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किक का गाना जुम्‍मे की रात

हम जो कुछ नया करते हैं,वह पुराना ही होता है। अब किक का गाना 'जुममे की रात' ही देख लें। इस गाने का फील अमिताभ बच्‍चन पर फिल्‍माए लोकप्रिय गीत 'जुम्‍मा चुम्‍मा दे दे' जैसा ही है। अमिताभ बच्‍चन और सलमान खान अलग किस्‍म के डांसर और परफार्मर हैं। वह भिन्‍नता यहां दिखती है। सलमान खान अपने अंदाज में हैं। गौर करें तो वे अपनी नायिकाओं को रिझाते समय मदमस्‍त हो जाते हैं। जैक्‍लीन फर्नांडिस को सेक्‍सी रंग और ठसक ढंग से पेश किया गया है। हिमेश रेंश्‍मिया ने सलमान खान को पॉपुलर हो सकने वाले गाने की सौगात दी है। तो क्‍या आप भाई के साथ जुम्‍म्‍ो की रात बिताने के लिए तैयार हैं ?

फिल्‍म समीक्षा : हमशकल्‍स

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-अजय ब्रह्मात्‍मज साजिद खान की 'हमशकल्स' वास्तव में हिंदी फिल्मों के गिरते स्तर में बड़बोले 'कमअकल्स' के फूहड़ योगदान का ताजा नमूना है। इस फिल्म में पागलखाने के नियम तोडऩे की एक सजा के तौर पर साजिद खान की 'हिम्मतवाला' दिखायी गयी है। भविष्य में कहीं सचमुच 'हमशकल्स' दिखाने की तजवीज न कर दी जाए। साजिद खान जैसे घनघोर आत्मविश्वासी इसे फिर से अपनी भूल मान कर दर्शकों से माफी मांग सकते हैं, लेकिन उनकी यह चूक आम दर्शक के विवेक को आहत करती है। बचपना और बचकाना में फर्क है। फिल्मों की कॉमेडी में बचपना हो तो आनंद आता है। बचकाने ढंग से बनी फिल्म देखने पर आनंद जाता है। आनंद जाने से पीड़ा होती है। 'हमशकल्स' पीड़ादायक फिल्म है। साजिद खान ने प्रमुख किरदारों को तीन-तीन भूमिकाओं में रखा है। तीनों हमशकल्स ही नहीं, हमनाम्स भी हैं यानी उनके एक ही नाम हैं। इतना ही नहीं उनकी कॉमेडी भी हमशक्ली है। ये किरदार मौके-कुमौके हमआगोश होने से नहीं हिचकते। डायलॉगबाजी में वे हमआहंग (एक सी आवाजवाले) हैं। उनकी सनकी कामेडी के हमऔसाफ (एकगुण) से खिन्नता और झुंझलाहट बढ़त

हंसी की पुडिय़ा बांधता हूं मैं-साजिद खान

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-अजय ब्रह्मात्मज     ‘हिम्मतवाला’  की असफलता के बाद साजिद खान ने चुप्पी साध ली थी। अभी ‘हमशकल्स’ आ रही है। उन्होंने इस फिल्म के प्रचार के समय यह चुप्पी तोड़ी है। ‘हिम्मतवाला’ के समय किए गए दावों के पूरे न होने की शर्म तो उन्हें है, लेकिन वे यह कहने से भी नहीं हिचकते कि पिछली बार कुछ ज्यादा बोल गया था। - ‘हिम्मतवाला’ के समय के सारे दावे गलत निकले। पिछले दिनों आपने कहा कि उस समय मैं झूठ बोल गया था। 0 झूठ से ज्यादा वह मेरा बड़बोलापन था। कह सकते हैं कि वे बयान नासमझी में दिए गए थे। दरअसल मैं कुछ प्रुव करना चाह रहा था। तब ऐसा लग रहा था कि मेरी फिल्म अवश्य कमाल करेगी। अब लगता है कि ‘हिम्मतवाला’ का न चलना मेरे लिए अच्छा ही रहा। अगर फिल्म चल गई होती तो मैं संभाले नहीं संभलता। इस फिल्म से सबक मिला। यह सबक ही मेरी सफलता है। मैंने महसूस किया कि मैं हंसना-हंसाना भूल गया था। अच्छा ही हुआ कि असफलता का थप्पड़ पड़ा। अब मैं संभल गया हूं। - ऐसा क्यों हुआ था? 0 मैं लोगों का ध्यान खींचना चाहता था। एक नया काम कर रहा था। मेरी इच्छा थी कि लोगों की उम्मीदें बढ़ें। वैसे भी दर्शकों की अपेक्षाए

