राजनीतिक फिल्म है दिल दोस्ती एटसेट्रा


-अजय ब्रह्मात्मज
इस फिल्म का भी पर्याप्त प्रचार नहीं हुआ। फिल्म के पोस्टर और फेस वैल्यू से नहीं लगता कि दिल दोस्ती.. इतनी रोचक फिल्म हो सकती है। दिल दोस्ती.. लंबे अरसे के बाद आई राजनीतिक फिल्म है। इस फिल्म के राजनीतिक टोन को समझे बिना फिल्म को समझना मुश्किल होगा। ऊपरी तौर पर संजय मिश्रा (श्रेयस तलपड़े) और अपूर्व (ईमाद शाह) दो प्रमुख चरित्रों की इस कहानी में संवेदना की कई परते हैं। इस फिल्म को समझने में दर्शक की पृष्ठभूमि भी महत्वपूर्ण होगी। संजय मिश्रा बिहार से दिल्ली आया युवक है, जो छात्र राजनीति में सक्रिय हो गया है। दूसरी तरफ अपूर्व विभिन्न तबकों की लड़कियों के बीच जिंदगी और प्यार के मायने खोज रहा है। दिल दोस्ती.. विरोधी प्रतीत हो रहे विचारों की टकराहट की भी फिल्म है। मध्यवर्गीय मूल्यों और उच्चवर्गीय मूल्यों के साथ ही इस टकराहट के दूसरे पहलू और छोर भी हैं। निर्देशक मनीष तिवारी ने युवा पीढ़ी में मौजूद इस गूढ़ता, अस्पष्टता और संभ्रम को समझने की कोशिश की है। फिल्म अपूर्व के दृष्टिकोण से प्रस्तुत की गई है। अगर इस फिल्म का नैरेटर संजय मिश्रा होता तो फिल्म का अंत अलग हो सकता था।
फिल्म में गानों की गुंजाइश तो नहीं थी, लेकिन दिल दोस्ती.. के गाने अखरते नहीं हैं। कलाकारों में श्रेयस तलपड़े और ईमाद शाह ने चरित्रों को सही तरीके से निभाया है। श्रेयस की भाषा और बिहारी टोन में एकरूपता नहीं है। ईमाद शाह ने अपूर्व को उच्छृंखल होने से बचा लिया है। स्मृति मिश्रा उल्लेखनीय हैं। नई लड़की इशिता शर्मा की उपस्थिति दर्ज होती है। निकिता आनंद की अभिनय प्रतिभा संदिग्ध है।
पहले प्रयास में मनीष तिवारी आश्वस्त करते हैं और निश्चित रूप से अपने अनुभव को पर्दे पर उतारने में सफल रहे हैं। फिल्म में दिख रही दुविधा सिर्फ चरित्रों की दुविधा नहीं है। वह लेखक-निर्देशक की दुविधा भी है।

Comments

Anonymous said…
bahut sahi likha hai aap ne.khas kar politics undertone wali baat.tahnks!
Divine India said…
अब तो देखी जाएगी यह फिल्म…।

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