दरअसल:ह्वाट्स योर राशि? के बहाने

-अजय ब्रह्मात्मज
आशुतोष गोवारीकर ने लगान के बाद लगातार नए विषय पर फिल्में बनाई। उनमें कोई दोहराव नहीं है। स्वदेस और जोधा अकबर जैसी सार्थक और महत्वपूर्ण फिल्में बनाने के बाद आशुतोष ने पहली बार रोमांटिक कॉमेडी में हाथ आजमाया। अगर चंद फिल्म समीक्षकों की राय मानें, तो इस कोशिश में उनके हाथ जल गए हैं। उन समीक्षकों को यह फिल्म पसंद नहीं आई। उन्होंने फिल्म की आलोचना के साथ निर्देशक आशुतोष की भी भ‌र्त्सना की है। उन्होंने उनकी पुरानी फिल्मों लगान, स्वदेस और जोधा अकबर का उदाहरण देकर सवाल उठाया है कि ऐसी कल्ट और क्लासिक फिल्मों के निर्देशक से कैसे चूक हो गई?
ह्वाट्स योर राशि? और आशुतोष के बारे में फैल रही भ्रांतियों के बारे में कुछ बातों को समझना जरूरी है। मुंबई में अंग्रेजी समीक्षकों का एक प्रखर समूह है, जो भारतीयता, भारतीय परंपरा, भारतीय मूल्य और भारतीय शैली की हिंदी फिल्मों से बिदकता है। उन्हें विदेशी शैली की नकल या प्रेरणा से बनी हिंदी फिल्मों में नवीनता दिखती है। वे उसकी प्रशंसा करते नहीं अघाते। अगर इन समीक्षकों का गहरा अध्ययन करें, तो पाएंगे कि वे हमारे कथित पॉपुलर फिल्म मेकर की तरह भारतीय समाज, इतिहास और अस्मिता से कटे हुए हैं। उन्हें भारतीय किस्सा-कहानी और मिथकों की जानकारी नहीं है। ग्रीक देवता और विदेशी शहरों के वृहद जानकार इन समीक्षकों से अगर जौनपुर शहर और रामायण के अंगद के बारे में पूछ दें, तो वे आपको किसी म्यूजियम से आया व्यक्ति समझेंगे। फिल्म मेकर और समीक्षकों का यह खतरनाक समूह सायास और अनायास तरीके से भारतीय मूल्य, सोच और परंपरा की फिल्मों को खारिज करने में लगा है। उनकी सोच और विचारधारा के वर्चस्व के लिए यह जरूरी है। मुझे याद है कि इनमें से कुछ समीक्षकों ने आशुतोष की स्वदेस और जोधा अकबर को भी खारिज किया था। स्वदेस में उनकी शिकायत थी कि आशुतोष ज्यादा गंभीर हो गए हैं और उन्होंने शाहरुख खान का सही इस्तेमाल नहीं किया है। इसी प्रकार जोधा अकबर को कुछ समीक्षकों ने अंतहीन इतिहास कहा था। आज वे समीक्षक स्वदेस और जोधा अकबर को क्लासिक मान रहे हैं। निश्चित ही फिल्में दर्शकों की संलग्नता से बड़ी और छोटी होती है। कई बार रिलीज के समय खारिज की जा चुकी फिल्में समय बीतने के बाद क्लासिक और लोकप्रिय हो जाती हैं। चूंकि ज्यादातर आलोचक भविष्य के संदर्भ में वर्तमान का वस्तुगत आकलन और विश्लेषण नहीं कर पाते, इसलिए वे ऐसी सार्थक और गंभीर फिल्मों के प्रति जल्दबाजी में गलत निष्कर्ष निकाल बैठते हैं। आशुतोष की ह्वाट्स योर राशि? के साथ इन दिनों यही चल रहा है। मुमकिन है कि उनकी अगली फिल्म के समय उन्हें ह्वाटस योर राशि? अच्छी लगने लगे। लंबी और सामान्य बिजनेस कर रही फिल्मों को मल्टीप्लेक्स के मैनेजर और मालिक भी अधिक पसंद नहीं करते। फिल्म तीन घंटे से लंबी हो, तो उनका रोजाना एक शो मारा जाता है। ऐसा होने से पॉपकार्न और स्नैक्स की बिक्री भी नहीं होती। वे चाहते हैं कि ऐसी फिल्में जल्द मल्टीप्लेक्स से उतार दी जाएं। मुझे आशंका है कि दूसरे और तीसरे हफ्ते में सामान्य व्यवसाय कर रही ह्वाट्स.. के साथ भी यही होगा। दर्शकों का एक हिस्सा समीक्षकों की राय और मीडिया में लिखी-बोली जा रही बातों पर यकीन करता है और उनकी दुर्भावना और दुष्प्रचार का शिकार हो जाता है। अभी कहा जा रहा है कि ह्वाट्स.. बुरी फिल्म है। सच तो यह है कि यह हिंदी की अच्छी फिल्मों में से एक है। हां, इसमें मनोरंजन तत्व चालू किस्म के नहीं हैं, इसलिए इसके लोकप्रिय होने की संभावना कम है। बुरी और फ्लॉप के फर्क को न जाने हम कब समझेंगे!

Comments

Yayaver said…
yeh greek aur roman mythology ko janene wale he des ko barbaad kar raein hain. Na to yeh bharat ke hain, na yeh paschim ke. filmon ka criticism western parameters pe nahi hona chaheye, kyonki har samaj ke apne mulya aur paramparein hoti hain. The elites who behave more American than american themselves have no idea whats going on in this country. They just don't know that any change is best when organic—rising from the bottom rather than imposed from the top.Good article Ajay Sir
अजय जी ...फ़िल्म व्हाट्स योर राशि के बहाने आपने बहुत सी बातों पर प्रकाश डाला..धन्यवाद
सिनेमा के इस कोण पर ध्यान ले जाने के लिए. शुक्रिया
जानकर अच्छा लगा ...अब तो देखनी ही पड़ेगी

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