दरअसल : तारीफों की टर्र-टर्र

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-अजय ब्रह्मात्मज     इन दिनों कई फिल्मों की रिलीज के समय अचानक सोशल मीडिया नेटवर्क पर फिल्मी हस्तियों की सिफारिशें आरंभ हो जाती हैं। बरसाती मेढकों की तरह प्रशंसक टरटराने लगते हैं। फेसबुक और ट्विटर पर इनकी टर्र-टर्र ऐसी गूंजती है कि हर तरफ तारीफ बरसने लगती है। छोटी फिल्मों के लिए यह अच्छी बात होती है। माहौल बन जाता है। इस माहौल में दर्शक मिल जाते हैं। हाल ही में ‘फिल्मिस्तान’  और ‘द वल्र्ड बिफोर हर’ इसके उदाहरण रहे।     ‘फिल्मिस्तान’ 2012 की फिल्म है। उस साल यह अनेक फेस्टिवल में दिखाई गई। 2012 के लिए इसे 2013 में पुरस्कार भी मिला, लेकिन वितरकों के अभाव में ‘फिल्मिस्तान’ समय पर रिलीज नहीं हो सकी। भला हो श्याम श्रॉफ और उनकी श्रृंगार फिल्म्स का। उन्हें फिल्म अच्छी लगी तो वितरण का रास्ता आसान हो गया। फिर यूटीवी का भी समर्थन मिल गया। ‘फिल्मिस्तान’ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की प्रमुख हस्तियों को दिखाई गई। सभी ने तारीफ के पुल बांधे। शाबिर हाशमी और इनामुल हक के साथ तस्वीरें खिचवाई गईं। बताया गया कि यह श्रेष्ठ सिनेमा है। इस श्रेष्ठ सिनेमा को एक साल से ज्यादा समय तक गुमनाम क्यों रहना पड़ा? देखें तो

अपेक्षाएं बढ़ गई हैं प्रेमियों की-शशांक खेतान

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-अजय ब्रह्मात्मज     धर्मा प्रोडक्शन की ‘हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया’ के निर्देशक शशांक खेतान हैं। यह उनकी पहली फिल्म है। पहली ही फिल्म में करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन का बैनर मिल जाना एक उपलब्धि है। शशांक इस सच्चाई को जानते हैं। ‘हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया ’ के लेखन-निर्देशन के पहले शशांक खेतान अनेक बैनरों की फिल्मों में अलग-अलग निर्देशकों के सहायक रहे। मूलत: कोलकाता के खेतान परिवार से संबंधित शशांक का बचपन नासिक में बीता। वहीं पढ़ाई-लिखाई करने के दरम्यान शशांक ने तय कर लिया था कि फिल्मों में ही आना है। वैसे उन्हें खेल का भी शौक रहा है। उन्होंने टेनिस और क्रिकेट ऊंचे स्तर तक खेला है। शुरू में वे डांस इंस्ट्रक्टर भी रहे। मुंबई आने पर उन्होंने सुभाष घई के फिल्म स्कूल ह्विस्लिंग वूड्स इंटरनेशनल में दाखिला लिया। ज्यादा जानकारी न होने की वजह से उन्होंने एक्टिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई के दरम्यान उनकी रुचि लेखन और डायरेक्शन में ज्यादा रही। टीचर कहा भी करते थे कि उन्हें फिल्म डायरेक्शन पर ध्यान देना चाहिए। दोस्तों और शिक्षकों के प्रोत्साहन से शशांक ने ‘ब्लैक एंड ह्वाइट’ और ‘युवराज’ में सुभाष घई के

