Posts

सात सवाल : दिलजीत दोसांझ

Image
सात सवाल -अजय ब्रह्मात्‍मज दिलजीत दोसांझ की ‘ सुपर सिंह ’ पंजाबी में आ रही है। पंजाबी की यह पहली सुपरहीरो फिल्‍म है। पंजाबी और हिंदी फिल्‍मों के परिचित और लोकप्रिय अभिनेता दिलजीत दोसांझ इसमें शीर्षक भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्‍म बड़े पैमाने पर पंजाब से बाहर यहां तक कि पाकिस्‍तान में भी रिलीज की जा रही है।‍ - ‘ सुपर सिंह ’ का खयाल कैसे आया ? 0 सुपरहीरो फिल्‍म पंजाब में बनाना चाहते थे। पिछले डेढ़-दो साल से निर्माता खोज रहे थे। बाकी पंजाबी फिल्‍मों से इसका बजट ज्‍यादा था। फायनली एकता कपूर की कंपनी बालाजी का सपोर्ट मिल गया। -क्‍या कांसेप्‍ट है ? यह कैसे अलग होगा या दिखेगा ? 0 पजाब की जड़ों से जुड़ी कहानी है। रामांटिक कॉमेडी के साथ सुपरहीरो का पावर भी है। हमें सीमित बजट में ही काम करना था। बहुत ज्‍यादा वीएफएक्‍स नहीं है,जो भी है वह स्‍तरीय है। -आप ने मास्‍क कम लगाया है और चड्ढी भी ऊपर से नहीं पहनी है ? 0मैंने शुरु में ही स्‍पष्‍ट कर दिया था कि चड्ढी ऊपर से नहीं पहननी है। बाकी ड्रेस आप तय कर लो। मुझे बहुत बुरी लगती है। मैंने सिर पर पगड़ी बांधी हुई है तो मैं ऐस

दरअसल : पाकिस्‍तान जाएगा सुपर सिंह

Image
दरअसल... पाकिस्‍तान जाएगा सुपर सिंह -अजय ब्रह्मात्‍मज आज पाकिस्‍तान के आठ शहरों के 36 सिनमाघरों में अनुराग सिंह निर्देशित ’ सुपर सिंह ’ रिलीज होगी। दिलजीत दोसांझ और सोनम बाजवा अभिनीत ‘ सुपर सिंह ’ एक पंजाबी सुपरहीरो की कहानी है। पंजाबी में सुपरहीरो क्रिएट करने की पहली कोशिश की गई है। पंजाबी में बनी यह फिल्‍म भारत के साथ पाकिस्‍नान में भी आज रिलीज हो रही है। एक अंतराल के बाद कोई भारतीय फिल्‍म पाकिस्‍तानी सिनेमाघरों में एक ही दिन रिलीज हो रही है। यह एक खुशखबर है,जो दोनों देशों के नागरिकों को करीब ले आएगी। याद करें तो पिछले साल ‘ ऐ दिल है मुश्किल ’ की रिलीज के समय भयंकर पाकिस्‍तान विरोधी माहौल था। मुंबई में एक राजनीतिक पार्टी ने खुली घोषणा कर दी थी कि अगर पाकिस्‍तानी कलाकार फवाद खान को भारत बुलाया गया तो हंगामा होगा। तब महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री ने निर्देशक करण जौहर और उक्‍त पार्टी के नेता के बीच मध्‍यस्‍थता की थी। उसके बाद दो हिंदी फिल्‍में आईं,जिनमें पाकिस्‍तानी कलाकार माहिरा खान और सबा कमर थीं। उन फिल्‍मों को लेकर कोई हंगामा नहीं हुआ। सबा कमर की फिल्‍म ‘ हिंदी मी

