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फिल्‍म समीक्षा : मदारी

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किस की जवाबदेही -अजय ब्रह्मात्‍मज देश में आए दिन हादसे होते रहते हैं। उन हादसों के शिकार देश के आम नागरिकों का ऐसा अनुकूलन कर दिया गया है कि वे इसे नसीब,किस्‍मत और भग्‍य समझ कर चुप बैठ जाते हैं। जिंदगी जीने का दबाव इतना भारी है कि हम हादसों की तह तक नहीं जाते। किसे फुर्सत है ? कौन सवाल करें और जवाब मांगे। आखिर किस की जवाबदेही है ? निशिकांत कामत की ‘ मदारी ’ कुछ ऐसे ही साधारण और सहज सवालों को पूछने की जिद्द करती है। फिल्‍म का नायक एक आम नागरिक है। वह जानना चाहता है कि आखिर क्‍यों उसका बेटा उस दिन हादसे का शिकार हुआ और उसकी जवाबदेही किस पर है ? दिन-रात अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन रहे हादसे भुला दिए जाते हैं। ‘ मदारी ’ में ऐसे ही कुछ सवालों से सिस्‍टम को कुरेदा गया है। जो सच सामने आया है,वह बहुत ही भयावह है। और उसके लिए कहीं ना कहीं हम सभी जिम्‍मेदार हैं। हम जो वोटर हैं। ‘ चुपचाप दबा रहके अपनी दुनिया में खोए रहनेनेवाला ’ ... हम जो नेताओं और पार्टियों को चुनते हैं और उन्‍हें सरकार बनाने के अवसर देते हैं। ‘ मदारी ’ में यही वोटर अपनी दुनिया से निकल कर सि

कल्‍पना से गढ़ी है कायनात - राकेश ओमप्रकाश मेहरा

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- अजय ब्रह्मात्मज राकेश ओमप्रकाश मेहरा की अगली फिल्म ‘मिर्जिया’ है। इसमें उन्होंने दो नए चेहरों को लौंच किया है। हर्षवर्द्धन कपूर और सायमी खेर के रूप में। फिल्म की कहानी व गीत गुलजार ने लिखे हैं। राकेश ओमप्रकाश मेहरा इससे पहले भी नए लोगों के संग काम करते रहे हैं। ‘रंग दे बसंती’ में मौका मिला था। शरमन थे, सिद्धार्थ थे, कुणाल था। सोहा थीं, एलिस थीं। जब ‘दिल्ली-6’ बनाई तो उस वक्त सोनम कपूर भी नई थीं। उनकी ‘सांवरिया’ रिलीज भी नहीं हुई थी, जब हमने काम शुरू कर दिया था। वे भी नवोदित थीं। ‘मिर्जिया’ इस मायने में अलग है कि यहां दोनों चेहरे नए हैं। हर्षवर्द्धन की खासियत उनकी खामोशी में हैं। अच्छी बात यह रही कि हम दोनों को एक-दूसरे को जानने के लिए 18 महीने का वक्त मिला। वह भी सेट पर जाने से पहले। हमने ढेर सारी वर्कशॉप और ट्रेनिंग की। उन्होंने घुड़सवारी भी सीखी। तीरंदाजी भी सीखी उन्होंने, क्योंकि मिर्जा के अवतार में वे दो-दो किरदार प्‍ले कर रहे हैं। लोककथाओं में मिर्जा का किरदार काल्‍पनिक दुनिया में है। मैंने एक प्लग वहां लगा दिया। दूसरी दुनिया आज के दौर की है। वह राजस्‍थान में है।

