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दिलीप साब! आप चिरायु हों- अमिताभ बच्चन

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जन्मदिन विशेष हिंदी सिनेमा के महानतम अभिनेता दिलीप कुमार को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के रुप में एक प्रिय प्रशंसक प्राप्त हैं. दिलीप कुमार को अमिताभ बच्चन अपना आदर्श मानते हैं. 11 दिसंबर को दिलीप कुमार जीवन के 89 बसंत पूरे कर रहे हैं. इस विशेष अवसर पर अमिताभ बच्चन के साथ दिलीप कुमार के बारे में रघुवेन्द्र सिंह ने बातचीत की. अमिताभ बच्चन के शब्दों में उस बातचीत को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है. मेरे आदर्श हैं दिलीप साहब दिलीप साहब को मैंने कला के क्षेत्र में हमेशा अपना आदर्श माना है, क्योंकि मैं ऐसा मानता हूं कि उनकी जो अदाकारी रही है, उनकी जो फिल्में रही हैं, जिनमें उन्होंने काम किया है, वो सब सराहनीय हैं. मैंने हमेशा उनके काम को पसंद किया है. बचपन में जब मैं उनकी फिल्में देखा करता था, तबसे उनका एक प्रशंसक रहा हूं. मुझे उनकी सभी फिल्में पसंद हैं, लेकिन गंगा जमुना बहुत ज्यादा पसंद आई थी. जब भी मैं दिलीप साहब को देखता हूं तो मैं ऐसा मानता हूं कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में अगर कला को लेकर, अदाकारी को लेकर, जब कभी इतिहास लिखा जाएगा तो यदि किसी युग या दशक का वर्

फिल्‍म समीक्षा : खिलाड़ी 786

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  एक्शन से हंसाता -अजय ब्रह्मात्‍मज सलमान खान की तरह अक्षय कुमार ने भी मनोरंजन का मसाला और फार्मूला पा लिया है। लग सकता है कि वे सलमान खान की नकल कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि अभी हर स्टार और डायरेक्टर एक-दूसरे की नकल से कामयाबी हासिल करने की जल्दबाजी में हैं। इस दौर में मुख्यधारा की फिल्मों में मौलिकता की चाह रखेंगे तो थिएटर के बाहर ही रहना होगा। आशीष आर. मोहन की 'खिलाड़ी 786' की प्रस्तुति में हाल-फिलहाल में सफल रही मसाला फिल्मों का सीधा प्रभाव है। जैसे कोई पॉपुलर लतीफा हर किसी के मुंह से मजेदार लगता है, वैसे ही हर निर्देशक की ऐसी फिल्में मनोरंजक लगती हैं। 'खिलाड़ी 786' का लेखन हिमेश रेशमिया ने किया है। वे इसके निर्माताओं में से एक हैं। सेकेंड लीड में वे मनसुख भाई के रूप में भी दिखाई पड़ते हैं। पिछली कुछ फिल्मों में दर्शकों द्वारा नापसंद किए जाने के बाद पर्दे पर आने का उन्होंने नया पैंतरा अपनाया है। फिल्म के प्रचार में दावा किया गया कि यह अक्षय कुमार की 'खिलाड़ी' सीरिज की फिल्म है, लेकिन यह दावा फिल्म के टायटल और एक संवाद तक ही सीमित है। '

संग-संग : विवेक ओबेराय-प्रियंका अल्‍वा ओबेराय

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-अजय ब्रह्मात्मज  फिल्म अभिनेता विवेक ओबेरॉय की पत्नी हैं प्रियंका अल्वा। दो साल पहले उनकी शादी हुई। प्रियंका गैरफिल्मी परिवार से हैं। दोनों की पहली मुलाकात में किसी फिल्मी संयोग की तरह रोमांस जगा और वह जल्दी ही शादी में परिणत हो गया। आरंभ में विवेक ओबेरॉय के प्रति प्रियंका थोड़ी सशंकित थीं कि फिल्म स्टार वास्तव में असली प्रेमी और पति के रूप में न जाने कैसा होगा? फिल्म सितारों के रोमांस और प्रेम के इतने किस्से गढ़े और पढ़े जाते हैं कि प्रियंका की आशंका को असहज नहीं माना जा सकता। इस मुलाकात में दोनों ने दिल खोलकर अपनी शादी, रोमांस और दांपत्य जीवन पर बातें की हैं।   विवेक : अमेरिका के फ्लोरेंस में एक सेतु है। उसका नाम है सांटा ट्रीनीटा, जिसे सामान्य अंग्रेजी में होली ट्रीनीटी कहेंगे। हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिमूर्ति है। वैसे ही वह एक पवित्र त्रिमूर्ति सेतु है। हम पहली बार वहां मिले। उस सेतु ने हमे जोड़ दिया। सूर्यास्त के पहले हम दोनों बातें करने बैठे। यही कोई साढ़े पांच बजे का समय रहा होगा। इन्हें आते देखकर मन में एक अहंकार जागा कि यार मम्मी-पापा ने कहां फंसा द

