उनकी आमिर से अलग किस्म की खटपट है.वे

कहीं से भी अपील नहीं करती स्पीड

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-अजय ब्रह्मात्मज कई बार फिल्म के शीर्षक का कहानी से कोई ताल्लुक नहीं होता। स्पीड के साथ ऐसी ही बात है। पूरी फिल्म निकल जाने के बाद सहसा ख्याल आता है कि फिल्म का नाम स्पीड क्यों रखा गया? बहरहाल, स्पीड विक्रम भट्ट की फिल्म है। भट्ट कैंप से निकलने के बाद विक्रम भट्ट की कोई भी फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आई है। ऐसा क्यों होता है कि कैंप या बैनर से छिटकने के बाद युवा निर्देशक पस्त हो जाते हैं। कुछ निर्देशक दिशानिर्देश मिले तभी अच्छा काम कर सकते हैं। विक्रम भट्ट को जल्दी ही एक ठीक-ठाक फिल्म बनानी होगी अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए। स्पीड की कहानी लंदन में घटित होती है। इस फिल्म में मोबाइल फोन का प्रचुर इस्तेमाल हुआ है। कह लें कि वह भी एक जरूरी कैरेक्टर बन गया है। वह लिंक है कैरेक्टरों को जोड़ने का। संदीप (जाएद खान) भारत से लंदन गया है अपनी प्रेमिका संजना (तनुश्री दत्ता) को समझाने। उसे एक रांग काल आता है, जो अपहृत हो चुकी युवती (उर्मिला मातोंडकर) का है। उसका अपहरण कर फिल्म का खलनायक आफताब शिवदासानी उसके पति सिद्धार्थ (संजय सूरी) से एक हत्या करवाना चाहता है। हत्या भी किसी मामूली आदमी की नहीं, भार

शुक्रवार,१९ अक्टूबर,2007

फिर से आया शुक्रवार ... आज रिलीज हो रही फिल्मों में स्पीड और बाल गणेश का उल्लेख किया जा सकता है.बाल गणेश एनीमेशन फिल्म है और बच्चों को ध्यान में रख कर बनायीं गयी है.गणेश पर एक और एनीमेशन फिल्म आ चुकी है.अब चूंकि अपने देश में एनीमेशन फिल्में अभी घुटनों के बाल चल रही हैं तो चवन्नी ज्यादा उम्मीद नही रखता और न चाहता है कि आप ही कोई उम्मीद रखें. स्पीड विक्रम भट्ट की फिल्म है.विक्रम भट्ट पिछली कुछ फिल्मों से दर्शकों को पसंद नही आ रहे हैं.हो सकता है इस बार कोई चमत्कार हो जाये.चवन्नी चमत्कार की बात इसलिए कर रहा है कि फिल्म की कहानी और कलाकारों की सूची देख कर अधिक उम्मीद नही की जा सकती.यह फिल्म लंदन की पृष्ठभूमि पर बनी है.रहस्य,रोमांस, कर्तव्य और प्रेम की यह कहानी पसंद आ जाये तो विक्रम भट्ट का भला हो जाये. पिछले हफ्ते करीना और सैफ के प्रेम संबंधो की खूब चर्चा रही.इस पूरे प्रसंग में मजेदार तथ्य है कि करीना या शहीद ने अभी तक यह नही कहा है कि उनके संबंध खत्म हो गए हैं.अगर यह खबर अफवाह निकली तो इस साल की सबसे बड़ी अफवाह होगी जो फिल्म के प्रचार के लिए इस्तेमाल की जा रही है.शहीद खामोश हैं.सैफ ने कहा ह

कहां गए खलनायक?

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(चवन्नी को अजय ब्रह्मात्मज का यह आलेख दशहरा के मौक़े पर थोडे अलग ढंग का लगा.चवन्नी ने अपने पाठकों के लिए इसे जागरण से लिया है।) निश्चित रूप से लोग भी यही सोच रहे होंगे कि चूंकि दशहरे का समय है और तीन दिनों के बाद बुराई के सर्वनाश के प्रतीक के रूप में रावण के पुतले जलाए जाएंगे, लेकिन क्या आपने सोचा और देखा कि हिंदी फिल्मों से रावण अब लगभग गायब हो गए हैं! कहने का तात्पर्य यह है कि हीरो तो हैं और विविध रूपों में हैं, लेकिन विलेन गायब हो गए हैं। थोड़े-बहुत कुछ फिल्मों में दिखते भी हैं, तो वे पिद्दी जैसे नजर आते हैं। सबसे पहले सूरज बड़जात्या और फिर आदित्य चोपड़ा और करण जौहर ने अपनी फिल्मों से विलेन को गायब किया। तीनों की पहली फिल्म आप याद करें, तो पाएंगे कि उनमें खलनायक है ही नहीं! दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में पिता आरंभिक विरोध करते हैं और लगता है कि वे हीरो-हीरोइन के प्रेम में विघ्न पैदा करेंगे, लेकिन हीरोइन उनसे बगावत नहीं करती और हीरो मुकाबला नहीं करता। दोनों पिता का दिल जीतते हैं, इस कहानी में हीरोइन का मंगेतर हीरो के मुकाबले में आता है, लेकिन पूरी कहानी में उसकी जगह किसी प्यादे से ज

