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ठीक रिलीज के पहले यह खेल क्यों?

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-अजय ब्रह्मात्मज पंद्रह फरवरी को जोधा अकबर देश भर में फैले मल्टीप्लेक्स के चैनलों में से केवल पीवीआर में रिलीज हो पाई। बाकी मल्टीप्लेक्स में यह फिल्म रिलीज नहीं हो सकी। मल्टीप्लेक्स के नियमित दर्शकों को परेशानी हुई। खासकर पहले दिन ही फिल्म देखने के शौकीन दर्शकों का रोमांच कम हो गया। उन्हें भटकना पड़ा और सिंगल स्क्रीन की शरण लेनी पड़ी। निर्माता और मल्टीप्लेक्स मालिकों के बार-बार के इस द्वंद्व में दर्शकों का आरंभिक उत्साह वैसे ही दब जाता है। वैसे भी फिल्म बिजनेस से जुड़े लोग यह जानते ही हैं कि पहले दिन के कलेक्शन और सिनेमाघरों से निकली प्रतिक्रिया का बड़ा महत्व होता है। याद करें, तो इसकी शुरुआत यश चोपड़ा की फिल्म फना से हुई थी। उस फिल्म की रिलीज के समय मल्टीप्लेक्स का लाभ बांटने के मुद्दे पर विवाद हुआ था। फना बड़ी फिल्म थी, उसमें एक तो आमिर खान थे और दूसरे काजोल की वापसी हो रही थी, इसलिए संभावित बिजनेस को लेकर यशराज फिल्म्स ने अपना हिस्सा बढ़ाने की बात कही। हालांकि उस दौरान ठीक समय पर समझौता हो गया और 60-40 प्रतिशत के अनुपात में सहमति भी हो गई। मल्टीप्लेक्स मालिकों ने पहली बार दबाव महसूस

फरवरी के २९ दिनों में ५ शुक्रवार,२ बेकार

कैसा संयोग है साल के सबसे कम दिनों के महीने फरवरी में इस बार ५ शुक्रवार पड़े.महीने की पहली तारीख को शुक्रवार था और महीने की आखिरी तारीख को भी शुक्रवार है.लेकिन क्या फायदा..२ शुक्रवार तो बेकार ही गए.२२ और २९ फर्र्वारी को कोई भी फ़िल्म रिलीज नहीं हुई.वैसे १ फ़रवरी को रिलीज हुई रामा रामा क्या है ड्रामा और ८ फ़रवरी को रिलीज हुई मिथ्या बकवास ही निकलीं.केवल सुपरस्टार एक हद तक ठीक थी.हाँ १५ फ़रवरी को रिलीज हुई जोधा अकबर सचमुच ऐतिहासिक फ़िल्म है.इस फ़िल्म को लेकर अभी जो भी बवाल चल रहा हो,आप यकीन करें भविष्य में इस फ़िल्म का अध्ययन किया जायेगा.आप सभी को यह फ़िल्म कैसी लगी?आप अपनी राय जरूर लिखें.चवन्नी को बताएं ...चवन्नी सबको बताएगा। chavannichap@gmail.com

मराठी माणुष और बिहारी बाला की प्रेमकहानी,संजय झा की फ़िल्म 'मुम्बई चकाचक'

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संजय झा ने दो फिल्में निर्देशित कर ली हैं.'मुम्बई चकाचक' उनकी तीसरी फ़िल्म है.यह फ़िल्म आज की है और मुम्बई को एक अलग अंदाज में पेश करती है.भूल जाइये कि राज ठाकरे ने क्या बयान दिया और उसकी वजह से क्या बवाल हुआ?यह एक साफ प्रेम कहानी है,जिसका नायक एक मराठी माणुष है और नायिका बिहारी बाला है.क्या इस प्रेम पर राज ठाकरे को आपत्ति हो सकती है?हो...प्यार करनेवाले डरते नहीं,जो डरते हैं वो प्यार करते नहीं। संजय झा ने इस प्रेमकहानी में मुम्बई के पर्यावरण की समस्या को भी जोड़ा है.इस अनोखी फ़िल्म में बीएमसी के कर्म चारी भी विभिन्न भूमिकाओं में नज़र आयेंगे.संजय झा ने फ़िल्म की मुख्य भूमिकाएं राहुल बोस, आयशा धारकर,विनय पाठक और मंदिरा बेदी को सौंपी हैं.नायक का नाम कोका है और नायिका बासमती है- इनके बीच गंगाजल बने विनय पाठक भी हैं। यह फ़िल्म इस साल के उत्तरार्ध में रिलीज होगी.

