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फिल्‍म समीक्षा : करीब करीब सिंगल

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फिल्‍म समीक्षा करीब करीब सिंगल -अजय ब्रह्मात्‍मज अवधि- 125 मिनट ***1/2  साढ़े तीन स्‍टार हिंदी में लिखते-बोलते समय क़रीब के क़ के नीचे का नुक्‍ता गायब हो जाता है। आगे हम इसे करीब ही लिखेंगे। ’ करीब करीब सिंगल ’ कामना चंद्रा की लिखी कहानी पर उनकी बेटी तनुजा चंद्रा निर्देशित फिल्‍म है। नए पाठक जान लें कि कामना चंद्रा ने राज कपूर की ‘ प्रेमरोग ’ लिखी थी। यश चोपड़ा की ‘ चांदनी ’ और विधु विनोद चोपड़ा की ‘ 1942 ए लव स्‍टोरी ’ के लेखन में उनका मुख्‍य योगदान रहा है। इस फिल्‍म की निर्माताओं में इरफान की पत्‍नी सुतपा सिकदर भी हैं। एनएसडी की ग्रेजुएट सुतपा ने फिल्‍में लिखी हैं। इरफान की लीक से हटी फिल्‍मों में उनका अप्रत्‍यक्ष कंट्रीब्‍यूशन रहता है। इस फिल्‍म की शूटिंग में इरफान के बेटे ने भी कैमरे के पीछे हिस्‍सा लिया था। तात्‍पर्य यह कि ‘ करीब करीब सिंगल ’ कई कारणों से इसके अभिनेता और निर्देशक की खास फिल्‍म है। यह खासियत फिल्‍म के प्रति तनुजा चंद्रा और इरफान के समर्पण में भी दिखता है। फिल्‍म के प्रमोशन में इरफान की खास रुचि और हिस्‍सेदारी सबूत है। इस फिल्‍म की पहली

दरअसल : हीरोइनें हैं बराबर और आगे

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दरअसल... हीरोइनें हैं बराबर और आगे -अजय ब्रह्मात्‍मज हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री में पुरुषों के वर्चस्‍व की बात की जाती है। सभी मानते और जानते हैं कि हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री ‘ मेल डोमिनेटेड ’ है....जैसे कि पूरा समाज है। यहां हीरो को ज्‍यादा पैसे मिलते हैं। फिल्‍मों के हिट होने का श्रेय हीरो ही ले जाता है। हीरोइनों के बारे में तभी अलग से लिखा और श्रेय दिया जाता है,जब फिल्‍म ‘ हीरोइन ओरियेंटेड ’ होती है। यही धारणात्‍मक सच्‍चाई है। पिछले दिनों एक ट्रेड मैग्‍जीन ने पिछले नौ सालों में देश की भिन्‍न टेरिटरी में सर्वाधिक लोकप्रिय रहे स्‍टारों की लिस्‍ट छापी है। उसे गौर सेपढ़ें तो रोचक तथ्‍य सामने आते हैं1 देश में मुंबई,दिल्‍ली-यूपी,ईस्‍ट पंजाब,सीपी,सी आई,राजस्‍थान,निजाम एपी,मैसूर,वेस्‍ट बंगाल,बिहार-झारखंड,असम,ओडिसा और टीएनके 13 टेरिटरी हैं। इनमें कलेक्‍शन के हिसाब से सबसे बड़ी टेरिटरी मुंबई है। मुंबई में आमिर खान सबसे अधिक कलेक्‍शन के साथ नंबर वन पर हैं। नौ सालों में उनकी छह फिल्‍में रिलीज हुईं और उनसे 4 अरब 10 करोड़ का कलेक्‍शन हुआ। हालांकि कुल कलेक्‍शन में शाह रुख खान आगे रह

पिता-पुत्र के रिश्‍तों का अनूठा ‘रुख’ : मनोज बाजपेयी

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पिता-पुत्र के रिश्‍तों का अनूठा ‘ रुख ’ : मनोज बाजपेयी कद्दावर कलाकार मनोज बाजपेयी की आज ‘ रुख ’ रिलीज हो रही है। मध्‍यवर्गीय परिवार के तानेबाने पर फिल्‍म मूल रूप से केंद्रित है। आगे मनोज की ‘ अय्यारी ’ व अन्‍य फिल्‍में भी आएंगी।     -अजय ब्रह्मात्‍मज ‘ रुख ’ का परिवार आम परिवारों से कितना मिलता-जुलता है ? यह कितनी जरूरी फिल्‍म है ? यह मध्‍य वर्गीय परिवारों की कहानी है। इसमें रिश्‍ते आपस में टकराते हैं। इसकी सतह में सबसे बड़ा कारण पैसों की कमी है। एक मध्‍य या निम्‍नवर्गीय परिवार में पैसों को लेकर सुबह से जो संघर्ष शुरू होता है , वह रात में सोने के समय तक चलता रहता है। ज्यादातर घरों में ये सोने के बाद भी अनवरत चलता रहता है। खासकर बड़े शहरों में ये उधेड़बुन चलता रहता है। इससे रिश्‍ते अपना मतलब खो देते हैं। वैसे दोस्त नहीं रह जाते , जो हमारे स्‍कूल - कॉलेज या फिर एकदम बचपन में जो होते हैं। इनके मूल में जीवन और जीविकोपार्जन की ऊहापोह है। इन्हीं रिश्‍तों और भावनाओं के बीच की जटिलता और सरलता को दर्शाती हुई यह एक ऐसी फिल्‍म है , जिसकी कहानी के केंद्र में एक मृत्‍यु होती है। स

