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जेड प्‍लस पात्र परिचय

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असलम पंचरवाला - फतेहपुर में दरगाह रोड पर पंचर की इसकी दुकान है। पंचर लगाता है और दिल का एकदम साफ। जागरुक है और रोमांटिक भी। कभी सोचा नहीं था कि पंचर से आगे कभी कोई और धंधा चल निकलेगा और जब उसकी दुकान को अतिक्रमण समझकर तोड़ा गया तो पता चला कि कस्‍बे में प्रधानमंत्री आ रहे हैं और प्रधानमंत्री से उसकी मुलाकात होगी। सीधा सादा भोला भाला फतेहपुर का असलम अचानक कस्‍बे में चर्चित हुआ तो फतेहपुर आए प्रधानमंत्री उसको जेड सिक्‍योरिटी दे गए और फिर जो असलम के साथ हुआ वो ऐसा कि देश में किसी के साथ ना हुआ हो। हमीदा असलम की पत्‍नी। रफीक की अम्‍मा। दिल की नेक। अकेले मियां के पंचर की दुकान से गुजारा कहां होता है। दरगाह के पास उसकी जूतियों की दुकान है। बातों की बादशाह। ग्राहक दुकान पर आएगा तो वह बातों में उसे ऐसे लुभाएगी कि वह हमीदा के यहां से जूतियां खरीदे बिना नहीं जाएगा। ईमान की पक्‍की और अल्‍लाह मियां से डरने वाली। असलम की लगाम उसके हाथ में और असलम है कि तुड़ाव करता रहता है। हबीब मियां आशिक पेशे से शायर , दिल से आशिक मिजाज और हरकतों से चिरकुट। सीधी प्रतिस्‍पर्धा गुलजार और जावेद

दरअसल : आ जाती है छोटी और सार्थक फिल्में

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-अजय ब्रह्मात्मज     कुछ फिल्में पहली झलक में ही चौंका देती हैं। इच्छा होती है कि उन्हें थिएटर में देखा जाए। मैं यहां खानत्रयी या किसी अन्य लोकप्रिय स्टार की फिल्मों के संदर्भ में नहीं लिख रहा हूं। उनकी फिल्में तो झलक दिखलाने के पहले से चर्चा में रहती हैं। पोस्टर, टीजर, ट्रेलर और सीन दिखाने के लिए भी वे इवेंट करते हैं। लाखों खर्च करते हैं। टीवी और अखबारों के जरिए सुर्खियों में आ जाते हैं। उनकी फिल्मों की जबरदस्त ओपनिंग होती है। हफ्ते भर के अंदर 100-200 करोड़ का कारोबार हो जाता है। मैं ऐसी फिल्मों के विरोध में नहीं हूं। लोकप्रिय फिल्मों से फिल्म इंडस्ट्री को ताकत मिलती है। व्यापार चलता है। इनके प्रभाव में छोटी फिल्मों को अनदेखा नहीं कर सकते।     पर्व-त्योहार और विशेष अवसरों पर रिलीज इन लोकप्रिय फिल्मों के अंतराल में कुछ फिल्में आती हैं, जिनमें न तो स्टार होते हैं और न उत्तेजक आयटम सौंग। उनके पास फिल्मों के मामूली चेहरे होते हैं,लेकिन कहानी गैरमामूली रहती है। इन्हें किसी बड़े बैनर या कॉरपोरेट घराने का सहारा नहीं होता। इनका कथ्य ही मनोरंजक होता है। मनोरंजन का अर्थ सेक्स,एक्शन और नाच-गान

