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संगीत की अनन्य साधक लता जी

  लता मंगेशकर संगीत की अनन्य साधक लता जी -अजय ब्रह्मात्मज सृजनात्मक प्रतिभ के शुरूआती साल करियर की नींव होते हैं. किसी भी क्षेत्र के कलाकार की प्रसिद्धि और योगदान को समझने के लिए उन व्यक्तियों और प्रतिभाओं को याद रखना चाहिए,जिन्होंने आरंभिक सहारा और प्रोत्साहन दिया. आज लता मंगेशकर का जन्मदिन है. इस अवसर पर हम उनके करियर की शुरुआत पर गौर करते हैं. किसी ने सही कहा है कि हमारे पास गंगा है, ताजमहल है, कश्मीर है और हमारे पास लता मंगेशकर हैं. लता मंगेशकर की आवाज की रूहानी मौजूदगी राहत देती है. उनकी आवाज का जादू दिल-ओ-दिमाग पर असर करता है. हमें ताजादम करता है. वह स्मृति की परिचित गलियों में ले जाता है. उनकी आवाज इस संसार की अकेली यात्रा में हमसफर बन जाती है. भिगो देती है. भावनाओं से सराबोर कर देती है. उन को सुनते हुए बड़े हुए व्यक्ति पुख्ता गवाही दे सकते हैं कि कैसे निराशा और उम्मीद के पलों में लता मंगेशकर की आवाज में उन्हें चैन, करार और सुकून दिया है. उन्हें हिम्मत और रहत दी है. सितंबर 1929 को पंडित दीनानाथ मंगेशकर के परिवार में उनका जन्म हुआ. भाई बहनों में सबसे बड़ी लता मंगेशकर ने

फिल्म समीक्षा : हलाहल

  फिल्म समीक्षा हलाहल निर्देशक: रणदीप झा निर्माता : इरोस लेखक : जीशान कादरी और जिब्रान नूरानी मुख्या कलाकार : सचिन खेडेकर,बरुन सोबती स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म : इरोस अवधि : 136 मिनट प्रदर्शन तिथि : 21 सितम्बर 2020 -अजय ब्रह्मात्मज इरोस पर स्ट्रीम हो रही ‘हलाहल’ रणदीप झा की पहली फिल्म है.   रणदीप   झा ने फिल्म करियर की शुरुआत दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘शांघाई’ से की थी. बाद में अनुराग कश्यप की टीम में वे शामिल हुए. अनुराग के साथ वे ‘अग्ली’, ‘रमन राघव’ और ‘मुक्काबाज’ फिल्म में एसोसिएट डायरेक्टर   रहे. इस फिल्म को जीशान कादरी और जिब्रान नूरानी ने लिखा है. फिल्म शिक्षा जगत मैं व्याप्त भ्रष्टाचार को छूती है. माना जा रहा है इस फिल्म की प्रेरणा मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से ली गई है. ‘हलाहल’ की घटनाएं और प्रसंग में व्यापम की व्यापकता तो नहीं है, लेकिन इस भ्रष्टाचार में लिप्त संस्थान,पोलिस, नेता और शहर के रसूखदार व्यक्तियों की मिलीभगत सामने आती है. यूँ लगता है देश का पूरा तंत्र भ्रष्टाचार में लिप्त है और सभी के तार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. ‘हलाहल’ रात की नीम रोशनी में

सिनेमालोक : हिंदी में बनें प्रादेशिक फिल्में

  सिनेमालोक हिंदी में बनें प्रादेशिक फिल्में लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बुलावे पर मुंबई से पहुंचे फिल्मकार और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े सक्रिय सदस्यों की बैठक चल रही है. कुछ दिनों पहले योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि वे उत्तर प्रदेश के नोएडा के आसपास फिल्म सिटी का निर्माण करेंगे. मंशा यह है कि उत्तर प्रदेश फिल्मों के निर्माण केंद्र के रूप में विकसित हो. उत्तर प्रदेश की प्रतिभाओं को मुंबई या किसी और शहर में जाकर संघर्ष नहीं करना पड़े. उत्तर प्रदेश के इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए. सरकारी पहल को मुंबई स्थित उत्तर प्रदेश के कलाकार फिल्मकार और तकनीशियन समर्थन दें. वहां दूसरे प्रदेशों की प्रतिभाएं भी जाकर काम कर सकें. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के विकेंद्रीकरण की बातें मैं पिछले 10 सालों से कर रहा हूं. मेरी राय में फिलहाल हुआ केंद्रीकरण हिंदी फिल्मों के विकास के लिए अप्रासंगिक और अनुचित हो चुका है. विषय, कल्पना और प्रयोग की कमी से पिछले दो दशकों में हिंदी फिल्मों में सिक्वल,रीमेक और फ्रेंचाइजी का चलन बढ़ा है. दर्शकों को फार्मूलाबद्ध मनोरंजन मिल जाता है. उन्हे

सिनेमालोक : हिंदी सिनेमा की हिंदी

  सिनेमालोक हिंदी सिनेमा की हिंदी -अजय ब्रह्मात्मज कल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस था. पूरे देश में अनेक समारोह और जलसे हुए. सोशल मीडिया पर हिंदीप्रेमियों ने एक-दूसरे को बधाइयां दीं. हिंदी के समर्थन में ढेर सारी बातें लिखी गयीं. अगर हम सोशल मीडिया की पोस्ट और टिप्पणियों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि मुख्य स्वर कातर और दुखी था. उन्हें कहीं न कहीं यह शिकायत थी कि हिंदी को जो महत्व मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल पा रहा है. आजादी के 72 सालों के बाद भी इस देश की राजभाषा होने के बावजूद हिंदी प्रशासन, शिक्षा और अनेक संस्थानों से बाहर है. कुछ टिप्पणियों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भी निशाना बनाया गया. यह आपत्ति रही है कि हिंदी फिल्मों के स्टार और कलाकार सार्वजनिक मंचों से सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी का ही इस्तेमाल करते हैं. चंद कलाकार जरूर ऐसे हैं, जो हिंदी में भी संवाद करते हैं या कर सकते हैं. अधिकांश की मजबूरी है कि हिंदी बोलने में उनका प्रवाह टूट जाता . पिछले 10 सालों में पूरे देश में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हुआ है. मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के बच्चे भी अब अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई करते हैं