दरअसल : निजी जिंदगी,फिल्‍म और प्रचार

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-अजय ब्रह्मात्‍मज सार्वजनिक मंचों पर फिल्‍म स्‍टारों के ऊपर अनेक दबाव रहते होंगे। उन्‍हें पहले से अंदाजा नहीं रहता कि क्‍या सवाल पूछ लिए जाएंगे और झट से दिए जवाब की क्‍या-क्‍या व्‍याख्‍याएं होंगी ? क्‍या सचमुच घर से निकलते समय वे सभी अपने जीवन की नई-पुरानी घटनाओं का आकलन कर उन्‍हें रिफ्रेश कर लेते होंगे ? क्‍या उनके पास संभावित सवालों के जवाब तैयार रहते होंगे ? यह मुश्किल राजनीतिज्ञों और खिलाडि़यों के साथ भी आती होगी। फिर भी फिल्‍म स्‍टारों की निजी जिंदगी पाइकों और दर्शकों के लिए अधिक रोचक होती है। हम पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों पर खबरों के नाम पर उनकी निजी जिंदगी में झांक रहे होती हैं। उनकी प्रायवेसी का हनन कर रहे होते हैं। इस दौर में पत्रकारों के ऊपर भी दबाव है। उनसे अपेक्षा रहती है कि वे कोई ऐसी अंदरूनी और ब्रेकिंग खबर ले आएं,जिनसे टभ्‍आपी और हिट बढ़े। डिजिटल युग में खबरों का प्रभाव मिनटों में होता है। उसे आंका भी जा सकता है। टीवी पर टीआरपी और ऑन लाइन साइट पर हिट से पता चलता है कि उपभोक्‍ता(दर्शक व पाठक) की रुचि किधर है ? जाहिर सी बात है कि अगले अपडेट,पोस्‍ट और न्‍

फिल्‍म समीक्षा : ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती

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फिल्‍म रिव्‍यू न डर,न हंसी और न मस्‍ती ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती -अजय ब्रह्मात्‍मज इंद्र कुमार की ‘ मस्‍ती ’ 2004 में आई थी। सेक्‍स कामेडी के तौर पर आई इस फिल्‍म की अधिक सराहना नहीं हुई थी। अब 2016 में ‘ मस्‍ती ’ के क्रम में तीसरी फिल्‍म ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ देखने के बाद ऐसा लग सकता है कि ‘ मस्‍ती ’ तो फिर भी ठीक फिल्‍म थी। अच्‍छा है कि यह ग्रेट है। अब इसके आगे ‘ मस्‍ती ’ की संभावना खत्‍म हो जानी चाहिए। ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ में सेक्‍स,कॉमेडी और हॉरर को मिलाने की नाकाम कोशिश है। यह फिल्‍म नाम के अनुसार न तो मस्‍ती देती है और न ही हंसाती या डराती है। फिल्‍म में वियाग्रा,सेक्‍स प्रसंग,स्‍त्री-पुरुष संबंध, कामातुर लालसाओं के रूपक हैं,लेकिन इन सबके बावजूद फिल्‍म वितृष्‍णा से भर देती है। कहते हैं मृत्‍यु के बाद मुक्ति नहीं मिलती तो आत्‍माएं भटकती हैं। भूत बन जाती हैं। अपनी अतृप्‍त इच्‍छाएं पूरी करती हैं। ‘ ग्रेट ग्रैंड मस्‍ती ’ में भी एक भूत है। इस भूत के रुप में हम रागिनी को देखते हैं। 20 साल की उम्र में उसका देहांत हो गया था,लेकिन देह की इच्‍छाएं अधूरी रह गई थीं

दरअसल : 2016 की पहली छमाही

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-अजय ब्रह्मात्‍मज 2016 की पहली छमाही के कलेक्‍शन में पिछले साल 2015 की तुलना में 2 करोड़ का इजाफा हुआ है। इस साल पहली छमाही में 1 फिल्‍म ज्‍यादा रिलीज भी हुई है। 2016 में जनवरी से जून के बीच कुल 111 फिल्‍में रिलीज हुई हैं। गौर करें तो 2014 के बाद से पहली छमाही में 100 से ज्‍यादा फिल्‍में रिलीज हो रही हैं। पिछले साल रिलीज फिल्‍मों की संख्‍या 110 और उसके पहले 2014 में केवल 102 रही थी। अगर और पीछे जाएं तो 2009 में पहली छमाही में केवल 33 फिल्‍में ही रिलीज हुई थीं। फिल्‍मों के बाजार और बिजनेस के लिहाज से उत्‍तरोत्‍तर प्रगति हो रही है। बाजार और बिजनेस की बात करें तो पहली छमाही का कुल कलेक्‍शन 1025 करोड़ रहा है। यह राशि बहुत अधिक नहीं है,लेकिन निराशाजनक स्थिति भी नहीं है। पहली छमाही में ‘ एयरलिफ्ट ’ और ‘ हाउसफुल 3 ’ ने 100 करोड़ से अधिक का करोबार किया। संयोग से दोनों ही फिल्‍में अक्षय कुमार की हैं। अक्षय कुमार बाक्‍स आफिस के भरोसेमंद स्‍टार हैं। उनकी फिल्‍में ज्‍यादा हल्‍ला-गुल्‍ला नहीं करतीं। निर्माताओं को लाभ होता है। दूसरी छमाही में भी उनकी फिल्‍में आ रही हैं। अक्षय कुमार की दो