'जेड प्लस' के लेखक रामकुमार सिंह से एक बातचीत

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रामकुमार सिंह का यह इंटरव्यू चवन्‍नी के पाठकों के लिए जानकी पुल से लिया गया है। 21 नवम्बर की 'चाणक्य' और 'पिंजर' फेम निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म 'जेड प्लस' रिलीज हो रही है. यह फिल्म हिंदी लेखक रामकुमार सिंह की मूल कहानी पर आधारित है. यह हमारे लिए ख़ुशी की बात है कि एक लेखक ने फिल्म लेखन में दिलचस्पी दिखाई और एक कायदे का निर्देशक मिला जिसने उसकी कहानी की संवेदनाओं को समझा. हम अपने इस प्यारे लेखक की कामयाबी को सेलेब्रेट कर रहे हैं, एक ऐसा लेखक जो फिल्म लिखने को रोजी रोटी की मजबूरी नहीं मानता है न ही फ़िल्मी लेखन को अपने पतन से जोड़ता है, बल्कि वह अपने फ़िल्मी लेखन को सेलेब्रेट कर रहा है. आइये हम भी इस लेखक की कामयाबी को सेलेब्रेट करते हैं. लेखक रामकुमार सिंह से जानकी पुल की एक बातचीत- मॉडरेटर. ============================================== आपकी नजर में जेड प्‍लस की कहानी क्‍या है ? यह एक आम आदमी और प्रधानमंत्री के मिलने की कहानी है। सबसे मामूली आदमी के देश के सबसे महत्‍त्‍वपूर्ण आदमी से मिलने की कहानी। असल में प्रधानमंत्री

क्‍या बुराई है कंफ्यूजन में : श्रद्धा कपूर

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-अजय ब्रह्मात्मज श्रद्धा कपूर पढ़ाई के सिलसिले में अमेरिका के बोस्टन शहर चली गईं थीं। एक बार छुट्टियों में आईं तो उन्हें फिल्मों के ऑफर मिले। तब तक मन नहीं बनाया था कि आगे क्या करना है? कुछ दिनों तक दुविधा रही कि आगे पढ़ाई जारी रखें या फिल्मों के ऑफर स्वीकार करें। श्रद्धा ने दिल की बात सुनी। पढ़ाई छोड़ दी और फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया। -क्या फिल्मों में आने के फैसले के पहले एक्टिंग की कोई ट्रेनिंग वगैरह भी ली थी? लीना यादव की फिल्म ‘तीन पत्ती’ के पहले मैंने बैरी जॉन के साथ ट्रेनिंग ली। उससे बहुत फायदा हुआ। फिर यशराज फिल्म्स की ‘लव का द एंड’ करते समय डायरेक्टर के साथ ही स्क्रिप्ट रीडिंग की। ‘आशिकी 2’ के पहले मुकेश छाबड़ा के साथ वर्कशॉप किए। वे बहुत मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर हैं। ‘हैदर’ की भी कास्टिंग उन्होंने की थी। मुकेश छाबड़ा कमाल के टीचर हैं। अभी हाल में ‘एबीसीडी 2’ के सेट पर भी उनसे मुलाकात हुई। मैं उन्हें ‘तीन पत्ती’ के समय से जानती हूं। तब वे अभिमन्यु रे के सहायक थे। मुकेश छाबड़ा बहुत ही सख्त शिक्षक हैं। रियल टास्क मास्टर..। -ऐसे टीचर के साथ सीखते समय कोफ्त तो होती होगी?

