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द क्वीन मेकर विकास बहल

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चवन्‍नी के पाठकों के लिए रघुवेन्‍द्र सिंह के ब्‍लॉग अक्‍स से साधिकार  रिस्क लेना विकास बहल की पसंदीदा आदत है और आज उनकी यही क्वालिटी उन्हें फिल्ममेकिंग में लेकर आई है. अपने रोचक सफर को वर्तमान पीढ़ी के यह फिल्मकार रघुवेन्द्र सिंह से साझा कर रहे हैं  मुंबई शहर की आगोश में आने को अनगिनत लोग तड़पते हैं, मगर यह खुद चंद खुशकिस्मत लोगों को अपनी जमीं पर लाने को मचलता है. विकास बहल ऐसा ही एक रौशन नाम हैं. यह शहर उनके सफर और सपनों का हिस्सा कभी नहीं था, लेकिन आज यह उनकी मंजिल बन चुका है. अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी और मधु मंटेना जैसे तीन होनहार दोस्त मिले, तो उन्हें अपने ख्वाबों का एहसास हुआ. यूटीवी जैसे स्थापित कॉरपोरेट हाउस में अनपेक्षित आय वाली नौकरी को छोडक़र उन्होंने इन दोस्तों के साथ मिलकर फैंटम नाम की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी की नींव रखी. जिसका लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण मनोरंजक फिल्मों का निर्माण करना है. खुशमिजाज, सकारात्मक सोच एवं ऊर्जा से भरपूर विकास ने निर्देशन की ओर पहला कदम बढ़ाया और चिल्लर पार्टी जैसी एक प्यारी-सी फिल्म दर्शकों के बीच आई. अब अपनी दूसरी पिक

दरअसल : सितारे झेलते हैं बदतमीजी

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-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्मों के सितारों की लोकप्रियता असंदिग्ध है। मनोरंजन के सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम फिलम से संबंधित होने के कारण पहली फिल्म से ही उनके प्रशंसकों का दायरा बढऩे लगता है। अगर सितारा कामयाब होने के साथ दर्शकों को प्रिय है तो उसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। सार्वजनिक स्थानों पर उनकी मौजूदगी मात्र से हलचल होने लगती है। उनके पहुंचने के पहले ही उनके गंतव्य स्थान पर सरसराहट सी होने लगती है। सरकारी लाल बत्तियों और प्रशासनिक सुरक्षा में विचरण करने वाले नेताओ,मंत्रियों और आला अधिकारियों से अलग सितारों के मूवमेंट का असर होता है। महानगरों और बड़े शहरों तक में उनकी उपस्थिति से किसी भी स्थान की दशा बदल जाती है। वे भीड़ में भंवर बन जाते हैं। सारा हुजूम उनकी तरफ धंस रहा होता है। हवाई अड्डा,रेस्तरां,स्टेडियम आदि स्थानों पर सुरक्षा कवच में होने के बावजूद उन्हें धक्कामुक्की झेलनी पड़ती है। किसी भी स्थान पर उनके होने या वहां से गुजरने पर दसों दिशाओं की आंखें उन पर केंद्रित हो जाती हैं। वे सभी को सुकून देते हैं। उनकी छवि आंखों में समाते ही होंठों पर मुस्कान आती है।

वक्‍त क्षणभंगुर है-अमित कुमार

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यह इंटरव्यू गजेन्‍द्र सिंह भाटी के ब्‍लाॅग फिलम सिनेमा से लिया गया है।   Q & A . . Amit Kumar , film director (Monsoon Shootout) . Nawazuddin Siddiqui in a still from 'Monsoon Shootout.' उनकी ‘ द बाइपास ’ काफी वक्त पहले देखी। दो चीजों ने ध्यान आकर्षित किया। पहला , इरफान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी को एक साथ किसी फ़िल्म में कांटेदार अभिनय करते देखना। दूसरा , बिना किसी शब्द के तकरीबन सोलह मिनट की इस फ़िल्म को बनाने वाले किसी अमित कुमार के निर्देशन और नजरिए को लेकर जागी जिज्ञासा। उनके बारे में ढूंढा , पर वे गायब थे। फिर उनके नए प्रोजेक्ट के बारे में सुना... ‘ मॉनसून शूटआउट ’ । इसमें भी प्रमुख भूमिका में नवाज थे। उनसे बात करनी थी , संपर्क किया और कुछ महीनों के इंतजार के बाद कुछ महीने पहले उनसे बात हुई। बेहद अच्छे मिजाज के अमित भारत में जन्मे और अफ्रीका में पले-बढ़े। पढ़ाई के बाद कई बड़ी होटलों , बैंकों और अमेरिकन एक्सप्रेस जैसे बहुराष्ट्रीय समूह में नौकरी की। पर रुचि शुरू से फ़िल्मों  में थी। पैरिस के एक फेमिस फ़िल्म स