सलमान का शिष्‍य था मैं - अनंत विढाट

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-अजय ब्रह्मात्‍मज अली अब्‍बास जफर की फिल्‍म ‘ सुल्‍तान ’ में गोविंद के किरदार में अनंत विढाट को सभी ने नोटिस किया। ऐसा कम होता है कि किसी पॉपुलर स्‍टार की फिल्‍म में कोई कलाकार सहयोगी किरदार में होने पर भी याद रह जाए। अनंत विढाट का आत्‍मविश्‍वास उनके एंट्री सीन से ही दिखता है। दिल्‍ली के अनंत विढाट किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़े हैं। कॉलेज की ही ‘ प्‍लेयर्स ’ सोसायटी में सक्रियता रही। वहीं केवल अरोड़ा के सान्निध्‍य में थिएटर की आरंभिक ट्रेनिंग मिली। उसके पहले एनएसडी से संबंधित ‘ थिएटर इन एडुकेशन ’ में भागीदारी की। 13-14 साल की उम्र से अमित का रुझान थिएटर में बढ़ा। कह सकते हैं कि छोटी उम्र से ही मंच पर कुछ करने का शौक रहा। मां-पिता ने हमेशा सपोर्ट किया। पिता ने ही एनएसडी के वर्कशाप की जानकारी दी थी और भेजा था। थिएटर का लगाव ही अनंत को पोलैंड के ग्रोटोवस्‍की इंस्‍टीट्यूट ले गया। वहां उन्‍होंने थिएटर की एक्टिंग सीखी। लौट कर आए तो कुछ समय तक रंगमंच पर सक्रिय रहने के बाद 2012 में उन्‍हें अली अब्‍बास जफर की ही ‘ गुंडे ’ मिली। ‘ गुडे ’ के बाद उन्‍हें यशराज फिल्‍म्‍स की ‘ मर्दानी

भावनाओं का शिखर है शिवाय : अजय देवगन

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     -अजय ब्रह्मात्मज दो साल की कड़ी तपस्‍या के बाद अजय देवगन अब आखिरकार अपनी अति महत्वाकांक्षी फिल्म ‘शिवाय’ पूरी कर चुके हैं। वह इस साल दीवाली पर रिलीज होगी। दर्शकों को कुछ अलग देने की गरज से उन्होंने इस में आर्थिक, शारीरिक व मानसिक तीनों निवेश किया है। - फिल्म देखने पर हम समझें कि शिवाय क्या है। किस चीज ने आप को फिल्म की तरफ आकर्षित किया। ० - जी बिल्कुल। देखिए यह एक भावना है। मेरी ज्यादा फिल्में जो वर्क करती हैं , मैं काम करता हूं। उसमें भावनाएं सबसे मजबूत होती हैं। या तो पारिवारिक भावनाएं हो या जो भी इमोशन हो। इस फ़िल्म का आधार भावनाएं ओर परफॉरमेंस   हैं। बाकी सब आप भूल जाइए।तकनीक और एक्शन को एकतरफा कर दीजिए। यह सब आकर्षण हैं , इससे हम एक स्केल पर जा सकते हैं। लेकिन कहानी में आपको कोर भावनाएं अाकर्षित करती हैं , जो कि यूनिवर्सल होता है।   वह एक सोच है। हमने बिल्कुल उलझाने की कोशिश नहीं की है। हम नहीं बता रहे हैं कि नए तरह की फिल्म है। भावनाएं तो वहीं हैं जो आपकी और मेरी होती है। आपके परिवार की तरफ जो भावनाएं हैं , वही मेरे परिवार की तरफ मेरी भावनाएं हैं। वो तो ब