निर्देशक सईद मिर्जा का पत्रनुमा उपन्यास

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-अजय ब्रह्मात्मज अरविंद देसाई की अजीब दास्तान से लेकर नसीम जैसी गहरी, भावपूर्ण और वैचारिक फिल्में बना चुके सईद मिर्जा के बारे में आज के निर्देशक ज्यादा नहीं जानते। दरअसल, वे डायरेक्टर अजीज मिर्जा के छोटे भाई हैं। उनका एक परिचय और है। वे अख्तर मिर्जा के बेटे हैं और उल्लेखनीय है कि अख्तर मिर्जा ने ही नया दौर फिल्म लिखी थी। दरअसल, सईद मिर्जा ने नसीम के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बदलती स्थिति को देखते हुए निर्देशन से संन्यास ले लिया। उन्होंने न तो माथा पीटा और न ही किसी को गाली दी। वे मुंबई छोड़कर चले गए और इन दिनों ज्यादातर समय गोवा में ही बिताते हैं। इधर गोवा में रहते हुए उन्होंने एक पत्रनुमा उपन्यास लिखा है, जिसमें वे गुजर चुकीं अपनी अम्मी को आज के हालात बताते हैं और साथ ही उनकी बातें, उनके फैसले और उनका नजरिया भी पेश करते हैं। सईद मिर्जा ने इस किताब को नाम दिया है-अम्मी- लेटर टू ए डेमोक्रेटिक मदर। सईद मिर्जा की यह किताब उनकी फिल्मों की तरह साहित्यिक परिपाटी का पालन नहीं करती। संस्मरण, विवरण, चित्रण, उल्लेख और स्क्रिप्ट के जरिए उन्होंने अपने माता-पिता की प्रेम कहानी गढ़ी है। उन्होंने

दोषी आप भी हैं आशुतोष...

पिछले शुक्रवार से ही यह ड्रामा चल रहा है.शनिवार की शाम में पत्रकारों को बुला कर आशुतोष गोवारिकर ने सफ़ाई दी और अपना पक्ष रखा.ये सारी बातें वे पहले भी कर सकते थे और ज्यादा जोरदार तरीके से गलतफहमियाँ दूर कर सकते थे.जोधा अकबर को नुकसान पहुँचने के दोषी आशुतोष गोवारिकर भी हैं.उनका साथ दिया है फ़िल्म के निर्माता रोनी स्क्रूवाला ने...जी हाँ निर्देशक-निर्माता फ़िल्म के माता-पिता होते हैं,लेकिन कई बार सही परवरिश के बावजूद वे ख़ुद ही संतान का अनिष्ट कर देते हैं.जोधा अकबर के साथ यही हुआ है। मालूम था कि जोधा अकबर में जोधा के नाम को लेकर विवाद हो सकता है.आशुतोष चाहते तो फौरी कार्रवाई कर सकते थे.समय रहते वे अपना पक्ष स्पष्ट कर सकते थे.कहीं उनके दिमाग में किसी ने यह बात तो नहीं भर दी थी कि विवाद होने दो,क्योंकि विवाद से फ़िल्म को फायदा होता है.जोधा अकबर को लेकर चल रह विवाद निरर्थक और निराधार है.लोकतंत्र में विरोध और बहस करने की छूट है,लेकिन उसका मतलब यह नहीं है कि आप तमाम दर्शकों को फ़िल्म देखने से वंचित कर दें। सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए कि सेंसर हो चुकी फ़िल्म का प्रदर्शन सही तरीके से हो.इस प्