हम सब असलम : डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी

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‘जेड प्लस’ के निर्देशक से बातचीत -अजय ब्रह्मात्मज      डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेद्वी की अलग पहचान है। सांस्कृतिक, सामाजिक और साहित्यिक विषयों के प्रति उनकी चिंताएं धारावाहिकों और फिल्मों के माध्यम से दर्शकों के समक्ष आती रही हैं। ‘पिंजर’ के निर्देशन के बाद उनकी कुछ कोशिशें सामने नहीं आ सक ीं। एक अंतराल के बाद वे ‘जेड प्लस’ लेकर आ रहे हैं। सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों की यह फिल्म उनकी प्रचलित छवि से भिन्न है। ‘जेड प्लस’ के प्रोमो और लुक देखकर उनके प्रशंसक चकित हैं।     -‘पिंजर’ के बाद इतना लंबा अंतराल क्यों? ‘पिंजर’ की रिलीज के बाद मैंने कुछ फिल्में लिखीं और उन्हें निर्देशित करने की योजना बनाई। अमिताभ बच्चन के साथ ‘दि लिजेंड ऑफ कुणाल’ की आरंभिक तैयारियां हो चुकी थीं। तभी मंदी का दौर आरंभ हुआ और वह फिल्म रुक गई। उसके बाद काशीनाथ सिंह की ‘काशी का अस्सी’ पर आधारित ‘मोहल्ला अस्सी’ का निर्देशन किया। यह फिल्म पूरी हो चुकी है। सनी देओल अपनी डबिंग भी कर रहे हैं। अब ‘मोहल्ला अस्सी’ के निर्माता पर निर्भर करता है कि वे फिल्म कब रिलीज करेंगे। मैंने अपना काम कर दिया है। हां, इस बीच मैंने चिन्मय मिशन के

फिल्‍म समीक्षा : रोर

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-अजय ब्रह्मात्‍मज    निर्देशक कमल सदाना ने नए विषय पर फिल्म बनाने की कोशिश की है। सुंदरवन के जंगलों में यह एक सफेद बाघ की खोज से संबंधित कहानी है। 'रोर' में वास्तविक लोकेशन के साथ वीएफएक्स का भरपूर उपयोग किया गया है। फिल्म के अंत में निर्देशक ने स्वयं बता दिया है कि कैसे शूटिंग की गई है? निर्देशक की इस ईमानदारी से फिल्म का रहस्य टूटता है। उदय फोटोग्राफर है। वह जंगल की खूबसूरती कैमरे में कैद करने आया है। अपनी फोटोग्राफी के दौरान वह सफेद बाघ के एक शावक को बचाता है। बाघिन अपने शावक की गंध से उदय के कमरे में आ जाती है। वह उसे मार देती है। उदय की लाश तक नहीं मिल पाती। उदय का भाई पंडित सेना में अधिकारी है। वह अपने दोस्तों के साथ भाई की लाश खोजना चाहता है। साथ ही वह बाघिन को मार कर बदला लेना चाहता है। बदले की इस कहानी में बाघिन विलेन के तौर पर उभरती है। फॉरेस्ट ऑफिसर और स्थानीय गाइड के मना करने पर भी वह अपने अभियान पर निकलता है। इस अभियान में बाघिन और पंडित के बीच रोमांचक झड़पें होती हैं। 'रोर' में छिटपुट रूप से सुंदरवन के रहस्य उद्घाटित होते हैं। जंगल की

दरअसल : फिल्म फेस्टिवल की प्रासंगिकता

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     देश में फिल्म फेस्टिवल की संख्या बढ़ गई है। लगभग हर बड़े शहर में फिल्म फेस्टिवल आयोजित हो रहे हैं। दैनिक जागरण का जागरण फिल्म फेस्टिवल इस लिहाज से अनोखा और उल्लेखनीय है कि यह देश का अकेला घुमंतू फेस्टिवल है। दिल्ली से आरंभ होने के बाद यह दैनिक जागरण के प्रसार क्षेत्र के 15 शहरों का भ्रमण करने के बाद अंत में मुंबई पहुंचता है। हाल ही में 5 वां जागरण फिल्म समारोह मुंबई में संपन्न हुआ। फेस्टिवल में देश-विदेश की अनेक भाषाओं की फिल्में एक साथ देखने को मिल जाती हैं। आकार और स्वरूप में मझोले किस्म के इस फेस्टिवल की अपनी पहचान बन चुकी है। मुंबई के दर्शक दो सालों की आदत के बाद अभी से तीसरी बार इसके मुंबई आने का इंतजार कर रहे हैं।     मुंबई के दर्शकों को मुंबई फिल्म फेस्टिवल(मामी) का भी इंतजार रहता है। 16 वें साल में प्रवेश करते समय फेस्टिवल के मुख्य स्पांसर ने अपने हाथ खींच लिए तो एकबारगी लगा कि अब मुंबई फिल्म फेस्टिवल नहीं होगा। तभी फिल्म बिरादरी के कुछ सदस्य आगे आए। उन्होंने आर्थिक सहयोग देने के साथ फिल्म फेस्टिवल की गतिविधियों में अपनी उपस्थिति दर्ज करने का आश्वासन द

