खुद के प्रति सहज हो गई हूं-दीपिका पादुकोण



-अजय ब्रह्मात्मज
    शाह रुख खान के साथ दीपिका पादुकोण की तीसरी फिल्म है ‘हैप्पी न्यू ईयर’। सभी जानते हैं कि उनकी पहली फिल्म ‘ओम शांति ओम’ शाह रुख खान के साथ ही थी। दूसरी फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के समय तक दीपिका पादुकोध की स्वतं। पहचान बन चुकी थी। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई है। अगर शाह रुख के समकक्ष मानने में आपत्ति हो तो भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि वह कम भी नहीं हैं।
    बहरहाल,तीनों फिल्मों की बात चली तो दीपिका ने कहा,‘पिछली दो फिल्मों में ज्यादा गैप नहीं है,इसलिए कमोबेश समान अनुभव रहा। ‘ओम शांति ओम’ के समय मैं एकदम नई थी। उस फिल्म को मैंने उतना एंज्वॉय नहीं किया था,जितना मैं आज करती हूं। पहली फिल्म के समय घबराहट थी। पहली बार शाह रुख और फराह के साथ काम कर रही थी। उसके पहले कभी फिल्म सेट पर नहीं गई थी। हर चीज मेरे लिए नई थी। ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के बाद मैं शाह रुख के साथ ज्यादा कंफर्टेबल हूं। अब मैं उन्हें को-स्टार नहीं मानती। वे मेरे अच्छे दोस्त हैं। मैं जानती हूं कि कभी उनकी जरूरत पड़ी तो वे मेरे साथ रहेंगे। ऐसी दोस्ती हो तो फिल्में आसान हो जाती हैं। केमिस्ट्री और कंफर्ट बढ़ जाता है। इस बार फराह भी थीं। मुझे ‘ओम शांति ओम’ की याद आ रही थी। उस समय फराह ने मुझे खूब डांटा और सिखाया। इस बार उन्होंने कहा कि मैं अच्छी एक्ट्रेस हो गई हूं। सब कुछ अपने आप कर लेती है। फराह मानती हैं कि मैंने सीखा है।’
    दीपिका के अभिनय और प्रेजेंस में निखार की बात करें तो उसकी शुरुआत ‘दम मारो दम’ से होती है। इस फिल्म के आयटम गीत ‘ऊंचे से ऊंचा बंदा’ में दीपिका पहली बार प्रज्वलित हुईं। अभिनय की उनकी लौ को सभी ने महसूस किया। इस फिल्म के बाद उनका करिअर रोशन हुआ। अब वह चमक रहा है। दीपिका ने सहमति जाहिर की,‘ मैं आप की राय से सहमत हूं। उस गीत में जो झलक थी, ‘कॉकटेल’ में वह निखर गया। वैरोनिका के कैरेक्टर को सही ढंग और संदर्भ में निभा सकी। कई सारे फैक्टर एक साथ काम किए। मुझे भी लगता है कि वहां से मेरे अंदर कंफीडेंस आया। उसके पहले परफारमेंस करते हुए कई बातें दिमाग में चलती रहती थीं। अपने बारे में शंकाएं कम हो जाएं और अपनी अपीयरेंस को लेकर आप कंफीडेंट हों तो वह पर्दे पर दिखता है।’ दीपिका अपने कद को लेकर बहुत परेशान रहती थीं। अब उनकी झिझक खत्म हो गई है। वह कद ही विशेषता बन कर अभिनेत्री के रूप में उनका कद बढ़ा रहा है। दीपिका ने आगे जोड़ा,‘बिल्कुल सही आब्जर्वेशन है आप का। मैं तो कहूंगी कि जो फिल्में नहीं चलीं,उनसे मुझे सीखने का मौका मिला। अपनी कमियां नजर आईं। अपनी असफलता से मुझे लाभ ही हुआ। करिअर के बारे में सही फैसले लेने की समझ आई। मैं फिल्मी परिवार से नहीं हूं। फिल्में करते-करते ही मैं खुद के प्रति सहज हो गई हूं। अभी दुविधा नहीं रहती। हो या ना कह देती हूं। रिस्क लेने के लिए भी तैयार हूं।’
    हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों की इमेज और रोल में काफी बदलाव आए हैं। दीपिका ने अपने अनुभवों से बताया,‘पहले की अभिनेत्रियों को एस्पीरेशनल रोल मिलते थे। दर्शकों में महिलाएं उनकी तरह होना चाहती थीं। अभी की अभिनेत्रियों की भूमिकाओं में दृष्टिकोण बदल गया है। कुछ फिल्मों में उनका शरीर ही दिखाया जाता है। बाकी  सामान्य तौर पर हमारे किरदारों में दर्शक खुद को देख सकते हैं। ‘कॉकटेल’ और ‘ये जवानी है दीवानी’ उदाहरण हैं। ‘ ़ ़ ऱामलीला’ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ के किरदार लार्जर दैन लाइफ होते हैं।’ दीपिका इस धारणा से सहमत नहीं होती कि हिंदी फिल्मों में हीरोइनों को सेक्स सिंबल के तौर पर ही पेश किया जाता है। उन्होंने स्पष्ट कहा,‘यह डायरेक्टर पर डिपेंड करता है। मेनस्ट्रीम फिल्मों में भी अब रियल किरदार दिखने लगे हैं।’ ‘हैप्पी न्यू ईयर’ में बार डांसर मोहिनी का किरदार निभा रही हैं दीपिका पादुकोण। अपने किरदार के बारे में उन्होंने बताया,‘मोहिनी अपने डांस को कला मानती है। फिल्म में अभिषेक मेरा परिचय बाकी किरदारों से करवाते हैं। मैं उन्हें डांस सिखाती हूं। वल्र्ड चैंपियनशिप के लिए तैयार करती हूं।’ इस किरदार के लिए दीपिका ने मराठी लहजे पर मेहनत की। पिछली चार-पांच फिल्मों से उनके संवादों में लहजे की भिन्नता दिख रही है। दीपिका को अपनी फिल्मों के सारे किरदारों के नाम तक याद हैं। उन्होंने इसका राज खोला,‘ये सभी किरदार अलग-अलग हैं,इसीलिए याद हैं। अगर एक जैसे रोल करने लगूंगी तो शायद नाम और किरदार याद न रहें।’

Comments

Anonymous said…
एक कलाकार को इतना समय तो लगता ही है खुद को जानने में....जब भाषा की बारीकियों की समझ आने लगी है और फिल्म के केमरामेन भी सब एंगल टेस्ट कर चुके हों. चैलेंज अब शुरू होता है जब आपको फिल्म अपने कंधे पर ले के चलनी हो. "फाइंडिंग फैनी" जैसी फिल्म जिसमे कुछ करने की अपेक्षा थी आपने निराश ही तो किया है. अगर आप खान फिल्म में है तो खान साहेब तो फिल्म को खूबसूरत बना ही लेंगे....लेकिन दिक्कत आती है वो फ़िल्में जहाँ बन्दूक आपके काँधे पर रखी हो. कैमरे के सामने आप सहज हों या अपनी निजी लाइफ में दर्शक को इससे क्या लेना देना है....उसे तो पैसा वसूल चाहिए....आशा है बात ठीक लगेगी......

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