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पहली बार अकेला हूं - अनुभव सिन्‍हा

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-अजय ब्रह्मात्‍मज पंद्रह सालों के बाद अनुभव सिन्‍हा फिर से ‘ तुम बिन ’ लेकर आ रहे हैं। इसे वे फ्रेंचाइज कहते हैं। पिदली फिल्‍म के चार ततवों को लकर उन्‍होंने – तुम बिन 2 ’ तैयार की है। उन्‍होंने यहां इस फिल्‍म के बारे में बातें कीं... - ‘ तुम बिन ’ और ‘ तुम बिन 2 ’ के बीच के पंद्रह सालों में देश,समाज ओर फिल्‍मों में बहुत कुछ बदल चुका है। आप क्‍या फर्क महसूस कर रहे हैं ? 0 मैं इस तरह से देख और सोच नहीं पाता। मुझे नहीं लगता कि किसी भी निर्देशक में इतनी सलाहियत होती है कि वह दर्शकों को भांप सकें। इतना डिटेल अध्‍ययन तो मार्केटिंग के लोग कंज्‍यूमर प्रोडक्‍ट के लिए करते हैं। आप आज कौन हैं और आप की कहानी क्‍या है... ये दोनों मिल कर फिल्‍म तय करते हैं। सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्‍य पर नजर रहती है। सामाजिक और पारिवारिक संबंध किस रूप में बदले हैं ? मैंने ज्‍यादा गौर नहीं किया है। मुझे एक कहानी जंची,लिखना शुरू किया और एक स्क्रिप्‍ट तैयार हो गई। मैाने नहीं सोचा कि आज का यूथ क्‍या सोच रहा है ? -यूथ ही तो ‘ तुम बिन 2 ’ जैसी फिल्‍मों का दर्शक होगा ? 0 यूथ क्‍या पसंद

फिल्‍म समीक्षा - महायोद्धा राम

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रावण के नजरिए से महायोद्धा राम -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी में एनीमेशन फिल्‍में कम बनती हैं। एलीमेशन को मुख्‍य रूप से कार्टून और विज्ञापनों तक सीमित कर दिया गया है। कुछ सालों पहले एक साथ कुछ फिल्‍में आई थीं। उन्‍हें भी बच्‍चों को ध्‍यान में रख कर बनाया गया था। यही बात ‘ महायोद्धा राम ’ के बारे में भी कही जा सकती है। रोहित वैद के निर्देशन में बनी इस एनीमेशन फिल्‍म में राम की कहानी है। रामलीला देख चुके और रामचरित मानस पढ़ चुके दर्शकों को यह एनीमेशन फिल्‍म देखते हुए उलझन हो सकती है। एक तो लेखक ने ‘ महायोद्धा राम ’ की कहानी रावण के नजरिए से लिखी है। फिल्‍म देखते हुए प्रसंग और घटनाओं के चित्रण में रावण की साजिश दिखाई गई है। राम के बाल काल से लेकर अंतिम युद्ध तक रावण की क्रिया और राम की प्रतिक्रिया है। रावण को पहले ही दृश्‍य में राक्षस बता दिया जाता है और राम को अवतार बताया गया है। राक्षस किसी भी तरह अवतार के इहलीला समाप्‍त करना चाहता है। रामकथा के क्रम और कार्य व्‍यापार में भी तब्‍दीली की गई है। किरदारों के एनीमेशन स्‍वरूप गढ़ने में कल्‍पना का अधिक सहारा नहीं लिया गया है।

