Posts

दरअसल : ऊपर आका,नीचे काका

Image
-अजय ब्रह्मात्मज     राजेश खन्ना की लोकप्रियता और उसके प्रभाव को शब्दों में नहीं बताया जा सकता। आठवें दशक के आरंभ में जवान हो रही पीढ़ी ने इस लोकप्रियता को राजेश खन्ना की फिलमों के जरिए महसूस किया है। अभी डिजायनर और स्टायलिस्ट आ गए हैं,लेकिन किसी भी कथित स्टार या सुपरस्टार के पहनावे की नकल नहीं होती। एक दौर था जब सभी राजेश खन्ना की शैली के गुरू कट कुर्ता पहनते थे। आलों का उनकी शैली में काढ़ते थे और आईने के सामने खड़े होकर पलकों को झपकाते हुए मीठी मुस्कान का रिहर्सल करते थे। राजेश खन्ना पे पूरी पीढ़ी को अपना दीवाना बना दिया था। लड़कियों की दीवानगी के किस्से तो और अलग एवं रोमांचकारी हैं। राजेश खन्ना की जिंदगी और मौत दोनों ने उनके प्रशंसकों का आकर्षित किया। सन् 2012 के जुलाई महीने में निधन के बाद मुंबई की सडक़ों पर उनकी अंतिम यात्रा में शामिल प्रशंसकों के समूह को भीड़ कहना अनुचित होगा। आर्शीवाद से श्मशन की उस यात्रा में उनके प्रशंसक उनकी यादों को तिरोहित करने नहीं,बल्कि संयोजित करने आए थे।     सुपरस्टार राजेश खन्ना ने लोकप्रियता की असीम ऊंचाई देखी और फिर अपनी ही लोकप्रियता का उस ऊं

मंडावा में सलमान खान

Image
सलमान खान इन दिनों कबीर खान की फिल्‍म 'बजरंगी भाईजान' की शूटिंग राजस्‍थान के मंडावा में चल रही है। मंडावा बेहद खूबसूरत कस्‍बाई शहर है। यूरोप के किसी भी छोटे शहर को मात देती इस शहर की खूबसूरती मन मोह लेती है। पिछले साल 2014 में 'पीके' और 'जेड प्‍लस' की शूटिंग यहां हुई। अगर राजस्‍थान के मशहूर शहरों से अलग और विशेष कुछ देखना हो तो तंडावा जरूर जाएं।  चवन्‍नी के लिए ये तस्‍वीरें इंडीसिने के सौजन्‍य से ली जा रही हैं।

डराना सबको नहीं आता: बिपाशा बसु

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज भूषण पटेल की फिल्म ‘अलोन’ के ट्रेलर, गाने और दृश्यों की सोशल मीडिया पर बहुत तारीफ हो रही है। इस फिल्म  का ट्रेलर आने के साथ बिपाशा के समकालीन कलाकारों ने आगे बढक़र उनकी तारीफ की और फिल्म के बारे में ट्विट किया। हाल-फिलहाल में किसी हीरोइन की फिल्म को ऐसी प्रशंसा नहीं मिली है। फिल्म इंडस्ट्री के इस रवैये से बिपाशा खुश हैं। उन्हें लगता है कि यह फिल्म दर्शकों को भी वैसी ही पसंद आएगी। वह बताती हैं, ‘अभिषेक, शाह रुख और दूसरे सभी दोस्तों ने ‘अलोन’ का ट्रेलर देखने के बात एक ही बात लिखी कि अब बिपाशा से ‘अलोन’ नहीं मिलना है। उनकी इस तारीफ से मैं बहुत उत्साहित हूं। मैंने अपने दोस्तों से कहा भी अगर सभी ने अकेले में मुझसे मिलना बंद कर दिया तो मैं बहुत अकेली हो जाऊंगी। मुझे खुशी है कि यह ट्रेलर आम दर्शकों से लेकर मेरे आस पास के लोगों तक पसंद किया जा रहा है। सभी जानते हैं कि हॉरर फिल्मों के सीमित दर्शक होते हैं, लेकिन इस बार लग रहा है कि ‘अलोन’ पहले की सारी सीमाएं तोड़ देगी। अगर यह फिल्म ढंग से चल जाए तो हॉरर फिल्मों के लिए बड़ा कदम होगा। हॉरर जॉनर के लिए बहुत अच्छी बात होगी।’

