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सिनेमालोक : एनएम्आईसी सरकार का सराहनीय कदम

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सिनेमालोक : एनएम्आईसी सरकार का सराहनीय कदम  पिछले शनिवार को प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नेशनल म्यूजियम ऑफ़ इंडियन सिनेमा का उद्घाटन किया.यह मुबई के पेडर रोड स्थित फिल्म्स डिवीज़न के परिसर में दो इमारतों में आरम्भ हुआ है.पिछले दो दशकों के टालमटोल और कच्छप गति से चल रही प्रगति के बाद आख़िरकार इसका शुभारम्भ हो गया.प्रधान मंत्री ने समय निकाला.वे उद्घाटन के लिए आये.ऐसा नहीं है कि उद्घाटन की औपचारिकता निभा कर वह निकल गए.उन्होंने पहले संग्रहालय का भ्रमण किया.खुद देखा.सराहना की और फिर 50 मिनट लम्बा भाषण दिया.इस भाषण में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री की उपलब्धियों की तारीफ की.उसे उभरते सॉफ्ट पॉवर के रूप में स्वीकार किया. उन्होंने फिल्म व्यवसाय के अनेक आयामों को छूते हुए कुछ घोषनाएँ भी कीं.वे इस अवसर पर प्रफ्फुल्लित नज़र आ रहे थे.उन्होंने भाषण में अपने निजी अनुभवों को शेयर किया और बार-बार कहा कि आप सभी का योगदान प्रसंसनीय है.उन्होंने मंच से कुछ फिल्मकारों और हस्तियों के नाम लिए और उनके व्यापक योगदान को रेखांकित किया. नेशनल म्यूजियम ऑफ़ इंडियन सिनेमा(एनएमआईसी) के लिए कोई हिंदी पर्याय नहीं

सिनेमालोक : मृणाल सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’

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सिनेमालोक मृणाल सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’ -अजय ब्रह्मात्मज हाल ही में मृणाल सेन का निधन हुआ है.पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें याद करते हुए उनकी ‘भुवन शोम’ को बार-बार याद किया गया.इसी फिल्म से भारत में पैरेलल सिनेमा की शुरुआत मानी जाती है.हिंदी अख़बारों में इसकी अधिक चर्चा इसलिए भी होती है कि इसका वायसओवर अमिताभ बच्चन ने किया था. मृणाल सेन की ‘नील आकाशेर नीचे’ फिल्म को याद करते हुए तृषा गुप्ता ने प्यारा सा लेख लिखा है. उन्होंने उल्लेख किया था कि यह फिल्म महादेवी वर्मा के रेखाचित्र पर आधारित था. मेरी जिज्ञासा बढ़ी.मैंने पहले फिल्म देखी और फिर खोज कर मूल रचना पढ़ी. महादेवी वर्मा के संस्मरण का शीर्षक है ‘वह चीनी भाई’. सिनेमा और साहित्य के संबंधों पर संगोष्ठियाँ होती रहती हैं. पर्चे लिखे जाते हैं.मैंने खुद कई बार ऐसी संगोष्ठियों को संबोधित किया है. मैं इस कहानी और इस पर बनी फिल्म से परिचित नहीं था. धन्यवाद् तृषा गुप्ता कि एक सुंदर और ज़रूरी फिल्म से परिचय हो गया. 1959 में बनी इस फिल्म में एक चीनी और एक भारतीय के संबंध को मानवीय स्तर पर चित्रित किया गया है.महादेवी वर्मा के संस्मरण में वह