दरअसल : रोमांटिक फिल्‍मों की कमी

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दरअसल... रोमांटिक फिल्‍मों की कमी -अजय ब्रह्मात्‍मज कभी हिंदी फिल्‍मों का प्रमुख विषय प्रेम हुआ करता था। प्रेम और रोमांस की कहानियां दर्शकों को भी अच्‍छी लगती थीं। दशकों तक दर्शकों ने इन प्रेम कहानियों को सराहा और आनंदित हुए। आजादी के पहले और बाद की फिल्‍मों में प्रेम के विभिन्‍न रूपों को दर्शाया गया। इन प्रेम कहानियों में सामाजिकता भी रहती थी। गौर करें तो आजादी के बाद उभरे तीन प्रमुख स्‍टारों दिलीप कुमार,देव आनंद और राज कपूर ने अपनी ज्‍यादार फिल्‍मों में प्रेमियों की भूमिकाएं निभाईं। हां,वे समाज के भिन्‍न तबकों का प्रतिनिधित्‍व करते रहे। इस दौर की अधिकांश फिल्‍मों में प्रेमी-प्रेमिका या नायक-नायिका के मिलन में अनेक कठिनाइयां और बाधाएं रहती थीं। प्रेमी-प्रेमिका का परिवार,समाज और कभी कोई खलनायक उनकी मुश्किलें बढ़ा देता था। दर्शक चाहते थे कि उनके प्रेम की सारी अड़चनें दूर हों और वे फिल्‍म की आखिरी रील तक आते-आते मिल रूर लें। इन तीनों की अदा और रोमांस को अपनाने की कोशिश बाद में आए स्‍टारों ने की। कुछ तो जिंदगी भर किसी न किसी की नकल कर ही चलते रहे। धर्मेन्‍द्र जैसे एक्‍टर न

किरदारों के साथ जीना चाहता हूं -जॉन अब्राहम

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-अजय ब्रह्मात्‍मज जॉन अब्राहम की ‘ फोर्स 2 ’ एसीपी यशवर्द्धन की कहानी है। यह फिल्‍म पिछली ’ फोर्स ’ से आगे बढ़ती है। एसीपी यशवर्द्धन की मुश्किलें बढ़ चुकी है। समय के साथ वे नई चुनौतियों के समक्ष हैं। इस फिल्‍म में एक्‍शन भी ज्‍यादा है। ’ फोर्स 2 ’ के बारे में जॉन अब्राहम की बातें... फिल्‍म में देशभक्ति की झलक डेढ़ साल पहले जब हम ने ‘ फोर्स 2 ’ के बारे में सोचा तो मैा कैप्‍टन कालिया की स्‍टोरी से काफी प्रेरित हुआ था। वे भारतीय जासूस थे। मैंने यही कहा कि ऐसी और भी कहानियां होंगी। तब यही विचार बना था कि ऐसी कहानियों से ‘ फोर्स 2 ’ का विस्‍तार करें। इस बार वह देश को बचाने की कोशिश में लगा है। हमारी फिल्‍म सच्‍ची घटनाओं से प्रेरित है। पिछली फिल्‍म से ज्‍यादा बड़ी और विश्‍वसनीय फिल्‍म है। अभी हाल में उरी अटैक में हमारे जवान शहीद हुए। अचानक ‘ फोर्स2 ’ प्रासंगिक फिल्‍म बन गई है। कोई कल्‍पना ही नहीं कर सकता था कि ऐसा कुछ होगा। हम ने देशभक्ति की भावना के साथ यह फिल्‍म बनाई है। हम इधर-उधर की  बातें नहीं कर रहे हैं। देश की रक्षा में सेना और सरकार की भूमिका भी दिखेगी।