छोटी फिल्में भी देती हैं बिजनेस : प्रकाश झा

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज  प्रकाश झा इन दिनों छोटी फिल्मों के मजबूत पैराकार हैं। उनके बैनर  की ‘क्रेजी कुक्कड़ फैमिली’ आ रही है। कुछ और फिल्में निर्माणाधीन हैं। -‘क्रेजी कुक्कड़ फैमिली’ को अपने बैनर की छांव प्रदान करने को हम आप की तीसरी इनिंग कहें? पहली बार आप ने फिल्में बनाईं, फिर बिहार गए। वापस आकर फिर ‘गंगाजल’, ‘अपहरण’ जैसी बड़ी फिल्में बनाईं, जो दूसरी इनिंग थी। अब नए जमाने के संग कदम मिलाकर आप ‘क्रेजी कुक्कड़ फैमिली’ जैसी फिल्मों को सपोर्ट कर रहे हैं? तीसरी इनिंग तो नहीं, यह मेरा एडिशनल वर्क है, क्योंकि अभी दूसरी इनिंग तो खत्म नहीं हुई। ‘गंगाजल’ या ‘सत्याग्रह’ जैसी फिल्में तो बन ही रही हैं। पॉलिटिकल टॉपिक को टच करना तो मुझे भाता ही है।  नया सब्जेक्ट ‘सत्संग’ है। उस पर भी काम चल रहा है, लेकिन मुझे लगा कि जिस तरह से हमारी फिल्मों का विस्तार हुआ है और जिस तरह हमारी ऑडिएंस निकल कर सिनेमा देखने आने लगी है। उसका खयाल रखना चाहिए। उससे भी बड़ी बात है कि यंग, नया टैलेंट चाहे एक्टिंग में हो, रायटिंग में हो, हर जगह उनकी बड़ी खेप आ रही है। उन्हें महत्व दिया जाना चाहिए। पांच-सात साल पहले ऐसा नहीं

फिल्‍म समीक्षा : तेवर

Image
-अजय ब्रह्मात्‍मज  लड़के का नाम घनश्याम और लड़की का नाम राधिका हो और दोनों ब्रजभूमि में रहते हों तो उनमें प्रेम होना लाजिमी है। अमित शर्मा की फिल्म 'तेवर' 2003 में तेलुगू में बनी 'ओक्काड़ु' की रीमेक है। वे शांतनु श्रीवास्तव की मदद से मूल कहानी को उत्तर भारत में रोपते हैं। उन्हें अपनी कहानी के लिए आगरा-मथुरा की पूष्ठभूमि समीचीन लगती है। वैस यह कहानी हरियाणा से लेकर झारखंड तक में कहीं भी थोड़े फेरबदल के साथ ढाली जा सकती है। एक बाहुबली है। उसके दिल यानी रोज के गार्डन में एक लड़की प्रवेश कर जाती है। वह प्रोपोज करता है। लड़की मना कर देती है। और ड्रामा चालू हो जाता है। मथुरा के गुंडा बाहुबली की जोर-जबरदस्ती के बीच में आगरे का लौंडा पिंटू शुक्ला उर्फ घनश्याम आ जाता है। फिर शुरू होती है भागदौड़, मारपीट,गोलीबारी और चाकू व तलवारबाजी। और डॉयलागबाजी भी। हिंदी फिल्मों में मनोरंजन के इन परिचित मसालों का इस्तेमाल होता रहा है। इस बार नई बात है कि उसमें अर्जुन कपूर और सोनाक्षी सिन्हा आ जाते हैं। उन्हें मनोज बाजपेयी से मुकाबला करना है। अपने तेवर के साथ प्यार का इजहार कर