सोने की सीढ़ी चढ़ती सोनाक्षी सिन्‍हा

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-अजय ब्रह्मात्मज सोनाक्षी सिन्हा के लिए अच्छा ही रहा कि अक्षय कुमार प्रचलित फैशन में धुंआधार प्रचार में यकीन नहीं करते। अगर प्रमोशन के लिए शहरों के चक्कर लगते तो उन्हें ‘तेवर’ के सेट से छुट्टी लेनी पड़ती। संजय कपूर की इस फिल्म में वह अर्जुन कपूर के साथ दिखेंगी। फिल्म का निर्देशन अमित शर्मा कर रहे हैं। इस फिल्म की शूटिंग मथुरा, वाई और मुंबई में हुई है। मनोज बाजपेयी की प्रतिभा से मुग्ध सोनाक्षी उनकी तारीफ करना नहीं भूलतीं। अजय देवगन के साथ उनकी ‘एक्शन जैक्सन’ भी लगभग पूरी हो चुकी है। इन सभी फिल्मों से अधिक खुशी उन्हें रजनीकांत की फिल्म ‘लिंगा’ से है। ‘रजनीकांत की फिल्म करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। इस फिल्म की शूटिंग के पहले मैं घबराई हुई थी। मेरी घबराहट देख कर रजनी सर ने समझाया कि तुम से ज्यादा मैं घबराया हुआ हूं, क्योंकि तुम मेरे दोस्त की बेटी हो।’ सोनाक्षी बताती हैं कि फिल्म पांचवें दशक की पीरियड फिल्म है, इसलिए हमें कोई दिक्कत नहीं हुई।     दो दिनों पहले ही सोनाक्षी सिन्हा की ‘हॉलीडे’ रिलीज हुई है। अक्षय कुमार के साथ यह उनकी चौथी फिल्म है। जीवनशैली और आदतों से समानता की वजह स

बेचैन रहते हैं अनुराग कश्यप

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-अजय ब्रह्मात्मज     28 मई को अनुराग कश्यप की फिल्म ‘अग्ली’ फ्रांस में रिलीज हुई। फ्रांसीसी भाषा में इसे डब किया गया था। अनुराग कश्यप चाहते हैं कि ‘अग्ली’ भारत में भी रिलीज हों। उन्होंने फिल्म में धूम्रपान के दृश्यों के साथ आने वाली चेतावनी के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी। उनका मानना है कि फिल्म देखते समय लिखे शब्दों में ऐसी चेतावनी धूम्रपान के खिलाफ सचेत करने का बचकाना प्रयास है। अपने इस तर्क के बावजूद अनुराग अपना केस हार चुके हैं। हाई कोर्ट ने उन्हें बताया है कि अभी सुप्रीम कोर्ट में इसी से संबंधित एक मामला दर्ज है, इसलिए हाई कोर्ट किसी भी फैसले पर नहीं पहुंच सकता। अनुराग मानते हैं कि फिलहाल इस मसमले में कुद नहीं किया जा सकता। उन्होंने ‘अग्ली’ की भारतीय रिलीज का फैसला अब निर्माता और निवेशकों पर छोड़ रखा है। वे कहते हैं, ‘निर्माताओं ने मेरा लंबा साथ दिया। वे मेरे साथ बने रहे, लेकिन अब उन्हें दिक्कत महसूस हो रही है। ‘अग्ली’ फ्रांस में रिलीज हो चुकी है। निर्माता जल्दी ही यहां भी रिलीज की घोषणा करेंगे।’     पिछले हफ्ते रिलीज हुई निशा पाहुजा की डाक्यूमेंट्री ‘द वल्र्ड बिफोर हर’ ने अनुराग

टाइमिंग का कमाल है कामेडी -रितेश देशमुख

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-अजय ब्रह्मात्मज     अभिनेता रितेश देशमुख मराठी फिल्मों के निर्माता भी हैं। इस साल उन्हें बतौर निर्माता राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है। हिंदी में बतौर अभिनेता उनकी दो फिल्में ‘एक विलेन’ और ‘हमशकल्स’ आ रही है। सृजन के स्तर पर उनका दो व्यक्तित्व नजर आता है। यहां उन्हें अपने व्यक्तित्व के दो पहलुओं पर बातें की हैं। - निर्माता और अभिनेता के तौर पर आपका दो व्यक्तित्व दिखाई पड़ता है? बतौर निर्माता आप मराठी में गंभीर और संवेदनशील फिल्में बना रहे हैं तो अभिनेता के तौर पर बेहिचक चालू किस्म की फिल्में भी कर रहे हैं। इन दोनों के बीच संतुलन और समझ बनाए रखना मुश्किल होता होगा? 0 बतौर निर्माता जब मैं ‘बालक पालक’, ‘येलो’ और ‘ लेई भारी ’ का निर्माण करता हूं तो उनके विषय मेरी पसंद के होते हैं। मैं तय करता हूं कि मुझे किस तरह की फिल्में बनानी है। वहां सारा फैसला मेरे हाथ में होता है। जब फिल्मों में अभिनय करता हूं तो वहां विषय पहले से तय रहते हैं। स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी होती है। उनमें जो रोल मुझे ऑफर किया जाता है उन्हीं में से कुछ मैं चुनता हूं। हां, अगर जैसी फिल्मों का मैं निर्माण करता हूं, वैसी