अजय देवगन से विस्‍तृत बातचीत - 1

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अजय देवगन से यह विस्‍तृत बातचीत 'शिवाय' की रिलीज के पहले हो गई थी। इसके कुछ अंश प्रकाशित हुए। इतनी लंबी बातचीत एक साथ पोस्‍ट कर पाना सहज नहीं है। देर करने से अच्‍छा है कि इसे धारावाहिक के तौर पर प्रकाशित कर दें...आज प्रस्‍तुत है पहला अंश। -अजय ब्रह्मात्‍मज -सबसे पहले शिवाय के बारे में आप जो पहले बताना चाह रहे हो? ०- शिवाय के कांसेप्ट के बारे में आपको फिल्म के वक्त पता चलेगा।   मैं इस फिल्म के बारे में कहना चाहूंगा कि इस स्केल की फिल्म पहले हिंदुस्तान में नहीं बनी है। ऐसा एक्शन कभी देखने को नहीं मिला है। हमारा आइडिया सिर्फ ऐसा एक्शन करना नहीं है। आइडिया यह है कि एक्‍शन के साथ पारिवारिक ड्रामा और इमोशनल ड्रामा हो। इसके लिए आपको अपने कंफर्ट जोन से निकलना पड़ता है। क्योंकि आप इतनी फिल्में कर चुके होते हैं। और इतनी फिल्में बन चुकी होती हैं। एक बात होती है कि कोई कोशिश   नहीं करना चाहता है। यह अलग बात है कि मेहनत तो सभी करते हैं। इसमें शुन्‍य से 20 डिग्री नीचे के तापमान पर हमें शूट करना था।ऐसी लोकेशन पर शूटिंग करना, जहां पर आप आसानी से पहुंच नहीं सकते हो। ऐसी जगहों

फिल्‍म समीक्षा : ऐ दिल है मुश्किल

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उलझनें प्‍यार व दोस्‍ती की ऐ दिल है मुश्किल -अजय ब्रह्मात्‍मज बेवजह विवादास्‍पद बनी करण जौहर की फिल्‍म ‘ ऐ दिल है मुश्किल ’ चर्चा में आ चुकी है। जाहिर सी बात है कि एक तो करण जौहर का नाम,दूसरे रणबीर कपूर और ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन की कथित हॉट केमिस्‍ट्री और तीसरे दीवाली का त्‍योहार...फिल्‍म करण जौहर के प्रशंसकों को अच्‍छी लग सकती है। पिछले कुछ सालों से करण जौहर अपनी मीडियाक्रिटी का मजाक उड़ा रहे हैं। उन्‍होंने अनेक इंटरव्‍यू में स्‍वीकार किया है कि उनकी फिल्‍में साधारण होती हैं। इस एहसास और स्‍वीकार के बावजूद करण जौहर नई फिल्‍म में अपनी सीमाओं से बाहर नहीं निकलते। प्‍यार और दोस्‍ती की उलझनों में उनके किरदार फिर से फंसे रहते हैं। हां,एक फर्क जरूर आया है कि अब वे मिलते ही आलिंगन और चुंबन के बाद हमबिस्‍तर हो जाते हैं। पहले करण जौहर की ही फिल्‍मों में एक लिहाज रहता था। तर्क दिया जा सकता है कि समाज बदल चुका है। अब शारीरिक संबंध वर्जित नहीं रह गया है और न कोई पूछता या बुरा मानता है कि आप कब किस के साथ सो रहे हैं ? ‘ ऐ दिल है मुश्किल ’ देखते हुए पहला खयाल यही आता है कि इस फिल

फिल्‍म समीक्षा : शिवाय

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एक्‍शन और इमोशन से भरपूर शिवाय -अजय ब्रह्मात्‍मज अजय देवगन की ‘ शिवाय ’ में अनेक खूबियां हैं। हिंदी में ऐसी एक्‍शन फिल्‍म नहीं देखी गई है। खास कर बर्फीली वादियों और बर्फ से ढके पहाड़ों का एक्‍शन रोमांचित करता है। हिंदी फिल्‍मों में दक्षिण की फिल्‍मों की नकल में गुरूत्‍वाकर्षण के विपरीत चल रहे एक्‍शन के प्रचलन से अलग जाकर अजय देवगन ने इंटरनेशनल स्‍तर का एक्‍शन रचा है। वे स्‍वयं ही ‘ शिवाय ’ के नायक और निर्देशक हैं। एक्‍शन दृश्‍यों में उनकी तल्‍लीनता दिखती है। पहाड़ पर चढ़ने और फिर हिमस्‍खलन से बचने के दृश्‍यों का संयोजन रोमांचक है। एक्‍शन फिल्‍मों में अगर पलकें न झपकें और उत्‍सुकता बनी रहे तो कह सकते हैं कि एक्‍शन वर्क कर रहा है। ‘ शिवाय ’ का बड़ा हिस्‍सा एक्‍शन से भरा है,जो इमोशन को साथ लेकर चलता है। फिल्‍म शुरू होती है और कुछ दृश्‍यों के बाद हम नौ साल पहले के समय में चले जाते हैं। शिवाय पर्वतारोहियों का गाइड और संचालक है। वह अपने काम में निपुण और दक्ष है। उसकी मुलाकात बुल्‍गारिया की लड़की वोल्‍गा से होती है। दोनों के बीच हंसी-मजाक होता है और वे एक-दूसरे को भाने लग