दस फीसदी भी नहीं दिया : मनोज बाजपेयी

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-अमित कर्ण मनोज बाजपेयी के लिए साल 2016 इकट्ठी खुशियां व फख्र की अनुभूतियां लेकर आया है। साल के शुरूआती महीनों में ‘अलीगढ़’, पिछले दिनों ‘ट्रैफिक’ और अब ‘बुधिया : बॉर्न टु रन’ उनकी दमदार अदायगी व मौजूदगी से निखरी। वे अलग ऊंचाई हासिल कर गईं। हैरत यह है कि 22 साल से अदाकारी करने के बावजूद उनमें बेहतर परफॉरमेंस की भूख नहीं मिटी है। उन्होंने खुद को यंत्रवत सा बनने नहीं दिया है। - अदाकारी में महारथ होने के बावजूद उसके प्रति आज भी अपनी भूख कैसे बनाए रखते हैं। 0 उस भूख को जगाने की जरूरत नहीं पड़ती। ‘देवदास’ में दिलीप साहब ने कहा था न ‘यह कभी न बुझने वाली प्यास’ है। यह इतनी जल्दी जाने वाला नहीं है। अभी मेरे भीतर जितना है, उसका तो दस फीसदी भी बाहर नहीं आया है। मुझे अपना हर पिछला काम कचोटता रहता है। उसमें कमी महसूस होती रहती है। वह चीज मुझे खाली करता रहता है। हमेशा लगता है कि मैं बहुत कुछ दे सकता हूं, मगर वैसे रोल नहीं आ रहे। इसलिए जैसे ही एक असरदार किरदार मिलता है तो खुद को उस की तैयारियों पर न्यौछावर कर देता हूं।   -इसे हम महज इ्त्तेफाक ही कहें कि इन दिनों ज्यादतर वैसी फिल्

हम पर भी है समाज की जिम्मेदारी : दीया मिर्जा

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-स्मिता श्रीवास्‍तव दीया मिर्जा बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं। अभिनय , फिल्म निर्माण के अलावा वे खुद को सामाजिक सरोकार के मुद्दों से भी नियमित तौर पर जोड़े रखती हैं। वे कन्या भ्रूण हत्या , एचआईवी के खिलाफ अलख जगाती रही हैं। वे पर्यावरण संरक्षण की मुहिम का भी हिस्सा रही हैं। हाल ही में उन्हें स्वच्छ साथी अभियान का ब्रांड अंबेसडर भी बनाया गया है।         सामाजिक कार्यों की प्रेरणा के संबंध में दीया कहती हैं ,‘ यह कई चीजों का नतीजा है। आप की परवरिश काफी अहम होती है। मेरी परवरिश जिम्मेदार नागरिक बनने और सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध रहने के तौर पर हुई। इसकी शुरुआत स्कूल से हुई। जे कृष्णमृर्ति की फिलासिफी से अपनी शिक्षा अर्जित की। हमें सिखाया गया प्यार से रहो , प्यार बांटो और प्यार फैलाओ। परिपक्व होने पर आप सोसाइटी की समस्याओं को बारीकी से समझ पाते हैं। आप मूकदर्शक बने नहीं रह सकते। खास तौर पर जब आप सेलिब्रिटी हों। सोशल वर्क जिंदगी के दायरे को बड़ा कर देता है। हम संसार से जुड़ जाते हैं। ’ इसलिए जुड़ी स्वच्छता अभियान से मैं खुशकिस्मत हूं कि इतने अभियान से जुड़ी हुई हूं। मेरा

दरअसल : मैड्रिड में हिंदी सिनेमा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले 17 सालों से आइफा वीकएंड के तहत आइफा अवार्ड और अन्‍य इवेंट के आयोजन विदेशों में हो रहे हैं। आइफा सामान्‍य तौर पर भारतीय सिनेमा और विशेष तौर पर हिंदी सिनेमा के   प्रसार में अहम भूमिका निभाता रहा है। अभी तो हिंदी सिनेमा के प्रचारक और प्रसारक के नाम पर कई दावेदार निकल आएंगे,लेकिन इस सच्‍चाई सं इंकार नहीं किया जा सकता कि आइफा ने ही यह पहल की। उन्‍होंने भारतवंशियों और विदेशियों के बीच भारतीय फिल्‍मों और फिल्‍म स्‍टारों ‍को पहुंचाया और उनकी लोकप्रियता को सेलीब्रेट किया। आइफा इस मायने में हिंदी फिल्‍मों के अन्‍य पुरस्‍कारों से अलग और विशेष है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री और दुनिया भर के प्रशंसकों को आइफा का इंतजार रहता है। इंटरनेशनल मीडिया को हिंदी फिल्‍मों के स्‍टारों से मिलने का मौका मिलता है। प्रशंसकों को खुशी मिलती है कि उन्‍होंने अपने देश में उन स्‍टारों को देख लिया,जिन्‍हें वे जिंदगी भर केवल स्‍क्रीन पर देखते रहे। 17 वें आइफा अवार्ड समारोह का आयोजन स्‍पेन की राजधानी मैड्रिड में किया गया। 23 से 27 जुलाई तक मैड्रिड की गलियां और ऐतिहासिक स्‍थल हिंदी फिलमों के