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रंग रसिया:दो तस्वीरें

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केतन मेहता की फ़िल्म 'रंग रसिया' की दो तस्वीरें देखें.यह १९ वीं सदी के मशहूर पेंटर राज रवि वर्मा के जीवन से प्रेरित है.इस फ़िल्म में रणदीप हुडा ने राज रवि वर्मा की भूमिका निभाई है तो नंदना सेन उनकी प्रेमिका सुगुना बाई बनी हैं.यह फ़िल्म विदेशों में दिखाई जा चुकी है.भारत में इसका प्रदर्शन अगले साल होगा .इसे A प्रमाण पत्र मिला है.

फ़िल्म समीक्षा:ओए लकी! लकी ओए!

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हंसी तो आती है *** -अजय ब्रह्मात्मज सब से पहले इस फिल्म के संगीत का उल्लेख जरूरी है। स्नेहा खानवलकर ने फिल्म की कहानी और निर्देशक की चाहत के हिसाब से संगीत रचा है। इधर की फिल्मों में संगीत का पैकेज रहता है। निर्माता, निर्देशक और संगीत निर्देशक की कोशिश रहती है कि उनकी फिल्मों का संगीत अलग से पॉपुलर हो जाए। इस कोशिश में संगीत का फिल्म से संबंध टूट जाता है। स्नेहा खानवलकर पर ऐसा कोई दबाव नहीं था। उनकी मेहनत झलकती है। उन्होंने फिल्म में लोकसंगीत और लोक स्वर का मधुर उपयोग किया है। मांगेराम और अनाम बच्चों की आवाज में गाए गीत फिल्म का हिस्सा बन गए हैं। बधाई स्नेहा और बधाई दिबाकर बनर्जी। दिबाकर बनर्जी की पिछली फिल्म 'खोसला का घोसलाÓ की तरह 'ओए लकी।़ लकी ओए।़Ó भी दिल्ली की पृष्ठभूमि पर बनी है। पिछली बार मध्यवर्गीय विसंगति और त्रासदी के बीच हास्य था। इस बार निम्नमध्यवर्गीय विसंगति है। उस परविार का एक होशियार बच्चा लकी (अभय देओल)दुनिया की बेहतरीन चीजें और सुविधाएं देखकर लालयित होता है और उन्हें हासिल करने का आसान तरीका अपनाता है। वह चोर बन जाता है। चोरी में उसकी चतुराई देख कर हंसी आती ह

फ़िल्म समीक्षा:सॉरी भाई

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नयी सोच की फिल्म ** -अजय ब्रह्मात्मज युवा ओर प्रयोगशील निर्देशक ओनिर की 'सॉरी भाई' रिश्तों में पैदा हुए प्रेम और मोह को व्यक्त करती है। हिंदी फिल्मों में ऐसे रिश्ते को लेकर बनी यह पहली फिल्म है। एक ही लडक़ी से दो भाइयों के प्रेम की फिल्में हम ने देखी है, लेकिन बड़े भाई की मंगेतर से छोटे भाई की शादी का अनोखा संबंध 'सॉरी भाई' में दिखा है। रिश्ते के इस बदलाव के प्रति आम दर्शकों की प्रतिक्रिया सहज नहीं होगी। हर्ष (संजय सूरी)और आलिया (चित्रांगदा सिंह)की शादी होने वाली है। दोनों मारीशस में रहते हैं। हर्ष अपने परिवार को भारत से बुलाता है। छोटा भाई सिद्धार्थ, मां और पिता आते हैं। मां अनिच्छा से आई है, क्योंकि वह अपने बेटे से नाराज है। बहरहाल, मारीशस पहुंचने पर सिद्धार्थ अपनी भाभी आलिया के प्रति आकर्षित होता है। आलिया को भी लगता है कि सिद्धार्थ ज्यादा अच्छा पति होगा। दोनों की शादी में मां एक अड़चन हैं। नयी सोच की इस कहानी में 'मां कसम' का पुराना फार्मूला घुसाकर ओनिर ने अपनी ही फिल्म कमजोर कर दी है। शरमन जोशी और चित्रांगदा सिंह ने अपने किरदारों को सही

करीना कपूर:एक तस्वीर

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इस बार सिर्फ़ एक तस्वीर करीना कपूर की.आप की टिप्पणियों का स्वागत है.क्या सोचते हैं आप? कुछ तो लिखें!