दरअसल : खतरनाक है यह उदासी

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-अजय ब्रह्मात्‍मज मालूम नहीं करण जौहर की ‘ ऐ दिल है मुश्किल ’ देश भर में किस प्रकार से रिलीज होगी ? इन पंक्तियों के लिखे जाने तक असंमंजस बना हुआ है। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री देवेन्‍द्र फड़नवीस ने करण जौहर और उनके समर्थकों को आश्‍वासन दिया है कि किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं होने दी जाएगी। पिछले हफ्ते ही करण जौहर ने एक वीडियो जारी किया और बताया कि वे आहत हैं। वे आहत हैं कि उन्‍हें देशद्रोही और राष्‍ट्रविरोधी कहा जा रहा है। उन्‍होंने आश्‍वस्‍त किया कि वे पड़ोसी देश(पाकिस्‍तान) के कलाकारों के साथ काम नहीं करेंगे,लेकिन इसी वीडियो में उन्‍होंने कहा कि फिल्‍म की शूटिंग के दरम्‍यान दोनों देशों के संबंध अच्‍छे थे और दोस्‍ती की बात की जा रही थी। यह तर्क करण जौहर के समर्थक भी दे रहे हैं। सच भी है कि देश के बंटवारे और आजादी के बाद से भारत-पाकस्तिान के संबंध नरम-गरम चलते रहे हैं। राजनीतिक और राजनयिक कारणों से संबंधों में उतार-चढ़ाव आता रहा है। परिणामस्‍वरूप फिल्‍मों का आदान-प्रदान प्रभावित होता रहा है। कभी दोनों देशों के दरवाजे बंद हो जाते

मुझे हारने का शौक नहीं : आलिया भट्ट

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विस्‍तृत बातचीत की कड़ी में इस बार हैं आलिया भट्ट। आलिया ने यहां खुलकर बातें की हैं। आलिया के बारे में गलत धारणा है कि वह मूर्ख और भोली है। आलिया अपनी उम्र से अधिक समझदार और तेज-तर्रार है। छोटी उम्र में बड़ी सफलता और उससे मिले एक्‍सपोजर ने उसे सावधान कर दिया है। 23 की उम्र आमतौर पर खेल-कूद की मानी जाती है। मगर उस आयु की आलिया भट्ट अपने काम से वह मिथक ध्‍वस्‍त कर रही हैं। वह भी लगातार। नवीनतम उदाहरण ‘उड़ता पंजाब’ का है। ‘शानदार’ की असफलता को उन्होंने मीलों पीछे छोड़ दिया है। उनके द्वारा फिल्म में निभाई गई बिहारिन मजदूर की भूमिका को लेकर उनकी चौतरफा सराहना हो रही है। देखा जाए तो उन्होंने आरंभ से ही फिल्‍मों के चुनाव में विविधता रखी है। वे ऐसा सोची-समझी रणनीति के तहत कर रही हैं।      आलिया कहती हैं, ‘ मैं खेलने-कूदने की उम्र बहुत पीछे छोड़ चुकी हूं। मैं इरादतन कमर्शियल व ऑफबीट फिल्मों के बीच संतुलन साध रही हूं। इस वक्त मेरा पूरा ध्‍यान अपनी झोली उपलब्धियों से भरने पर है। हालांकि मैं किसी फिल्म को इतना गंभीर तरीके से नहीं लेती हूं कि मरने और जीने का मामला हो जाएं। कई बार एक्ट