जेड प्‍लस का ट्रेलर

पोस्‍टर - जेड प्‍लस

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इस पोस्‍टर को गौर से देखें।  याद करें कि हाल-फिलहाल में ऐसा कोई और पोस्‍टर देखा है क्‍या ? आप ने सही गौर किया कि एक व्‍यक्ति एक हाथ से लोटा उठाए और दूसरे हाथ से लुंगी थामे शौच के लिए जा रहा हैत्र स्‍पष्‍ट है कि इस व्‍यक्ति के घर में शौचालय नहीं है। देश के अधिकांश पुरुष गांवों से लेकर महानगरों तक में ऐसे ही खुलेआम शौच के लिए जाते हैं।              इस व्‍यक्ति का नाम असलम है। यह पंचर बनाने का काम करता है। आप को बता दें कि असलम को गफलत में जेड प्‍लस सेक्‍युरिटी मिल गई है। अब ये सुरक्षा गार्ड उसे तनहा नहीं छोड़ सकते। शौच में भी साथ जाते हैं। पोस्‍टर में सुरक्षा गार्डो के अलावा तीन और व्‍यक्ति दिख रहे हैं। वे मुकेश तिवारी,कुलभूषण खरबंदा और संजय मिश्रा हैं। मुकेश तिवारी असलम के पड़ोसी हैं। कुल जी प्रधानमंत्री की भूमिका में हैं। संजय मिश्रा आतंकवादी बने हैं।असलम की भूमिका में आदिल हुसैन  असली से दिख रहे हैं। एक प्रधानमंत्री के अलावा सभी देश-समाज के आम नागरिक हैं। इन्‍हें अपने आसपास आप ने देखा होगा। याद करें कि ऐसे आम किरदारों को कब आखिरी बार पोस्‍टर और सिनेमा में देखा था। दाएं कोने में

खुद के प्रति सहज हो गई हूं-दीपिका पादुकोण

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-अजय ब्रह्मात्मज     शाह रुख खान के साथ दीपिका पादुकोण की तीसरी फिल्म है ‘हैप्पी न्यू ईयर’। सभी जानते हैं कि उनकी पहली फिल्म ‘ओम शांति ओम’ शाह रुख खान के साथ ही थी। दूसरी फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के समय तक दीपिका पादुकोध की स्वतं। पहचान बन चुकी थी। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई है। अगर शाह रुख के समकक्ष मानने में आपत्ति हो तो भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि वह कम भी नहीं हैं।     बहरहाल,तीनों फिल्मों की बात चली तो दीपिका ने कहा,‘पिछली दो फिल्मों में ज्यादा गैप नहीं है,इसलिए कमोबेश समान अनुभव रहा। ‘ओम शांति ओम’ के समय मैं एकदम नई थी। उस फिल्म को मैंने उतना एंज्वॉय नहीं किया था,जितना मैं आज करती हूं। पहली फिल्म के समय घबराहट थी। पहली बार शाह रुख और फराह के साथ काम कर रही थी। उसके पहले कभी फिल्म सेट पर नहीं गई थी। हर चीज मेरे लिए नई थी। ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के बाद मैं शाह रुख के साथ ज्यादा कंफर्टेबल हूं। अब मैं उन्हें को-स्टार नहीं मानती। वे मेरे अच्छे दोस्त हैं। मैं जानती हूं कि कभी उनकी जरूरत पड़ी तो वे मेरे साथ रहेंगे। ऐसी दोस्ती हो तो फिल्में आ