कमल स्वरूप - 1
कमल स्वरूप की 1988 में सेंसर हुई फिल्म 'ओम दर-ब-दर' 17 जनवरी को रिलीज हो रही है। इस अवसर पर उनसे हुई बातचीत धारावाहिक रूप में यहां प्रकाशित होगी। उममीद है पहले की तरह चवन्नी का यह प्रयास आप को पसंद आएगा। आप की टिप्पणियों और शेयरिंग से प्रोत्साहन और बढ़ावा मिलता है। पढ़ते रहें.... -अजय ब्रह्मात्मज मैं अजमेर , राजस्थान का हूं। मैंने वहां से ग्रेजुएशन किया। वहां रहते हुए मुंबई की फिल्में देखता था। वहां की फिल्मों से अधिक प्रभावित नहीं था। मेरी रुचि साहित्य में थी। उन दिनों धर्मयुग और माधुरी में फिल्मों को लेकर नए ढंग का लेखन शुरू हुआ था। उनमें ‘ उसकी रोटी ’, ‘ बदनाम बस्ती ’, ‘ माया दर्पण ’, ‘ फिर भी ’ जैसी फिल्मों का जिक्र होता था। मणि कौल , कुमार साहनी , बासु भट्टाचार्य , बासु चटर्जी , मृणाल सेन आदि के बारे में खूब लिखा जाता था। इन सभी के फिल्मों की कहानियां मैंने पढ़ रखी थी। सिनेमा का यह संसार साहित्य से प्रेरित होकर उभर रहा था। मुझे साहित्य पर बनी फिल्मों की तलाश रहती थी। ‘ तीसरी कसम ’ आई। मैंने फणिश्वर नाथ रेणु की ‘ मारे गए गुलफाम ’ कहानी पढ़ रखी थी। मैं पल