फिल्म समीक्षा : एक मैं और एक तू

डायनिंग टेबल ड्रामाडायनिंग टेबल ड्रामा

-अजय ब्रह्मात्‍मज

करण जौहर निर्माता के तौर पर एक्टिव हैं। कुछ हफ्ते पहले उनकी अग्निपथ रिलीज हुई। एक्शन से भरी वह फिल्म अधिकांश दर्शकों को पसंद आई। इस बार वे रोमांटिक कामेडी लेकर आए हैं। वसंत का महीना प्यार और रोमांस का माना जाता है। अब तो 14 फरवरी का वेलेंटाइन डे भी मशहूर हो चुका है। इस मौके पर वे करीना कपूर और इमरान खान के डेट रोमांस की फिल्म एक मैं और एक तू किशोर और युवा दर्शकों को ध्यान में रखकर ले आए हैं। करण जौहर की ऐसी फिल्मों की तरह ही इसका लोकेशन भी विदेशी है। वेगास से आरंभ होकर यह फिल्म नायक-नायिका के साथ मुंबई पहुंचती है और डायनिंग टेबल ड्रामा के साथ समाप्त होती है। और हां,इस फिल्म के निर्देशक शकुन बत्रा हैं।

अचानक मुलाकात, हल्की सीे छेडछाड़, साथ में ड्रिंक और फिर अनजाने में हुई शादी बता दें कि कहानी में लड़का थोड़ा दब्बू और लड़की बिंदास है। यूं इस फिल्म की अन्य महिला किरदार भी यौन ग्रंथि की शिकार दिखती हैं। मुमकिन है विदेशों में लड़कियां यौन संबंधों को लेकर अधिक खुली और मुखर हों।

राहुल और रियाना अनजाने में हुई अपनी शादी रद्द करवाने के चक्कर में दो हफ्ते मिलते और साथ रहते हैं। रियाना के संसर्ग में आकर राहुल बदलता ही नहीं है। वह रियाना से प्यार भी करने लगता है। रियाना उसके प्यार का तूल नहीं देती। वह उसे सिर्फ दोस्त समझती है। थोड़े मान-मनौव्वल के बाद दोनों प्यार के बराबर एहसास को महसूस करते हैं।

नयी सोच और भाषा की यह प्रेम कहानी हिंदी फिल्मों के आम दर्शकों के लिए थोड़ी मुश्किल हो सकती है क्योंकि संवादों में अंग्रेजी धड़ल्ले से इस्तेमाल हुई है। शहरी और कॉलेज के युवकों को प्रेमकहानी की यह नई शैली पसंद आ सकती है। शकुन बत्रा ने एक छोटी सी कहानी को लंबा खींचा है। इसलिए इंटरवल के पहले कहानी आगे बढ़ती नहीं लगती। भारत आने के बाद अन्य किरदार जुड़ते हैं और घटनाएं तेजी से घटती हैं। डायनिंग टेबल ड्रामा अच्छी तरह से लिखा और शूट किया गया है।

राहुल का किसी ज्वालामुखी की तरह फटना फिल्म का चरम बिंदु है। इमरान ने दृश्य की जरूरत के मुताबिक मेहनत की है। करीना कपूर का अभिनय प्रवाह देखते ही बनता है। इस फिल्म को देखते हुए जब वी मेट की गीत का खयाल आना स्वाभाविक है, लेकिन दोनों में फर्क है। करीना ने अपने दोनों किरदारों को एक सा नहीं होने दिया है। बाकी कलाकार और किरदार भरपाई के लिए हैं। अमिताभ भट्टाचार्य के एक गीत में पानी का बहुवचन पानियों सुनाई पड़ता है। यह प्रयोग कितना उचित है? अमित त्रिवेदी धुनों की नवीनता केसाथ यहां मौजूद हैं। आंटी जी अमित और अमिताभ का मजेदार म्यूजिकल क्रिएशन है।