संडे नवजीवन : इस साल थोडा ही बदलेगा रुपहले परदे का परिदृश्य

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इस साल थोडा ही बदलेगा रुपहले परदे का परिदृश्य  -अजय ब्रह्मात्मज   हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का पुराना टोटका है. जनवरी के पहले हफ्ते में फिल्में रिलीज नहीं होतीँ. माना जाता है कि पहले हफ्ते में रिलीज हुई फिल्में ज्यादातर फ्लॉप होती हैं. हालाँकि बाद के हफ्तों में भी फिल्म के हिट होने की कोई गारंटी नहीं रहती , फिर भी टोटका टोटका होता है. 2019 में जनवरी के दूसरे हफ्ते में ‘ उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक ’ और ‘ द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ’ जैसी फिल्मों की रिलीज से शुरुआत हो रही है. 2019 के दिसंबर तक के शुक्रवार को रिलीज हो रही फिल्मों की तारीखें आ चुकी हैं. सारे त्यौहार और राष्ट्रीय पर्व के हफ्ते रिजर्व हो गए हैं. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में फिल्मों की घोषणा के साथ उसके रिलीज की तारीख तय कर देने के सिस्टम को ‘ रिवर्स प्लानिंग ’ का नाम दिया जाता है. इसकी सफल शुरुआत रोहित शेट्टी ने की थी. ‘ उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक ’ एक हद तक पॉलीटिकल फिल्म है. पहली 2016 में भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक की घटना पर आधारित है , जिसमें एक सैन्य अधिकारी स्पष्ट शब्दों में कहता है , ‘ हिंदुस्तान अब चुप न

सिनेमालोक : चाहिए कंटेंट के साथ कामयाबी

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सिनेमालोक चाहिए कंटेंट के साथ कामयाबी -अजय ब्रह्मात्मज 2018 में रिलीज हुई फिल्मों के आधार पर ट्रेन और निष्कर्ष उनकी बात करते हुए लगभग सभी समीक्षकों और विश्लेषको ने स्त्री अंधाधुंध और बधाई हो का उल्लेख करते हुए कहा कि दर्शक अब कंटेंट पसंद करने लगे हैं. संयोग ऐसा हुआ कि खानत्रयी(आमिर,शाह रुख और सलमान) की फिल्में अपेक्षा के मुताबिक शानदार कारोबार नहीं कर सकीं.बस,क्या था? खान से बेवजह परेशान विश्लेषकों ने बयान जारी करने के साथ फैसला सुना दिया कि खानों के दिन लद गए.27 सालों के सफल अडिग कैरियर में चंद फिल्मों की असफलता से उनके स्टारडम की चूलें नहीं हिलेंगी.हां, उन्हें अपनी उम्र के अनुसार भूमिकाएं चुनते समय दर्शकों की बदलती अभिरुचि का खयाल रखना होगा.उदीयमान सितारों राजकुमार राव,आयुष्मान खुराना और विकी कौशल को 2019 में रिलीज हो रही फिल्मों से साबित करना होगा कि वे ताज़ा स्टारडम के काबिल हैं. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि कंटेंट प्रधान छोटी फिल्मों का ज़िक्र करते समय हम उन फिल्मों के ही नाम गिनाते हैं,जिन्होंने 100 करोड़ या उसके आसपास का कारोबार किया.इसी लिहाज से 'स्त्री

सिनेमालोक : शहरी दर्शकों के लिए बन रहा है सिनेमा

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सिनेमालोक शहरी दर्शकों के लिए बन रहा है सिनेमा -अजय ब्रह्मात्मज याद करें कि ग्रामीण पृष्ठभूमि की आखिरी फिल्म कौन सी देखी थी? मैं यह नहीं पूछ रहा हूँ कि किस आखिरी फिल्म में धोती-कमीज और साडी पहने किरदार दिखे थे.बैलगाड़ी,तांगा और सायकिल भी गायब हो चुके हैं.कुआं,रहट,चौपाल,खेत-खलिहान आदी की ज़रुरत ही नहीं पड़ती.कभी किसी आइटम सोंग में हो सकता है कि यह सब या इनमें से कुछ दिख जाये.तात्पर्य यह कि फिल्म की आवश्यक प्रोपर्टी या पृष्ठभूमि में इनका इस्तेमाल नहीं होता.अब ऐसी कहानियां ही नहीं बनतीं और कैमरे को ग्रामीण परिवेश में जाने की ज़रुरत नहीं पड़ती.धीरे-धीरे सब कुछ शहरों में सिमट रहा है.किरदार,परिवेश और भाषा शहरी हो रही है. दरअसल,फ़िल्में शहरी दर्शकों के लिए बन रही हैं.हिंदी फ़िल्में कहने को पूरे भारत में रिलीज होती हैं,लेकिन हम जानते है कि दक्षिण भारत में हिंदी फिल्मों की मौजूदगी टोकन मात्र ही होती है.तमिल और तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री हिंदी के समकक्ष खड़ी है.कन्नड़ और मलयालम के अपने दर्शक हैं.कर्णाटक में हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन पर हदबंदी रहती है.दक्षिण के राज्य अपनी भाषा की फिल्मों के लिए स