फिल्‍म समीक्षा : फुल्‍लू

Image
फिल्‍म रिव्‍यू चकाचौंध नहीं करती   फुल्‍लू -अजय ब्रह्मात्‍मज सीमित साधनों और बजट की अभिषेक सक्‍सेना निर्देशित ‘ फुल्‍लू ’ आरंभिक चमक के बाद क्रिएटिविटी में भी सीमित रह गई है। नेक इरादे से बनाई गई इस फिल्‍म में घटनाएं इतनी कम हैं कि कथा विस्‍तार नहीं हो सका है। फिल्‍म एकआयामी होकर रह जाती है। इस वजह से फिल्‍म का संदेश प्रभावी तरीके से व्‍यक्‍त नहीे हो पाता। महिलाओं के   बीच सैनीटरी पैड की जरूरत पर जोर देती यह फिल्‍म एक दिलचस्‍न व्‍यक्ति के निजी प्रयासों तक मिटी रहती है। लेखक ने कहानी बढ़ाने के क्रम में तर्क और कारण पर अधिक गौर नहीं किया है। प्रसंगों में तारतम्‍य भी नहीं बना रहता। उत्‍तर भारत के भोजुपरी भाषी गांव में फुल्‍लू अपनी मां और बहन के साथ रहता है। वह गांव की महिलाओं के बीच बहुत पॉपुलर है। शहर से वह गांव की सभी महिलाओं के लिए उनकी जरूरत के सामान ले आता है। मां उसे हमेशा झिड़कती रहती है। मां को लगता है कि उसका बेटा निकम्‍मा और ‘ मौगा ’ निकल गया है। वह चाहती है कि बेटा शहर जाकर कोई काम करे। कुछ पैसे कमाए। गांव के जवान मर्द रोजगार के लिए दूर शहरों में रहते हैं।

रोज़ाना : कभी चुपके तो कभी खुल के

Image
रोज़ाना कभी चुपके तो कभी खुल के -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍मों की सेंसरशिप कोई नई बात नहीं है। अंग्रेजों के जमाने से यह चल रहा है। देश आजाद होने के बाद भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सिनेमैटोग्राफ एक्‍ट 1952 के तहत फिल्‍मों के सार्वजनिक प्रदर्शन का नियमन करता है। इसके लिए केंद्रीय फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड(सीबीएफसी-सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्‍म सर्टिफिकेशन) बना है,जिसे आम भाषा सेंसर कहा जाने लगा है। सभी यही मानते और समझते हैं कि फिल्‍में प्रदर्शन के पहले सेंसर के लिए भेजी जाती हैं। फिल्‍मों की सेंसर स्क्रिप्‍ट और कॉपी तैयार की जाती है। फिल्‍म परिवार के सदस्‍यों को अपने व्‍यवहार में सेंसर की जगह सर्टिफिकेशन शब्‍द चलाना होगा। फिर यह धारणा स्‍पष्‍ट होगी कि सीबीएफसी का काम सेंसर के बजाए सर्टिफिकेशन है। पहलाज निहलानी की अध्‍यक्षता में गठित सीबीएफसी लगातार चर्चा और विवादों में है। पहलाज निहलानी ने सिनेमैटोग्राफ के सुझावों और नियमों की खुद की व्‍याख्‍या कर ली है और आए दिन फिल्‍मों के दृश्‍यों और संवादों पर आपत्ति करते ाहते हैं। कम पाठकों को जानकारी होगी कि सीबीएफसी के एक सदस्‍य ड

रोज़ाना : चाहिए यूपी की कहानी

Image
रोज़ाना चाहिए यूपी की कहानी -अजय ब्रह्मात्‍मज पिछले दिनों फिल्‍मों में स्क्रिप्‍ट और संवाद लिख चुके जयपुर,राजस्‍थान के मूल निवासी रामकुमार सिंह ने दो ट्वीट किए। उन्‍होंने ट्वीट में राजस्थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे को टै ग किया और लिखा... मैडम , हम राजस्थान की कहानी सिनेमा में कहना चाहते हैं पर निर्माता हमसे यूपी की कहानी मांगते हैं , क्योंकि वहां सब्सिडी मिलती है। अगले ट्वीट में उन्‍होंने आग्रह किया... बॉलीवुड में राजस्थान और राजस्थानियों के बारे में कुछ सोचिये मैडम प्लीज। रामकुमार सिंह की इस व्‍यथा के दो पहलू स्‍पष्‍ट हैं। एक तो राजस्‍थान में कोई ठोस फिल्‍म नीति नहीं हैं। हालांकि पारंपरिक तौर पर राजे-रजवाड़ों के किलों की शूटिंग के लिए हिंदी फिल्‍मकार राजस्‍थान जाते रहे हैं। हाल ही में राजस्‍थान की पृष्‍ठभूमि की ‘ पद्मावती ’ की शूटिंग में संजय लीला भंसाली की शूटिंग में विध्‍न पड़ा और उन्‍हें उन दृश्‍यों की शूटिंग के लिए नासिक जाना पड़ा और मुंबई आना पड़ा। राजस्‍थान में सुविधाएं मिल जाती हैं,लेकिन किसी प्रकार की रियायत या सब्सिडी की व्‍यवस्‍था नहीं है। र