फिल्‍म समीक्षा : रुख

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फिल्‍म रिव्‍यू भावपूर्ण रुख -अजय ब्रह्मात्‍मज पहली बार निर्देशन कर रहे अतानु मुखर्जी की ‘ रुख ’ हिंदी फिल्‍मों के किसी प्रचलित ढांचे में नहीं है। यह एक नई कोशिश है। फिल्‍म का विषय अवसाद,आशंका,अनुमान और अनुभव का ताना-बाना है। इसमें एक पिता हैं। पिता के मित्र हैं। मां है और दादी भी हैं। फिर भी यह पारिवारिक फिल्‍म नहीं है। शहरी परिवारों में आर्थिक दबावों से उत्‍पन्‍न्‍ स्थिति को उकेरती यह फिल्‍मे रिश्‍तों की परतें भी उघाड़ती है। पता चलता है कि साथ रहने के बावजूद हम पति या पत्‍नी के संघर्ष और मनोदशा से विरक्‍त हो जाते हैं। हमें शांत और समतल जमीन के नीचे की हलचल का अंदाजा नहीं रहता। अचानक भूकंप या विस्‍फोट होने पर पता चलता है कि ाोड़ा ध्‍यान दिया गया होता तो ऐसी भयावह और अपूरणीय क्षति नहीं होती। फिल्‍म की शुरूआत में ही डिनर करते दिवाकर और पत्‍नी नंदिनी से हो रही उसकी संक्षिप्‍त बातचीत से स्‍पष्‍ट हो जाता है कि दोनों का संबंध नार्मल नहीं है। दोनों एक-दूसरे से कुछ छिपा रहे हैं। या एक छिपा रहा है और दूसरे की उसमें कोई रुचि नहीं है। संबंधों में आए ऐसे ठहरावों को फिल्‍मों में

रोज़ाना : छठ की लोकप्रियता के बावजूद

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रोज़ाना छठ की लोकप्रियता के बावजूद -अजय ब्रह्मात्‍मज बिहार,झारखंड और पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में छठ एक सांस्‍कृतिक और सामाजिक त्‍योहार के रूप में मनाया जाता है। यह धार्मिक अनुष्‍टान से अधिक सांस्‍कृतिक और पारिवारिक अनुष्‍ठान है। इस आस्‍था पर्व की महिमा निराली है। इसमें किसी पुरोहित की जरूरत नहीं होती। अमीर-गरीब और समाज के सभी तबकों में समान रूप से प्रचलित इस त्‍योहार में घाट पर सभी बराबर होते हैं। कहावत है कि उगते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं। छठ में पहले डूबते सूर्य को अर्घ्‍य चढ़ाया जाता है और फिर उगते सूर्य की पूजा के साथ यह पर्व समाप्‍त होता है। इधर इंटरनेट की सुविधा और प्रसार के बाद छठ के अवसर पर अनेक म्‍सूजिक वीडियों और गीत जारी किए गए हैं। इनमें नितिन चंद्रा और श्रुति वर्मा निर्देशित म्‍यूजिक वीडियो सुदर और भावपूर्ण हैं। उनमें एक कहानी भी है। हालांकि भोजपुरी गीतों में प्रचलित अश्‍लीलता से छठ गीत भी अछूते नहीं रह गए हैं,लेकिन आज भी विंध्‍यवासिनी देवी और शारदा सिन्‍हा के छठ गीतों का मान-सम्‍मान बना हुआ है। सभी घाटों पर इनके गीत बजते सुनाई पड़ते हैं। आश्‍चर्य ही है क

रोज़ाना : अलहदा हैं दर्शक बिहार-झारखंड के

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रोज़ाना अलहदा हैं दर्शक बिहार-झारखंड के -अजय ब्रह्मात्‍मज एक ट्रेड मैग्‍जीन की ताजा रिपोर्ट में पिछले नौ सालों में देश की भिन्‍न टेरिटरी में सर्वाधिक पॉपुलर फिल्‍म स्‍टारों की लिस्‍ट छपी है। यह लिस्‍ट अधिकतम बॉक्‍स आफिस कलेक्‍शन के आधार पर तैयार की गई है। इस लिस्‍ट में आमिर खान देश की सभी अैटिरी में नंबर वन हैं एक बिहार-झारखंड छोड़ कर। बिहार और झारखंड के दर्शकों की पसंद और सराहना अलहदा है। ट्रेड पंडित बताते हैं कि बिहार और झारखंड में आज भी सनी देओन,मिथुन चक्रवर्ती और सुनील शेट्टी की फिल्‍में दूसरे स्‍टारों की तुलना में ज्‍यादा पसंद की जाती हैं। छोटे शहरों और कस्‍बों के सिनेमाघरों में जब ताजा रिलीज सोमवार तक दम तोड़ने लगती हैं तो मैनेजर क्षेत्रीय वितरकों की मदद से किसी ऐसे स्‍टार की फिल्‍म रीरन में चला देते हैं। दो उदाहरण याद आ रहे हैं इस अलहदा रुचि के। अभी अक्षय कुमार देश के लोकप्रिय स्‍टारों की अगली कतार में हैं। उनकी हर फिल्‍म अच्‍छा व्‍यवसाय कर रही है। 1999 के पहले उनके करिअर में उतार आया था। तभी सुनील दर्शक के निर्देशन में उनकी फिल्‍म ‘ जानवर ’ आई थी। यह फिल्‍म त