प्रदेशों के ब्रांड एंबेसडर बनते फिल्म स्टार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  जिस रफ्तार और प्रभाव से फिल्म स्टार को प्रदेशों के ब्रांड एंबेसडर बनाने की रुचि बढ़ रही है, उससे लगता है कि जल्दी ही हर प्रदेश का अपना एक ब्रांड एंबेसडर होगा। जरूरी नहीं है कि वह ब्रांड एंबेसडर उसी प्रदेश का मूल निवासी हो। हम देख रहे हैं कि अमिताभ बच्चन गुजरात के और शाहरुख खान बंगाल के ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। आंकड़े बताते हैं कि इन फिल्म स्टारों के ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किए जाने के बाद संबंधित प्रदेशों के पर्यटन में बढ़ोतरी हुई है। खासकर गुजरात ने नियोजित और व्यवस्थित तरीके से अमिताभ बच्चन की लोकप्रिय छवि का इस्तेमाल किया और देशवासियों समेत विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित किया। इस बात ने अन्य प्रदेशों को फिल्म स्टार की तरफ मुखातिब किया। ममता बनर्जी ने पहल की। उन्होंने कोलकाता की आईपीएल टीम के मालिक शाहरुख खान को ऑफर दिया। शाहरुख खान ने उस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। दरअसल, स्थिरता, सुरक्षा, शांति के बाद हर प्रदेश समृद्धि के लिए प्रयासरत और अग्रसर होता है। गुजरात में अपनी स्थिति मजबूत करने के बाद मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने प्रदेश की विवादास

रीमा कागती से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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-अजय ब्रह्मात्मज - फिल्म इंडस्ट्री में पहली फिल्म थोड़ी आसानी से मिल जाती है। दिक्कत दूसरी फिल्म में होती है। क्योंकि पहले के प्रदर्शन के आधार पर सारी चीजें तय होती है। आपकी दूसरी फिल्म ‘तलाश’ है, जो हर लिहाज से बड़ी फिल्म है। कैसे मुमकिन हुआ यह? 0 मेरी पहली फिल्म ‘हनीमून ट्रेवल्स प्राइवेट लिमिटेड’ छोटी और खास फिल्म थी। उसे सीमित सफलता मिली थी। वह पसंद भी की गई थी। ऐसा नहीं था कि उसके बाद मैंने किसी बड़ी फिल्म की प्लानिंग की। दूसरी फिल्म की मुश्किलों के बारे में आपकी राय सही है, लेकिन कई बार उल्टा भी होता है। इसी प्रोडक्शन में जोया अख्तर पहली फिल्म बनाने में सालों लग गए, लेकिन दूसरी फिल्म फटाफट बन  गई। मुझे पहली फिल्म में कोई मुश्किल नहीं हुई। ‘तलाश’ को फ्लोर पर लाने में समय लग गया। - क्या ‘तलाश’ की प्लानिंग में शुरू से आमिर खान थे? 0 जोया के साथ जब हमने यह फिल्म लिखनी शुरू की तो आमिर खान ही हमारे दिमाग थे। स्क्रिप्ट तैयार होने पर रितेश ने आमिर खान को फोन किया तो उन्होंने इसे सुनने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि अभी मैं ‘गजनी’ कर रहा हूं। उसके बाद एक छोटी फिल्म ‘धोबी घाट’ करूंगा।