आदित्य चोपड़ा लेकर आ रहे हैं'रब ने बना दी जोड़ी'

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-अजय ब्रह्मात्मज लगभग बीस साल पहले यश चोपड़ा के बड़े बेटे आदित्य चोपड़ा ने तय किया कि वे अपने पिता की तरह ही फिल्म निर्देशन में कदम रखेंगे। यश चोपड़ा 'चांदनी' के निर्देशन की तैयारी में थे। आदित्य के उत्साह को देखते हुए यश चोपड़ा ने उन्हें फिल्म कंटीन्यूटी, कॉस्ट्यूम और कलाकारों को बुलाने की जिम्मेदारी दे दी। शूटिंग में शामिल होने के पहले आदित्य चोपड़ा ने भारतीय फिल्मकारों में राज कपूर, विजय आनंद, राज खोसला, मनोज कुमार, बिमल राय, बी आर चोपड़ा और अपने पिता यश चोपड़ा की सारी फिल्में सिलसिलेवार तरीके से देख ली थीं। उन दिनों वे सिनेमाघरों में जाकर फस्र्ट डे फस्र्ट शो देखने के अलावा नोट्स भी लेते थे और बाद में वास्तविक स्थिति से उनकी तुलना करते थे। आदित्य की इन गतिविधियों पर यश चोपड़ा की नजर रहती थी और उन्हें अपने परिवार में एक और निर्देशक की संभावना दिखने लगी थी। उन्होंने आदित्य की राय को तरजीह देना शुरू किया था, लेकिन अभी उन्हें इतना भरोसा नहीं हुआ था कि स्वतंत्र रूप से फिल्म का निर्देशन सौंप दें। 1989 से लेकर 1995 में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के प्रदर्शन तक आदित्य चोप

फ़िल्म समीक्षा:युवराज

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पुरानी शैली की भावनात्मक कहानी युवराज देखते हुए महसूस होता रहा कि मशहूर डायरेक्टर अपनी शैली से अलग नहीं हो पाते। हर किसी का अपना अंदाज होता है। उसमें वह सफल होता है और फिर यही सफलता उसकी सीमा बन जाती है। बहुत कम डायरेक्टर समय के साथ बढ़ते जाते हैं और सफल होते हैं। सुभाष घई की कथन शैली, दृश्य संरचना, भव्यता का मोह, सुंदर नायिका और चरित्रों का नाटकीय टकराव हम पहले से देखते आ रहे हैं। युवराज उसी परंपरा की फिल्म है। अपनी शैली और नाटकीयता में पुरानी। लेकिन सिर्फ इसी के लिए सुभाष घई को नकारा नहीं जा सकता। एक बड़ा दर्शक वर्ग आज भी इस अंदाज की फिल्में पसंद करता है। युवराज तीन भाइयों की कहानी है। वे सहोदर नहीं हैं। उनमें सबसे बड़ा ज्ञानेश (अनिल कपूर) सीधा और अल्पविकसित दिमाग का है। पिता उसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। देवेन (सलमान खान) हठीला और बदमाश है। उसे अनुशासित करने की कोशिश की जाती है, तो वह और अडि़यल हो जाता है। पिता उसे घर से निकाल देते हैं। सबसे छोटा डैनी (जाएद खान) को हवाबाजी अच्छी लगती है। देवेन और डैनी पिता की संपत्ति हथियाने में लगे हैं। ज्ञानेश रुपये-पैसों से अनजान होने के बावजू

दरअसल:फिल्मों के प्रोडक्शन डिजाइनर

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-अजय ब्रह्मात्मज हॉलीवुड की तर्ज पर अब उन्हें प्रोडक्शन डिजाइनर कहा जाने लगा है। फिल्म की प्रचार सामग्रियों में उनका नाम प्रमुखता से छापा जाता है। माना यह जा रहा है कि फिल्म के निर्देशक, लेखक, गीतकार और संगीतकार की तरह प्रोडक्शन डिजाइनर भी महत्वपूर्ण होते हैं। वे फिल्मों को डिजाइन करते हैं। फिल्म की कहानी के आधार पर वे परिवेश, काल और वेशभूषा की कल्पना करते हैं। किसी भी फिल्म का लुक इन तीन कारकों से ही निर्धारित होता है। इसी कारण उन्हें प्रोडक्शन डिजाइनर का नाम दिया गया है। दरअसल, नितिन देसाई देश के प्रमुख प्रोडक्शन डिजाइनर हैं। हिंदी की ज्यादातर बड़ी फिल्में उन्होंने ही डिजाइन किए हैं। उनके अलावा, समीर चंदा, संजय दभाड़े और मुनीश सप्पल आदि के नाम भी लिए जा सकते हैं। एक समय में नितिश राय काफी सक्रिय थे। रामोजी राव स्टूडियो की स्थापना और सज्जा की व्यस्तता के कारण उन्होंने फिल्मों को डिजाइन करने का काम लगभग बंद कर दिया है। वैसे, एक सच यह भी है कि नितिश राय ने ही हिंदी फिल्मों की डिजाइन में विश्वसनीयता का रंग भरा। श्याम बेनेगल के साथ डिस्कवरी ऑफ इंडिया करते समय उन्होंने सेट डिजाइन की अवधार