दरअसल : अज्ञान के साथ लापरवाही

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-अजय ब्रह्मात्मज     हिंदी फिल्मों की अनेक विडंबनाओं में से एक बड़ी विडंबना यह भी है कि धीरे-धीरे हिंदी फिल्मों के नाम फिल्म और पोस्टर में हिंदी में आने बंद या कम हो गए हैं। इधर ऐसी कई फिल्में आई हैं, जिनके टायटल तक हिंदी में नहीं लिखे जाते। आप बड़े शहरों के किसी भी मल्टीप्लेक्स या सिनेमाघर में घूम आएं। बहुत मुश्किल से कुछ पोस्टर हिंदी में दिखेंगे। उत्तर भारत में फिल्म रिलीज होने के हफ्ते-दस दिन पहले पोस्टर हिंदी में लगते हैं। उनमें भी कई बार गलत हिंदी लिखी रहती है। मान लिया गया है कि हिंदी फिल्मों के दर्शक अंग्रेजी समझ लेते हैं, इसलिए देवनागरी में नाम लिखने की जरूरत नहीं रह गई है। निर्माता और वितरकों पर दर्शकों की तरफ से दबाव भी नहीं है। इस लापरवाही और आलस्य में भाषा की तमीज और शुद्धता खत्म होती जा रही है।     इन दिनों साजिद खान की फिल्म ‘हमशकल्स’ की काफी चर्चा है। धुआंधार प्रचार चल रहा है। हर कोई ‘हमशकल्स’ बोल और लिख रहा है। गौर करें तो हिंदी या उर्दू में ‘हमशक्ल’ के बहुवचन के लिए कोई अलग शब्द नहीं है। एक तो यह शब्द ‘हमशक्ल’ है। ‘हमशक्ल’ का बहुवचन भी ‘हमशक्ल’ ही होगा। बहुवचन के लिए

फिल्‍म समीक्षा : फगली

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-अजय ब्रह्मात्‍मज  स्वाभाविक है कि 'फगली' देखते समय उन सभी फिल्मों की याद आए, जिनमें प्रमुख किरदार नौजवान हैं। कबीर सदानंद की 'फगली' और अन्य फिल्मों की समानता कुछ आगे भी बढ़ती प्रतीत हो सकती है। दरअसल, इस विधा की फिल्मों के लिए आवश्यक तत्वों का कबीर ने इस्तेमान तो किया है, लेकिन उनका अप्रोच और ट्रीटमेंट अलग रहा है। 'फगली' की यह खूबी है कि फिल्म का कोई भी किरदार नकली और कागजी नहीं लगता। 'फगली' इस देश के कंफ्यूज और जोशीले नौजवानों की कहानी है। देव, देवी, गौरव और आदित्य जैसे किरदार बड़े शहरों में आसानी से देखे जा सकते हैं। ईमानदारी और जुगाड़ के बीच डोलते ये नौजवान समय के साथ बदल चुके हैं। वे बदते समय के अनुसार सरवाइवल के लिए छोटे-मोटे गलत तरीके भी अपना सकते हैं। ऐसी ही एक भूल में वे भ्रष्ट पुलिस अधिकारी आरएस चौटाला की चपेट में आ जाते हैं। यहां से उनकी नई यात्रा आरंभ होती है। मुश्किल परिस्थिति से निकलने और आखिरकार जूझने के उनके तरीके से असहमति हो सकती है, लेकिन उनके जज्बे से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में निराशा से उपजे इस उप