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मोहल्‍ला अस्‍सी के निर्देशक ने कथित ट्रेलर को बताया फर्जी

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सोशल मीडिया पर वायरल हुए ‘मोहल्ला अस्सी’ के अनधिकृत वीडियो फुटेज पर चल रही टिप्पणियों और छींटाकशी के बीच अपनी फिल्म की असामयिक और असंगत चर्चा से फिल्म के निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी व्यथित हैं। उन्हें लगातार हेट मेल, एसएमएस और सवाल मिल रहे हैं, जिनमें सभी की जिज्ञासा है कि असली माजरा क्या है? ज्यादातर लोग इसे अधिकृत ट्रेलर समझ कर उत्तेहजित हो रहे हैं। डॉ. द्विवेदी ने इस फिल्म की शूटिंग 2011 में पूरी कर ली थी। पोस्ट प्रोडक्शेन और डबिंग की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। वीडियो फुटेज को लेकर चल रहे शोरगुल के बीच अजय ब्रह्मात्मज ने फिल्म के निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की प्रतिक्रिया ली।   सोशल मीडिया पर चल रहे ‘मोहल्ला अस्सी’ के वीडियो फुटेज से उत्तेजना फैली हुई है। आप को इसकी जानकारी कब मिली और आप क्या कहना चाहेंगे?   सबसे पहले तो यह ‘मोहल्ला अस्सी’ का ट्रेलर नहीं है। यह उस फिल्म का अनधिकृत फुटेज है, जिसे किसी शातिर और विकृत व्यक्ति ने कहीं से प्राप्त किया है। उसने उत्तेजना और विरोध का वातावरण बनाने के लिए इसे अपलोड कर दिया है। मैं जानना चाहूंगा कि यह कहां से और क

तोहफों की ये शुरूआत -प्रीतम

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- अजय ब्रह्मात्‍मज प्रीतम लौट आए हैं। कबीर खान की ‘ बजरंगी भाईजान ’ के लिए तैयार किया उनका गीत ‘ सेल्‍फी ले ले ’ पॉपुलर हो रहा है। इस गीत से अपनी वापसी दर्ज करने के साथ ही प्रीतम ने जाहिर कर दिया है कि वे फिर से सक्रिय हो चुके हैं। उनकी वापसी ‘ बजरंगी भाईजान ’ से हो रही है। अपनी अनुपस्थिति के बारे में प्रीतम बताते हैं ,’ लगातार काम करते - करते मैं थक चुका था। पिछले साल ’ धूम ’ पूरा करने के बाद ही मैंने मन बना लिया था कि अब ब्रेक लेना है। मई 2014 तक मैंने हाथ में लिया काम समेट लिया था। सबसे पहले बच्‍चों को लेकर लंदन गया। वहां डेढ़ - दो महीने रहा। इरादा यही था कि कुछ भी कंपोज नहीं करना है। छह महीनों तक मैंने कोई काम नहीं किया। उसकी वजह यही है कि मैं बोर हो गया था। अपने काम में ही एनर्जी नहीं मिल रही था। इस बीच में कुछ म्‍यूजिकल शो जरूर किए मैंने। उसमें तो कुछ भी कंपोज नहीं करना पड़ता। पुराना गा दो और सुना दो। ‘ वापसी की वजह बने कबीर खान और अनुराग बसु ... दोनों की फिल्‍मों की शूट चल रही थी। प्रीतम को लगातार फोन जा रहे थे। आखिरकार वे लौटे। खुद कहते हैं प्रीतम ,’ मैं कब

दिमाग का एक्‍शन है ‘दृश्‍यम’ -अजय देवगन

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दिमाग का एक्‍शन है ‘ दृश्‍यम ’ में - अजय देवगन - अजय ब्रह्मात्‍मज अजय देवगन ने हालिया इमेज से अलग जाकर ‘ दृश्‍यम ’ की है। इस फिल्‍म में वे सामान्‍य नागरिक विजय सालस्‍कर हैं। विजय अपने परिवार को बचाने के लिए सारी हदें पार करता है। पिछले दिनों मुंबई के महबूब स्‍टूडियो में उनसे मुलाकात हुई। वहां वे एक बनियान कंपनी के लिए फोटो शूट कर रहे थे। - आप भी विज्ञापनों और एंडोर्समेंट में दिखने लगे हैं ? 0 मैं ज्‍यादा विज्ञापन नहीं करता। इस कंपनी के प्रोडक्‍ट पर भरोसा हुआ तो हां कह दिया। यह मेरी पर्सनैलिटी के अनुकूल है। - ‘ दृश्‍यम ’ के लिए हां करने की वजह क्‍या रही ? ‘ सिंघम ’ से आप की एक्‍शन हीरो की इमेज मजबूत हो गई है। क्‍या यह उस इमेज से निकलने की कोशिश है ? 0 हम हमेशा एक जैसी फिल्‍में नहीं कर सकते। दर्शकों के पहले क्रिटिक उंगली उठाने लगते हैं। यह फिल्‍म मुझे अच्‍छी लगी। मैं ओरिजिनल फिल्‍म को क्रेडिट देना चाहूंगा। कमल हासन भी इसकी तमिल रीमेक बना रहे हैं। मैंने उनसे बात की थी। पूछा था कि उन्‍होंने क्‍या तब्‍दीली की है ? उन्‍होंने किसी भी चेंज से मना किया। उनका कहना था क

