हिंदी सिनेमा का मुंबई तक सीमित रहना उसके भविष्य के लिए सही नहीं-डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी
(फिल्मकार डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत) - हिंदी सिनेमा की वर्तमान स्थिति को आप किस रूप में देखते हैं ? 0 हिंदी सिनेमा पर गंभीरता से विचार करें तो लंबे समय तक श्याम बेनेगल और गोविंत निहलानी सक्रिय रहे। उनके साथ के फिल्मकारों ने फिल्मों की समानंतर भाषा गढऩे और खोजने की कोशिश की। उनमें से प्रकाश झा को मैं एक ऐसे फिल्मकार के तौर पर देख रहा हूं , जिन्होंने समानांतर और व्यावसायिक सिनेमा में संयोग और मेल कराने की अच्छी कोशिश की है। गौर करें तो फिलहाल हिंदी सिनेमा में सार्थक सिनेमा के लिए कम जगह रही है। उसके अपने व्यवसायिक कारण हैं। सच्चाई है कि हिंदी सिनेमा ने घोषणा कर दी है कि उसका साहित्य का सार्थकता से कोई संबंध नहीं है। सिनेमा का लक्ष्य और उद्देश्य मनोरंजन करने तक सीमित कर दिया गया है। उसमें लतीफेबाजी और चुटकुलेबाजी आ गई है। फिर सार्थकता कहां से आएगी। अफसोस की बात है कि दर्शकों ने स्वीकार कर लिया है और फिल्मकारों पर मुनाफे का दबाव है। पहले माना जाता था कि सिनेमा कला और व्यवसाय का योग है। अब सिनेमा के कला कहने पर प्रश्न चिह्न लग गया है। अगर यह कला है तो क