फिल्‍म समीक्षा : तलाश

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-अजय ब्रह्मात्‍मज लगभग तीन सालों के बाद बड़े पर्दे पर लौटे आमिर खान 'तलाश' से अपने दर्शकों और प्रशंसकों को नए ढंग से रिझाते हैं। 'तलाश' है हिंदी सिनेमा ही, लेकिन रीमा कागती और आमिर खान ने उसे अपडेट कर दिया है। सस्पेंस के घिसे-पिटे फार्मेट को छोड़ दिया है और बड़े ही चुस्त तरीके से नए तत्व जोड़ दिए हैं। छल, प्रपंच, हत्या, दुर्घटना और बदले की यह कहानी अपने अंतस में इमोशनल और सोशल है। रीमा कागती और जोया अख्तर ने संबंधों के चार गुच्छों को जोड़कर फिल्म का सस्पेंस रचा है। 'तलाश' मुंबई की कहानी है। शाम होने के साथ मुंबई की जिंदगी करवट लेती है। रीमा कागती ने अपने कैमरामैन मोहनन की मदद से बगैर शब्दों में रात की बांहों में अंगड़ाई लेती मुंबई को दिखाया है। आरंभ का विजुअल कोलाज परिवेश तैयार कर देता है। फिल्म एक दुर्घटना से शुरू होती है। मशहूर फिल्म स्टार ओंकार कपूर की गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है। उनकी कार सीफेस रोड से सीधे समुद्र में चली गई है। मुंबई पुलिस के अन्वेषण अधिकारी सुर्जन सिंह शेखावत (आमिर खान) की तहकीकात आरंभ होती है। फिल्मसिटी से दुर्घटना स्थल क

फिल्‍म समीक्षा : लाइफ ऑफ पाई

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-अजय ब्रह्मात्‍मज यान मार्टेल का उपन्यास 'लाइफ ऑफपाई' देश-विदेश में खूब पढ़ा गया है। इस उपन्यास ने पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया है। विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार आंग ली ने इसी उपन्यास को फिल्म का रूप दिया है। 3 डी तकनीक के उपयोग से उन्होंने मार्टेल की कल्पना को पर्दे पर धड़कन दे दी है। जीव-जंतु और प्राकृतिक सौंदर्य की लगभग नैसर्गिक अनुभूति दिलाने में वे सफल रहे हैं। यह फिल्म पाई की कहानी है। पांडिचेरी के निजी चिड़ियाघर के मालिक के छोटे बेटे पाई के माध्यम से निर्देशक ने जीवन, अस्तित्व, धर्म और सहअस्तित्व के बुनियादी प्रश्नों को छुआ है। पाई अपने परिवार के साथ कनाडा के लिए समुद्र मार्ग से निकला है। रास्ते के भयंकर तूफान में उसका जहाज डूब जाता है। मां-पिता और भाई को डूबे जहाज में खो चुका पाई एक सुरक्षा नौका पर बचा रह जाता है। उस पर कुछ जानवर भी आ गए हैं। आखिरकार नाव पर बचे पाई और बाघ के बीच बने सामंजस्य और सरवाइवल की यह कहानी रोमांचक और रमणीय है। किशोर पाई की [सूरज शर्मा] की कहानी युवा पाई [इरफान खान] सुनाते हैं। अपने ही जीवन के बारे में बताते समय पाई का चुटीला अंदाज कहानी

तब्‍बू से अजय ब्रह्मात्‍मज की बातचीत

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तब्बू ‘ बाजार ’ और ‘ हम नौजवां ’ में झलक दिखलाने के बाद 1987 में तेलुग़ू फिल्म कुली नं. 1 से तब्बू ने अभिनय यात्रा आरंभ की। उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘ प्रेम ’ बनने में ही सात साल लग गए। बोनी कपूर ने अपने छोटे भाई संजय कपूर के साथ उन्हें लांच किया था। 1994 में आई ‘ विजयपथ ’ से उन्हें दर्शकों ने पहचाना और मुंबई के निर्माताओं ने रूक कर देखा। तब्बू ने हर तरह की फिल्मों में काम किया। उन्हें ‘ माचिस ’ और ‘ चंादनी बार ’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मीरा नायर की फिल्म ‘ नेमसेक ’ में तब्बू 2007 में दिखी थीं। उसके बाद से उनकी कोई महत्वपूर्ण फिल्म नहीं आई है। दर्शकों को तब्बू का और तब्बू को फिल्मों का इंतजार है। इस साल इरफान के साथ उनकी फिल्म ‘ लाइफ ऑफ पी ’ आएगी। तब्बू से यह बातचीत किसी विशेष प्रयोजन से नहीं की गई है। तब्बू ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार शेयर किए हैं। - आप ने ज्यादातर नए डायरेक्टर के साथ काम किया। ऐसे चुनाव में जोखिम भी रहता है। क्या आप को कभी डर नहीं लगा कि आप का बेजा इस्तेमाल हो सकता है ? 0 मैंने लगभग हर फिल्म में नए डायरेक्टर के साथ काम