एकलव्य ही गयी ऑस्कर

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ऑस्कर से जारी सूची में एकलव्य शामिल है. देश में ऑस्कर को लेकर चल रहा विवाद घिनौने स्तर तक पहुंच गया था.मामला कोर्ट तक गया.चवन्नी नही समझ पा रहा है कि क्यों हर बार कोई भी पुरस्कार,सम्मान और प्रतिष्ठा को पहले शक की निगाह से देखा जाता है.उस पर सवाल उठाये जाते हैं.विवाद खडा होता है.कुल मिला कर स्वाद खट्टा हो जाता है.अब एकलव्य का ही प्रसंग लें.इस पर ऐसे विवाद की कोई ज़रूरत नही थी.इसके साथ यह भी ज़रूरी है की हर समिति पारदर्शी तरीके से काम करे.शक-ओ-शुबहा कि गुंजाइश ही क्यों हो? बहहाल,एकलव्य ऑस्कर कि सूची में पहुंच गयी है.फिल्म के निर्देशल विधु विनोद चोपडा के लिए यह खुशी और जिम्मेदारी का मौका है.अब वे अपनी पूरी ताकात लगाएं और इस बात की कोशिश करें कि एकलव्य ज्यूरी के सारे सदस्य देखें.ऑस्कर में जम कर प्रचार करना पड़ता है.विधु को कुछ दिनों के लिए वहीँ डेरा डालना होगा.चवन्नी भी चाहेगा कि उसके देश की फिल्म पहले नामांकन सूची में पहुंचे और फिर पुरस्कार भी हासिल करे.चवन्नी की शुभकामनायें विधु और एकलव्य के साथ हैं। ऑस्कर की विदेशी भाषा की श्रेणी में ग़ैर अंग्रेजी फ़िल्में भेजी जाती हैं.halanki चवन्नी क

तस्वीरों में ' गोल '

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निर्माता-रोनी स्क्रूवाला निर्देशक-विवेक अग्निहोत्री कलाकार-जॉन अब्राहम,बिपाशा बासु,दिब्येंदु भट्टाचार्य,अरशद वारसी

रिलीज के पहले का टूटना-जुड़ना

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चवन्नी की तरह आप भी ख़बरें पढ़ राहे होंगे कि इन दिनों शाहिद और करीना में नही निभ रही है.कहा जा रहा है कि करीना को सैफ की संगत पसंद आ रही है.दोनों गलबहियां दिए कभी किसी होटल में तो कभी मोटर बैक पर नज़र आ राहे हैं.इधर शाहिद और करीना ने अपनी ताज़ा फिल्म जब वी मेट के प्रचार के लिए साथ में शूटिंग की.उनहोंने इस मौक़े पर आपस में कोई बात नही की और मुँह फेर कर सैट पर बैठे मिले.चवन्नी को इस किस्से पर कतई यकीं नहीं है। शाहिद और करीना kee बेवफाई की इस कहानी पर यकीं इसलिये भी नही होता कि दोनों की दोस्ती चार साल पुरानी है और इस दोस्ती के लिए उनहोंने इतने ताने भी सुने हैं.शुरू में दोनों परिवारों को उनका मिलना-जुलना पसंद नही था.फिर एम् एम् एस के मामले में कैसे दोनों ने मीडिया का मिल कर मुक़ाबला किया था.निशित ही यह फिल्म क प्रचार के लिए अपनाया गया पुराना हथकंडा है। इसकी शुरुआत राज कपूर ने की थी.आपको याद होगा कि संगम की रिलीज के समय उनहोंने खुद के साथ वैजयंती माला के प्रेम के किस्से छपवाए थे.यहाँ तक कि उनके बीवी कृष्ण कपूर भी प्रचार का झूठ नही समझ सकी थीं और घर छोड कर चली गयी थीं.बाद में धर्मेंद्र,राजेश ख