*** तीन स्टार

Comments

अच्छी समीक्षा और सटीक प्रश्न। अमिताभ के गीत में पानियों के प्रयोग के बारे में कुछ संदर्भ हैं - जया जादवानी की किताब का शीर्षक है - `अंदर के पानियों में कोई सपना कांपता है...'। मीत ब्रदर्स की पेशकश भी याद होगी - `टप टप पानियों पे बूंद पड़े...'। अब्दुल बिस्मिल्लाह की एक मशहूर कविता है - पांच पानियों का देश...वहीं परवीन शाकिर की ग़ज़ल - `पानियों पानियों जब चांद का हाला उतरा / नींद की झील पे एक ख़्वाब पुराना उतरा' खासी चर्चित है। ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव की भी एक कृति है - `ले गया दिल में दबा कर राज़ कोई / पानियों पर लिख गया आवाज़ कोई'... चुनांचे, कहना बस इतना चाहता हूं कि पानियों का प्रयोग खूब होता रहा है। ये कितना सही और कितना ग़लत, ये तो अदीब ही बताएंगे... चलते-चलते, गुलज़ार साहब की इन पंक्तियों का भी सनद के तौर पर तज़िकरा -

छई छप्पा छई छप्पा के छई
पानियों में छीटें उड़ाती हुई लड़की
देखी है हमने
आती हुई लहरों पे जाती हुई लड़की :)
Seema Singh said…
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Seema Singh said…
करण-जौहर कृति इस फिल्म के शुरुआती द्रश्यों में लगता है -फिल्म कारके पास एक अच्छी कहानी की विषय -वस्तु को लेकर -उदेश्य पूर्ण मनोरंजक फिल्म बनाने का इरादा था किन्तु -आगे चलकर लगता है फिल्म रूपी जहाज से बुनियादी लेखक गायब हो गया ?सो परिणामत: फिल्म -निर्माण की संसाधन -व्यवस्था में निपुण व अनुभवी -निर्माता -करण जौहर और निर्देशक ने कहानी को -पाश्चात्य जीवन -शैली की भरपूर जलेबाई
चशनी का तड़का डालकर बना डाली एक .......एक........फिल्म -जो व्यवसायिक द्रष्टि से बहुसंख्यक देशी युवा जमात को वैलेंटाइन -विक के अवसर पर गुदगुदाने के लिए काफी भरपूर मसाला है ।वैसे कलाकारों की द्रष्टि से बिदास- करीना पूरी की पूरी फिल्म की जान हैं ,लगभग अस्सी प्रतिशत द्रश्यों पर उनका कब्जा था ,{बाकी कलाकार जरूरत के हिसाब से ......} जो हर कोण से प्रभावी ,सुंदर ,खुबसूरत ,प्यारी ,आकर्षक ,आदि आदि लगी ।एक रोचक प्रसंग - फिल्म देखते समय हाल में पीछे बैठे कुछ युवा बोल रहे थे -क्या करीना सचमुच में शादी ....?
Himantika said…
एक अच्छे विषय-वस्तु के साथ बनायीं गयी छोटी फिल्म जो आपका (कम से कम मेरा तो ) ध्यान आकर्षित करती है..।फिल्म के कुछ दृश्य बेहद खूबसूरती से बन पड़े हैं, खासकर वो दृश्य जब करीना का इमरान को एक 'सेकंड हैण्ड' कैमरा गिफ्ट करना और इमरान का भावुक हो जाना.। कहना गलत नहीं होगा कि करीना फिल्म की जान हैं, और साथ ही फिल्म का संगीत भी.. अमित त्रिवेदी तथा अमिताभ भट्टाचार्या के कोम्बिनेसन ने एक बार फिर कमाल किया है, खासकर 'गुब्बारे' गीत सराहनीय है। कुल मिलाकर मसाला फिल्मों से अलग एक नए कॉन्सेप्ट के साथ बनायीं गयी एक मनोरंजक फिल्म । निर्देशक कि कोशिश सराहनीय है ।

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