हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:छठा दशक
देश की आज़ादी बाद के इस दशक को हिन्दी फिल्मों का स्वर्णकाल माना जाता है.पिछले दशक में आ चुकी नरगिस और मधुबाला की बेहतरीन फिल्में इस दशक में आयीं.आज हम जिन निर्देशकों के नाम गर्व से लेते हैं,वे सब इसी दशक में सक्रिय थे.राज कपूर,बिमल राय,के आसिफ,महबूब खान,गुरु दत्त सभी अपनी-अपनी तरह से बाज़ार की परवाह किए बगैर फिल्में बना रहे थे। इस दशक की बात करें तो शोभना समर्थ ने अपनी बेटी नूतन को 'हमारी बेटी' के साथ पेश किया.नूतन का सौंदर्य अलग किस्म का था.उन्हें 'सीमा' के लिए फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला.१९६३ में आई 'बंदिनी' में कल्याणी की भूमिका में नूतन ने भावपूर्ण अभिनय किया.इसी दशक में दक्षिण से वैजयंतीमाला आयीं.वह प्रशिक्षित नृत्यांगना थीं.उनके लिए फिल्मों में डांस दृश्य रखे जाने लगे.वह काफी मशहूर रहीं अपने दौर में.कहते हैं राज कपूर ने निम्मी को सबसे पहले महबूब खान की 'अंदाज' के सेट पर देखा था,उन्होंने तभी 'बरसात' में निम्मी को छोटी सी भूमिका दी थी.उन्हें यह नाम भी राज कपूर ने ही दिया था.महबूब खान की प्रयोगशीलता गजब की थी.उन्होंने पश्चिम की फिल्मों प्रभावित