धन्यवाद पाकिस्तान

धन्यवाद पाकिस्तान-अजय ब्रह्मात्‍मज

सूचना आई है कि पाकिस्तान के अधिकारियों ने पेशावर स्थित दिलीप कुमार के पुश्तैनी घर को खरीद लिया है। वे इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर रहे हैं। इरादा है कि दिलीप कुमार के पुश्तैनी घर को म्यूजियम का रूप दे दिया जाए, ताकि स्थानीय लोग अपने गांव की इस महान हस्ती को याद रख सकें और देश-विदेश से आए पर्यटक एवं सिनेप्रेमी दर्शन कर सकें। पेशावर अभी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में है। वहां के मंत्री इफ्तिखार हुसैन ने दिलीप कुमार के घर को संरक्षित करने में दिलचस्पी दिखाई है। उन्होंने पिछले साल दिसंबर में ही घोषणा की थी कि दिलीप कुमार और राज कपूर के घरों को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया जाएगा।

पाकिस्तानी अधिकारियों की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। भारत सरकार को सबक भी लेना चाहिए। भारतीय सिनेमा के सौ साल होने जा रहे हैं, लेकिन हमारे पास ऐसा कोई राष्ट्रीय संग्रहालय नहीं है जहां हम पॉपुलर कल्चर की विभूतियों से संबंधित सामग्रियों का अवलोकन कर सकें। पूना स्थित फिल्म अभिलेखागार की सीमित भूमिका है। उसके बारे में हमारे फिल्मकार भी नहीं जानते। वे अपनी फिल्मों से संबोधित सामग्रियां और स्मृति चिह्न वहां नहीं भेजते। किसी ने कभी सुझाया भी तो वे रुचि नहीं दिखाते। मुंबई में भी ऐसा कोई स्थान या केंद्र नहीं है, जो पर्यटन की दृष्टि के साथ इतिहास के संरक्षण के लिहाज से स्थापित किया गया हो। महाराष्ट्र सरकार भी इस दिशा में फैसला ले सकती है।

आजादी के आसपास पांचवें दशक के उत्तरा‌र्द्ध में मुंबई फिल्म निर्माण और व्यवसाय के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा। पूरे देश से प्रतिभाओं ने मुंबई को ठिकाना बनाया। मुंबई में उन्होंने अपना आवास खरीदा, बंगले बनाए और दशकों तक उनमें रहे। शहरीकरण के दबाव के बाद ये पुराने बंगले बहुमंजिली इमारतों में तब्दील हो रहे हैं। सारे बंगले और स्टूडियो टूट रहे हैं। उनके संरक्षण की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। दिलीप कुमार का पेशावर स्थित घर तो बचा लिया गया, लेकिन मुंबई के बांद्रा इलाके में पाली हिल स्थित उनका निवास बहुमंजिली इमारतों से घिर गया है। उनके बंगले का एक हिस्सा ऐसी ही इमारत की शक्ल ले चुका है। क्या दिलीप कुमार के बंगले के बचे हिस्से को बचाया और संरक्षित किया जा सकता है? राज कपूर का आर के स्टूडियो अच्छी हालत में नहीं है। कपूर परिवार के रणबीर कपूर और करीना कपूर अपने खानदान की दुहाई देकर दर्शकों का समर्थन हासिल कर लेते हैं, लेकिन क्या कभी अपने दादा के योगदान को पूरी दुनिया के लिए सार्वजनिक करने के बारे में उन्होंने कभी कुछ सोचा? आर के स्टूडियो के एक गोदामनुमा कमरे में राज कपूर की सभी फिल्मों के परिधान रखे हुए हैं। इस स्टूडियो को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जा सकता है। ऐसा ही देव आनंद का बंगला है। आज नहीं तो कल वह भी टूट जाएगा। उनका आनंद स्टूडियो पहले ही इमारत में तब्दील हो चुका है। अमिताभ बच्चन की प्रतीक्षा को भी सरकार अपने कब्जे में ले या उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन से रोके। सही में ये सब पॉपुलर कल्चर के अनोखे आधुनिक तीर्थ स्थान हैं।

दिलीप कुमार और राज कपूर के पेशावर स्थित घरों के संरक्षण से याद आया कि हिंदी फिल्मों के विकास में लाहौर की बड़ी भूमिका रही है। आजादी के पहले हिंदी फिल्मों के तीन केंद्र थे -मुंबई, कोलकाता और लाहौर। आजादी के बाद देश के बंटवारे से लाहौर की फिल्म इंडस्ट्री ने पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री का रूप लिया, लेकिन धीरे-धीरे सरकारी उदासीनता से लाहौर की फिल्म इंडस्ट्री ने दम तोड़ दिया। पुराने स्टूडियो टूट गए। जो बचे हैं, उनमें केवल टीवी शो की शूटिंग होती है। अगर पाकिस्तान लाहौर के लुप्त लिंक को जिंदा करे और उसे दुनिया के सामने लाए, तो हिंदी फिल्मों के विकास में लाहौर के महत्वपूर्ण योगदान को समझने में मदद मिलेगी।

फिलहाल पाकिस्तान के उच्चअधिकारियों को बधाई कि उन्होंने हिंदी फिल्मों के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार के पुश्तैनी घर को भविष्य के लिए सुरक्षित और संरक्षित किया। अब हमें राज कपूर के पुश्तैनी घर के अधिग्रहण की खबर का इंतजार है।

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