रोज़ाना : ‘बोर्डर के 20 साल

Image
रोज़ाना ‘ बोर्डर के 20 साल -अजय ब्रह्मात्‍मज 20 सालों पहले 13 जून 1997 को जेपी दत्‍ता निर्देशित ‘ बोर्डर ’ रिलीज हुई थी। 1971 के भारत-पाकिस्‍तान युद्ध के समय बीकानेर के पास लोंगोवाल सीमांत पर हुई मुठभेड़ में भारतीय सैनिकों की इस शौर्यगाथा को देश के दर्शकों ने खूब सराहा था। 1997 में बाक्‍स आफिस पर सबसे ज्‍यादा कलेक्‍शन करने वाली राष्‍ट्रीय भावना की इस फिल्‍म के साथ देश के दर्शकों का भावनात्‍मक रिश्‍ता है। हम इसे भारत के विजय प्रयाण के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं। पिछले साल रक्षा मंत्रालय और फिल्‍म समारोह निदेशालय ने आजादी की 70 वीं सालगरिह की शुरुआत के मौके पर पिछले साल ‘ बोर्डर ’ का विशेष प्रदर्शन किया था। ‘ बोर्डर ’ को कुल 62 पुरस्‍कार मिले थे। पिछले रविार को जेपी दत्‍ता ने ‘ बोर्डर ’ के 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्‍य में यूनिट और मीडिया के सदस्‍यों को याद किया। उन्‍होंने इस मौके पर ट्राफी बांटी। फिल्‍म के मुख्‍य कलाकार सनी देओल शहर से बाहर होने की वजह से नहीं पहुंच सके। सुनील शेट्टी,जैकी श्राफ,पूजा भट्ट ने इस मौके पर ‘ बोर्डर ’ के निर्माण के दिनों को याद किया

रोज़ाना : नाम और पोस्‍टर

Image
रोज़ाना नाम और पोस्‍टर -अजय ब्रह्मात्‍मज इम्तियाज अली की शाह रूख खान और अनुष्‍का शर्मा की फिल्‍म का टायटल फायनल हो गया। ‘ जब हैरी मेट सेजल ’ नाम से फिल्‍म के पोस्‍टर एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित किए गए है। गौर करें तो यह दो पोस्‍टर का सेट है,जिसमें पहले पोस्‍टर पर ‘ जब हैरी ’ और दूसरे पोस्‍टर पर ‘ मेट सेजल ’ लिखा बया है। दोनों किरदारों के नाम लाल रंग में लिखे गए हैं। पोस्‍टर में टैग लाइन है... ’ ह्वाट यू सीक इज सीकिंग यू ’ । जलालुद्दीन रुमी की यह पक्ति इम्तियाज अली को बेहद पसंद है। उन्‍होंने इस पंक्ति को फिल्‍म में संवाद के तौर पर रखा है। हिंदी साहित्‍य से परिचित पाठक लगभग इसी भाव पर लिखी रामनरेश त्रिपाठी की ‘ अन्‍वेषण ’ शीर्षक कविता याद कर सकते हैं... ’ मैं ढूँढता तुझे था , जब कुंज और वन में। तू खोजता मुझे था , तब दीन के सदन में। सारे संबंध पारस्‍परिक होते हैं। हम जिसकी तलाश में रहते है,वह खुद हमारी तलाश में रहता है। भारतीय दर्शन में ‘ तत् त्‍वम असि ’ भी कहा गया है। इम्तियाज अली भी अपनी फिल्‍मों में संबंधों और भावों की तलाश में रहते हैं। ऊपरी तौर पर उनकी फ

दरअसल : हिंदी सिनेमा का चीनी पहलू

Image
दरअसल... हिंदी सिनेमा का चीनी पहलू -अजय ब्रह्मात्‍मज कुछ सालों पहले हांगकांग से एक पत्रकार मुंबई आए थे। वे हिंदी फिल्‍मों में चीन के वर्णन और चित्रण पर शोध कर रहे थे। उन्‍हें बहुत निराशा हाथ लगी थी। उन्‍हें कहीं से पता चला था कि मैं चीन में रह चुका हूं और मैंने सिनेमा के संदर्भ में भारत-चीन पर कुछ लिखा है। हम मिले और हम ने विमर्श किया कि ऐसा क्‍यों हुआ कि भारतीय फिल्‍मों में चीन की उचित छवि नहीं पेश की गई है। चीनी किरदार दिखाए भी गए तो उन्‍हें विलेन या कॉमिकल किरदारों के रूप में दिखाया गया। उनका हमेश मजाक उड़ाया गया। अपने देश की आजादी और चीन की मुक्ति के बाद बुलंद हुआ ‘ हिंदी-चीनी भाई-भाई ’ का नारा अचानक 1962 के बाद सुनाई पड़ना बंद हो गया। भारतीय मीडिया में चीन को दुश्‍मन देश के रूप में पेश किया गया। यह बताया गया कि नेहरू की दोस्‍ती के प्रयासों को नजरअंदाज कर चीन ने भारत की पीठ में छूरा घोंप दिया। पचपन सालों के बाद भी हम उस मानसिकता से नहीं निकल पाए हैं। अभी हाल में ‘ नितेश तिवारी निर्देशित दंगल ने चीन में 700 करोड़ रुपयों से अधिक का कारोबार किया तो फिर से चीन सभी