युवराज भव्य सिनेमाई अनुभव देगा: सुभाष घई

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सुभाष घई का अंदाज सबसे जुदा होता है। इसी अंदाज का एक नजारा युवराज में दर्शकों को मिलेगा। युवराज के साथ अन्य पहलुओं पर प्रस्तुत है बातचात- आपकी युवराज आ रही है। इस फिल्म की झलकियां देख कर कहा जा रहा है कि यह सुभाष घई की वापसी होगी? मैं तो यही कहूंगा कि कहीं गया ही नहीं था तो वापसी कैसी? सुभाष घई का जन्म इस फिल्म इंडस्ट्री में हुआ है। उसका मरण भी यहीं होगा। हां, बीच के कुछ समय में मैं आने वाली पीढ़ी और देश के लिए कुछ करने के मकसद से फिल्म स्कूल की स्थापना में लगा था। पंद्रह साल पहले मैंने यह सपना देखा था। वह अभी पूरा हुआ। ह्विस्लिंग वुड्स की स्थापना में चार साल लग गए। पचहत्तर करोड़ की लागत से यह इंस्टीट्यूट बना है। मैं अपना ध्यान नहीं भटकाना चाहता था, इसलिए मैंने फिल्म निर्देशन से अवकाश ले लिया था। पिछले साल मैंने दो फिल्मों की योजना बनायी। एक का नाम ब्लैक एंड ह्वाइट था और दूसरी युवराज थी। पहली सीरियस लुक की फिल्म थी। युवराज कमर्शियल फिल्म है। मेरी ऐसी फिल्म का दर्शकों को इंतजार रहा है, इसलिए युवराज के प्रोमो देखने के बाद से ही सुभाष घई की वापसी की बात चल रही है। सुभाष घई देश के प्रमुख ए

हिन्दी टाकीज:जूते पहन कर जा सकते थे उस मन्दिर में-मुन्ना पांडे (कुणाल)

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हिन्दी टाकीज-१७ इस बार मुन्ना पाण्डेय(कुणाल).कुणाल के ब्लॉग मुसाफिर से इसे लिया गया है.वहां मुन्ना पाण्डेय ने बहुत खूबसूरती के साथ श्याम चित्र मन्दिर की झांकी पेश की है। यह झांकी किसी भी छोटे शहर की हो सकती है.मुन्ना पाण्डेय का परिचय उनके ही शब्दों में लिखें तो,'तब जिंदगी मजाक बन गयी थी,दिल्ली आया था घर छोड़कर कि कुछ काम-धंधा करुं और मजाक बनी जिंदगी को कुछ मतलब दूं। लेकिन यहां आकर मजाक-मजाक में पढ़ने लग गया। रामजस कॉलेज से बीए करने के बाद एमए करने का मूड हो आया. तब तक किताबों का चस्का लग गया था और इसी ने मुझे एमए में गोल्ड मेडल तक दिला दिया। एम.फिल् करने लग गया। अब हंसिए मत, सच है कि मजाक-मजाक में ही जेआरएफ भी हो गया औऱ अब॥अब क्या। हबीब तनवीर के नाटक पर डीयू से रिसर्च कर रहा हूं। जिस मजाक ने मुझे नक्कारा करार देने की कोशिश की आज भी उसी मजाक के लिए भटकता-फिरता हूं। पेशे से रिसर्चर होते हुए भी मिजाज से घुमक्कड़ हूं। फिल्में खूब देखता हूं,बतगुज्जन पर भरोसा है और पार्थसारथी पर बार-बार रात बिताने भागता रहता हूं। अब तो जिंदगी और मजाक दोनों से प्यार-सा हो गया है।' gopalganj अग्निपथ स

रब ने बना दी जोड़ी में अलग लग रहे हैं शाहरूख खान

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12 दिसंबर को रब ने बना दी जोड़ी रिलीज होगी। दरअसल, यह फिल्म शाहरुख खान से ज्यादा आदित्य चोपड़ा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मोहब्बतें के निर्देशन के आठ साल बाद वे रब.. लेकर आ रहे हैं। फिल्म के पोस्टर और पहले गाने को देखकर ऐसा लग रहा है कि यह फिल्म उनकी पहले की फिल्मों से अलग होगी। वैसे, यह शाहरुख के लिए इस लिहाज से भी खास हो जाती है कि ओम शांति ओम के बाद यह उनकी पहली कायदे की फिल्म होगी। शाहरुख इस बार ओम शांति ओम की तरह आक्रामक जरूर नहीं दिख रहे हैं, लेकिन इस फिल्म को दर्शकों तक ले जाने और उन्हें इस फिल्म के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर भी है। इसी कारण उन्होंने अपने जन्मदिन के मौके पर मीडिया को मन्नत में बुलाया। कोशिश यह थी कि जन्मदिन के मौके पर रब.. की चर्चा आरंभ हो जाए। यशराज और शाहरुख इस रणनीति में सफल रहे। शाहरुख ने विस्तार से फिल्म के बारे में बताया। उन्होंने आदित्य के साथ हुई विमर्श की जानकारी भी दी। जैसे कि पहले पोस्टर में प्रौढ़ शाहरुख को पेश करना। पहले राय बनी थी कि इससे दर्शक निराश होंगे। उन्हें लगेगा कि शाहरुख बूढ़े हो गए हैं। शाहरुख की राय थी, हमें