सिनेमालोक : कार्तिक आर्यन

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सिनेमालोक कार्तिक आर्यन -अजय ब्रह्मात्मज इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को यह कॉलम समर्पित होगा , जो हिंदी फिल्मों में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया. दस महीने पहले 23 फ़रवरी को ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ रिलीज हुई थी. लव रंजन की इसी फिल्म के शीर्षक से ही प्रॉब्लम थी. कुछ को यह टंग ट्विस्टर लग रहा था तो अधिकांश का यही कहना था कि यह भी कोई नाम हुआ? फिल्म रिलीज हुई और सभी को पसंद आई. इस तरह के विषय की फिल्मों पर रीझ रहे दर्शक टूट पड़े तो वहीँ खीझ रहे समीक्षक इसे दरकिनार नहीं कर सके.समीक्षकों ने फिल्म के विषय की स्वाभाविक आलोचना की, लेकिन उसके मनोरंजक प्रभाव को स्वीकार किया.नतीजा यह हुआ कि खरामा-खरामा यह फिल्म 100 करोड़ के क्लब में पहुंची. फिल्म के कलाकारों में सोनू यानि कार्तिक आर्यन को शुद्ध लाभ हुआ. छह सालों से अभिनय की दुनिया में ठोस ज़मीन तलाश रहे कार्तिक आर्यन को देखते ही देखते दर्शकों और फिल्म इंडस्ट्री ने कंधे पर बिठा लिया. उन्हें फ़िल्में मिलीं,एनडोर्समेंट मिले और कार्तिक ग्लैमर

सिनेमालोक : राधिका आप्टे

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सिनेमालोक राधिका आप्टे -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स ने एक ट्विट किया कि ‘अंधाधुन की स्ट्रीमिंग चल रही है.यह इसलिए नहीं बता रहे हैं कि इसमें राधिका आप्टे हैं,लेकिन हाँ इसमें राधिका आप्टे हैं.’ इस ट्विट की एक वजह है.कुछ महीने पहले सोशल मीडिया पर मीम चल रही थी और दर्शक सवाल कर रहे थे कि नेटफ्लिक्स के हर हिंदी प्रोग्राम में राधिका आप्टे ही क्यों रहती है? संयोग कुछ ऐसा हुआ कि ‘लस्ट स्टोरीज’,’सेक्रेड गेम्स’ और ‘गुल’ में एक के बाद एक राधिका आप्टे ही दिखीं.मान लिया गया है कि डिजिटल शो में राधिका का होना लाजिमी है. करियर के लिहाज से देखें तो राधिका आप्टे की पहली फिल्प्म 2005 में ही आ गयी थी.उन्होंने महेश मांजरेकर के निर्देशन में ‘वह लाइफ हो तो ऐसी’ फिल्म की थी,जिसमे शहीद कपूर और अमृता राव मुख्या भूमिकाओं में थे.उस फिल्म की आज किसी को याद भी नहीं है.हिंदी,बंगाली मराठी और तेलुगू फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकायें करने के बाद एक तरीके से ऊब कर राधिका लंदन चली गयीं.वहां उन्होंने कंटेम्पररी डांस सीखा.वहीँ उनके लाइफ पार्टनर बेनेडिक्ट टेलर भी मिल गए.कु