मामूली लोग होते हैं मेरे किरदार -सुभाष कपूर

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- अजय ब्रह्मात्‍मज मैंने ‘ फंस गए रे ओबामा ’ खत्‍म करने के समय ही ‘ गुड्डू रंगीला ’ की स्क्रिप्‍ट लिखनी शुरू कर दी थी। बात ढंग से आगे नहीं बढ़ रही थी तो मैंने उसे छोड़ दिया और ‘ जॉली एलएलबी ’ पर काम शुरू कर दिया था। उस फिल्‍म को पूरी करने के दौरान ही मुझे ‘ गुड्डू रंगीला ’ का वैचारिक धरातल मिल गया। उसके बाद तो उसे पूरा करने में देर नहीं लगी। मैं स्क्रिप्‍ट जल्‍दी लिखता हूं। पत्रकारिता की मेरी अच्‍छी ट्रेनिंग रही है। समय पर स्‍टोरी हो जाती है। ‘ ग़ुड्डू रंगीला ’ के निर्माण में अमित साध के एक्‍सीडेंट की वजह से थोड़ी अड़चन आई , लेकिन फिल्‍म अब पूरी हो गई है। मुझे खुशी है कि मैं अपने काम से संतुष्‍ट हूं। जरूरी है वैचारिक धरातल मेरे लिए फिल्‍म का वैचारिक धरातल होना जरूरी है। आप मेरी फिल्‍मों में देखेंगे कि कोई न कोई विचार जरूर रहता है। मैं किसी घटना या समाचार से प्रेरित होता हूं। उसके बाद ही मेरे किरदार आते हैं। ‘ गुड्डू रंगीला ’ की शुरूआत के समय मेरे विचार स्‍पष्‍ट नहीं थे। यह तो तय था कि हरियाणा की पृष्‍ठभूमि रहेगी और उसमें खाप पंचायत की भी उल्‍लेख रहेगा। अटकने के

दरअसल : उपभोक्‍ता समाज में सितारों की समझदारी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज     खरीद और बिक्री के सिद्धांत पर चल रहे उपभोक्‍ता समाज में हर नागरिक ग्राहक बन चुका है। इस ग्राहक को लुभाने की कोशिशें अनवरत चल रही हैं। कभी प्रत्‍यक्ष तो कभी प्रच्‍छन्‍न तौर पर प्रचार का सहारा लिया जाता है। बाजार और उसके पंडितों ने हर मानक और मानदंड का उल्‍लंघन किया है। नैतिकता ताक पर रख दी गई है। फिल्‍मों के सितारे भी इसी समाज के अंग हैं। वे इसी उपभोक्‍ता समाज में जी रहे हैं। उससे प्रभावित हो रहे हैं। हाल ही में इंस्‍टैंट नूडल्‍स की एक कंपनी के विवाद में आने के बाद इसके ब्रांड एंबैसडर बने सितारों को चपेट में लिया गया है। उन पर मुकदमे किए जा रहे हैं। मजेदार तथ्‍य है कि उक्‍त उत्‍पाद के निर्माता को छोड़ दिया जा रहा है। समाज के कथित शुभचिंतकों का गुस्‍सा उन फिल्‍म सितारों पर है,जो जाहिर तौर पर करोड़ों की रकम लेकर इन उत्‍पादों का प्रचार करते हैं। यही गुस्‍सा उन्‍पादकों पर क्‍यों नहीं है ?     उम्‍मीद है कि हमेशा की तरह इस विवाद से समाज और बाजार में स्‍पष्‍टता आएगी। सवाल उठता है कि किसी भी उत्‍पाद के बाजार में आने के पहले उसकी क्‍वालिटी की जांच के लिए सरकारी