दोस्ती – मर्मस्पर्शी भावनाओं की कामयाबी

Image
- अजय ब्रह्मात्‍मज  यूं तो फिल्मकारों ने दोस्ती के रिश्ते पर एक से बढ़कर एक फिल्में बनाई हैं, लेकिन इस फिल्म में अंधे और अपाहिज दोस्तों की जो मर्मस्पर्शी कहानी दिखाई गई है, वह आज भी दोस्ती के फार्मूले पर बनी दूसरी फिल्मों पर भारी पड़ती है.  रामनाथ अपनी मां के साथ रहता है. कंपनी की नौकरी करते हुए उसके पिता की मौत हो जाती है. मां और बेटे को उम्मीद है कि कंपनी से मदद मिलेगी. वे लोग गरीबी में जिंदगी बसर करते हैं. मां को दिल की बीमारी है. रामनाथ प्रतिभाशाली लड़का है. पढ़ाई और खेलकूद में आगे रहता है. कंपनी से मदद न मिलने की जानकारी होने पर मां सदमे में सीढ़ी से लुढ़क जाती है. मां को बचाने की फिक्र में भागता रामनाथ एक गाड़ी से टकरा जाता है. उसकी टांग में चोट आती है और वह पैर से अपाहिज हो जाता है. अस्पताल से निकलने पर उसे अपने किराए के घर में ताला लगा दिखता है. मां गुजर चुकी है. वह अनाथ सड़क पर भटकता है. उसकी मुलाकात मोहन से होती है. मोहन अंधा है. वह अपनी दीदी मीना की खोज में गांव से आया है. दोनों एक-दूसरे का सहारा बन जाते हैं. आम तौर पर हिंदी फिल्मों में अनाथ

दरअसल : मल्टीप्लेक्स के महाजाल का शिकंजा

Image
- अजय ब्रह्मात्मज         देश में मल्टीप्लेक्स संस्कृति के विकास से यकीनन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को फायदा हुआ है। आरंभ से ही उनके लक्षण दिखने लगे थे। खासकर निर्माताओं को लाभ हुआ था। उन्हें कलेक्शन की सही रिपोर्ट मिलने लगी और समय पर उनके पैसे भी खातों में जमा होने लगे। वितरण में एक पारदर्शिता आई। साथ ही मल्टीप्लेक्स की तकनीकी सुविधाओं एवं साफ-सफाई सुरक्षा से दर्शक भी बढ़े। धीरे-धीरे पूरे देश में मल्टीप्लेक्स के चेन विकसित हुए। अभी पीवीआर के सबसे ज्यादा मल्टीप्लेक्स थिएटर और स्क्रीन हैं। इसी प्रकार आइनॉक्स , बिग सिनेमा और फन सिनेमा ने भी अपना विस्तार किया है। इनके अलावा तकरीबन 45-50 मल्टीप्लेक्स हैं , जिनके पास 3 या 3 से ज्यादा स्क्रीन हैं। उसके एक मल्टीप्लेक्स में 7 स्क्रीन तक होते हैं।         मल्टीप्लेक्स की इस बढ़त से वितरक और प्रदर्शकों का महाजाल नए रूप में उभरा है। पारंपरिक वितरक और प्रदर्शक भी अब मल्टीप्लेक्स मालिकों और मैनेजरों पर निर्भर करने लगे हैं। इनमें से कुछ मल्टीप्लेक्स स्वंय ही वितरक बन गए हैं। वे फिल्मों के प्रदर्शन और वितरण के लाभ का शेयर भी ले रहे हैं। धीर

शमिताभ नहीं 'षमिताभ' कहिए-लिखिए जनाब!

Image
  पढ़ने और बोलने में यह भले ही अजीब सा लगे, लेकिन धनुष और अमिताभ बच्चन की आर बाल्‍की निर्देशित फिल्म का नाम 'षमिताभ' ही होगा। अभी तक हिंदी मीडिया में इसे 'शमिताभ' लिखा और बोला जा रहा था। यह भूल हिंदी में पोस्टर नहीं आने की वजह से चल रही थी। कल जब ट्रेलर आया तो पता चला कि अमिताभ में धनुष के ष को जोड़ कर अनोखा नाम बनाया गया है, इसलिए इसे 'षमिताभ' लिखना और बोलना ठीक रहेगा। उच्चारण दोष से बहुत कम लोग ही बोलने में ष और श का भेद रख पाते हैं। अमूमन बताते समय भी यही समझाया जाता है कि षटकोण का ष। स्वयं अमिताभ बच्चन ने स्पष्ट किया कि फिल्म के नाम में षटकोण के ष का इस्तेमाल होगा। उल्लेखनीय है कि हिंदी में ष से आरंभ होने वाले शब्दों की संख्या बहुत कम है। एक भाषाविद् ने षमिताभ का अर्थ पूछने पर यों बताया, 'ष हिंदी और संस्कृत में अंक छह का सूचक है, इसलिए कह सकते हैं कि छह अमित आभाओं का व्यक्ति षमिताभ होगा। फिल्म की रिलीज तक इस नाम के अर्थ का रहस्य बना रहेगा। हिंदी शब्‍दकोष भी देखें तो ष से आरंभ होने वाले शब्‍द बमुश्किल 20-25 मिलेंगे।