सामाजिक मुद्दे लुभाते हैं मुझे : अक्षय कुमार

Image
अक्षय कुमार -अजय ब्रह्मात्‍मज अक्षय कुमार इन दिनों परिवार के साथ वार्षिक छुट्टी पर हैं। उनकी फिल्‍म ‘ टॉयलेट : एक प्रेम कथा ’ का ट्रेलर 11 जून को दर्शकों के बीच आएगा। इस फिल्‍म को लेकर वह अतिउत्‍साहित हैं। उन्‍होंने छुटिटयों पर जाने के पहले अपने दफ्तर में इस फिल्‍म का ट्रेलर दिखाया और फिल्‍म के बारे में बातें कीं। तब तक ट्रेलर पूरी तरह तैयार नहीं हुआ था तो उन्‍होंने अपने संवाद बोल कर सुना दिए। ‘ टॉयलेट : एक प्रेम कथा ’ के बारे में उनका मत स्‍पष्‍ट है। वे कहते हैं कि मैाने मुद्दों को सींग से पकड़ा है। आम तौर पर फिल्‍मों में सीधे सामाजिक मुद्दों की बाते नहीं की जातीं,लेकि ‘ टॉयलेट : एक प्रेम कथा ’ में शौच की सोच का ऐसा असर है कि टायटल में टॉयलेट के प्रयोग से भी निर्माता,निर्देशक और एक्‍टर नहीं हिचके। -शौच के मुद्दे पर फिल्‍म बनाने और उसका हिस्‍सा होने का खयाल कैसे आया ? 0जब मुझे पता चला कि देश की 54 प्रतिशत आबादी के पास अपना टॉयलेट नहीं है तो बड़ा झटका लगा। मुझे लगा कि इस मुद्दे पर फिल्‍म बननी चाहिए। ऐसा नहीं है कि किसी दिक्‍कत या गरीबी की वजह से टॉयलेट की कमी है।

फिल्‍म समीक्षा : राब्‍ता

Image
फिल्‍म रिव्‍यू मिल गए बिछुड़े प्रेमी राब्‍ता -अजय ब्रह्मात्‍मज दिनेश विजन की ‘ राब्‍ता ’ के साथ सबसे बड़ी दिक्‍क्‍त हिंदी फिल्‍मों का वाजिब-गैरवाजिब असर है। फिल्‍मों के दृश्‍यों,संवादों और प्रसंगों में हिंदी फिल्‍मों के आजमाए सूत्र दोहराए गए हैं। फिल्‍म के अंत में ‘ करण अर्जुन ’ का रेफरेंस उसकी अति है। कहीं न कहीं यह करण जौहर स्‍कूल का गलत प्रभाव है। उनकी फिल्‍मों में दक्षता के साथ इस्‍तेमाल होने पर भी वह खटकता है। ‘ राब्‍ता ’ में अनेक हिस्‍सों में फिल्‍मी रेफरेंस चिपका दिए गए हैं। फिल्‍म की दूसरी बड़ी दिक्‍कत पिछले जन्‍म की दुनिया है। पिछले जन्‍म की भाषा,संस्‍कार,किरदार   और व्‍यवहार स्‍पष्‍ट नहीं है। मुख्‍य रूप से चार किरदारों पर टिकी यह दुनिया वास्‍तव में समय,प्रतिभा और धन का दुरुपयोग है। निर्माता जब निर्देशक बनते हैं तो फिल्‍म के बजाए करतब दिखाने में उनसे ऐसी गलतियां हो जाती हैं। निर्माता की ऐसी आसक्ति पर कोई सवाल नहीं करता। पूरी टीम उसकी इच्‍छा पूरी करने में लग जाते हैं। ‘ राब्‍ता ’ पिछली दुनिया में लौटने की उबासी से पहले 21 वीं सदी की युवकों की अनोखी प्रेमकह