संडे नवजीवन : सेलेब्रिटी शादी : वैभव और बदली परंपरा

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संडे नवजीवन सेलेब्रिटी शादी : दिखा वैभव और बदली परंपरा -अजय ब्रह्मात्मज भारतीय समाज में शादी हम सभी के सामाजिक-पारिवारिक जीवन का अनिवार्य चरण है.अभिभावक और माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान समय रहते शादी कर ले और ‘सेटल’ हो जाये.अभिभावक और परिवार की मर्जी व सहमति से शादी हो रही हो तो औकात से ज्यादा खर्च करने का उत्साह आम है.यूँ आये दिन शादी और दहेज़ के लिए क़र्ज़ लेने के किस्से ख़बरों में आते रहते हैं.फिर भी शादी में अतिरिक्त खर्च का सिलसिला नहीं थम रहा है.गाँव-देहात से लेकर शहरी समाज तक की शादी में दिखावा बढ़ता जा रहा है.टीवी और फिल्मों के प्रसार और प्रभाव से रीति-रिवाज से लेकर विधि-विधान तक में तब्दिली आ रही है.अपनाने की आदत इतनी प्रबल है कि फिल्मों और ख़बरों में दिखी शादियों से परिधान और विधान अपनाये जा रहे हैं.देश के सारे दूल्हे शेरवानी और सारी दुल्हनें लहंगे में नज़र आने लगी हैं.संगीत,वरमाला और जूता छिपाई की रस्में देश के कोने-कोने में दोहराई जा रही हैं.रुढियों के नाम पर हल्दी,चुमावन और विदाई जैसी आत्मीय और रागात्मक रस्मों से तौबा किया जा रहा है.सबकुछ यकसां हो रहा है. अब तो

सिनेमालोक :आयुष्मान खुराना

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सिनेमालोक आयुष्मान खुराना -अजय ब्रह्मात्मज इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को यह कॉलम समर्पित होगा , जो हिंदी फिल्मों में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया. 2018 में दो हफ़्तों के अन्दर आयुष्मान खुराना की दो फ़िल्में कामयाब रहीं.श्रीराम राघवन निर्देशित ‘अंधाधुन’ और अमित शर्मा निर्देशित ‘बधाई हो’. दोनों फिल्मों का फलक अलग था.दोनों के नायक हिंदी फिल्मों के पारंपरिक नायक से अलग थे.आयुष्मान की ताहि खासियत उन्हें विशिष्ट बनाती है.शूजित सरकार की ‘विकी डोनर’ से लेकर ‘बधाई हो’ तक के उनके चुनाव पर गौर करें तो सभी फिल्मों में उनके किरदार अलहदा रहे हैं.धीरे-धीरे स्थापित होने के साथ ही नयी धारणा बन चुकी है की अगर आयुष्मान खुराना की कोई फिल्म आ रही है तो उसका नायक मध्यवर्गीय ज़िन्दगी के किसी अनछुए पहलू को उजागर करेगा.हाल ही में उनकी ताज़ा फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ का फर्स्ट लुक सामने आया है.यहाँ भी वह चौंका रहे हैं.उम्मीद करते हैं कि इस बार वह किसी शारीरिक या पारिवारिक उलझन में नहीं फंसे होंगे. इन

सिनेमालोक : तापसी पन्नू

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सिनेमालोक तापसी पन्नू दिसंबर आरभ हो चुका है.इस महीने के हर मंगलवार को 2018 के ऐसे अचीवर को यह कॉलम समर्पित होगा , जो हिंदी फिल्मों में बहार से आए.जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर पहचान हासिल की.2018 में आई उनकी फिल्मों ने उन्हें खास मुकाम दिया. हम शुरुआत कर रहे हैं तापसी पन्नू से.2012 की बात है.तापसी पन्नू की पहली हिंदी फिल्म ‘चश्मेबद्दूर ’ रिलीज होने वाली थी. चलन के मुताबिक तापसी के निजी पीआर ने उनके साथ एक बैठक तय की.पता चला था कि दक्षिण की फिल्मों से करियर आरम्भ कर दिल्ली की यह पंजाबी लड़की हिंदी में आ रही है.पहली फिल्म के समय अभनेता/अभिनेत्री थोड़े सहमे और डरे रहते हैं.तब उनकी चिंता रहती है कि कोई उनके बारे में बुरा न लिखे और उनका ज़रदार स्वागत हो.तापसी भी यही चाहती रही होंगी या यह भी हो सकता है कि पीआर कंपनी ने उन्हें भांप लिया हो.बहरहाल अंधेरी के एक रेस्तरां में हुई मुलाक़ात यादगार रही थी.यादगार इसलिए कह रहा हूँ की , उसके बाद तापसी ने हर मुलाक़ात में पहली भेंट का ज़िक्र किया.हमेशा अच्छी बातचीत की.अपनी तैरियों और चिंताओं को शेयर किया.अपना हमदर्द समझा.कामयाबी के साथ आ