ऑक्‍सीजन है एक्टिंग : मनोज बाजपेयी

Image
-अमित कर्ण मनोज बाजपेयी दो दशकों से स्टार संचालित सिनेमा को लगातार चुनौती देने वाले नाम रहे हैं। ‘बैंडिट क्वीन’ और ‘सत्या’ जैसी फिल्मों और मल्टीप्लेक्स क्रांति के जरिए उन्होंने उस प्रतिमान का ध्वस्त किया कि सिर्फ गोरे-चिट्टे और सिक्स पैक से लैस चेहरे ही हिंदी फिल्मों के नायक बन सकते हैं। आज की तारीख में वे मुख्यधारा की सिनेमा के भी डिमांडिंग नाम हैं। नए साल में उनकी ‘तेवर’ आ रही है। वह आज के दौर में दो युवाओं की प्रेम कहानी के अलावा प्रेम को लेकर हिंदी पट्टी के पुस्ष प्रधान समाज की सोच और अप्रोच भी बयां करती है।     मनोज कहते हैं, ‘मैंने अक्सरहां फॉर्मूला फिल्में नहीं की हैं। ‘तेवर’ इसलिए की, क्योंकि उसका विषय बड़ा अपीलिंग है। मेनस्ट्रीम की फिल्म होने के बावजूद रियलिज्म के काफी करीब है। छोटे शहरों में आज भी बाहुबलियों का बोलबाला है। उनके प्यार करने का तौर-तरीका जुदा व अलहदा होता है। मैं एक ऐसे ही बाहुबली गजेंद्र सिंह का रोल प्ले कर रहा हूं, जो जाट है। मथुरा का रहवासी है। वह राधिका नामक लडक़ी से बेइंतहा प्यार करता है। वह बाहुबली है, मगर चरित्रहीन नहीं। वह राधिका से शादी करना चाहता है

स्वागत 2015 : हिंदी सिनेमा का नया साल

Image
स्वागत 2015 -अजय ब्रह्मात्मज     2015 आ गया है। अभी महज एक शुक्रवार गुजरा है। इक्यावन शुक्रवार बाकी हैं। और बाकी हैं सुहाने शुक्रवार के साथ जिंदा होते धडक़ते सपने। जिस देश में मनोरंजन का सबसे सस्ता और सुविधाजनक माध्यम सिनेमा हो,वहां हर शुक्रवार का महत्व बढ़ जाता है। हमें लगता है कि मनोरंजन की धुरी पर नाचती फिल्में अपने स्थान से नहीं खिसकतीं। किंतु यह धारणा प्रकृति के परिवर्तन के सामान्य नियम के खिलाफ है। हर साल फिल्में अपने फार्मूलाबद्ध घूर्णन में भी परिवेश और स्थान बदलती रहती हैं। यह तो सालों बाद पलट कर देखने पर मालूम होता है कि फिल्मों का रूप-स्वरूप कब कितना बदला?     2015 अनेक मायनों में 2014 से अलग रहेगा। इस साल उन प्रतिभाओं की बड़ी और कमर्शियल फिल्में आएंगी,जिन्होंने हाशिए से शुरूआत की। उनके इस ध्येय और प्रयास को अभी शंकालु निगाहों से देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि प्रतिरोध से पहचान बनाने के बाद ये प्रतिभाएं पॉपुलैरिटी के पक्ष में चली गई हैं। मुख्य रूप से दिबाकर बनर्जी और अनुराग कश्यप का उल्लेख लाजिमी होगा। उनकी ‘डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी’ और ‘बांबे वलवेट’ आएंगी। दोनों ने छोट