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दरअसल : आर्ट है शाम कौशल का एक्शन

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दरअसल आर्ट है शाम कौशल का एक्शन - अजय ब्रह्मात्मज 28 साल पहले 1990 के 6 मई की रात थी। गोरेगांव के फिल्मिस्तान स्टूडियो में शाम कौशल के पास एक फ़ोन आया। उस फ़ोन ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। हुआ यूँ कि पंजाब से आजीविका की तलाश में मुंबई पहुंचे शाम कौशल कुछ सालों तक इधर-उधर की नौकरियों से गुजर-बसर करने के बाद तय किया कि वे रुटीन जॉब नहीं कर सकते। दोस्तों की सलाह और मदद से फिल्म इंडस्ट्री का दरवाज़ा खुला और शाम कौशल स्टंटमैन बन गए। फिल्मों में काम मिलने लगा और जीवन ने भी एक ढर्रा पकड़ा। पंजाब में लेक्चरर बनने की ख्वाहिश से एम् ए तक की पढ़ाई कर चुके शाम कौशल को आर्थिक कारणों से आगे की पढ़ाई और ख्वाहिश छोड़नी पड़ी। वे एक दोस्त के साथ मुंबई आ गए। नौकरियां बदलीं , ठिकाने बदले।   आख़िरकार फिल्मों में टिके। तब के नामी स्टंट डायरेक्टर पप्पू वर्मा के साथ रहे। गुर सीखे और खुद को मांजते रहे। मन में एक मंज़िल थी और उस तक पहुँचने की चाहत भी थी। यहाँ पंजाब की पढ़ाई काम आ गई। उस रात वे स्वरुप कुमार की फिल्म ‘ जीवनदाता ’ में बतौर स्टंटमैन डाकू की भूमिका निभा

सिनेमालोक : सोनम कपूर की शादी

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सिनेमालोक सोनम कपूर की शादी - अजय ब्रह्मात्मज आज सोनम कपूर की शादी होगी और रिसेप्शन भी हो जायेगा। पिछले कुछ दिनों से मीडिया में सोनम की शादी सुर्ख़ियों में है। हाल-फिलहाल में यह किसी फिल्म स्टार की पहली ऐसी शादी है , जिसमें कुछ भी छिपाया नहीं जा रहा है।   समय रहते मीडिया को सारी जानकारियां दी जा रही हैं। गौर करें तो तस्वीरें और वीडियो भी मिल जा रहे हैं। सोनम के दर्शकों और प्रशंसकों के साथ परिजन भी खुश हैं। सोनम कपूर नए ज़माने की समझदार अभिनेत्री हैं।   वह आम दर्शकों की जिज्ञासाओं को समझती हैं। अपनी पीआर टीम के सहयोग से वह सभी के प्यार , स्नेह और सद्भावनाएँ बटोर रही हैं। सोनम के आलोचक भी मानते हैं कि सोनम के बात-व्यवहार में शालीनता और गरिमा रहती है। वह अपनी भावनाएं खुले मन से व्यक्त करती हैं। वह स्वंतत्रा स्वभाव की अभिनेत्री हैं। मुझे याद है अभिषेक डोगरा की फिल्म ‘ डॉली की डोली के समय मैं फिल्म के मुख्य कलाकार राजकुमार राव से मिलने गया था। वहीँ पहली बार अभिषेक डोगरा से परिचय हुआ था। फिल्म के लेखक उमाशंकर सिंह थे। उमा पहले पत्रकार रह चुके हैं और

फिल्म लॉन्ड्री : राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह: "एक अहंकारी मंत्री की दीवार पर टंगने की ख्वाहिश"

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फिल्म लॉन्ड्री : राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह: "एक अहंकारी मंत्री की दीवार पर टंगने की ख्वाहिश" -अजय ब्रह्मात्‍मज फिल्‍म समारोह निदेशालय के वेबसाइट पर राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार के बारे में विस्‍तृत अभिलेख प्रकाशित है। उस अभिलेख में स्‍पष्‍ट शब्‍दों में लिखा है,’ राष्ट्रीय पुरस्कार , सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ सम्मान , दादा साहब फालके पुरस्कार के साथ महत्वपूर्ण समारोह में भारत के राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय मंत्री , सूचना एवं प्रसारण , तीन निर्णायक मंडलियों के अध्यक्ष , भारत के फिल्म महासंघ के प्रतिनिधि और अखिल भारतीय फिल्म कर्मचारी संघ और वरिष्ठ कर्मचारियों की उपस्थिति में प्रदान किया जाता है।‘ लाल रंग के चार शब्‍दों पर गौर कर लें। इसके बाद भी कोई आशंका या बहस की गुंजाइश रह जाती है तो निस्‍संदेह आगे कोई बात नहीं की जा सकती। वर्ष 1954 में 1953 की फिल्‍मों के पुरस्‍कार के साथ इसकी शुरूआत हुई थी। अभिलेख के मुताबिक ‘भारत सरकार द्वारा भारतीय सिनेमा के समूचे राष्‍ट्रीय प्रतिबिंब को सम्मिलित करने , देश के उच्‍चतम संभव मानदण्‍ड द्वारा योग्‍यता का निर्णय करने और स