पंजाब का ज्यादा असर है हिंदी फिल्मों पर

-अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों हिंदी फिल्मों के एक विशेषज्ञ ने अंग्रेजी की एक महत्वपूर्ण पत्रिका में हिंदी सिनेमा की बातें करते हुए लिखा कि भारतीय सिनेमा पर बॉलीवुड हावी है और बॉलीवुड पर पंजाब और उत्तर भारत का गहरा असर है। करवा चौथ और काउबेल्ट कल्चर ने हिंदी फिल्मों को जकड़ रखा है। उनकी इस धारणा में आधी सच्चाई है। पंजाब ने अवश्य हिंदी सिनेमा को लोकप्रियता के कुचक्र में जकड़ रखा है। अगर कथित काउबेल्ट यानी कि हिंदी प्रदेशों की बात करें, तो उसने हिंदी फिल्मों को मुक्ति और विस्तार दिया है। पिछले चंद सालों की लोकप्रिय और उल्लेखनीय फिल्मों पर सरसरी नजर डालने से भी यह स्पष्ट हो जाता है। अगर गहरा विश्लेषण करेंगे, तो पता चलेगा कि हिंदी सिनेमा की ताकतवर पंजाबी लॉबी ने हिंदी प्रदेशों की जातीय सोच और संस्कृति को हिंदी फिल्मों से बहिष्कृत किया है। याद करें कि कब आखिरी बार आपने हिंदी प्रदेश के किसी गांव-कस्बे या शहर को किसी हिंदी फिल्म में देखा है! ऐसी फिल्मों कर संख्या हर साल रिलीज हो रही सौ से अधिक फिल्मों में बमुश्किल दो-चार ही होगी, क्योंकि अधिकांश फिल्मों के शहर आप निर्धारित नहीं कर सकते। डायरेक्

उल्लेखनीय और दर्शनीय है जोधा अकबर

-अजय ब्रह्मात्मज हिदायत-मोबाइल फोन बंद कर दें, सांसें थाम लें, कान खुले रखें और पलकें न झुकने दें। जोधा अकबर देखने के लिए जरूरी है कि आप दिल-ओ-दिमाग से सिनेमाघर में हों और एकटक आपकी नजर पर्दे पर हो। सचमुच लंबे अर्से में इतना भव्य, इस कदर आकर्षक, गहरी अनुभूति का प्रेम, रिश्तों की ऐसी रेशेदारी और ऐतिहासिक तथ्यों पर गढ़ी कोई फिल्म आपने नहीं देखी होगी। यह फिल्म आपकी पूरी तवज्जो चाहती है। इस धारणा को मस्तिष्क से निकाल दें कि फिल्मों का लंबा होना कोई दुर्गुण है। जोधा अकबर भरपूर मनोरंजन प्रदान करती है। आपको मौका नहीं देती कि आप विचलित हों और अपनी घड़ी देखने लगें। जैसा कि अमिताभ बच्चन ने फिल्म के अंत में कहा है- यह कहानी है जोधा अकबर की। इनकी मोहब्बत की मिसाल नहीं दी जाती और न ही इनके प्यार को याद किया जाता है। शायद इसलिए कि इतिहास ने उन्हें महत्व ही नहीं दिया। जबकि सच तो यह है कि जोधा अकबर ने एक साथ मिल कर चुपचाप इतिहास बनाया है। इसी इतिहास के कुछ पन्नों से जोधा अकबर वाकिफ कराती है। मुगल सल्तनत के शहंशाह अकबर और राजपूत राजकुमारी जोधा की प्रेमकहानी शादी की रजामंदी के बाद आरंभ होती है। आशुतोष ग

जोधा अकबर:चवन्नी के पाठकों का मत

चवन्नी ने अपने ब्लॉग पर पाठकों से पूछा था क्या लगता है जोधा अकबर का? चलेगी या नहीं चलेगी? इस बार पाठकों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की और पहले दिन से ही नहीं चलेगी का दावा करने वालों की तादाद ज्यादा रही.बीच में एक बार चलेगी और नहीं चलेगी का पलड़ा बराबर हो गया था,लेकिन बाद में फिर से नहीं चलेगी के पक्ष में ज्यादा मत आए। यह मत फ़िल्म रिलीज होने के पहले का है.आज फ़िल्म रिलीज हो रही है,हो सकता है कि मुंहामुंही फ़िल्म की तारीफ हो फिर दर्शक बढ़ें.फिलहाल चवन्नी के पाठकों में से ३३ प्रतिशत की राय है कि फ़िल्म चलेगी और ६७ प्रतिशत मानते हैं कि नहीं चलेगी। अगर आप ने फ़िल्म देखी हो तो अपनी राय लिखें और अपनी समीक्षा भी भेजे.चवन्नी को अआप कि समीक्षा प्रकाशित कर खुशी होगी.

प्रेमीयुगल अभिषेक और ऐश्वर्या

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आज हर जगह रोमांस और प्रेम का जिक्र हो रहा है.चवन्नी ने सोचा कि क्यों नहीं फ़िल्म इंडस्ट्री की कोई प्रेमकहानी बताई जाए.वैसे तो कई प्रेमीयुगल हैं,जिनकी प्रेम्कहानियाँ आकर्षित करती हैं और उनसे पत्र-पत्रिकाओं की सुर्खियाँ बनती है.टीवी चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज़ बनते हैं.हालांकि पूरा देश ऐसी खबरों को महत्व दिए जाने की निंदा करता है,लेकिन उन्हें देखता भी है.यह एक सच्चाई है,जिसे अमूमन लोग स्वीकार नहीं करते.पॉपुलर कल्चर के प्रति एक घृणा भाव समाज में व्याप्त है। चवन्नी अभिषेक और ऐश्वर्या की जोड़ी को अद्भुत मानता है.दोनों की शादी को मीडिया ने विवादों में भले ही ला दिया हो और हमेशा उन पर नज़र रखने का सिलसिला कम नहीं हुआ हो,इसके बावजूद दोनों बेहद सामान्य पति-पत्नी की तरह की जिंदगी के मजे ले रहे हैं.चवन्नी यह बात फिलहाल दावे के साथ इसलिए कह सकता है कि,उसने हाल ही में दोनों से मुलाक़ात की और ऐसे ही मुद्दों पर बात की.कहते हैं उनका हनीमून अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है.मौका मिलते ही दोनों एक जगह हो जाते हैं.उनके पास ऐसी सुविधाएं हैं की वे भौगोलिक दूरी को अपने प्रेम के आड़े नहीं आने देते.हालांकि मीडिया इस बात से

एपिक रोमांस है जोधा अकबर : आशुतोष गोवारिकर

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आशुतोष गोवारिकर से अजय ब्रह्मात्मज की लंबी बातचीत का यह एक हिस्सा है.कभी मौका मिला तो पूरी बातचीत भी आप यहाँ पढ़ सकेंगे... मध्ययुगीन भारत की प्रेमकहानी ही क्यों चुनी और वह भी मुगल काल की? मैंने यह पहले से नहीं सोचा था कि मुगल पीरियड पर एक फिल्म बनानी है। लगान के तुरंत बाद हैदर अली ने मुझे जोधा अकबर की कहानी सुनायी। कहानी का मर्म था कि कैसे उनकी शादी गठजोड़ की शादी थी और कैसे शादी के बाद उनके बीच प्रेम पनपा। मुझे उस कहानी ने आकर्षित किया। आखिर किस परिस्थिति में आज से 450 साल पहले एक राजपूत राजकुमारी की शादी मुगल शहंशाह से हुई? मुझे लगा कि यह भव्य और गहरी फिल्म है और उसके लिए पूरा शोध करना होगा। हमने तय किया कि पहले स्वदेस पूरी करेंगे और साथ-साथ जोधा अकबर की तैयारियां शुरू कर देंगे। दूसरा एक कारण था कि मैं एक रोमांटिक लव स्टोरी बनाना चाहता था। लगान और स्वदेस में रोमांस था, लेकिन वे रोमांटिक फिल्में नहीं थीं। मुझे 1562 की यह प्रेमकहानी अच्छी लगी कि कैसे दो धर्म और संस्कृति के लोग साथ में आए और कैसे शादी के बाद दोनों के बीच प्रेम हुआ। आप इसे एपिक रोमांस कह रहे हैं। इतिहास के पन्नों से ली ग